.सृजन -मूल्यांकन / मुकेश प्रत्यूष
देव औरंगाबाद बिहार 824202 साहित्य कला संस्कृति के रूप में विलक्ष्ण इलाका है. देव स्टेट के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर अपने जमाने में मूक सिनेमा तक बनाए। ढेरों नाटकों का लेखन अभिनय औऱ मंचन तक किया. इनको बिहार में हिंदी सिनेमा के जनक की तरह देखा गया. कामता प्रसाद सिंह काम और इनकi पुत्र दिवंगत शंकर दयाल सिंह के रचनात्मक प्रतिभा की गूंज दुनिया भर में है। प्रदीप कुमार रौशन और बिनोद कुमार गौहर की भी इलाके में काफी धूम रही है.। देव धरती के इन कलम के राजकुमारों की याद में .समर्पित हैं ब्लॉग.
गुरुवार, 28 सितंबर 2023
लोकार्पण का मेगा शो
आज दिनांक 28.09.2023 को इडिंया इन्टरनेशनल सेन्टर के एनेक्स भवन के भूतल पर दो रचनाकारों के द्वारा रचित काव्यों के विमोचन का कार्यक्रम था....
जिसमे से एक रचनाकार इस सस्थां की माननीय सम्मानजनक सदस्या है...
रचनाकार की रूचि....
दो दिनों से लगातार इस ग्रुप के सदस्यों को पूरे पते के साथ आमन्त्रित कर रही थी..और लोगों ने इनके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुये अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराया...उनमे से एक मै भी था...
कार्यक्रम का आकर्षण...
1) पहला यह कि मचं पर गणमान्य बुद्धिजीवी सम्मानित श्रेष्ठ लोग विराजमान थे...शायद उनके शब्दों को सुनने के लिये समय ने भी अपनी प्रतिबद्धता बांध रखा था..जिसके अनुरूप लोगों ने अपना अपना उदबोधन दिया...वातावरण भी शान्त होकर शब्दों का अवलोकन कर रहा था....
2) दुसरा यह कि जब आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने अपना उदबोधन दिया तो एक बड़ा ही सटीक और मार्मिक वाक्य बोला कि आज ये जो श्रोता बैठे है वो शायद सबसे बेहतर है...ये शब्द वाकई मन के विचारों मे सामजंस्य बिठाने योग्य थे और दिल को छु लेने वाले थे...मुझे सिर्फ यही एक वाक्य याद रह गया...बाकी उन्होंने कुछ कविताओं के पक्तियों का भी जिक्र किया था...खैर आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने जो बोला वो प्रशंसनीय था..
3) तीसरा यह कि मचं पर यदि गुणवत्ता वाले लोग थे तो श्रोताओं मे भी सभी लोग गुणवत्ता वाले थे...तात्पर्य उदबोधन करने वाले आदरणीय लोगों को एकटक देखते हुये उनके एक एक शब्द को कड़ियों मे पिरो रहे थे...मतलब बड़े आराम से सुन रहे थे...प्रत्येक श्रोता तारीफे काबिल थे....
4) सस्थां की रचनाकार ने अपने काव्य के विमोचन के लिये जो वातावरण तैयार करना था...उन्होंने बखूबी किया अपने मेहनत लगन से...
5) खास बात कि रचनाकार ने अपने काव्य मे रचनात्मक तरीके से उन सभी वीरांगनाओं का जिक्र किया है जो जो उनके जेहन मे थे...या आते गये...हालांकि यूं देखा जाये तो पूरे देश मे अनगिनत वीरागंनायें ऐसी और भी है जिनका न तो इतिहास मे कहीं जिक्र है...न ही पुरातन विभाग मे...न ही केन्द्रीय पुस्तकालय मे, यदि उनका जिक्र है तो उस प्रदेश मे रहने वाले उन स्थानीय लोगों मे जो उन्हें अपनी मां दीदी मानते है, केरल की ही एक ऐसी वीरांगना है जिन्होंने राजा के आदेशों के खिलाफ पोशाक पहन लिया और जब राजा ने सजा सुनाया आदेशानुसार तो राजा के फरमान आने से पहले ही उन्होंने अपने शरीर का एक खास अगं काटकर अन्दर से भिजवा दिया (राजा के सिपाही हैरान कि फरमान पहुंचा भी नही और उसने उससे पहले ही...)...हालांकि शरीर के कटे अगं मे दर्द इतना था कि असहनीय था...जिसके कारण चन्द रोज मे ही उनके प्राण पखेरु हो गये...किन्तु जाते जाते उस निर्दयी राजा को सोचने के लिये मजबूर कर दिया और वो राजा अपने कानून को बदलने के लिये विवश हो गया...और बदल भी दिया...जिसके कारण वो वीरांगना आज उस क्षेत्र मे देवी मां के (उनका मन्दिर बनवाया है वहीं पर उसी गावं मे स्थानीय लोगों ने)रूप मे पूजी जातीं है...ऐसे ही एक और वीरांगना जो सेल्युलर जेल मे हथकड़ियों मे बन्द थी, अग्रेंज यातनाओं पर यातनाएं दे रहे थे मगर वो टस से मस नही हुयी..न हो रहीं थी, अग्रेंजो को इतना गुस्सा आया कि हथकड़ियों मे बन्द उस वीरागंना के शरीर का खास अगं काटकर लेके चले गये...वीरागंना दर्द मे कराहा...तड़पा..मगर अग्रेंजों के सामने घुटने नही टेके...उनकी भी मृत्यु उसी दर्द के कारण उसी जेल मे हुआ..मगर उनका भी जिक्र कहीं नही है...ऐसे ही मालदा शहर ( वेस्ट बगांल) मे भी कुछ वीरांगना थी जिन्होंने बहुत कुछ खोया था..है...मगर आवाज बुलन्द था तो बुलन्द था...शहीद हो गयी...अग्रेंजो के बन्दूक की गोलियां खा ली...मगर झुकी नही...
6) खैर आजादी के इतिहास के पन्नों को ठीक (महीन बारीकी से सूक्ष्मता के साथ) से खगांला (उन प्रदेशों के स्थानीय क्षेत्रों मे भ्रमण के द्वारा)जाये तो शायद गिनतीयां कम पड़ जाये...
कार्यक्रम का एक खास आकर्षण और था कि सस्थां की सदस्य बड़ी ही शालीनता के साथ सबसे मिल रहीं थी...अभिवादन स्वीकार भी कर रहीं थी तो अभिन्दन भी कर रही थी...एक ऐसी अन्जान महिला से भी मिल रही थी और उसके बातों का जवाब शिष्टतापूर्वक दे रहीं थी..जिसपर कई लोगों की अचरच भरी निगाहें थी.. देख रही थी...
एक और आकर्षण था अल्पाहार मे जो काफी सुन्दर तरीके से सुसज्जित था और लोग लुत्फ के साथ आनन्द ले रहे थे...
अन्त मे यही कहुंगा कि सस्थां की सदस्या ने दिल्ली के व्यस्ततम क्षेत्र के व्यस्ततम भवन मे कार्यक्रम का सृजन कर आयोजित किया वो और उनके पारिवारिक सदस्य सभी बधाई के योग्य है..मै उनका आभार प्रकट करता हुं इतने अच्छे कार्यक्रम मे सभी को आमंत्रित करने के लिये....
सस्थां के सदस्या सबसे प्रिय छोटी बहन का नाम श्रीमती रिकंल शर्मा (कौशम्बी, गाजियाबाद निवासी) है...जो अक्सर कार्यक्रम मे अपनी विशेष प्रस्तुति से सबके दिलो दिमाग विचारों मे अपनी अलग जगह बना लेतीं है...
लेखन मे उनकी कलम और गतिशील हो, नयी रचनाओं मे नये अन्वेषण हो. ये मगंलकामना करता है..👌
सोमवार, 25 सितंबर 2023
मदद
किसी जंगल में एक गधा रहता था । उसने बाकी जानवरों से कहना आरंभ कर दिया कि शेर एक अच्छा राजा नहीं है । उसमें कोई दम नहीं है । संकट के समय वह तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा । इसलिए तुम सब लोग मुझे अपना राजा मान लो ।
सभी जानवर हंसने लगे । गधा अपने आप को ताकतवर दिखाने के लिए सुरक्षित दूरी से शेर को गालियां बकने लगा । उस पर तरह-तरह के आरोप लगाने लगा । वह शेर को चैलेंज करने लगा कि हिम्मत है तो मुझसे लड़ कर दिखा ।
शेर ने गधे को पूरी तरह इग्नोर किया और अपना काम करता रहा। थक हार कर गधा वापस चला गया । और बाकी जानवरों को बताया कि शेर बिल्कुल कमजोर है । मैंने उसे इतनी गालियां दीं , चैलेंज किया, पर वह चुपचाप सुनता रहा ।
बकरी, खरगोश और चूहे जैसे कुछ जानवर , जो गधे का एहसान मानते थे क्योंकि गधा उन्हें भोजन के लिए घास के मैदानों का पता बताता था, वे गधे की हां में हां मिलाने लगे ।
गधे के जाने के बाद शेर के महामंत्री हाथी ने उससे पूछा," महराज!! वो गधा आपको इतनी गालियां बकता रहा, आपको लड़ने के लिए ललकारता रहा। फिर भी आप चुप क्यों रहे ? चहते तो पंजे के एक वार से ही उसका काम तमाम कर सकते थे? या मुझे आदेश देते , मैं उसकी चटनी बना देता ? इससे आपकी धाक क़ायम रहती ?
शेर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " हाथी भाई !! इसके तीन कारण हैं ।
पहला अगर मैं या आप गधे से लड़ते तो बाकी जानवर यह कहते कि हमारा राजा बड़ा तानाशाह है । भला गधे जैसे निरीह प्राणी से भी कोई लड़ता है ?
दूसरे लड़ाई में गधा मर जाता तो उसकी मां ,परिवार वाले और चमचे उसे शहीद बता कर बाकी जानवरों की सहानुभूति अर्जित करते और हमारे खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाते ।
तीसरे गधे के परिवार को फायदा मिलता देख कई दूसरे जानवर भी शहीद बनने की जुगाड़ में लग जाते ।
मैं गधे या उसके साथियों की वजह से राजा नहीं हूं।
न अभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते वने,
विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।
अर्थ :- जंगल में सिंह का राज्याभिषेक संस्कार आदि कुछ नहीं किया जाता । उसके पराकृम के कारण उसे स्वयमेव राजा-पद अर्जित हो जाता है ।
नोट : कृपयाइस कहानी का राजनैतिक अर्थ न लगाए।
शनिवार, 23 सितंबर 2023
मथुरा* / डॉ. वेद मित्र शुक्ल
मथुरा पर केंद्रित दो रचनाएं 🙏
वेद मित्र शुक्ला
*1.*
कृष्ण भजन में डूबी राधे राधे जपती मथुरा प्यारी,
भोग, आरती, माखन-मिश्री की अलमस्ती मथुरा प्यारी|
पूजें पूरी ब्रज-अवनी को, पग-पग जन्मी कथा कृष्ण की,
पर, उर में तो पुण्यभूमि यह पावन धरती मथुरा प्यारी|
सजते हैं कुरुक्षेत्र मगर मत भूलें, देखो, रंगभूमि को,
युग हो कोई भी कंसों का वध तय करती मथुरा प्यारी|
साथ-साथ हैं वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, बरसाना सब,
हँसते-गाते यमुना के घाटों पर बसती मथुरा प्यारी|
जन्माष्टमी पर्व हो या हो लट्ठमार होली रंगीली,
'जीवन है उत्सव' संदेशा देती रहती मथुरा प्यारी|
*2.*
आसाँ कब वसुदेव-देवकी होकर तप करना मथुरा में,
समझी यह संघर्ष-कथा सो अच्छा था रुकना मथुरा में|
अपनों की कारा में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है जो -
वह तो ही है कृष्ण-जन्म का एक रात घटना मथुरा में|
बारिश, बाढ़, अमावस हों या कंस-राज, मुश्किलें बड़ी, पर
धर्म यही वसुदेव भाँति हो क्रांति-कथा गढ़ना मथुरा में|
गोकुल औ वृंदावन माना हृदय बीच बसते हैं, लेकिन -
कृष्ण सिखाते कर्तव्यों की खातिर है बसना मथुरा में|
महसूसो वह 'जन्मभूमि' जो कारा के भीतर थी जकड़ी,
'रंगभूमि' फिर जहाँ पाप का निश्चित था मिटना मथुरा में|
(सौ.- राष्ट्रधर्म, सितंबर 2023, पृ. 10)
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid032kgN7NYXchBaFnbQ3sdaHrkX8d6n9ieivP3T37FdbiMD4XY6E2ZE6csR7at2XMNLl&id=1113073210&mibextid=Nif5oz
हिंदी वर्णमाला संकलित कविता
*पति-पत्नी की नोक झोंक में प्रयुक्त सम्पूर्ण हिंदी वर्णमाला संकलित कविता...*
😆😆
*मुन्ने के नंबर कम आए,*
*पति श्रीमती पर झल्लाए*,
*दिनभर मोबाइल लेकर तुम,*
*टें टें टें बतियाती हो...*
*खा़क नहीं आता तुमको,*
*क्या मुन्ने को सिखलाती हो?*
*यह सुनकर पत्नी जी ने,*
*सारा घर सिर पर उठा लिया l*
*पति देव को लगा कि ज्यों,*
*सोती सिंहनी को जगा दिया l*
*अपने कामों का लेखा जोखा,*
*तुमको मैं अब बतलाती हूँ l*
*आओ तुमको अच्छे से मैं,*
*क ,ख, ग,घ सिखलाती हूँ l*
*सबसे पहले "क" से अपने,*
*कान खोलकर सुन लो जी..*
*"ख"से खाना बनता घर में,*
*मेरे इन दो हाथों से ही!*
*"ग"से गाय सरीखी मैं हूँ,*
*तुम्हें नहीं कुछ कहती हूँ* l
*"घ" से घर के कामों में मैं,*
*दिनभर पिसती रहती हूँ* l
*पतिदेव गरजकर यूँ बोले..*
*"च" से तुम चुपचाप रहो*
*"छ" से ज्यादा छमको मत,*
*मैं कहता हूँ खामोश रहो!*
*"ज" से जब भी चाय बनाने,*
*को कहता हूँ लड़ती हो..*
*गाय के जैसे सींग दिखाकर,*
*"झ" से रोज झगड़ती हो!*
*पत्नी चुप रहती कैसे,*
*बोली "ट" से टर्राओ मत*
*"ठ" से ठीक तुम्हें कर दूँगी..*
*"ड" से मुझे डराओ मत!*
*बोले पतिदेव सदा आफिस में,*
*"ढ" से ढेरों काम करूँ..*
*जब भी मैं घर आऊँ,*
*"त" से तुम कर देतीं जंग शुरू!*
*"थ" से थक कर चूर हुआ हूँ..*
*आज तो सच कह डालूँ मैं!*
*"द" से दिल ये कहता है...*
*"ध" से तुमको धकियाऊँ मैं!*
*बोली "न" से नाम न लेना,*
*मैं अपने घर जाती हूँ!*
*"प" से पकड़ो घर की चाबी*
*मैं रिश्ता ठुकराती हूँ!*
*"फ" से फूल रहे हैं छोले,*
*"ब" से उन्हें बना लेना l*
*" भ" से भिंडी सूख रही हैं,*
*वो भी तल के खा लेना...!!*
*"म" से मैं तो चली मायके,*
*पत्नी ने बांधा सामान l*
*यह सुनते ही पति महाशय,*
*के तो जैसे सूखे प्राण*
*बोले "य" से ये क्या करती*
*मेरी सब नादानी थी...*
*"र" से रूठा नहीं करो.....*
*तुम सदा से मेरी रानी थी!*
*"ल" से लड़कर कहते हैं कि..*
*प्रेम सदा ही बढ़ता है!*
*"व" से हो विश्वास अगर तो,*
*रिश्ता कभी न मरता है l*
*"श" से शादी की है तो हम,*
*"स" से साथ निभाएंगे...*
*"ष" से इस चक्कर में हम....*
*षटकोण भले बन जाएंगे!*
*पत्नी गर्वित होकर बोली,*
*"ह" से हार मानते हो!*
*फिर न नौबत आए ऐसी*
*वरना मुझे जानते हो!*
*"क्ष" से क्षत्राणी होती है नारी*
*" त्र" से त्रियोग भी सब जानती है*
*"ज्ञ" से हे ज्ञानी पुरुष! चाय पियो*
*और खत्म करो यह राम कहानी!*
🤣🤣🤣🤑🤑🤣🤣
हिन्दी दिवस की बधाई 🙏🙏🙏
गुरुवार, 21 सितंबर 2023
पर इंसान परेशान बहुत है।।*/ कमल शर्मा
*अच्छी थी पगडंडी अपनी।*
*सड़कों पर तो जाम बहुत है।।*
*फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।*
*सबके पास काम बहुत है।।*
*नहीं जरूरत बुज़ुर्गों की अब।*
*हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।*
*उजड़ गए सब बाग बगीचे।*
*दो गमलों में शान बहुत है।।*
*मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।*
*कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।*
*पीते हैं जब चाय तब कहीं।*
*कहते हैं आराम बहुत है।।*
*बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*
*फोनों पर पैगाम बहुत है।।*
*आदी हैं ए.सी. के इतने।*
*कहते बाहर तापमान बहुत है।।*
*झुके-झुके स्कूली बच्चे।*
*बस्तों में सामान बहुत है।।*
*सुविधाओं का ढेर लगा है।*
* पर इंसान परेशान बहुत है।।*
मंगलवार, 19 सितंबर 2023
जात बीच में आ जाती हैं / वीणा शर्मा सागर
उगने छिपने वाले इस काम तलक़ जाते जाते
सूरज बुढिया जाता है शाम तलक़ जाते जाते ।
यूँ तो इश्क़ उन्हें इकदूजे से है परले दर्जे का
ज़ात बीच मे आ जाती है नाम तलक़ जाते जाते ।
शुरु करी तूने लेकिन सब बेकाबू हो जायेंगी
इतनी बिगड़ेंगी बातें अंज़ाम तलक़ जाते जाते ।
आग लगाने निकले थे कि राख करेंगे पलभर में
नीयत बदली बस्ती-ए- बदनाम तलक़ जाते जाते ।
भाईचारा पलभर में ही दंगे में तब्दील हुआ
अल्लाहु अकबर से लेकर राम तलक जाते जाते ।
साधू बनकर बैठे थे वो ज्ञानपीठ के आसन पर
साधू से शैतान हुये हैं धाम तलक जाते जाते ।
प्यास सहारा बनती तो है जीने का लेकिन 'सागर'
दमघोटू हो जायेगी ये बाम तलक़ जाते जाते ।
🖋️साभार
वीणा शर्मा 'सागर'
नालंदा यूनिवर्सिटी की कुछ अनकही बातें
।। ----- नालंदा विश्वविद्यालय की कुछ खास रहस्य -----।। नालंदा यूनिवर्सिटी - अभी तक के ज्ञात इतिहास की सबसे महान यूनिवर्सिटी । आज भले ही भारत...
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प्रस्तुति- कृति शरण / मेहर स्वरूप / सृष्टि शरण / अम्मी शरण / दृष्टि शरण पौराणिक कथा, कहानियों का संग्रह 1 to 10 पौराणिक कह...
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Radio Journalism Radio Journalism रेडियो पत्रकारिता संचार के आधुनिक माध्यमों में रेडियो ने अपने वर्चस्व और महत्व ...
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प्रस्तुति- किशोर प्रियदर्शी मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भ...