गुरुवार, 23 नवंबर 2023

सच्ची दोस्ती /

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     बचपन की मित्रता


🌸 जय श्री राधे  🌸_*

_उन चारों को होटल में बैठा देख,रमेश हड़बड़ा गया._


_लगभग *25 सालों* बाद वे फिर उसके सामने थे._


 _शायद अब वो बहुत बड़े और संपन्न आदमी हो गये थे!_

 _*रमेश को अपने स्कूल के दोस्तों का खाने का आर्डर लेकर परोसते समय बड़ा -अटपटा लग रहा था.*_


_उनमे से दो मोबाईल फोन पर व्यस्त थे- और दो लैपटाप पर!_


 _रमेश पढ़ाई पुरी नही कर पाया था. *उन्होंने उसे पहचानने का प्रयास भी नही किया!*_

  _वे खाना खा कर बिल चुका कर चले गये!_


          _रमेश को लगा - उन चारों ने शायद उसे *पहचाना नहीं, या उसकी गरीबी देखकर* जानबूझ कर कोशिश नहीं की._


   _*उसने एक गहरी लंबी सांस ली और टेबल साफ करने लगा।*_


_टिश्यु पेपर उठाकर कचरे मे डलने ही वाला था,_


_शायद उन्होंने उस पर कुछ जोड़-घटाया था!_


_अचानक उसकी नजर उस पर लिखे हुये शब्दों पर पड़ी!_


_लिखा था - अबे साले तू हमे खाना खिला रहा था- तो तुझे क्या लगा- हम तुझे पहचानेंगे नहीं.....?_


     _*अबे 20 साल क्या- अगले जनम बाद भी मिलता तो तुझे पहचान लेते*._


 _तुझे टिप देने की हिम्मत हममे नही थी!_


_हमने पास ही फैक्ट्री के लिये जगह खरीदी है और अब हमारा इधर आन-जाना तो लगा ही रहेगा।_


_*आज तेरा इस होटल का आखरी दिन है!*_


 _हमारे फैक्ट्री की कैंटीन कौन चलाएगा बे! तू चलायेगा ना....?_

_तुझसे अच्छा पार्टनर और कहां मिलेगा....???_

 _याद हैं न स्कुल के दिनों हम पांचो एक दुसरे का टिफिन खा जाते थे. आज के बाद रोटी भी मिल बाँट कर साथ-साथ खाएंगे._


       _*रमेश की आंखें भर आई*_


_सच्चे दोस्त वही तो होते है जो दोस्त की कमजोरी नही सिर्फ दोस्त देख कर ही खुश हो जाते है।_

_*धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी।*_

_*आपद काले परखिए चारी।।*_

_भगवान से अच्छा मित्र कोई नही हो सकता।_

_Friends day तो अब  कुछ और ही मकसद के लिए मनाया जाता है,ये विदेशीयों की देने है,खाओ पियो मोज करो।_

_मित्रता मनानी है,और जाननी है तो,भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा , भगवान श्रीराम और विभीषण,भगवान श्रीराम और सुग्रीव,भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन,  इत्यादि के विषय मे पढ़े।_

_मित्रता करते वक्त निष्काम  भाव होने चाहिए।_

_मित्रता में कुछ दिया जाता है, लिया नही जाता ।मित्रता में हिसाब-किताब नही होता है।_

_मित्रता तो आपद काल में ही देखी जाती है।_

सोमवार, 23 अक्तूबर 2023

रावण_ऐसे_नहीं_मरेगा / प्रवीण परिमल

 कुछ नई पंक्तियों के साथ, पेश है यह जनगीत ...



चाहे जैसी जुगत लगा लो,

काटोगे सिर, फिर उभरेगा।

नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


आग लगाओ डाल किरासन,

जला नहीं पाओगे आसन।

कोशिश है बेकार तुम्हारी,

'फ़ायर- प्रूफ' बना सिंहासन।


बहुत बड़ा मायावी है वह,

जैसा चाहे रूप धरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


गद्दी की ख़ातिर गुटबाजी,

करते ही रहते हैं पाजी।

समझौतों के मौसम में अब,

शर्मा जी से मिलते झा जी।


दुस्सासन से मिलकर कान्हा,

पांचाली का चीर हरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा! 


छल- बल से जो कुर्सी पाए,

नैतिकता के पाठ पढ़ाए।

लेकिन मौक़ा मिलते ही वो

पूरा मुल्क हजम कर जाए।


काम अनैतिक करने वाला,

सत्य- धर्म की बात करेगा ।

रावण ऐसे नहीं मरेगा !


अफ़सर, थानेदार, कलेक्टर

लूट रहे हैं, देखो, जमकर।

अभयदान हासिल है, क्योंकि --

हिस्सा लेते बाँट मिनिस्टर।


'जिसकी लाठी, भैंस उसी की' --

इस कथनी को सत्य करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


गुंडागर्दी, टैक्स- उगाही...

झेल अयोध्या रही तबाही।

हक़ हासिल छुट्टे साँढ़ों को,

सारी धरती करें दमाही।


अश्वमेध का घोड़ा ठहरा,

खुल्लम- खुल्ला खेत चरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


देख, हवस में आनन- फानन

हावी सब पर हुआ दशानन।

पत्थर का इंसान हुआ है,

सत्ता- सुख पाने के कारण।


अपनी कोठी भरने वाला,

जनता की परवाह करेगा?

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


सुनो, नाभि में अमृत जब तक,

नहीं पराजित होगा तबतक।

दैत्य न ऐसे मरने वाला,

लहू पिलाओगे तुम कबतक?!


असुरशक्ति का स्वामी आख़िर 

कुछ तो लीला और करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


संबंधों में प्रीत नहीं है,

बात पते की, सुनो, कही है।

धन- पद सबसे ऊपर ठहरा,

वर्तमान का खेल यही है।


राम! भरत से मिलना बचकर,

मौक़ा पाते ख़ून करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा! 


हममें, तुममें, उसमें बैठा,

छद्म अहं के कारण ऐंठा।

रावण धरकर रूप अनेकों,

सबके भीतर गहरे पैठा।


पहले अपने भीतर कोई

यदि रावण- वध नहीं करेगा,

बाहर रावण नहीं मरेगा! ....


चाहे जैसी जुगत लगा लो,

काटोगे सिर, फिर उभरेगा।

नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,

रावण ऐसे नहीं मरेगा !

ऐसे रावण नहीं मरेगा!

______________________

#प्रवीण_परिमल


चित्र गूगल से!

मैं एक लड़की /

 मैं इक लड़की हूं

पर मेरा खुले आसमान में उड़ना

तुमको क्यों नहीं सुहाता ?

तुम यह मत करो,

तुम वो मत करो

हर कोई मुझे यही समझाता।

हां, मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


मेरा लड़की होना भी क्या कोई पाप है?

क्यों मैं सब की तरह

आज़ाद नहीं रह सकती?

अब तुम मुझे क्या सनद दोगे?

लड़की हो,लड़की हो बचपन से

हर कोई यही कहकर रुलाता।

हां, मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


हज़ार ख्वाब लिए जो बंद है

एक पिंजरे में,

जिस को क़ैद किया गया ,

दुनिया की बाज जैसी नज़रों से।

जहां हर कोई है मुझको नोचना चाहता।

हां मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


खुले आसमान की इस दुनिया में,

मुझको बहुत ऊंचा उड़ना है।

मालूम है मुझको मेरी हद,

ऐसे ही कितने ख्वाब लिए

मुझको अभी बहुत लड़ना है।

मुझको जीने दो, उड़ने दो,

सारे ख्वाब रंगने दो

हां, मैं इक लड़की हू।

मैं इक लड़की हूं।


मैं हूं एक जननी भी ।

तुम लोगों ने ही कितने रूपों में ,

मुझको देखा है।

फिर क्यों बांधा मुझको तुमने?

ऐसे कितने ही दायरों में।

सहना सब कुछ चुप रह कर तू ।

हर इंसा यही बताता।

हां, मैं इक लड़की हूं

मैं इक लड़की हूं।


यह सब मेरी क़िस्मत है तो ,

मुझको इस दुनिया में लाया कौन?

यह है मेरा प्यारा बेटा,

बेटी तो है धन पराया ।

ऐसा भ्रम फैलाया कौन?

मेरे प्यारे से सपनों में कोई तो पंख लगाता ।

कोई तो मेरे सपनो को भी थोड़ा सा सहलाता l


हां, मैं इक लड़की हूं, 

तो क्या यही मेरा जीवन है.. ?

या मेरा भी कोई अस्तित्व है..?

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

मूलकसूर और सीता युद्ध /कृष्ण मेहता

 एक समय की बात है कि भगवान् श्री राम राज सभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहाँ पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लएक समय की बात है कि भगवान् श्री राम राज सभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहाँ पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे – 


     हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाठ।


    भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया है। इसे अशुभ जानकर कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था।


    जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया। मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह तब से भन्नाया हुआ है।


   भगवन आपने जिस दिन मुझे राज पाठ सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही वह पाताल वासियों के साथ लंका पहुँच कर मुझ पर धावा बोल दिया। 


   मैंने छः महिने तक मुकाबला किया पर ब्र्ह्मा जी के वरदान ने उसे इतना ताकत वर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा।


   अपने बेटे, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिये भाग कर यहाँ पहुँचा हूँ। उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारुंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूँगा।


     वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरन्त कीजिये। भक्त की पुकार सुन श्रीराम जी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।


    मूलकासुर को श्री राम चंद्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिये लंका के बाहर आ डटा।भयानक युद्ध छिड़ गया और सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। 


     मूलकासुर भगवान श्री राम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था। अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे। हनुमान् जी भी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जीवित करते जा रहे थे। सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था अतः भगवान् चिन्ता में थे।


     विभीषण ने बताया कि रोजाना मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में जाता है। उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जायेगा।


     श्री राम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदे मंद हो सकता है। जब इसके भाई-बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।' मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया। यह देखकर बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये। 


    तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये, इतना कह कर ब्रह्मा जी चले गये। भगवान् श्री राम ने हनुमान जी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीता जी को लाने भेजा।


   सीता देवी-देवताओं की मन्नत मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गा जी की पूजा करती कि विजयी श्री राम शीघ्र लौटें। तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे और राम जी का संदेश सुनाया। 


    पति के संदेश को सुन कर सीता तुरन्त चल दीं। भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया । उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चण्डी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं। 


    इधर श्री राम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें। 


    वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट किटाता हुआ सब छोड़ छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।


    युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन ? अभी भाग जा, मैं औरतों पर मर्दानगी नही दिखाता। छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुये कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत-चण्डी हूँ, तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मार कर उसका बदला चुकाउंगी।


इतना कह कर छाया सीता ने मूलकासुर पर पाँच बाण चलाये। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाये। कुछ देर तक घोर युद्द हुआ पर अन्त में ‘चण्डिकास्त्र’ चला कर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौट कर सीता के शरीर में प्रवेश कर गयी।


    मूलका सुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय जयकार की और विभीषन ने उन्हें धन्यवाद दिया।कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आये..!!ग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे – 


     हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाठ।


    भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया है। इसे अशुभ जानकर कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था।


    जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया। मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह तब से भन्नाया हुआ है।


   भगवन आपने जिस दिन मुझे राज पाठ सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही वह पाताल वासियों के साथ लंका पहुँच कर मुझ पर धावा बोल दिया। 


   मैंने छः महिने तक मुकाबला किया पर ब्र्ह्मा जी के वरदान ने उसे इतना ताकत वर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा।


   अपने बेटे, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिये भाग कर यहाँ पहुँचा हूँ। उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारुंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूँगा।


     वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरन्त कीजिये। भक्त की पुकार सुन श्रीराम जी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।


    मूलकासुर को श्री राम चंद्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिये लंका के बाहर आ डटा।भयानक युद्ध छिड़ गया और सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। 


     मूलकासुर भगवान श्री राम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था। अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे। हनुमान् जी भी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जीवित करते जा रहे थे। सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था अतः भगवान् चिन्ता में थे।


     विभीषण ने बताया कि रोजाना मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में जाता है। उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जायेगा।


     श्री राम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदे मंद हो सकता है। जब इसके भाई-बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता9 तेरी जान लेगी।' मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया। यह देखकर बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये। 


    तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये, इतना कह कर ब्रह्मा जी चले गये। भगवान् श्री राम ने हनुमान जी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीता जी को लाने भेजा।


   सीता देवी-देवताओं की मन्नत मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गा जी की पूजा करती कि विजयी श्री राम शीघ्र लौटें। तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे और राम जी का संदेश सुनाया। 


    पति के संदेश को सुन कर सीता तुरन्त चल दीं। भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया । उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चण्डी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं। 


    इधर श्री राम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें। 


    वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट किटाता हुआ सब छोड़ छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।


    युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन ? अभी भाग जा, मैं औरतों पर मर्दानगी नही दिखाता। छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुये कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत-चण्डी हूँ, तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मार कर उसका बदला चुकाउंगी।


इतना कह कर छाया सीता ने मूलकासुर पर पाँच बाण चलाये। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाये। कुछ देर तक घोर युद्द हुआ पर अन्त में ‘चण्डिकास्त्र’ चला कर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौट कर सीता के शरीर में प्रवेश कर गयी।


    मूलका सुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय जयकार की और विभीषन ने उन्हें धन्यवाद दिया।कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आये..!!

गुरुवार, 28 सितंबर 2023

नालंदा यूनिवर्सिटी की कुछ अनकही बातें


।। ----- नालंदा विश्वविद्यालय की कुछ खास रहस्य -----।।


नालंदा यूनिवर्सिटी - अभी तक के ज्ञात इतिहास की सबसे महान यूनिवर्सिटी ।


आज भले ही भारत शिक्षा के मामले में 191 देशों की लिस्ट में 145वें नम्बर पर हो लेकिन कभी यहीं भारत दुनियाँ के लिए ज्ञान का स्रोत हुआ करता था। आज सैकड़ो छात्रों पर केवल एक अध्यापक उपलब्ध होते हैं वहीं हजारों वर्ष पहले इस विश्वविद्यालय के वैभव के दिनों में इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक शामिल थे यानी कि केवल 5 छात्रों पर एक अध्यापक ..।  नालंदा में आठ अलग-अलग परिसर और 10 मंदिर थे, साथ ही कई अन्य मेडिटेशन हॉल और क्लासरूम थे। यहाँ एक पुस्तकालय 9 मंजिला इमारत में स्थित था, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियों सहित लाखों किताबें रखी हुई थीं ।  यूनिवर्सिटी में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के स्टूडेंट्स भी पढ़ाई के लिए आते थे। और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौर में यहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, भाषा विज्ञानं, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाएं जाते थे।


इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी । केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। इस यूनिवर्सटी में देश विदेश से पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधा भी थी ।

यूनिवर्सिटी में प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन होती थी की केवल विलक्षण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। यहां आज के विश्विद्यालयों की तरह छात्रों का अपना संघ होता था वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। छात्रों. को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता न थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य की ओर से विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान में मिले थे, जिनसे प्राप्त आय और अनाज से उसका खर्च चलता था।


लगभग 800 सालों तक अस्तित्व में रहने के बाद इस विश्वविद्यालय को  तहस नहस कर दिया ।।


लोकार्पण का मेगा शो

 आज दिनांक 28.09.2023 को इडिंया इन्टरनेशनल सेन्टर के एनेक्स भवन के भूतल पर दो रचनाकारों के द्वारा रचित काव्यों के विमोचन का कार्यक्रम था....

जिसमे से एक रचनाकार इस सस्थां की माननीय सम्मानजनक सदस्या है...

रचनाकार की रूचि....

दो दिनों से लगातार इस ग्रुप के सदस्यों को पूरे पते के साथ आमन्त्रित कर रही थी..और लोगों ने इनके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुये अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराया...उनमे से एक मै भी था...

कार्यक्रम का आकर्षण...

1) पहला यह कि मचं पर गणमान्य बुद्धिजीवी सम्मानित श्रेष्ठ लोग विराजमान थे...शायद उनके शब्दों को सुनने के लिये समय ने भी अपनी प्रतिबद्धता बांध रखा था..जिसके अनुरूप लोगों ने अपना अपना उदबोधन दिया...वातावरण भी शान्त होकर शब्दों का अवलोकन कर रहा था....

2) दुसरा यह कि जब आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने अपना उदबोधन दिया तो एक बड़ा ही सटीक और मार्मिक वाक्य बोला कि आज ये जो श्रोता बैठे है वो शायद सबसे बेहतर है...ये शब्द वाकई मन के विचारों मे सामजंस्य बिठाने योग्य थे और दिल को छु लेने वाले थे...मुझे सिर्फ यही एक वाक्य याद रह गया...बाकी उन्होंने कुछ कविताओं के पक्तियों का भी जिक्र किया था...खैर आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने जो बोला वो प्रशंसनीय था..

3) तीसरा यह कि मचं पर यदि गुणवत्ता वाले लोग थे तो श्रोताओं मे भी सभी लोग गुणवत्ता वाले थे...तात्पर्य उदबोधन करने वाले आदरणीय लोगों को एकटक देखते हुये उनके एक एक शब्द को कड़ियों मे पिरो रहे थे...मतलब बड़े आराम से सुन रहे थे...प्रत्येक श्रोता तारीफे काबिल थे....

4) सस्थां की रचनाकार ने अपने काव्य के विमोचन के लिये जो वातावरण तैयार करना था...उन्होंने बखूबी किया अपने मेहनत लगन से...

5) खास बात कि रचनाकार ने अपने काव्य मे रचनात्मक तरीके से उन सभी वीरांगनाओं का जिक्र किया है जो जो उनके जेहन मे थे...या आते गये...हालांकि यूं देखा जाये तो पूरे देश मे अनगिनत वीरागंनायें ऐसी और भी है जिनका न तो इतिहास मे कहीं जिक्र है...न ही पुरातन विभाग मे...न ही केन्द्रीय पुस्तकालय मे, यदि उनका जिक्र है तो उस प्रदेश मे रहने वाले उन स्थानीय लोगों मे जो उन्हें अपनी मां दीदी मानते है, केरल की ही एक ऐसी वीरांगना है जिन्होंने राजा के आदेशों के खिलाफ पोशाक पहन लिया और जब राजा ने सजा सुनाया आदेशानुसार तो राजा के फरमान आने से पहले ही उन्होंने अपने शरीर का एक खास अगं काटकर अन्दर से भिजवा दिया (राजा के सिपाही हैरान कि फरमान पहुंचा भी नही और उसने उससे पहले ही...)...हालांकि शरीर के कटे अगं मे दर्द इतना था कि असहनीय था...जिसके कारण चन्द रोज मे ही उनके प्राण पखेरु हो गये...किन्तु जाते जाते उस निर्दयी राजा को सोचने के लिये मजबूर कर दिया और वो राजा अपने कानून को बदलने के लिये विवश हो गया...और बदल भी दिया...जिसके कारण वो वीरांगना आज उस क्षेत्र मे देवी मां के (उनका मन्दिर बनवाया है वहीं पर उसी गावं मे स्थानीय लोगों ने)रूप मे पूजी जातीं है...ऐसे ही एक और वीरांगना जो सेल्युलर जेल मे हथकड़ियों मे बन्द थी, अग्रेंज यातनाओं पर यातनाएं दे रहे थे मगर वो टस से मस नही हुयी..न हो रहीं थी, अग्रेंजो को इतना गुस्सा आया कि हथकड़ियों मे बन्द उस वीरागंना के शरीर का खास अगं काटकर लेके चले गये...वीरागंना दर्द मे कराहा...तड़पा..मगर अग्रेंजों के सामने घुटने नही टेके...उनकी भी मृत्यु उसी दर्द के कारण उसी जेल मे हुआ..मगर उनका भी जिक्र कहीं नही है...ऐसे ही मालदा शहर ( वेस्ट बगांल) मे भी कुछ वीरांगना थी जिन्होंने बहुत कुछ खोया था..है...मगर आवाज बुलन्द था तो बुलन्द था...शहीद हो गयी...अग्रेंजो के बन्दूक की गोलियां खा ली...मगर झुकी नही...

6) खैर आजादी के इतिहास के पन्नों को ठीक (महीन बारीकी से सूक्ष्मता के साथ) से खगांला (उन प्रदेशों के स्थानीय क्षेत्रों मे भ्रमण के द्वारा)जाये तो शायद गिनतीयां कम पड़ जाये...

कार्यक्रम का एक खास आकर्षण और था कि सस्थां की सदस्य बड़ी ही शालीनता के साथ सबसे मिल रहीं थी...अभिवादन स्वीकार भी कर रहीं थी तो अभिन्दन भी कर रही थी...एक ऐसी अन्जान महिला से भी मिल रही थी और उसके बातों का जवाब शिष्टतापूर्वक दे रहीं थी..जिसपर कई लोगों की अचरच भरी निगाहें थी.. देख रही थी...

एक और आकर्षण था अल्पाहार मे जो काफी सुन्दर तरीके से सुसज्जित था और लोग लुत्फ के साथ आनन्द ले रहे थे...

अन्त मे यही कहुंगा कि सस्थां की सदस्या ने दिल्ली के व्यस्ततम क्षेत्र के व्यस्ततम भवन मे कार्यक्रम का सृजन कर आयोजित किया वो और उनके पारिवारिक सदस्य सभी बधाई के योग्य है..मै उनका आभार प्रकट करता हुं   इतने अच्छे कार्यक्रम मे सभी को आमंत्रित करने के लिये....

सस्थां के सदस्या सबसे प्रिय छोटी बहन का नाम श्रीमती रिकंल शर्मा (कौशम्बी, गाजियाबाद निवासी) है...जो अक्सर कार्यक्रम मे अपनी विशेष प्रस्तुति से सबके दिलो दिमाग विचारों मे अपनी अलग जगह बना लेतीं है...

लेखन मे उनकी कलम और गतिशील हो, नयी रचनाओं मे नये अन्वेषण हो. ये मगंलकामना करता है..👌

🙏🙏🙏🙏🙏❤️🌹👍✌🏽👆

सोमवार, 25 सितंबर 2023

मदद

 किसी जंगल में एक गधा रहता था । उसने बाकी जानवरों से कहना आरंभ कर दिया कि शेर एक अच्छा राजा नहीं है । उसमें कोई दम नहीं है । संकट के समय वह तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा । इसलिए तुम सब लोग मुझे अपना राजा मान लो ।


सभी जानवर हंसने लगे । गधा अपने आप को ताकतवर दिखाने के लिए सुरक्षित दूरी से शेर को गालियां बकने लगा । उस पर तरह-तरह के आरोप लगाने लगा । वह शेर को चैलेंज करने लगा कि हिम्मत है तो मुझसे लड़ कर दिखा ।


शेर ने गधे को पूरी तरह इग्नोर किया और अपना काम करता  रहा। थक हार कर गधा वापस चला गया । और बाकी जानवरों को बताया कि शेर बिल्कुल कमजोर है । मैंने उसे इतनी गालियां दीं , चैलेंज किया, पर वह चुपचाप सुनता रहा ।


बकरी, खरगोश और चूहे जैसे कुछ जानवर , जो गधे का एहसान मानते थे क्योंकि गधा उन्हें भोजन के लिए घास के मैदानों का पता बताता था, वे गधे की हां में हां मिलाने लगे ।


गधे के जाने के बाद शेर के महामंत्री हाथी ने उससे पूछा," महराज!! वो गधा आपको इतनी गालियां बकता रहा, आपको लड़ने के लिए ललकारता रहा। फिर भी आप चुप क्यों रहे ? चहते तो पंजे के एक वार से ही उसका काम तमाम कर सकते थे? या मुझे आदेश देते , मैं उसकी चटनी बना देता ? इससे आपकी धाक क़ायम रहती ?


शेर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " हाथी भाई !! इसके तीन कारण हैं । 


पहला अगर मैं या आप गधे से लड़ते तो बाकी जानवर यह कहते कि हमारा राजा बड़ा तानाशाह है । भला गधे जैसे निरीह प्राणी से भी कोई लड़ता है ? 


दूसरे लड़ाई में गधा मर जाता तो उसकी मां ,परिवार वाले और चमचे उसे शहीद बता कर बाकी जानवरों की सहानुभूति अर्जित करते और हमारे खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाते । 


तीसरे गधे के परिवार को फायदा मिलता देख कई दूसरे जानवर भी शहीद बनने की जुगाड़ में लग जाते । 


मैं गधे या उसके साथियों की वजह से राजा नहीं हूं।


न अभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते वने,

विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।


अर्थ :- जंगल में सिंह का राज्याभिषेक संस्कार आदि कुछ नहीं किया जाता । उसके पराकृम के कारण उसे स्वयमेव राजा-पद अर्जित हो जाता है ।


नोट : कृपयाइस कहानी का राजनैतिक अर्थ न लगाए।

सच्ची दोस्ती /

 🪴"""""""”l"""🪴      बचपन की मित्रता 🌸 जय श्री राधे  🌸_* _उन चारों को होटल में बैठा दे...