गुरुवार, 30 मार्च 2023

बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल।*

 

बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल।*

"रहिमन" हीरा कब कहें, लाख टका मेरा मोल।*


अर्थ:* जो सचमुच बड़े होते है वह अपनी बड़ाई नही किया करते, बड़े_बड़े बोल नही बोला करते। हीरा कब कहता है कि मेरा मोल लाख टके का है।

*अहंकार की कोई कीमत नहीं है

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अशोक के जीवनी में मैंने पढ़ा है, गांव में एक भिक्षु आता था। अशोक गया और उस भिक्षु के चरणों में सिर रख दिया। अशोक के बड़े राज्य का जो बड़ा वजीर था, उसे यह अच्छा नहीं लगा। अशोक जैसा सम्राट गांव में भीख मांगते एक भिखारी के पैरों पर सिर रखे, महल लौटते ही उसने कहा कि नहीं सम्राट, यह मुझे ठीक नहीं लगा। आप जैसा सम्राट, जिसकी कीर्ति शायद जगत में कोई सम्राट नहीं छू सकेगा फिर, वह एक साधारण से भिखारी के चरणों पर सिर रखे!


अशोक हंसा और चुप रह गया। दो महीने बीत जाने पर उसने बड़े वजीर को बुलाया और कहा कि एक काम करना है। कुछ प्रयोग करना है, तुम यह सामान ले जाओ और गांव में बेच आओ। सामान बड़ा अजीब था। उसमें बकरी का सिर था, गाय का सिर था, आदमी का सिर था, कई जानवरों के सिर थे और कहा कि जाओ बेच आओ बाजार में।


वह वजीर बेचने गया। गाय का सिर भी बिक गया और घोड़े का सिर भी बिक गया, सब बिक गया, वह आदमी का सिर नहीं बिका। कोई लेने को तैयार नहीं था कि इस गंदगी को कौन लेकर क्या करेगा? इस खोपड़ी को कौन रखेगा? वह वापस लौट आया और कहने लगा कि महाराज! बड़े आश्चर्य की बात है, सब सिर बिक गए हैं, सिर्फ आदमी का सिर नहीं बिक सका। कोई नहीं लेता है।


सम्राट ने कहा कि मुफ्त में दे आओ। वह वजीर वापस गया और कई लोगों के घर गया कि मुफ्त में देते हैं इसे, इसे आप रख लें। उन्होंने कहा पागल हो गए हो! और फिंकवाने की मेहनत कौन करेगा? आप ले जाइए। वह वजीर वापस लौट आया और सम्राट से कहने लगा कि नहीं, कोई मुफ्त में भी नहीं लेता।


अशोक ने कहा कि अब मैं तुमसे यह पूछता हूं कि अगर मैं मर जाऊं और तुम मेरे सिर को बाजार में बेचने जाओ तो कोई फर्क पड़ेगा? वह वजीर थोड़ा डरा और उसने कहा कि मैं कैसे कहूं क्षमा करें तो कहूं। नहीं, आपके सिर को भी कोई नहीं ले सकेगा। मुझे पहली दफा पता चला कि आदमी के सिर की कोई भी कीमत नहीं है।


सम्राट अशोक ने कहा कि फिर इस बिना कीमत के सिर को अगर मैंने एक भिखारी के पैरों में रख दिया था तो क्योंL इतने परेशान हो गए थे तुम।


आदमी के सिर की कीमत नहीं, अर्थात आदमी के अहंकार की कोई भी कीमत नहीं है। आदमी का सिर तो एक प्रतीक है आदमी के अहंकार का। और अहंकार की सारी चेष्टा है भीतर लाने की और भीतर कुछ भी नहीं जाता—न धन जाता है, न त्याग जाता है, न ज्ञान जाता है। कुछ भी भीतर नहीं जाता। बाहर से भीतर ले जाने का उपाय नहीं है। बाहर से भीतर ले जाने की सारी चेष्टा खुद की आत्महत्या से ज्यादा नहीं है, क्योंकि जीवन की धारा सदा भीतर से बाहर की ओर है।

        

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बुधवार, 29 मार्च 2023

रवि अरोड़ा की नजर से.....

 डरावने किस्सों की आहट



 जालंमूल्यांकन tv की एक सड़क थी। रात के अंधेरे में मेरा एक मित्र और मैं पैदल ही कहीं जा रहे थे। दूर दूर तक आदमजात का कोई नामो निशान नहीं था । तभी पीछे से एक मोटर साइकिल  की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ जैसे जैसे निकट आ रही थी, हमारे दिलों की धड़कनें लगातर तेज हो रही थी। लग रहा था कि जैसे आज जीवन का अंतिम ही दिन है। आशंका हो रही थी कि ये मोटर साइकिल वाला हमारे निकट आएगा और अपनी एके 47 से हमें छलनी कर देगा। मगर सुखद आश्चर्य, ऐसा नहीं हुआ । वह मोटर साइकिल सवार आतंकवादी नहीं वरन कोई आम शहरी था और अंधेरा होने के बावजूद हमारी तरह किसी मजबूरी वश अपने घर से बाहर था। अपने इस खौफ की वजह आपको बता दूं । यह बात साल 1983 की है और उस समय पंजाब में घल्लू घारा सप्ताह मनाया जा रहा था । जाहिर है कि उन दिनों पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट अपने चरम पर था रोजाना निर्दोषों का कत्लेआम गाजर मूली की तरह किया जा रहा था। खौफ का ऐसा माहौल था जैसा बंटवारे के समय भी शायद नहीं रहा होगा । इस वाकए के ठीक एक दिन पहले ही मैं अमृतसर के हरमंदिर साहब में था और वहां सेवादारों के अतिरिक्त केवल तीन बाहरी श्रद्धालु थे । उनमें भी मैं इकलौता ऐसा था जिसके सिर पर केश नहीं थे अतः अनेक घूरती आंखें लगातार मेरा पीछा कर रही थीं। अब आप सोचेंगे कि आज ये किस्से क्यों ! तो बस इसका इतना सा ही मकसद है कि आजकल उस दौर की आहटें फिर सुनाई दे रही हैं। 


पुरानी बातों से खुद को जोड़ने में यदि आप असफल हो रहे हों और आहट संबंधी मेरी बात से भी सहमत न हों तो ताजा किस्सा सुनाया हूं।  इस दिवाली पर मैं अमृतसर में था और रात के आठ बजे टैक्सी में सवार होकर शहर का नज़ारा देखने निकला था । मेरे अपने शहर के मुकाबले वहां आधी से भी कम रौशनी और न के बराबर पटाखों की आवाज सुनकर मैंने टैक्सी चालक से इसका कारण पूछा। उसका जवाब हैरान कर देने वाला था । बकौल उसके पिछले कुछ सालों से कट्टरपंथी सिख हिंदू त्यौहारों का विरोध करने लगे हैं और उसी के चलते हर साल पहले के मुकाबले दिवाली पर रौशनी और आतिशबाजी कम होती जा रही है। चलिए अब हाल फिलहाल की बात करता हूं। पंजाब में आजकल जो हो रहा है उसकी जानकारी बेशक दुनिया को अब जाकर अजनाला कांड से हुई हो मगर सच्चाई इससे इतर है। पंजाब से जुड़े होने के कारण मैं अच्छी तरह जानता हूं कि खालिस्तान आंदोलन को किसी न किसी रूप में दशकों से जिंदा रखा जा रहा है। शुरुआती दौर में कनाडा और ब्रिटेन में बैठे संपन्न और खुराफाती सिख इसे लेकर शोर शराबा कर रहे थे और अब उन्होंने पंजाब में भी अपने एजेंट तैयार कर लिए हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने तो एक दिन के लिए भी भारत विरोधी इस षड्यंत्र से अपने हाथ नहीं खींचे थे ।  गुरु ग्रंथ साहब की ओट में अलगाव वादियों का तलवारों के साथ थाने पर हमला तथा पुलिस कर्मियों को बुरी तरह घायल कर दिए जाने और फिर भी पुलिस का निष्क्रिय बने रहना साबित कर रहा है कि प्रदेश में एक बार फिर सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार कतई नहीं समझ रही कि आग से इसी तरह खेल कर कांग्रेस अपना और देश का कबाड़ा पहले कर चुकी है। अब आप भी थोड़ा बहुत भयभीत होना शुरू कर दीजिए, क्योंकि डरावने नए किस्सों का माहौल बनाया जा रहा है।

संतोष चौबे को राष्ट्रीय गुणाकर मुळे सम्मान

 


मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में दिये जाने वाले राष्ट्रीय गुणाकर मुळे सम्मान के लिए श्री संतोष चौबे का चयन हुआ है। उन्हें यह सम्मान वर्ष 2020 के लिए दिया जायेगा। इस सम्मान में एक लाख रुपये की सम्मान राशि सम्मान पट्टिका और शॉल-श्रीफल प्रदान किया जाता है। शासन द्वारा दिये जाने वाला यह एक महत्वपूर्ण सम्मान है जो विज्ञान के क्षेत्र में किसी व्यक्ति द्वारा दिये गये सम्पूर्ण योगदान के लिए दिया जाता है। 

ज्ञात हो कि हिन्दी में कम्प्यूटर और सूचना तकनीक पर लेखन की शुरुआत श्री संतोष चौबे ने ही की थी। इस महत्वपूर्ण काम को आरंभ से ही हिन्दी विज्ञान लेखन में मानक की तरह लिया जाता रहा है। पिछले लगभग पैंतीस वर्षों में उन्होंने सूचना तकनीक, कम्प्यूटर, विज्ञान एवं इलेक्ट्रॉनिक्स पर पचास से अधिक पुस्तकों का लेखन, अनुवाद एवं संपादन किया है और देश भर के सभी हिन्दी प्रदेशों में वे बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा पढ़ी जाती रही हैं। म.प्र. हिन्दी ग्रंथ द्वारा प्रकाशित उनकी पहली पुस्तक 'कम्प्यूटर एक परिचय' के ग्यारह संस्करण छप चुके हैं जिसकी बिक्री संख्या पाँच लाख से भी अधिक है। सूचना तकनीक पर आधारित डिप्लोमा एवं डिग्री पाठ्यक्रमों तथा पुस्तकों के निर्माण में भी उन्होंने बड़ा योगदान दिया है।

उन्हें मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा संपूर्ण विज्ञान लेखन के लिए ‘डॉ. शंकरदयाल शर्मा सम्मान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा मेघनाद साहा पुरस्कार, पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा इंडियन इनोवेशन एवार्ड-2005 तथा नेस्कॉम आईटी इनोवेशन एवार्ड-2006 प्रदान किया गया। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस अवार्ड, इंडियन फोरम का प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय i4d अवार्ड, भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी विभाग द्वारा पुस्तक 'बेसिक प्रोग्रामिंग' को प्रथम पुरस्कार के साथ ही आपके द्वारा प्रकाशित विज्ञान आधारित हिन्दी में प्रकाशित पत्रिका 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' को राष्ट्रीय राजभाषा शील्ड सम्मान, भारतेन्दु पुरस्कार, रामेश्वर गुरु पुरस्कार, सारस्वत सम्मान आदि से सम्मानित किया गया है। यह पत्रिका आप विगत 34 वर्षों से नियमित प्रकाशित और संपादित कर रहे हैं जो हिन्दी में इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना तकनीक की देश की पहली पत्रिका है।


संतोष चौबे द्वारा लिखित पुस्तक विज्ञान छात्रों में अत्यधिक पढ़ी जाती है जिसमें कम्प्यूटर एक परिचय, बेसिक प्रोग्रामिंग,   इलेक्ट्रॉनिकी विभाग, कम्प्यूटर आपके लिये, शब्द संसाधन, प्रणाली विश्लेषण एवं डिज़ाइन,  डी बेस-AAA+,  इलेक्ट्रॉनिक परिपथ,  कम्प्यूटर परिचय (दो भाग में),  कम्प्यूटर अनुप्रयोग (दो भाग में),  कम्प्यूटर की दुनिया (तीन भाग में)] कम्प्यूटर आपके लिये (तीन भाग में शामिल हैं। उनके सौ से अधिक टेक्निकल पेपर्स और आलेखों का विभिन्न संगोष्ठियों में वाचन एवं समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' इलेक्ट्रॉनिकी, कम्प्यूटर विज्ञान एवं सूचना तकनीक पर आधारित देश की प्रथम हिन्दी मासिक पत्रिका] है जो 1988 से लगातार प्रकाशित हो रही है।


श्री संतोष चौबे नियमित रूप से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान एवं तकनीक विषयों पर लेखन कर रहे हैं तथा उक्त विषयों पर आपने अनुसृजन श्रृंखला के अंतर्गत तीन चरणों में लगभग पचास पुस्तकों का संपादन भी किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने विज्ञान कथा संचयन 'सुपरनोवा का रहस्य', विज्ञान कथा कोश छह खण्डों में तथा विज्ञान कविता कोश चार खण्डों में संपादित किया है। विज्ञान एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार के लिए आपने मध्यप्रदेश विज्ञान सभा तथा आईसेक्ट जैसी संस्थाओं की स्थापना की जिनका इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है।

शनिवार, 25 मार्च 2023

कविता / बीना सिंह "रागी "


 क से कल्पना वि से विचार ता से तालमेल बिठाकर

निर्मित सृजित नवगठित होती है कविता

भाव के समंदर में डूब कर

शब्दों के सीप मोती बीन कर

कोरे कागज पर भावनाओं

कि निश्चल बहती है सरिता

अक्षर अक्षर के योग से

वर्ण मात्रा के सहयोग से

सुबह शाम में ढल कर

दिवस रैन में जलकर

अनुपम  मनोरम मधुरम

काव्य महाकाव्य अद्भुत

आदित्य कृति का संयोजन

तब कहीं अलंकृत झंकृत

पुष्पित पल्लवित कुसमित

जन जन के अधरों पर कंठस्थ मानस पटल पर

चित्राअंकित अंकित होती है कविता

क से कल्पना वि से विचार ता से तालमेल बिठा कर

निर्मित सृजित नवगठित होती है कविता

डा बीना सिंह "रागी "

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है/


 ज़ावेद अख्तर


मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है

और अब

मेरी चाल के इंतिज़ार में है

मगर मैं कब से

सफ़ेद-ख़ानों

सियाह-ख़ानों में रक्खे

काले सफ़ेद मोहरों को देखता हूं

मैं सोचता हूं

ये मोहरे क्या हैं


अगर मैं समझूं

के ये जो मोहरे हैं

सिर्फ़ लकड़ी के हैं खिलौने

तो जीतना क्या है हारना क्या

न ये ज़रूरी

न वो अहम है

अगर ख़ुशी है न जीतने की

न हारने का ही कोई ग़म है

तो खेल क्या है

मैं सोचता हूं

जो खेलना है

तो अपने दिल में यक़ीन कर लूं

ये मोहरे सच-मुच के बादशाह ओ वज़ीर

सच-मुच के हैं प्यादे

और इन के आगे है

दुश्मनों की वो फ़ौज

रखती है जो कि मुझ को तबाह करने के

सारे मंसूबे

सब इरादे

मगर ऐसा जो मान भी लूं

तो सोचता हूं

ये खेल कब है

ये जंग है जिस को जीतना है

ये जंग है जिस में सब है जाएज़

कोई ये कहता है जैसे मुझ से

ये जंग भी है

ये खेल भी है

ये जंग है पर खिलाड़ियों की

ये खेल है जंग की तरह क मैं सोचता हूँ

जो खेल है

इस में इस तरह का उसूल क्यूं है

कि कोई मोहरा रहे कि जाए

मगर जो है बादशाह

उस पर कभी कोई आंच भी न आए

वज़ीर ही को है बस इजाज़त

कि जिस तरफ़ भी वो चाहे जाए


मैं सोचता हूं

जो खेल है

इस में इस तरह उसूल क्यूं है

पियादा जो अपने घर से निकले

पलट के वापस न जाने पाए

मैं सोचता हूं

अगर यही है उसूल

तो फिर उसूल क्या है

अगर यही है ये खेल

तो फिर ये खेल क्या है


मैं इन सवालों से जाने कब से उलझ रहा हूं

मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है

और अब मेरी चाल के इंतिज़ार में है

🔴 राजा राधिका रमन प्रसाद सिन्हा

 रोहतास बिहार के सूर्यपुरा में स्थित पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार व ज़मींदार श्री राजा राधिका रमन प्रसाद सिंह (सिन्हा) जी की हवेली।ये बिहार के अंतिम कायस्थ राजा थे जिनको ब्रिटिश सरकार द्वारा सूर्यपूरा रियासत का शासक की मान्यता दी गई थी।इनके छोटे भाई राजीव रंजन प्रसाद सिन्हा बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल के प्रथम चेयरमैन थे और उन्होंने 1932 में रोहतास में ऑल इंडिया कायस्थ कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन करवाया था।


ये इतने सादगी पसंद और विशाल हृदय वाले महापुरुष थे कि आजादी के बाद समस्त भूमि और यहाँ तक कि अपना राजमहल भी हाई स्कूल खोलने के लिए दान कर दिया था --  दानशीलता और उदारता का ऐसा उदाहरण आजकल मिलना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है 


राजा राधिका रमन प्रसाद सिन्हा बहुत प्रसिद्ध लेखक और विद्वान साहित्यकार थे और इनकी द्वारा लिखी गई पुस्तकें जैसे गाँधी टोपी और दरिद्र नारायण आदि कई विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल थी लेकिन अब हमारी जातिवादी सरकार द्वारा इसे हटा दिया गया है ।



गुरुवार, 23 मार्च 2023

उस दिन क्या होगा ?/ रानी सिंह

 चंद लोग लिखने क्या लगे

मानो भूचाल आ गया/

मैं तो यह सोचकर हैरान हूँ कि

 उस दिन क्या होगा ?


जब हासिये पर

गिरते-बजरते/ऊँघते-अनमने लोग

खप्पा-खपड़ी जैसे अंतरियों वाले लोग

काला अक्षर भैंस बराबर समझने वाले लोग

पहचानने लगेंगे शब्दों के मोल

खुलने लगेंगी उनकी जुबानें 

तौलने लगेंगे वे शब्द-शब्द

बोलने लगेंगे शब्द 

लिखने लगेंगे शब्द पूरी ताकत से 

इंकार के

अधिकार के

प्रतिकार के।


©️रानी सिंह

बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल।*

  बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल।* "रहिमन" हीरा कब कहें, लाख टका मेरा मोल।* अर्थ:* जो सचमुच बड़े होते है वह अपनी बड़ाई नही कि...