शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

नया साल क्या बेमिशाल ? / प्रियदर्शी किशोर

 आज नववर्ष है और प्रत्येक देशवासी इसे मनाने को उत्सुक है। आज लोगो ने अपनी जुबान में मिठास घोल रखी है। बधाइयों एवं शुभकामना का दौर जारी है। लेकिन किसी ने अपने ह्रदय के अंदर झाँकने की कोशिश नही की कि जिस वर्ष को हम पीछे छोड़ आये उस वर्ष के तीन सौ पैसठ दिनों में हमने कितनो का दिल तोडा ,कितनो की आहे ली और कितने लोग हमारे कर्मो के प्रति हमें कोस रहे हैं। हमने मानव धर्म को अपने ह्रदय में कितना आत्मसात किया है जरुरत है इस पर मनन करने की। आइये शुभकामना देने से पहले हम जरा इस पर विचार करें और अपने अंतर्मन को झकझोरें तथा नये वर्ष की शुरुआत नई उम्मीद, नए उमंग,सात्विक भावनाओं के साथ करें। हमारी कोशिश किसी के दुखों को साझा करने की, किसी के विश्वास को जीतने की, किसी के जीवन में खुशियां लाने की हो तभी सही मायने में हमारी शुभकामना किसी के ह्रदय को सुकून दे सकेगी। सिर्फ शुभकामना देकर औपचारिकता न निभाये आइये एक बेहतर सम्बन्ध, एक बेहतर उम्मीद और एक बेहतर भविष्य की ओर अपने क़दमों को प्रशस्त करें। 


 *अंत मे* 


सूर्य के स्वर्णिम किरण से,

प्रकृति के उन्मुक्त पवन से।

नववर्ष जीवन मे लाए,

खुशियों का पैगाम।।

🙏प्रियदर्शी🙏


है नववर्ष से मेरी प्रार्थना

नित हर सुबह ये आए।

सुख समृद्धि के फूलों से

जीवन बगिया महकाए।

🙏प्रियदर्शी🙏


नववर्ष मंगलमय,सुखद,स्वस्थ एवं प्रसन्नता से परिपूर्ण हो


नोट - उपरोक्त विचार पूर्णतः मेरे है किसी धर्म,सम्प्रदाय या व्यक्ति से इसका कोई सम्बन्ध नही है।

एक छोटा सा शब्दचित्र /विजय किशोर मानव

 

०००

चिट्ठियों में लिखे अभिवादन

रेशमी प्रेम की बातें

स्मृतियों में डूबने उतराने के प्रसंग

कहां घटित होते हैं

असल ज़िंदगी में


पार्क में समय गुजारते

एकांत में सुबकते

अनंत स्वादों की गंधों के बीच

चीथड़ों में लिपटे

लंघन करते

दो जीवित पिंड

माता या पिता 


प्रतीक्षा करते हैं

अपना अंतरराष्ट्रीय दिवस आने की

उस दिन की जाती हैं

उनके बारे में

अच्छी-अच्छी बातें 

दुनिया शायद जान पाती है

मां-पिता का महत्त्व

आंखें उस दिन भी बहती हैं

सुबह से रात तक


फेसबुक पर 

हर बेटे ने लिखी है कविता

मां या बाप की याद में

उनके दुनिया छोड़ने पर

कितना आसान है

मरे हुए माता पिता पर

लम्बी कविताएं लिखना

हर बार बिना भूले 

उस दिन संवेदना का गट्ठर बनाना

फेसबुक पर पोस्ट करना

और उनके संकलन छपवाना


लेकिन कितना कठिन है

उनके साथ रहना

उतरती उम्र में

उनका बच्चा बनकर


@ विजय किशोर मानव

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं / राम धारी सिंह दिनकर

 राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर यूं ही नहीं कहते


ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं

है अपनी ये तो रीत नहीं

है अपना ये व्यवहार नहीं

धरा ठिठुरती है सर्दी से

आकाश में कोहरा गहरा है

बाग़ बाज़ारों की सरहद पर

सर्द हवा का पहरा है

सूना है प्रकृति का आँगन

कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं

हर कोई है घर में दुबका हुआ

नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं

चंद मास अभी इंतज़ार करो

निज मन में तनिक विचार करो

नये साल नया कुछ हो तो सही

क्यों नक़ल में सारी अक़्ल बही

उल्लास मंद है जन-मन का

आयी है अभी बहार नहीं

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं

ये धुंध कुहासा छंटने दो

रातों का राज्य सिमटने दो

प्रकृति का रूप निखरने दो

फागुन का रंग बिखरने दो

प्रकृति दुल्हन का रूप धार

जब स्नेह–सुधा बरसायेगी

शस्य–श्यामला धरती माता

घर-घर खुशहाली लायेगी

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि

नव वर्ष मनाया जायेगा

आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर

जय गान सुनाया जायेगा

युक्ति–प्रमाण से स्वयंसिद्ध

नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध

आर्यों की कीर्ति सदा-सदा

नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

अनमोल विरासत के धनिकों को

चाहिये कोई उधार नहीं

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं

है अपनी ये तो रीत नहीं

है अपना ये त्यौहार नहीं   


-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

विजय केसरी 'साहित्य भूषण सम्मान' से अलंकृत


                           



हजारीबाग, स्थानीय खजांची तालाब स्थित 'गायत्री शक्ति पीठ में आयोजित एक समारोह में शांतिकुंज हरिद्वार के परिव्राजक श्याम कुमार ने नगर के जाने-माने साहित्यकार, कथाकार, समाजसेवी विजय केसरी को 'साहित्य भूषण सम्मान, प्रदान कर अलंकृत किया।

 सम्मान स्वरूप इन्हें 'प्रशस्ति पत्र', परम पूज्य गुरुदेव श्री राम शर्मा आचार्य की पुस्तक एवं पुष्पगुच्छ प्रदान कर  किया गया।

यह सम्मान इन्हें बीते 45 वर्षों से लगातार हिंदी लेखन में गतिशील रहने, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बारह सौ से अधिक स्तंभ प्रकाशित,  देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में पच्चीस कहानियां प्रकाशित,दो पुस्तकों का संपादन एवं साहित्यिक संस्था 'परिवेश' के तत्वधान में सौ से  साहित्यिक गोष्ठियों के सफल आयोजन एवं समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए   प्रदान किया गया है।

इस अवसर पर शांतिकुंज हरिद्वार के परिव्राजक श्याम कुमार ने कहा कि विजय केसरी बीते 45 वर्षों से निरंतर हिंदी की सेवा में सलंग्न हैं।  इनकी हिंदी साधना समाज के लिए प्रेरणादाई है। समाज में व्याप्त कुरीति, अंधविश्वास,दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या के उन्मूलन के लिए इनकी लेखनी सदा लोगों को प्रेरित करती रहेगी।

साहित्यकार विजय केसरी ने कहा कि मै एक साहित्यकार बन पाया हूं अथवा नहीं ! मैं यह  नहीं जानता हूं। लेकिन लिखने में मुझे असीम आनंद की प्राप्ति होती है। लेखन मेर जीवन की साधना और पूजा है।  कोई भी काम निष्ठा से की जाए तो परिणाम अच्छे होते हैं। विषय परिस्थितियों में भी व्यक्ति को नैतिकता का त्याग नहीं करना चाहिए। साहित्य सृजन का उद्देश्य समाज में नैतिकता को स्थापित करना ही है।

आयोजित सम्मान समारोह में देवंती देवी, शकुंतला देवी, विमला शर्मा, गीता देवी, ललिता खत्री, किरण अग्रवाल, गायत्री पूजा,शशि प्रभा, वासुदेव पुजारी, अभिषेक केसरी, प्रदीप प्रसाद आदि सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ गायत्री माता की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। विश्व शांति के लिए यज्ञ का अनुष्ठान किया गया।

                                                    हस्ताक्षर 

                                                 

                                               ( बासुदेव पुजारी)

                                                 गायत्री शक्तिपीठ

                                                    हजारीबाग

अनंग की कविता / हम गरीब सब एक हैं "

 "हम गरीब सब एक हैं "


गोबर सिर पर ढोने वाले, शीश झुकाना छोड़ेंगे। 

आज नहीं तो कल से वे,दरबार लगाना छोड़ेंगे।। 

जैविक खाद बनाकर,खेतों को जीवन देने वाले। 

खुद का जीवन है खतरे में,टाट बीछाना छोड़ेंगे।।

बेटे -बेटी  संग  चला  वह , हरियाली  उपजाने  को।

तिनका-तिनका बीन रहे जो,कबतक दाना छोड़ेंगे।। 

अधिकारी -नेता -मंत्री सब ,मस्त हुए मैखाने में। 

चट्टी - चौराहों  के  हम , देशी  मैखाना  छोड़ेंगे।।

दिल में हम रखते थे तुमको,जान गए तिकड़म बाजों। 

मत  घबराओ  जाग गए तो , बिल  में भी ना छोड़ेंगे।।

जरा डरो मोटी रोटी , खाने वाले  बलशाली  हैं। 

पेड़ा छीलके खाने वालों,बेकारी करना छोड़ेंगे।। 

मूलभूत आवश्यकता भी,पूरी अगर नहीं करते। 

भागो धूर्तों भागो अब, हम ना दौड़ाना छोड़ेंगे।। 

जबतक सिरपर कफन नहीं बांधा,तबतक निश्चिंत रहो। 

महल  जला कर  राख  करेंगे , आग  बुझाना  छोड़ेंगे।।

गोबर-गोइठा करें कहां हम,कब्जा करके बैठे हो।

हाथ से हक ना जाने देंगे,अब  बतियाना  छोड़ेंगे।।

लोकतंत्र को बना लुगाई,मौज कर रहे रातों दिन। 

बहुत  हो  गया  छीनेंगे , अब  रोना गाना छोड़ेंगे।।

मत भरमाओ जाति-पाति में,हम गरीब सब एक हैं।

दर्द - भूख  ने

 एक  किया ,संबंध

 पुराना   जोड़ेंगे।।......"


अनंग"

खट्टी मीठी यादों के संग विदा हो रहा हैं साल 2021../ उदभरांत शर्मा


उदभरान्त शर्मा


 यह साल अपने अंतिम दिन तक आ पहुँचा,उस क्षण को लिये कि आप लेखा-जोखा कर सकें कि क्या पाया,क्या खोया।कोरोना की वजह से अपने कई साहित्यिक मित्रों को खो दिया।पत्नी के बैक बोन में फ्रैक्चर के चलते 22 दिन उनके साथ अस्पताल में इलाज कराकर असंख्य मित्रों की शुभकामनाओं के फलस्वरूप उन्हें घर ले आया और अब घर पर सेवा-सुश्रूषा के साथ अन्य सेवाओं और इन्सुलिन के अतिरिक्त प्रतिदिन एक इंजेक्शन और लग रहा। सुगन्धा की पिछले साल हुई शादी में कुछ परेशानियाँ तेज़ी से उभरीं।उन्हें हल करने का प्रयास चल रहा है।

    साहित्यिक मोर्चे पर देखें तो मेरी व मुझसे संबंधित 8 पुस्तकें छपीं।अमन प्रकाशन कानपुर से आया 'पृथ्वी-आकाश' मेरा नया कविता संग्रह है।'शेष समर' बली सिंह के सम्पादन में 21वीं सदी की चयनित कविताओं का संग्रह है तो 'क्षणों के आख्यान' फ़ेसबुक डायरी है।ये दोनों किताबें यश प्रकाशन से आईं।इसी वर्ष 'राधामाधव' का रिफ़त शाहीन द्वारा किया गया उर्दू अनुवाद व 'त्रेता' का जितेन्द्र मिश्र 'अनिल' द्वारा किया अनुवाद दिल्ली के राधा प्रकाशन/नमन प्रकाशन से आये।वहीं से 'अभिनव पाण्डव' पर कर्णसिंह चौहान संपादित आलोचना पुस्तक के लोकार्पण में हुए विमर्श का लिप्यान्तरण डॉ पंकज शर्मा के सम्पादन में आया--'एक आलोचनात्मक संवाद' शीर्षक से।इसी प्रकाशन से 'अनाध्यसूक्त' पर दिनेश कुमार माली की आलोचना पुस्तक आई--'अनाध्यसूक्त : विज्ञानाध्यत्मिक दार्शनिक काव्य का अणु-चिंतन'। माली की एक आलोचना पुस्तक 'रुद्रावतार : मिथकीय सीमाओं से परे' अमन प्रकाशन से आने के पूर्व हरेप्रकाश उपाध्याय द्वारा संपादित महत्वपूर्ण पत्रिका 'मंतव्य' के विशेष अंक के रूप में चर्चित हुई।

   'कथा' ,'सरस्वती','साहित्य सरस्वती','मुद्राराक्षस उवाच'और 'समकालीन भारतीय साहित्य' में कविताएं,'पाठ' में 'नक्सल' की समीक्षा और शरद दत्त का हमारे ऊपर संस्मरण,'नवनीत' में आत्मकथा के शीघ्र आ रहे दूसरे खण्ड का एक अंश,'सोच-विचार' में ठाकुरप्रसाद सिंह पर संस्मरण आये।'जनसत्ता' में 'पृथ्वी-आकाश','क्षणों के आख्यान' और 'शेष समर' की समीक्षाएं आईं।

      महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से गत 12 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही महत्वपूर्ण त्रैमासिक पत्रिका 'नागफनी' का डबल डिमाई आकार के 154 पृष्ठों का विशेषांक --व्यक्तित्व और कृतित्व पर पहला--मेरे 74वें वर्ष में प्रकाशित होकर जबरदस्त चर्चा में रहा।

      आकाशवाणी दिल्ली से 'राधामाधव' और 'ब्लैकहोल' का नाट्य-रूपांतर प्रसारित हुआ और श्रीराम सेन्टर में काजल सूरी के कुशल निर्देशन में 'ब्लैकहोल' का शानदार मंचन भी इसी वर्ष हुआ। आकाशवाणी से 'शेष समर' और 'क्षणों के आख्यान' पर कवयित्री-समीक्षक अनीता वर्मा ने हमारे साथ संवाद करते हुए सुंदर समीक्षा की।उन्होंने अपने 'खुले मंच' पर आत्मकथा के पहले खण्ड 'बीज की यात्रा' की भावपूर्ण समीक्षा का वीडियो यूट्यूब पर जारी किया।

        आत्मकथा के दूसरे खण्ड 'किस राह से गुज़रा हूँ' को इस वर्ष भी 2 नये मसौदों के ज़रिये और जाँचने-परखने-माँजने के बाद फाइनल कर पहले खण्ड के यशस्वी  प्रकाशक अमनप्रकाशन को दे दिया,जो कुछ दिनों में ही उसकी प्रीबुकिंग शुरू करने जा रहे हैं।

       बड़ी बेटी डॉ तूलिका सनाढ्य की पीएचडी थीसिस पुस्तकाकार छप कर आई--'Master Plans of Delhi Metropolitan Area' इंडियन रिसर्च अकैडमी दिल्ली ने प्रकाशित की और इसी वर्ष वह बीआर अम्बेडकर कॉलेज में जियोग्राफी डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के रूप में प्रोन्नत हुई।

      सुगन्धा ने यूट्यूब पर मोटिवेशनल वीडिओज़ निर्मित कर जारी करने शुरू किए जबकि सर्जना ने '"Chaaywali" के नाम से अपना टी कैफ़े लांच किया।

       कामना है कि हमारे सभी मित्र स्वस्थ-प्रसन्न व नकारात्मक विचारों से मुक्त रह प्रगति-पथ पर सदा अग्रसर रहें और समाज में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही धार्मिक संकीर्णता और नफ़रत की आँधी को रोकने में प्रभावी भूमिका अदा करें।नया वर्ष कोरोना को परास्त करते हुए उससे प्रभावित हर वर्ग के हर व्यक्ति को अपेक्षित राहत दे।

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रवि अरोड़ा की नजर से...

 बापू के तीन बंदर और नई दिल्ली / रवि अरोड़ा

 पुरानी कहावत है कि नया नया मुल्ला ज्यादा प्याज़ खाता है । मेरे खयाल से अब इस कहावत को बदलने का समय आ गया है । नई कहावत कुछ इस तरह से होनी चाहिए- नया नया हिंदू मुसलमानों को ज्यादा गाली देता है । आप पूछ सकते हैं कि इस कहावत को बदलने का क्या औचित्य है और किस संदर्भ में मैने यह सुझाव दिया है ? जवाब यह है कि हाल ही में हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद में मुस्लिम से नए नए हिंदू बने वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी ने जिस तरह से मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगला है , उसी से मुझे इस पुरानी कहावत को नया कलेवर देने का विचार आया । वसीम रिजवी हिंदू हो गया , यहां तक तो ठीक है मगर वह त्यागी कैसे हो गया ?

चलिए त्यागी भी हो गया मगर चार दिन में सन्यासी कैसे हो गया ? चलिए सन्यासी भी हो गया मगर धर्म संसद को संबोधित करने की योग्यता उसने कहां से हासिल कर ली ? चलिए धर्म संसद को भी संबोधित उसने कर दिया मगर मुस्लिमों के खिलाफ इस कदर हेट स्पीच देने का अधिकार उसे किस कानून ने दिया ? 


वसीम रिजवी पढ़ा लिखा मुसलमान था । पेशे से वकील रहा है । अमेरिका समेत कई देशों में काम कर चुका है । समाजवादी पार्टी से जुड़ कर राजनीति का भी स्वाद ले चुका है । दस साल तक शिया सेंट्रल वक्फ का चेयरमैन भी रहा है । पढ़े लिखे मुस्लिमों में उसकी अच्छी खासी धाक रही है । उसके द्वारा उठाए गए मुद्दों से बेशक कठमुल्ले नाराज रहे हों मगर आम मुस्लिमों से उन्हें हाथों हाथ लिया था । हो सकता है कि अपने खिलाफ लगे आर्थिक गड़बड़ियों के आरोपों से बचने को उसने यह नया रूप धरा हो मगर उसे इस कदर जहरीला तो कतई नहीं होना चाहिए था । वह सैयद है और उसके कुनबे का पूरे इस्लामिक जगत में खास स्थान भी है मगर उसने मुस्लिम जगत के असली मुद्दों पर संघर्ष करने की बजाय यह रास्ता चुना ? चलिए यह उसका निजी फैसला था और हम कौन होते हैं उस पर सवाल-जवाब करने वाले मगर अब हिन्दुओं में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने को वह आएं बाएं क्यों बक रहा है ? मुस्लिमों के नरसंहार के आह्वान से क्या वह पक्का हिंदू हो जायेगा ?  बेशक ऐसे तमाशों से सत्ता साधी जा सकती है मगर इसके लिए धर्म का चोला ओढ़ना क्या जरूरी है ? क्यों वह उस भगवा वस्त्र की मिट्टी पलीत कर रहा है जिसे हजारों साल से एक विशेष सम्मान हासिल है । आप कह सकते हैं कि उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज तो हो गई है और क्या चाहिए ? मगर सवाल यह है कि क्या उसकी गिरफ्तारी भी होगी ? हालात तो चुगली कर रहे हैं कि देर सवेर हम उसे विधानसभा अथवा संसद में बैठा देखने को भी अभिशप्त हो सकते हैं ।  उसके जैसे ही कथित संत कालीचरण का भी भविष्य मुझे उज्जवल नजर आता है । रायपुर की कथित धर्म संसद में महात्मा गांधी को गरिया कर और गोडसे का महिमा मंडन करके वह भी एक खास किस्म की राजनीति करने वालों की नज़रों में चढ़ गया है । अजी उसकी गिरफ्तारी पर मत जाइए , जेल तो उसका लॉन्चिंग पैड साबित होना है ।


 समझ नही आता कि इस किस्म की खुराफातों को धर्म संसद किस लिहाज से कहा जा रहा है जबकि उनमें न धर्म है और न ही संसद । जिन लोगों को जेल की काल कोठरी में होना चाहिए वे लोग भगवा कपड़े पहन कर वह सब कहते हैं जो संत तो क्या कोई वहशी भी नहीं कह सकता । सुनिए तो सही भला ये लोग कह क्या रहे हैं ? पूरी दुनिया थू थू कर रही है इन कथित धर्म संसदों की बातों पर । पाकिस्तान जैसा देश भी हमें नसीहत दे रहा है । विदेशी मीडिया भी पूछ रहा है कि यह सब किसकी शय पर हो रहा है ? सबकी जबान पर एक ही सवाल है कि क्या नई दिल्ली बापू के तीन बंदरों की तरह बहरी है , उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा ? अंधी है जो कुछ नही दिखता ? सचमुच गूंगी भी है जो इसके खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकती ?


मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

अनंग की कुछ कविताएं



   तुम्हारी क्या कीमत  / अनंग


बेमौसम बरसात में तुम्हारी क्या क़ीमत 

होने  वाली  रात , तुम्हारी क्या कीमत।। 

जब  देखो  तुम , हंसने- रोने लगते

झूठे  हैं जज्बात, तुम्हारी क्या कीमत।।

सोने की  लंका  का रावण, चला गया। 

दिखा रहे औकात,तुम्हारी क्या कीमत।।

सच कहने वालों  से,डरना सीखो अब।

आदर की है बात, तुम्हारी क्या कीमत।।

उगा  रहे  जो  बीज , सृष्टि हैं -ब्रह्मा हैं। 

तुम डाकू की जात,तुम्हारी क्या कीमत।।

असली नकली चेहरा,छुपता कहीं नहीं। 

नजरों की सौगात , तुम्हारी क्या कीमत।।

क्या कर लोगे,पैसों वाली भीड़ लगाकर।

दिखावे  की पांत ,  तुम्हारी क्या कीमत।। 

चौपालों  पर , गूंगे - अंधे - बहरे  सब। 

नकली है बारात,तुम्हारी क्या कीमत।।

ठग  ना  होते  तो ,पहरे में  क्यों रहते। 

इतनी एहतियात,तुम्हारी क्या कीमत।।

महापुरुष की,गुरुजन की हरि भी सहते।

भृगु ने मारी लात , तुम्हारी क्या  कीमत।।........


."अनंग "


["मुंह से आग उगलना होगा"


पूरा  तो  हर  सपना  होगा।

पर कांटों पर चलना होगा।। 

सबके खातिर जीकर देखो।

कहीं तो कोई अपना होगा।।

चिंगारी  हो  निकलो बाहर। 

बनकर आग दहकना होगा।।

आसमान  पर  छाना  है तो।

बनकर चांद चमकना होगा।।

दीपक बाती बन जाओ तुम। 

अंधेरों  से  लड़ना  होगा।। 

बैठे  रहने  से  क्या  होगा।

आगे -आगे  बढ़ना  होगा।।

काम बड़ा ना शूली चढ़ना।

जड़ से शूल कुचलना होगा।। 

चुप  रहने से मिट  जाओगे। 

मन से तुम्हें उबलना होगा।। 

चट्टानों  से कह  दो  जाकर।

अबतो तुम्हें पिघलना होगा।।

राजा अगर निरंकुश हो तो।

मुंह से आग उगलना होगा।।..........



भुने हुए आलू के खातिर



लुगरी ओढ़े  कांप रहा है। 

खूब व्यवस्था नाप रहा है।। 

कब तक ठंडी रात बितेगी।

आसमान को ताक रहा है।। 

खेत बचाने को पशुओं से।

दीवा-रात्रि वो हांफ रहा है।। 

रामलला तुम कब आओगे। 

गिन-गिन माला जाप रहा है।।

रखवाला बनकर वह बैठा।

बरसों से जो  सांप  रहा है।। 

थाली छीन-छीनकर झूठा।

नोट रात-दिन छाप रहा है।। 

भुने हुए आलू के खातिर। 

बैठा  बोरसी ताप रहा है।।

लौट गई बारात मरा जो।

बेटी का वह बाप रहा है।।

रिश्वत लेने को अधिकारी।

मातहतों को चांप रहा है।।

असुर बढ़ेंगे तुम आओगे।

शास्त्रों का आलाप रहा है।।............


" " मन की अभिलाषा "


जो अच्छा है,मैं उन सबका वरण करूं।

अच्छी बातों का सदैव,अनुसरण करूं।।

ततपर रहूं सदा ,चाहे  जिसकी भी हो।

शोक और संताप,कष्ट का हरण करूं।।

अपना हृदय स्वतः ,निर्मल बन जाएगा।

जनहितकारी भाव जगा,आचरण करूं।।

कोई अनाथ रह जाए ना,इस धरती पर। 

वंचित-शोषित जन का,पोषण-भरण करूं।।

नदियां  प्यास  बुझाने  लायक , बन जाएं।

त्याज्य वस्तुओं का,बाहर ही क्षरण करूं।।

गौरवपूर्ण  अतीत   दबा ,  खंडहरों  में। 

ढूंढ-ढूंढकर उनका मैं,अनावरण करूं।। 

वहम ,अहम ,लोभ, तृष्णा  से दूर  रहें।

हो  जाऊं  मैं  शुद्ध , अंतःकरण  करूं।। 

नमन और वंदन , सदैव पूर्वजगण का।

कुछ भी करूं सदैव,उन्हें  स्मरण  करूं।। 

स्वाभिमान  की  रक्षा  में,मैं  सफल  रहूं।

वंदना पिता-माता के केवल चरण करूं।।....."अनंग "

रवि अरोड़ा की नजर से......

 जोजो रैबिट /  रवि अरोड़ा



हॉलीवुड की मशहूर फिल्म है जोजो रैबिट । दो साल पहले रिलीज हुई इस फिल्म ने पूरी दुनिया में धूम मचा दी थी और ऑस्कर समेत तमाम बड़े पुरस्कार बटोरे थे । अपने अंत से पूर्व नाजीवाद जर्मनी के बच्चों के दिलों में कितना जहर बो चुका था , यह फिल्म उसी को केंद्र में रख कर बनाई गई है ।

 फिल्म दिखाती है कि काल्पनिक नायक और उनके हवा हवाई आदर्श कैसे बच्चों के दिमाग को विषैला बनाते हैं । कैसे  वे अपने जैसे ही आसपास के उन लोगों को खत्म करने पर आमादा हो जाते हैं , जिन्होंने उनका कभी कुछ नहीं बिगाड़ा । इस फिल्म का आज जिक्र करने की वजह बड़ी मौजू है । दरअसल देशभर में कई जगहों पर हिन्दू संगठनों ने क्रिसमस के जश्न में बाधा पहुंचाई। गुरुग्राम के एक स्कूल में भीड़ 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए घुस गई और वहां चल रहे क्रिसमस कार्निवल को रोक दिया। उधर, कर्नाटक के एक स्कूल में भी दक्षिणपंथी समूह के कार्यकर्ताओं ने घुसकर क्रिसमस के जश्न में बाधा पहुंचाई। इसी तरह असम में भी बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक चर्च में घुसकर क्रिसमस के जश्न को रोक दिया। आप कह सकते हैं कि यह तमाशा अब कोई नई बात नहीं है । आप ठीक कहते हैं  मगर मैं तो यह सोच रहा हूं कि बच्चों के सामने हुए इस जहर वमन का उनके कोमल मनों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्या हम अपने समाज में जोजो रैबिट ही तैयार करने पर आमादा हैं ? वो जोजो जो अपने तमाम विरोधियों का खत्म कर देना चाहता है, उन्हे गोली से उड़ा देना चाहता है ।


उत्तर प्रदेश समेत पांच प्रमुख राज्यों में चुनाव होने हैं सो राजनैतिक तमाशे तो होंगे ही । नेता लोग अपने हाथ से कोई भी मौका पहले भी कहां जाने देते थे । समाज कितना भी विषैला हो , सौहार्द कितना भी बिगड़े और लोग चाहे कितने भी मरें , उन्हें इसकी कब परवाह रही है ?  मगर इस बार कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा ? मुस्लिमो की जुम्मे की नमाज के खिलाफ तो पहले भी खुराफातें होती थीं मगर स्कूलों में बच्चों की मौजूदगी में क्रिसमस पर बवाल तो शायद पहली बार ही हुआ है । कई जगह से तो सेंटा क्लॉज के पुतले फूंके जाने की भी खबरें हैं । अब से पहले कम से कम मैंने तो ऐसा कभी नहीं देखा था । जहां तक मेरी जानकारी है, देश के अधिकांश स्कूलों में सभी धर्मों के त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं । ऐसे स्कूल भी अनगिनत हैं जहां प्रतिदिन सर्वधर्म प्रार्थना होती है । सरकारी स्तर पर भी सभी धर्मों के समान आदर का भाव कुछ साल पहले तक रहा है । सभी धर्मों के प्रमुख दिनों पर सार्वजनिक अवकाश भी रहता ही है मगर अब तो हवाएं कुछ ज्यादा ही जहरीली होती जा रही हैं । असुद्दीन ओवैसी कहता है कि जब योगी मोदी नहीं रहेंगे तब तुम्हे कौन बचाएगा । कपिल मिश्रा जैसे कहते हैं कि तुम्हे योगी के डंडे से कौन बचाएगा । हरिद्वार में कथित धर्म संसद में संतों के वेश में गुंडे सरेआम मुस्लिमों के कत्लेआम की बात कर रहे हैं । छोटे मोटे नेताओ का क्या रोना रोएं , बड़े बड़े नेता जहर उगल रहे हैं । खैर,  हमारी तो बीत गई यह सब देखते देखते । इसके प्रभाव से जिन्हे जहरीला होना था वे हो भी गए और जिन्होंने खुद को बचा लिया , वे आजतक बचे हुए हैं ।

मुझे तो फिक्र उन बच्चों की हो रही है जिनके स्कूलों में जाकर अब सांप्रदायिक जहर उगला जा रहा है और दूसरे धर्मों का भी सम्मान  करने के भाव को दूषित किया जा रहा है । मैं तो डर रहा हूं कि यह सब देख कर हमारे देश में भी अब न जाने कितने जोजो रैबिट तैयार होंगे ?

आलोक यात्री की साठा पाठा यात्रा

 

 📎📎 गुल्लकें बची रहें ...


जनवरी आने वाला है

यानी के अपनी पैदाइश का महीना

कैलेंडर में एक और पन्ना पलटेगा

और...

सफ़र साठ साल का पूरा हो जाएगा


यकीन नहीं होता...

हंसते खेलते यहां आ खड़े हुए

ज़िन्दगी के मुहाने पर



बचपन में कितनी गुल्लकें मिलीं

कितनी तोड़ीं, कितनीं फोड़ीं

याद नहीं

कितनी बाकी हैं

यह भी पता नहीं

लेकिन...

 ज़िन्दगी की रकम खत्म हो रही है

इसका इल्म अब आकर लगा

जब अचानक एक दिन...

माताश्री अस्पताल में भर्ती हो गईं

तकरीबन तेरह दिन पहले

(कहते हैं यह मनहूस संख्या है)

जांच रिपोर्ट के शून्य, डेसिमल और फिगर...

मायनस, मायनस और मायनस का ही

उद्घोष करते रहे


लेकिन उम्मीद की किरण का आलोक कहीं शेष था

पहला किला किसी तरह फतह किया ही था कि

आंगन की कच्ची दीवार की कुछ ईंटें आज दरकने लगीं...


गोद में चढ़ा यह बच्चा 

आज शाम कुछ हवाखोरी करने भाई अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव के साथ वरिष्ठ पत्रकार श्री नरसिंह अरोड़ा जी के गरीबखाने तक क्रिसमस की बधाई देने गया ही गया था कि...

एक मनहूस सी खबर ने मोबाइल की घंटी बजा दी


फिर क्या हुआ...

आप अंदाजा लगा सकते हैं

बाॅडी में उठे करंट का

360 वोल्ट का था 

या 66000 वोल्ट का...

यह तो पता नहीं

लेकिन जब पहुंचा डाॅ. डोगरा

(अरविंद) मोर्चा संभाले हुए थे


जन्म से संभाली गुल्लकें टूटने से

फिलहाल बच गई


दुआ कीजिए

माताश्री पिताश्री के रूप में

सहेज कर रखी गई

यह गुल्लकें बची रहें...


आमीन 🙏🙏🙏

लब तलक / प्रेम रंजन अनिमेष

 

लब  तलक  ला नहीं  सका हूँ  मैं 

प्यार  को   गा  नहीं  सका  हूँ  मैं 


वो  जो  आये  थे   ढूँढ़ते  मुझको    

उनके  घर  जा नहीं  सका  हूँ  मैं 


ख़ुद से वादा किया था मिलने का

ख़ुद  को ही  पा नहीं  सका हूँ  मैं 


प्रीत  बचपन की  इक  पहेली सी 

जिसको  सुलझा नहीं सका हूँ  मैं 


जिसकी ख़ातिर ये दिल धड़कता है

उसको  दिखला  नहीं  सका हूँ मैं 

                           

अपने  सपनों में  भी  थी  सच्चाई

सच को  झुठला नहीं  सका  हूँ मैं


ठीकरे   की  तरह  है   जग  आगे

फिर भी  ठुकरा नहीं  सका  हूँ मैं 


जलते खेतों को मुँह दिखाऊँ क्या

बारिशें   ला   नहीं   सका  हूँ   मैं 


गुल सा हूँ रोता हूँ ओस के आँसू

ख़ुशबू   फैला  नहीं  सका  हूँ  मैं  


देखने   आ  गया  था  ये  बाज़ार 

आ के फिर  जा  नहीं सका हूँ मैं


मौत की  क़ब्र  ज़ीस्त की  चादर

पाँव   फैला   नहीं   सका  हूँ  मैं 


आस है  साँस  फिर  वफ़ा  लेगी

उसको दफ़ना  नहीं  सका हूँ  मैं 


ये कसक है कि ज़िंदगी को अभी

जीना  सिखला नहीं  सका हूँ  मैं 


लाख   कहते   रहे   मुकर्रर  सब

ख़ुद को  दुहरा  नहीं  सका हूँ  मैं


सर पे बरसात आ गयी  'अनिमेष'

छत  कोई  छा  नहीं  सका  हूँ  मैं 

                             💔

                                ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

रवि अरोड़ा की नजर से.....

 कपड़े बदल -चेहरा बदल / रवि अरोड़ा



भारत ने कोविड टीकाकरण में सौ करोड़ की बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है .. कोविड के अनुरूप व्यवहार का पालन करें..। बताने की जरूरत नहीं यह रिकॉर्ड आप दिन में कई बार सुनते ही होंगे । जब भी किसी को फोन लगाओ , पहले यह सरकारी पैगाम सुनना ही पड़ता है ।

 मगर मुझे पूरी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने यह रिकॉर्ड कभी नही सुना होगा । सुनें भी तो भला कैसे , उनके पास तो फोन मिलाने के लिए भी अलग से स्टाफ होगा । वैसे क्या ही अच्छा हो यदि किसी दिन वे खुद ही किसी को अपने मोबाइल से फोन करें और अपनी ही सरकार का यह संदेश पूरा सुन लें । हो सकता है कि अपना ही यह संदेश जब उनके कानों में पड़े तो वे आत्ममंथन भी करें कि क्या वे स्वयं भी कोविड के अनुरूप व्यवहार का पालन कर रहे हैं ?

  योजनाओं के उद्घाटनों और शिलान्यासों के बहाने आजकल उत्तर प्रदेश में वे जो ताबड़तोड़ रैलियां कर अपार भीड़ जुटा रहे हैं , उसे देखते हुए तो कम से कम यही लगता है । 


यह खबर पढ़ कर अच्छा लगा कि प्रधानमंत्री ने कोविड के नए स्वरूप ओमिक्रॉन के भारत पर मंडरा रहे खतरे को लेकर एक बार फिर समीक्षा बैठक की है । इन बैठकों में मोदी जी खूब चिंतित भी दिखते हैं मगर उनकी यह चिंता क्या वाकई सच्ची है ?

 अक्तूबर से लेकर आज तक वे तेरह बार उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके हैं और हर बार एक बड़ी भीड़ को भी संबोधित करते हैं । जाहिर है कि भीड़ में कोविड के अनुरूप व्यवहार की बात तो सोचना भी फजूल है ।  उनके दौरों का यह सिलसिला चुनाव की घोषणा से पूर्व ही जब इतना जबरदस्त है तो अंदाजा लगाइए कि चुनावी रैलियों में वे क्या करेंगे ।


जब खुद प्रधानमंत्री ऐसा कर रहा है तो अन्य दलों के नेताओं की कोई क्या बात करे ।  यह स्थिति तो तब है जबकि खुद सरकार ही मान रही है कि कोविड का यह नया स्वरूप पुराने स्वरूप से तीन गुना अधिक तेजी से फैलता है । चूंकि मोदी जी उत्तरप्रदेश से ही चुन कर संसद में गए हैं अतः उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि दूसरी लहर में कोरोना ने यहां कितनी तबाही मचाई थी । मरने वालों को श्मशान घाटों में भी जगह नहीं मिली थी । अनगिनत लाशें गंगा में तैरती मिली थीं अथवा नदी किनारे रेत में दबी हुई । अस्पतालों में जगह नहीं थी और लोगबाग आक्सीजन की कमी से तड़प तड़प कर जान दे रहे थे ।


अब बेशक मरीजों , मृतकों, अस्पतालो और आक्सीजन संबंधी कोई भी दावा सरकार संसद और विधान सभा में करे मगर सच्चाई तो उन सीनों में ताउम्र जिंदा ही रहेगी , जिन्होंने उस खौफनाक दौर को झेला है । 


मुझे कई बार लगता है कि नरेंद्र मोदी एक नहीं दो आदमी हैं । एक वह है जो दिल्ली की बैठकों में कोविड पर गंभीर मुद्राएं बनाता है और कोविड के अनुरूप व्यवहार की हमसे अपील करता है ।

  दूसरा वह है जो अपनी रैलियों में अपार भीड़ देख कर हर्षित होता है । साल के शुरू में पश्चिमी बंगाल समेत पांच राज्यों के चुनावों में भी मोदी जी अपने इन्ही दो चेहरों के साथ हमारे बीच थे । अब अगले साल के शुरू में होने जा रहे पांच अन्य राज्यों के चुनावों में भी वे सुबह हमसे कोविड के अनुरूप व्यवहार के पालन की अपील करेंगे और शाम को अपनी सभाओं में अपार भीड़ को देख कर खुशी के मारे दोहरे हुए जाएंगे । कपड़ों में साथ साथ बार बार चेहरे बदलने की भी यह अदा कमाल की है ।


✌🏼✌🏼🙏🏿🙏🏿✌🏼🙏🏿

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

माँ का पल्लू पर निबंध

 *गुरुजी ने कहा कि मां के पल्लू पर निबन्ध लिखो..*


प्रस्तुति - अजय शर्मा राजेश 


 *तो एक  छात्र ने क्या खूब लिखा.....*

     

*"पूरा पढ़े आपके दिल को छू जाएगा"*

      


आदरणीय गुरुजी जी...

    माँ के पल्लू का सिद्धाँत माँ को गरिमामयी

 छवि प्रदान करने के लिए था.


  इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को 

   चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को 

      पकड़ने के काम भी आता था.


        पल्लू की बात ही निराली थी.

           पल्लू पर तो बहुत कुछ

              लिखा जा सकता है.


 पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, 

   गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी 

          इस्तेमाल किया जाता था.


   माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए

           तौलिया के रूप में भी

           इस्तेमाल कर लेती थी.


         खाना खाने के बाद 

     पल्लू से  मुँह साफ करने का 

      अपना ही आनंद होता था.


      कभी आँख में दर्द होने पर ...

    माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, 

      फूँक मारकर, गरम करके 

        आँख में लगा देतीं थी,

   दर्द उसी समय गायब हो जाता था.


माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए 

   उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू

        चादर का काम करता था.


     जब भी कोई अंजान घर पर आता,

           तो बच्चा उसको 

  माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था.


   जब भी बच्चे को किसी बात पर 

    शर्म आती, वो पल्लू से अपना 

     मुँह ढक कर छुप जाता था.


    जब बच्चों को बाहर जाना होता,

          तब 'माँ का पल्लू' 

   एक मार्गदर्शक का काम करता था.


     जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू 

   थाम रखा होता, तो सारी कायनात

        उसकी मुट्ठी में होती थी.


       जब मौसम ठंडा होता था ...

  माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर 

    ठंड से बचाने की कोशिश करती.

          और, जब वारिश होती,

      माँ अपने पल्लू में ढाँक लेती.


  पल्लू --> एप्रन का काम भी करता था.

  माँ इसको हाथ तौलिया के रूप में भी 

           इस्तेमाल कर लेती थी.


 पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले 

  मीठे जामुन और  सुगंधित फूलों को

     लाने के लिए किया जाता था.


     पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी 

       संकलित किया जाता था.


       पल्लू घर में रखे समान से 

 धूल हटाने में भी बहुत सहायक होता था.


      कभी कोई वस्तु खो जाए, तो

    एकदम से पल्लू में गांठ लगाकर 

          निश्चिंत हो जाना ,  कि 

             जल्द मिल जाएगी.


       पल्लू में गाँठ लगा कर माँ 

      एक चलता फिरता बैंक या 

     तिजोरी रखती थी, और अगर

  सब कुछ ठीक रहा, तो कभी-कभी

 उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे.


       *मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है !*


*मां का पल्लू कुछ और नहीं, बल्कि एक जादुई एहसास है !*


स्नेह और संबंध रखने वाले अपनी माँ के इस प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करते हैं, जो कि आज की पीढ़ियों की समझ में आता है कि नहीं........

            

🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻

Perhaps sometimes it's 'Special' to be 'Ordinary'

 This message may change one's attitude !


Do read it  !!



1. Name the 3 wealthiest people in the world 2017.


2. Name the last 3 winners of the  Miss  Universe.


3. Name the last 3 people who won the Nobel Prize for Physics. 


How did you do?

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The point is, none of us remembers the headlines of yesterday !!


Even though these people must be the best in their fields !!


Applause dies !!


Awards are tarnished and 

achievements

are forgotten .....!!


Here's another quiz:


Let's see how this goes: 


1. Name 3 Teachers who added your journey through school.


2. Name 3 friends who helped you through  difficult times.


3. Name 3 people who taught you something worthwhile.


4. Name 3 people who make you feel special.


5. Name 3 People you enjoy spending time with.

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Easier.....right?😊 


The people who make a difference in your life are NOT the ones with prestigeous awards and loads of money !!


*Life is full of ordinary people who have made the world a better place for you !!*


Cherish them !!


Hold Them Tight !!


Perhaps sometimes it's 'Special' to be 'Ordinary' !!!👌

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

हवाई यात्रा में / अंकिता सिंह

 ❤️नया गीत❤️


जिनको क़द्र नहीं शब्दों की 

उनको मेरा मौन मिलेगा !


शिखर चूमने वाले अक्षर

चरण वंदना नहीं कर सके,

स्वाभिमान है शब्दों में सो,

गुमनामी में नहीं मर सके 

रसग्राही मन शब्द - शब्द पर , हँस सकता है रो सकता है

मेरे भीतर रह कर भी चुपचाप किसी का हो सकता है

इसीलिए दुनिया कहती है शाश्वत हैं ये, शब्द ब्रह्म हैं

भावों पर वरदान - सरीखे इन्हें सतत उर-भौन मिलेगा ।(भौन:भवन)


कुछ ने झूठ कहा इनको तो

कुछ ने निरा खोखला बोला

कुछ शब्दों के मिले ज़ौहरी

जिनने भरा हृदय भर झोला

जिसकी रही भावना जैसी, वैसा वह शब्दों से खेला

कुछ ने नीर बहाए दृग से, कुछ ने इनपर किया झमेला

जबकि शब्द तो बहुत सरल है, पावन है, यह गंगाजल है

इनकी पावनता कहती यह- इनसे सच्चा कौन मिलेगा !


कितना दर्द सहा नदिया ने

जब सागर को थाह नहीं है 

पत्थर पर हीरा मारूँ फिर ? 

धत ! ऐसी भी चाह नहीं है 

वैसे तो मिल ही जाते हैं शब्द - शब्द पर घोर प्रशंसक

किन्तु एषणा यह है मेरी पहुँच सकूँ मैं दिल से दिल तक

भीड़ भरी भारी दुनिया में कठिन नहीं है इन्हें समझना 

इन्हें वृथा कहने वालों को इनका आशय गौण मिलेगा !


©️अंकिता सिंह 


यह गीत आधा गोरखपुर में और आधा गोरखपुर से दिल्ली की फ़्लाइट में पूरा हुआ।हिमालय का अद्भुत नज़ारा दिखा तो कविता का आनंद दुगना हो गया।इस यात्रा में जब pilot कहता है कि आपके दाईं/बाईं तरफ़..(आने जाने के हिसाब से)देहरादून है और विशाल हिमालय के आप दर्शन कर सकते हैं तो मैं मुस्कुरा देती हूँ और अपलक खिड़की से बाहर देखती रहती हूँ❣️

प्रेम पकता हैं / ओशो

 प्रेम आनंद है 💜


प्रेम सच्चा हो तो तुम्हारे जीवन में सब तरफ सच्चाई आनी शुरू हो जाएगी। क्योंकि प्रेम तुम्हें बड़ा करेगा, फैलाएगा।  


और धीरे-धीरे अगर तुमने एक व्यक्ति के प्रेम में रस पाया तो तुम औरों को भी प्रेम करने लगोगे। 


मनुष्यों को प्रेम करोगे–

प्रेम की लहर बढ़ती जाएगी– पौधों को प्रेम करोगे, पत्थरों को प्रेम करोगे। 


अब सवाल यह नहीं है कि 

किसको प्रेम करना है, अब तुम एक राज समझ लोगे कि प्रेम करना आनंद है। किसको किया, यह सवाल नहीं है। अब तुम यह भूल ही जाओगे कि प्रेमी कौन है। नदी, झरने, पहाड़, पर्वत, सभी प्रेमी हो जाएंगे।


लेकिन जैसे झील में कोई पत्थर फेंकता है तो छोटा सा वर्तुल उठता है लहर का, फिर फैलता जाता, फैलता जाता, दूर तटों तक चला जाता है; ऐसे ही दो व्यक्ति जब प्रेम में पड़ते हैं तो पहला कंकड़ गिरता है झील में प्रेम की,  फिर फैलता चला जाता है। 


फिर तुम परिवार को प्रेम करते हो, समाज को प्रेम करते हो, मनुष्यता को, पशुओं को, पौधों को, पक्षियों को, झरनों को, पहाड़ों को, फैलता चला जाता है।  


जिस दिन तुम्हारा प्रेम समस्त में व्याप्त हो जाता है, अचानक तुम पाते हो परमात्मा के सामने खड़े हो।


प्रेम पकता है  तब सुवास उठती है प्रार्थना की। जब प्रार्थना परिपूर्ण होती है तो परमात्मा द्वार पर आ जाता है। तुम उसे न खोज पाओगे।  तुम सिर्फ प्रेम कर लो; वह खुद चला आता है...

कमजोर मनोबल / पुरुषोतम शर्मा

 ।।  बोधकथा।। /


🌺💐कमज़ोर मनोबल💐🌺


सुप्रसिद्ध हिन्दी कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा के प्रारम्भिक दिनों की घटना है। एक बार उनके मन में बौद्ध भिक्षु बनने का विचार आया । पर ऐन मौके पर उनका निश्चय बदल गया। ऐसा क्यों हुआ उन्हीं के शब्दों में सुनिये ।


मैं एम.ए. ‘प्रीवियस में पढ़ती थी।

अचानक मन में विचार आया कि भिक्षु बन जाऊं। मैंने लंका के बौद्ध विहार में महास्थविर को पत्र लिखा। उनसे कहा,कि भिक्षुणी बनना चाहती हूं। दीक्षा के लिए लंका आऊं या आप भारत आयेंगे?  जवाब मिला-‘हम भारत आ रहे हैं। नैनीताल में ठहरेंगे, तुम वहां आकर मिल लेना।’


मैंने भिक्षुणी बनने का निश्चय कर लिया। अपना सब धन दान कर दिया। जब नैनीताल पहुंचीतो देखा वहां अंग्रेजों का-सा ठाठ-बाट है। मुझे लगा, यह कैसा भिक्षु है, भई ! इतना ताम-झाम ही रखना है, तो भिक्षु काहे को बने। खैर फिर भी मैं गयी।


सिंहासन पर गुरुजी बैठे थे। उन्होंने चेहरे को पंखे से ढक रखा था। उन्हें देखने को मैं दूसरी ओर बढ़ी, उन्होंने मुंह फेरकर फिर से चेहरा ढक लिया। मैं देखने की कोशिश करती और वह चेहरा ढक लेते। कई बार यही हुआ और हमें गुरु का चेहरा दिखाई नहीं दिया।


जब सचिव महोदय हमें वापस पहुंचाने बाहर तक आये,तब हमने उनसे पूछा-‘महास्थविर मुख पर पंखा क्यों रखते हैं?’ उन्होंने जवाब दिया-‘वह स्त्री का मुख दर्शन नहीं करते।’ हमने अपने स्वभाव के वशीभूत उनसे साफ-साफ कहा-‘देखिये -इतने दुर्बल आदमी को हम गुरुजी न बनाएंगे।


आत्मा न तो स्त्री है, न पुरुष,केवल मिट्टी के शरीर को इतना महत्व है, कि यह देखेंगे वह नहीं देखेंगे।’ और मैं वापस चली आयी। बाद में उनके कई पत्र आये। बार-बार पूछते-‘आप दीक्षा कब लेंगी।’ हमने कहा-‘अब क्या दीक्षा लेंगे! इतने कमजोर मनोबल वाला हमें क्या देगा।’ 


और इस तरह महादेवीजी बौद्ध भिक्षुणी बनते-बनते रह गयीं और महादेवी के रूप में हिन्दी जगत् को मिला छायावाद का एक महान् स्तम्भ।


।। पुरुषोत्तम शर्मा।।

    15/12/2021

रवि अरोड़ा की नजर से......

 आगे आगे देखिए / रवि अरोड़ा



लगभग तीन दशक पुरानी बात है । शहर के मुस्लिम बहुत इलाके कैला भट्टे में एक सरफिरे युवक ने पवित्र कुरान की बेअदबी कर दी । इससे इलाके में रोष फैल गया और जुम्मे की नमाज के बाद फैसला हुआ कि युवक को वहां बुलाकर पूछताछ की जाएगी । सरफिरे को पकड़ कर लाया गया और फिर पुलिस के बड़े बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में भीड़ द्वारा उसका बेरहमी से कत्ल कर दिया गया । पुलिस ने भी मूक तमाशा इस डर से देखा कि कहीं कोई बड़ा तमाशा न हो जाए , एक गरीब युवक की मौत से फर्क भी क्या पड़ता है ? दशक बीत गए । इस दौरान दुनिया कहां से कहां पहुंच गई मगर मुल्क की पुलिस आज भी वहीं खड़ी है । पिछले दो दिनों में दो लोगो की पंजाब में कुछ ऐसे आरोपों के चलते ही भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या कर दी गई । इस बार भी पुलिस किसी बड़ी घटना के खौफ के चलते केवल तमाशाई की ही भूमिका में रही ।  पता नहीं ये हो क्या रहा है ? ईशनिंदा और धर्म ग्रंथ तो दूर अब तो निशान साहब जैसे धार्मिक प्रतीको के कथित अपमान पर भी भीड़ द्वारा हत्या की जाने लगी है । गौर से देखिए कहीं मध्यकाल का बर्बर युग पुनः तो नहीं लौट आया है ? 


कट्टर मुस्लिम संगठन अरसे से मांग कर रहे हैं कि देश में ईश निंदा कानून बने । कट्टर सिख उससे भी आगे बढ़ गए हैं । उन्हें किसी कानून की भी जरूरत नहीं । वे तो खुद ही फैसला करने लगे हैं । पहले किसान आंदोलन में दलित लखबीर के हाथ काट कर लटकाए गए और अब ये दो हत्याएं कर दी गईं । ईश निंदा के नाम पर पाकिस्तान में इसी तरह के भीड़ द्वारा इंसाफ किए जाने की खबरें पढ़ पढ़ कर हम बड़े हुए हैं । लगता है कि इस मामले में भी हम पाकिस्तान को पीछे छोड़ने पर आमादा हैं । बेशक आज भी दुनिया भर के 26 फीसदी देशों में ईश निंदा जैसे कानून हैं और उनका कड़ाई से अनुपालन भी होता है । मगर ये देश सऊदी अरब, पाकिस्तान और ईरान जैसे हैं और पूरी दुनिया में उनकी कैसी छवि है , यह सबको पता है । बेशक हमारी तमाम सरकारें ईश निंदा कानून के खिलाफ रही हैं और स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी इसकी आवश्यकता को नकार चुका है मगर हालात चुगली कर रहे हैं कि देर सवेर हम बढ़ इसी दिशा में रहे हैं जहां पाकिस्तान जैसे देश खड़े हैं । हालांकि हमारे मुल्क में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में धारा 295ए के तहत कड़ा कानून पहले से ही मौजूद है और उसके तहत तीन साल की सजा का भी प्रावधान है मगर उससे कट्टर धर्मांधों की तसल्ली कहां हो रही है ? वे तो भीड़ द्वारा किए गए त्वारिक फैसले पर ही विश्वास करते हैं । 


 न न न...राजनीतिक दलों और उसके नेताओं से कोई उम्मीद मत पालिए । वे तो सदैव भीड़ के साथ ही खड़े होंगे । सारे अखबार उठा कर देख लीजिए । हर नेता बेअदबी की जांच की बात कर रहा है । हत्याओं की निंदा कोई नहीं कर रहा । लखबीर के परिजनों के आंसू पोंछने भी ये लोग कहां गए थे ? पंजाब के नेता तो अपनी विधान सभा में  2008 में ही भीड़ के फैसले के संबंध में अपनी सहमति दे चुके हैं । बेशक उसका प्रस्ताव राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया था । मगर अब कब तक ऐसी नामंजूरी चलेगी ?  मुल्क जिस दिशा में जा रहा है वहां ईश निंदा जैसे कानून तो अब बनने ही हैं । आगे आगे देखिए अभी और क्या होता है ।

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

रंगमंच के ताज़ा चटख रंग/ श्याम बिहारी श्यामल 🏵️

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समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर व्योमेश शुक्ल का स्वप्नलोक अर्थात वाराणसी में लोहटिया स्थित 'रूपवाणी' का स्टूडियो. 17 दिसंबर 2021 की शाम. एकल नाटकों के मंचन का अवसर. हम प्रथम प्रस्तुति के समय तक तो नहीं पहुंच सके लेकिन द्वितीय  'आखिरी रंग' को देखकर मन अघा गया. ऐसा, जैसे जो-जितना चाहिए था, एकदम नाप-जोख कर हमें मिल गया हो. सविता जी विशेष संतृप्त!


 'मंचदूतम्' की यह प्रस्तुति  योगेश मेहता की कहानी पर आधारित थी. इसे निर्देशित किया ज्योति ने.  अभिनेता अजय रोशन के घंटा-भर के अविकल एकल अभिनय ने कथानक के संघात को जैसे स्याह स्याही से आत्मा के ऊपर मुद्रित कर डाला हो। अनुपयोगी होते वृद्ध कलाकार की दारुण उपेक्षा, दयनीय दशा, उसका आत्मद्वंद्व और दिल दहला देने वाला अंत... सबकुछ जैसे सामने दृश्यान्तरित !....  

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नाटक से मुख़ातिब दुःख थोड़ी देर बाद तब हवा हुआ जब मुझे अपने ही नगर के अब तक स्वयं से अपरिचित अभिनेता अजय रोशन से रू-ब-रू होने का मौक़ा मिला. रंगकर्मी जयदेव दास जी से पिछले कुछ समय से संवाद रहा है और शाम में फ़ोन पर बात भी हुई थी लेकिन उनसे भी पहली भेंट यहीं हुई. 


शब्द-वाक्यों की हमारी यह बेशक़ बहुत बड़ी  किन्तु चौहद्दीबंद दुनिया रंगमंच, संगीत और दूसरी तमाम कलाओ के एक ज़रा-से औचक संस्पर्श से भी पलक झपकते कैसे भक-से जैसे अनेकवर्णी रोशनियों से चकमका उठती है! 


 कुल मिलाकर यादगार शाम! 🏵️🏵️

Savita Singh Vyomesh Shukla Joydev Das

फ्यूज बल्ब

 *"कड़वा सच"*/


प्रस्तुति - सिन्हा आत्म स्वरून 


*शहर "इंदौर" में बसे विजय नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क  में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। *एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया* - आपने कभी *फ्यूज बल्ब* देखे हैं? बल्ब के *फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?* बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे‌ *बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं है‌ कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया* तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रुतबा‌ था,‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌। मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने शर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे जोशी साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो पाठक.. जी इसरो में चीफ थे। *ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं*, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं‌ तो कोई उपयोगिता नहीं। *उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌।* कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ *रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - रिटायर्ड आइएएस‌/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि। अब ये‌ रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट होती है भाई?माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, *बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या?* 

*वास्तव में यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने‌ रखती है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे...आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ... *आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी...समाज को क्या दिया, या अपनों बन्धुओं के कितने काम आएं*लोगों की मदद की* 

या सिर्फ घमंड मे ही सूजे हुए रहे. .पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए

 *कि एक दिन सबको फ्यूज होना है।*


यह पोस्ट उन लोगों के लिए आईना है *जो पद और सत्ता होते हुए कभी अपनी कलम से समाज का हित नहीं कर सकते*। और *रिटायरमेंट होने के बाद समाज के लिए बड़ी चिंता होने लगती है।* अभी भी वक्त है इस पोस्ट को पढ़िए और चिंतन करिए तथा समाज का जो भी संभव हो हित करिए... *और अपने पद रूपी बल्ब से समाज को रोशन करिए*


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देशप्रेम बनाम आशिष्टता?

 एक अतिसुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।


उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।


 महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। 


उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोली "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।


 क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।


" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। 


असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"


'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"


दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। 


महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"


एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। 


एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।


 अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई। 


कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |


 इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"


'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती... 


एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा 


"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।


यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।


तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा, 


"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे। 


सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..? 


लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"


और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।


'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।


  💐💐कहानी का मर्म:--विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।


मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी। 


         🇮🇳🇮🇳🙏🏻जय हिन्द🙏🇮🇳🇮🇳

मैं एक नारी हूँ

 मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l


बेटी बनूं तो पिता की शान बन जाती हूं, 

बहन बनूं तो भाई का अभिमान बन जाती हूं l

बीवी बनूं तो पति का भाग्य बन जाती हूं,

मां बनूं तो बच्चों की ढाल बन जाती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l


होए जो पैसा पहन के गहने मैं बहुत इठलाती हूं, 

हालात ना हो तो दो जोड़ी कपड़े में ही अपना जीवन बिताती हूं l

कभी तो अपनी हर बात में मनवा जाती हूं, 

तो कभी चुप घड़ी औरों की बात सुन जाती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l


कभी बनकर की लाडली मैं खूब खिलखिलाती हूं,

तो कभी दरिंदों से अपना दामन बचाती हूं l

कभी रख फूलों पर अपने कदम महारानी बन जाती हूं,

तो कभी दे अग्नि परीक्षा अपना अस्तित्व बचा जाती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l 


आए मौका खुशी का तो फूलों से नाजुक बन जाती हूं, 

आए जो दुखों का तूफान तो चट्टान बन अपनों को बचाती हूं l

मिले जो मौका हर क्षेत्र पर अपना हुनर दिखलाती हूं, 

जो ना मिले मौका तो चारदीवारी में ही अपना जीवन बिताती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l


उड़ान भर्ती हूं तो चांद तक पहुंच जाती हूं, 

मौके पड़ने पर बेटों का फर्ज भी निभा जाती हूं l

करके नौकरी पिता का हाथ बताती हूं, 

दे कांधा उन्हें श्मशान भी पहुंचाती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l


आए जो भी चुनौती उसका डट के सामना कर जाती हूं,

मिले जो प्यार तो घर को स्वर्ग सा सजाती हूं, 

हुए जो अत्याचार तो बन काली सर्वनाश कर जाती हूं l 

मैं कोई बोझ नहीं यह हर बार साबित कर जाती हूं l


मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l

🙏🙏

सुभद्रा कुमारी चौहान

 

सुभद्रा कुमारी चौहान जीवनी

सुभद्रा कुमारी चौहान एक भारतीय कवियों प्रतिष्ठित भारतीय कवि थीं, जिनकी रचनाओं पर बहुत भावनात्मक रूप से आरोप लगाया जाता था। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना झांसी की रानी है जो बहादुर झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करती है । पूरे हिंदी साहित्य की यह कविता है जो भारत के लोगों द्वारा सबसे अधिक गायन और गाया जाता है । भारत सरकार ने उसकी याद में एक भारतीय तटरक्षक जहाज का नाम रखा है।

सुभद्रा कुमारी चौहान

पैदा होना16 अगस्त 1904
इलाहाबाद, आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत,ब्रिटिश भारत
मृत्यु हो गई15 फरवरी 1948 (आयु वर्ग 43)[1]
सिवनी, मध्य प्रांत और बेरार, भारत
व्यवसायकवि
भाषाहिंदी
राष्ट्रीयताभारतीय
काल1904–1948
शैलीकविता
विषयहिंदी
पति या पत्नीठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान
बच्चे5

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के निहालपुर गांव के राजपूत परिवार में हुआ था। उन्होंने शुरू में प्रयागराज के क्रोथवेट गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की और 1919 में मिडिल स्कूल की परीक्षा पास की । उन्होंने 1919 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से शादी की थी जब वह सोलह साल की थीं, जिनके साथ उनके पांच बच्चे थे। उसी साल खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ शादी के बाद वह सीपी के जुब्बूपुर (अब जबलपुर) चले गए।

1921 में सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। वह नागपुर में अदालत में गिरफ्तारी के लिए पहली महिला सत्याग्रही थीं और 1923 और 1942 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए दो बार जेल में बंद थीं ।

वह राज्य की विधान सभा (तत्कालीन मध्य प्रांतों) की सदस्य थीं । सीपी की तत्कालीन राजधानी नागपुर से जबलपुर लौटते समय सिवनी मप्र के पास एक कार दुर्घटना में 1948 में उनकी मौत हो गई थी, जहां वह विधानसभा सत्र में भाग लेने गए थे ।

लेखन कैरियर

चौहान ने हिंदी कविता में कई लोकप्रिय कृतियां लिखीं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना झांसी की रानी है, जो रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करने वाली भावनात्मक रूप से आवेशित कविता है । यह कविता हिंदी साहित्य में सबसे अधिक गायन और गाई गई कविताओं में से एक है। झांसी (ब्रिटिश भारत) की रानी के जीवन और 1857 की क्रांति में उनकी भागीदारी का भावनात्मक रूप से आवेशित वर्णन, यह अक्सर भारत के स्कूलों में पढ़ाया जाता है। प्रत्येक छंद के अंत में दोहराया गया एक दोहे इस प्रकार पढ़ता है:

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

यह और उनकी अन्य कविताएं जलियांवाला बाग मीन बसंत, वीरों का कस्सा हो बसंत, राखी की चुनौती और विदा, स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में खुलकर बात करते हैं । कहा जाता है कि उन्होंने बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है । ये है झांसी की रानी का उद्घाटन छंद:

सुभद्रा कुमारी चौहान ने हिंदी की खतौली बोली में लिखा, सरल, स्पष्ट अंदाज में। वीर कविताओं के अलावा उन्होंने बच्चों के लिए कविताएं भी लिखीं। उसने मध्यम वर्ग के जीवन पर आधारित कुछ लघु कथाएं लिखीं।

15 फरवरी 1948 में कालबोड़ी (सिवनी,एमपी में) के पास एक कार दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। भारतीय तटरक्षक बल के एक जहाज का नाम उनके नाम पर रखा गया है। जबलपुर के नगर निगम कार्यालय के सामने मप्र द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा स्थापित की गई है।

 

खो गयी कहीं चिट्ठियां

 प्रस्तुति  *खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे।  बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते...