आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के संग कुछ प्रसंग / मुकेश pश प्रत्यूष praytush
काश! मेरा कहा सच हो जाता : जानकी वल्लभ शास्त्री / शास्त्री जी के संग मुकेश प्रत्यूष की कुछ आत्मीय भेंट मुलाक़ातों की दास्तान आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री से मेरी पहprtली म गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन में हुईyush थी। अधिवेशन के बाद कवि-सम्मेलन का कार्यक्रम था। राज्य-भर के प्रतिष्ठित कवि आमंत्रित किये गये थे। शास्त्रीजी उनमें सबसे अलग दिखते थे। उन्होंने अपनी उसी कविता का पाठ किया जो हमें पढ़ाई जाती थी और हमें प्रिय भी थी। उनके स्वरों की अनुगूंज अबतक जेहन में होती रहती है - कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो पथ निर्देशक वह है। चुनौति देता हुआ लहजा - उतर रेत में। कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता और संचालन वही कर रहे थे मेरी कविता पर कुछ औपचारिक प्रतिक्रियाएं दी। अलग से कुछ कहा नहीं, मैंने भी पूछना उचित नहीं समझा। मंच पर कोई किसी को क्या कह सकता है। कवि सम्मेलन के बाद मैं उनके कमरे तक साथ-साथ गया उन्हें तत्काल मुजफ्फरपुर के लिये निकलना था। आयोजकों ने अन्य चीजों के साथ-साथ उन्हें ले जाने के लिये तिलकुट भी दिचा जिसे देखते ही उन्होंने कहा यहां कि लाई भी अच्छी होती है वह मंगवा दे स