सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

रावण_ऐसे_नहीं_मरेगा / प्रवीण परिमल

 कुछ नई पंक्तियों के साथ, पेश है यह जनगीत ...



चाहे जैसी जुगत लगा लो,

काटोगे सिर, फिर उभरेगा।

नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


आग लगाओ डाल किरासन,

जला नहीं पाओगे आसन।

कोशिश है बेकार तुम्हारी,

'फ़ायर- प्रूफ' बना सिंहासन।


बहुत बड़ा मायावी है वह,

जैसा चाहे रूप धरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


गद्दी की ख़ातिर गुटबाजी,

करते ही रहते हैं पाजी।

समझौतों के मौसम में अब,

शर्मा जी से मिलते झा जी।


दुस्सासन से मिलकर कान्हा,

पांचाली का चीर हरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा! 


छल- बल से जो कुर्सी पाए,

नैतिकता के पाठ पढ़ाए।

लेकिन मौक़ा मिलते ही वो

पूरा मुल्क हजम कर जाए।


काम अनैतिक करने वाला,

सत्य- धर्म की बात करेगा ।

रावण ऐसे नहीं मरेगा !


अफ़सर, थानेदार, कलेक्टर

लूट रहे हैं, देखो, जमकर।

अभयदान हासिल है, क्योंकि --

हिस्सा लेते बाँट मिनिस्टर।


'जिसकी लाठी, भैंस उसी की' --

इस कथनी को सत्य करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


गुंडागर्दी, टैक्स- उगाही...

झेल अयोध्या रही तबाही।

हक़ हासिल छुट्टे साँढ़ों को,

सारी धरती करें दमाही।


अश्वमेध का घोड़ा ठहरा,

खुल्लम- खुल्ला खेत चरेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


देख, हवस में आनन- फानन

हावी सब पर हुआ दशानन।

पत्थर का इंसान हुआ है,

सत्ता- सुख पाने के कारण।


अपनी कोठी भरने वाला,

जनता की परवाह करेगा?

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


सुनो, नाभि में अमृत जब तक,

नहीं पराजित होगा तबतक।

दैत्य न ऐसे मरने वाला,

लहू पिलाओगे तुम कबतक?!


असुरशक्ति का स्वामी आख़िर 

कुछ तो लीला और करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा!


संबंधों में प्रीत नहीं है,

बात पते की, सुनो, कही है।

धन- पद सबसे ऊपर ठहरा,

वर्तमान का खेल यही है।


राम! भरत से मिलना बचकर,

मौक़ा पाते ख़ून करेगा।

रावण ऐसे नहीं मरेगा! 


हममें, तुममें, उसमें बैठा,

छद्म अहं के कारण ऐंठा।

रावण धरकर रूप अनेकों,

सबके भीतर गहरे पैठा।


पहले अपने भीतर कोई

यदि रावण- वध नहीं करेगा,

बाहर रावण नहीं मरेगा! ....


चाहे जैसी जुगत लगा लो,

काटोगे सिर, फिर उभरेगा।

नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,

रावण ऐसे नहीं मरेगा !

ऐसे रावण नहीं मरेगा!

______________________

#प्रवीण_परिमल


चित्र गूगल से!

मैं एक लड़की /

 मैं इक लड़की हूं

पर मेरा खुले आसमान में उड़ना

तुमको क्यों नहीं सुहाता ?

तुम यह मत करो,

तुम वो मत करो

हर कोई मुझे यही समझाता।

हां, मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


मेरा लड़की होना भी क्या कोई पाप है?

क्यों मैं सब की तरह

आज़ाद नहीं रह सकती?

अब तुम मुझे क्या सनद दोगे?

लड़की हो,लड़की हो बचपन से

हर कोई यही कहकर रुलाता।

हां, मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


हज़ार ख्वाब लिए जो बंद है

एक पिंजरे में,

जिस को क़ैद किया गया ,

दुनिया की बाज जैसी नज़रों से।

जहां हर कोई है मुझको नोचना चाहता।

हां मैं इक लड़की हूं।

मैं इक लड़की हूं।


खुले आसमान की इस दुनिया में,

मुझको बहुत ऊंचा उड़ना है।

मालूम है मुझको मेरी हद,

ऐसे ही कितने ख्वाब लिए

मुझको अभी बहुत लड़ना है।

मुझको जीने दो, उड़ने दो,

सारे ख्वाब रंगने दो

हां, मैं इक लड़की हू।

मैं इक लड़की हूं।


मैं हूं एक जननी भी ।

तुम लोगों ने ही कितने रूपों में ,

मुझको देखा है।

फिर क्यों बांधा मुझको तुमने?

ऐसे कितने ही दायरों में।

सहना सब कुछ चुप रह कर तू ।

हर इंसा यही बताता।

हां, मैं इक लड़की हूं

मैं इक लड़की हूं।


यह सब मेरी क़िस्मत है तो ,

मुझको इस दुनिया में लाया कौन?

यह है मेरा प्यारा बेटा,

बेटी तो है धन पराया ।

ऐसा भ्रम फैलाया कौन?

मेरे प्यारे से सपनों में कोई तो पंख लगाता ।

कोई तो मेरे सपनो को भी थोड़ा सा सहलाता l


हां, मैं इक लड़की हूं, 

तो क्या यही मेरा जीवन है.. ?

या मेरा भी कोई अस्तित्व है..?

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

मूलकसूर और सीता युद्ध /कृष्ण मेहता

 एक समय की बात है कि भगवान् श्री राम राज सभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहाँ पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लएक समय की बात है कि भगवान् श्री राम राज सभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहाँ पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हडबड़ी में लग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे – 


     हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाठ।


    भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया है। इसे अशुभ जानकर कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था।


    जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया। मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह तब से भन्नाया हुआ है।


   भगवन आपने जिस दिन मुझे राज पाठ सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही वह पाताल वासियों के साथ लंका पहुँच कर मुझ पर धावा बोल दिया। 


   मैंने छः महिने तक मुकाबला किया पर ब्र्ह्मा जी के वरदान ने उसे इतना ताकत वर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा।


   अपने बेटे, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिये भाग कर यहाँ पहुँचा हूँ। उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारुंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूँगा।


     वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरन्त कीजिये। भक्त की पुकार सुन श्रीराम जी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।


    मूलकासुर को श्री राम चंद्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिये लंका के बाहर आ डटा।भयानक युद्ध छिड़ गया और सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। 


     मूलकासुर भगवान श्री राम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था। अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे। हनुमान् जी भी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जीवित करते जा रहे थे। सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था अतः भगवान् चिन्ता में थे।


     विभीषण ने बताया कि रोजाना मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में जाता है। उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जायेगा।


     श्री राम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदे मंद हो सकता है। जब इसके भाई-बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।' मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया। यह देखकर बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये। 


    तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये, इतना कह कर ब्रह्मा जी चले गये। भगवान् श्री राम ने हनुमान जी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीता जी को लाने भेजा।


   सीता देवी-देवताओं की मन्नत मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गा जी की पूजा करती कि विजयी श्री राम शीघ्र लौटें। तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे और राम जी का संदेश सुनाया। 


    पति के संदेश को सुन कर सीता तुरन्त चल दीं। भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया । उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चण्डी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं। 


    इधर श्री राम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें। 


    वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट किटाता हुआ सब छोड़ छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।


    युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन ? अभी भाग जा, मैं औरतों पर मर्दानगी नही दिखाता। छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुये कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत-चण्डी हूँ, तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मार कर उसका बदला चुकाउंगी।


इतना कह कर छाया सीता ने मूलकासुर पर पाँच बाण चलाये। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाये। कुछ देर तक घोर युद्द हुआ पर अन्त में ‘चण्डिकास्त्र’ चला कर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौट कर सीता के शरीर में प्रवेश कर गयी।


    मूलका सुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय जयकार की और विभीषन ने उन्हें धन्यवाद दिया।कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आये..!!ग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे – 


     हे राम ! मुझे बचाइये, कुम्भकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है न लंका बचेगी और न मेरा राज पाठ।


    भगवान श्री राम द्वारा ढांढस बंधाये जाने और पूरी बात बताये जाने पर विभीषण ने बताया कि कुम्भकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। इसलिये उस का नाम मूलकासुर रखा गया है। इसे अशुभ जानकर कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था।


    जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया। मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या कर के ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया, अब उनके दिये वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राज पाट मुझे सौंप दिया है वह तब से भन्नाया हुआ है।


   भगवन आपने जिस दिन मुझे राज पाठ सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही वह पाताल वासियों के साथ लंका पहुँच कर मुझ पर धावा बोल दिया। 


   मैंने छः महिने तक मुकाबला किया पर ब्र्ह्मा जी के वरदान ने उसे इतना ताकत वर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा।


   अपने बेटे, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिये भाग कर यहाँ पहुँचा हूँ। उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारुंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूँगा।


     वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरन्त कीजिये। भक्त की पुकार सुन श्रीराम जी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।


    मूलकासुर को श्री राम चंद्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिये लंका के बाहर आ डटा।भयानक युद्ध छिड़ गया और सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। 


     मूलकासुर भगवान श्री राम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था। अयोध्या से सुमन्त्र आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे। हनुमान् जी भी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जीवित करते जा रहे थे। सब कुछ होते हुये भी पर युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दीख रहा था अतः भगवान् चिन्ता में थे।


     विभीषण ने बताया कि रोजाना मूलकासुर तंत्र साधना करने गुप्त गुफा में जाता है। उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ आये और भगवान से कहने लगे – ‘रघुनन्दन ! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जायेगा।


     श्री राम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदे मंद हो सकता है। जब इसके भाई-बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी हो कर कहा, ‘चण्डी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया – ‘दुष्ट ! तुने जिसे चण्डी कहा है, वही सीता9 तेरी जान लेगी।' मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया। यह देखकर बाकी मुनि उस के डर से चुप चाप खिसक गये। 


    तो हे राम, अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहाँ बुला कर इसका वध करवाइये, इतना कह कर ब्रह्मा जी चले गये। भगवान् श्री राम ने हनुमान जी और गरुड़ को तुरन्त पुष्पक विमान से सीता जी को लाने भेजा।


   सीता देवी-देवताओं की मन्नत मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गा जी की पूजा करती कि विजयी श्री राम शीघ्र लौटें। तभी गरुड़ और हनुमान् जी उनके पास पहुँचे और राम जी का संदेश सुनाया। 


    पति के संदेश को सुन कर सीता तुरन्त चल दीं। भगवान श्री राम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया । उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चण्डी के वेश में लंका की ओर बढ चलीं। 


    इधर श्री राम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जा कर तहस नहस करें। 


    वानर गुफा के भीतर पहुंच कर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किट किटाता हुआ सब छोड़ छाड़ कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।


    युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन ? अभी भाग जा, मैं औरतों पर मर्दानगी नही दिखाता। छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुये कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत-चण्डी हूँ, तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मार कर उसका बदला चुकाउंगी।


इतना कह कर छाया सीता ने मूलकासुर पर पाँच बाण चलाये। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाये। कुछ देर तक घोर युद्द हुआ पर अन्त में ‘चण्डिकास्त्र’ चला कर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौट कर सीता के शरीर में प्रवेश कर गयी।


    मूलका सुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय जयकार की और विभीषन ने उन्हें धन्यवाद दिया।कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्री राम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आये..!!

खो गयी कहीं चिट्ठियां

 प्रस्तुति  *खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे।  बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते...