शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

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पाँच अगस्त को मित्रों से गुजारिश किया था की आप हिंदी साहित्य के धनुर्धरों का नाम यहाँ देखें, अगर कुछ छुट गए हों और आपको उनका नाम स्मरण है, तो इस श्रृंखला में जोड़ें। अब तक लिस्ट पूरा नहीं हुआ है - आप भी योगदान दें - आभार
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भारत में "अपनी भाषा हिन्दी" के माध्यम से भारत के जनमानस में साँस फूंकने वाले मूर्धन्य लेखकों, कवियों, कवियेत्रियों के योगदान पर हम एक श्रृंखला करने जा रहे हैं. अगर आप किन्ही और महा-पुरुषों का नाम इस श्रृंखला में जोड़ेंगे तो आभारी रहूँगा

१. भारतेंदु हरिश्चन्द्र
२. भवानी प्रसाद मिश्र
३. गोपाल सिंह नेपाली
४. गोपालदास नीरज
५. गुलाब खंडेलवाल
६. हरिवंश राय बच्चन
७. जयशंकर प्रसाद
८. काका हाथरसी
९. केदारनाथ अग्रवाल
१०. केदारनाथ सिंह
११. महादेवी वर्मा
१२. मैथिली शरण गुप्त
१३. माखनलाल चतुर्वेदी
१४. अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
१५. जानकी वल्लभ शास्त्री
१६. नागार्जुन
१७. रामधारी सिंह दिनकर
१८. सच्चिदानंद वात्सायन
१९. शिवमंगल सिंह सुमन
२०. सुभद्रा कुमारी चौहान
२१. सुमित्रानंदन पन्त
२२. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
२३. मुंशी प्रेमचंद
२४. फनीश्वरनाथ रेणु
२५. देवकी नंदन खत्री
२६. राम बृक्ष बेनीपुरी
२७. शिवपूजन सहाय
२८. धर्मवीर भारती
२९. पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
३०. कन्हैया लाल मिश्र,
३१. मनुभण्डारी,
३२. गजानन माधव मुक्तिबोध
३३. राजेन्द्र यादव
३४. हरिशंकर परसाई
३५. हजारीप्रसाद द्विवेदि
३६. रामचन्द्र शुक्ल
३७. राजेन्द्र उपाध्याय
३८. श्री मोहन राकेश
३९. कैलाश चन्द्रभाटिया
४०. व्रदाँवन लाल वर्मा
४१. इला चन्द्र जोशी
४२. शिवानी गौरा पन्त जी
४३. दुर्गेश पन्त
४४. जयशंकर प्रसाद
४५. चंद्रधर शर्मा गुलेरी
४६. हजारी प्रसाद द्विवेदी
४७. आरसी प्रसाद सिंह
४८. पोद्दार राम अवतार अरुण
४९. दुष्यंत कुमार
५०. आचार्य सुरेन्द्र झा 'सुमन'
५१. भगवती चरण वर्मा
५२. आचार्य छत्रसेन शास्त्री
५३. डा. शिवप्रसाद सिंह
५४. यशपाल
५५. सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
५६. भिखारी ठाकुर
५७. सरोजनी नायडू

रविवार, 11 अगस्त 2013

विवाह सम्बन्ध / ब्रह्मर्षि वंश विस्तार /




सहजानन्द सरस्वती

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हम प्रथम ही सिद्ध कर चुके हैं कि त्यागी, महियाल, पश्‍चिम, भूमिहारादि ब्राह्मण दल सभी देश के कर्मवीर, धनी और प्रतिष्ठित अयाचक ब्राह्मणों का एक दल है, जो उसी समय बना जिस समय कान्यकुब्ज, मैथिल, गौड़, सारस्वत और सर्यूपारी आदि ब्राह्मण दल बन रहे थे। अब इस प्रकरण के अन्त में उसी की पुष्टि के लिए इन अयाचक ब्राह्मणों का प्रतिष्ठित मैथिलों, कान्यकुब्जों, सर्यूपारियों और गौड़ों से विवाह सम्बन्ध दिखलाते हुए इनके श्रेष्ठ ब्राह्मण होने में प्रसिद्ध-प्रसिद्ध पंडित प्रवरों की सम्मतियाँ दिखला कर इस प्रकरण को समाप्त करेंगे। जिनके दिखलाने से बहुतों की अनभिज्ञता मूलक कुकल्पनाएँ समूल विनष्ट हो जावेंगी और उनको अपनी पंडिताई का पता लग जावेगा। उस सम्बन्ध को नाम बनाम दिखलाने से प्रथम ही हम उसके विषय में दो-एक बातें कह दिया चाहते हैं। एक तो यह कि जब काशी में भूमिहार ब्राह्मण महासभा की बैठक हुई थी तभी महाराज द्विजराज काशिराज ने अपनी वक्त्तृता में इस बात का वर्णन किया था कि इन अयाचक ब्राह्मणों का मैथिलों, कान्यकुब्जों और सर्यूपारियों और गौड़ों के साथ विवाह सम्बन्ध होता था और है यद्यपि उन्होंने इसके रोकने के लिए अपनी सम्मति प्रकाशित की थी, परंतु हम उस अंश से सहमत नहीं हैं। क्योंकि रोकने में उनका तात्पर्य यह था कि हम लोग अयाचक ब्राह्मण हैं, इसलिए हमारा सम्बन्ध उन्हीं में होना चाहिए, न कि याचक ब्राह्मणों में भी। परंतु जैसा कि हम प्रथम ही कह चुके हैं और आगे भी विदित होगा कि अयाचक दल में भी बहत से अयाचक हैं और इन अयाचकों का साक्षात सम्बन्ध उन्हीं से होता है। क्योंकि दरिद्रों के साथ लोग कब करनेवाले हैं। और उन अयाचकों का भी अपने दल के अयाचकों के ही साथ होता है, इस प्रकार से तीन, चार या पाँच सम्बन्ध के बाद संभवत: याचक भी जुट जाते हैं। तो इससे क्या? वे लोग कुछ दूसरे तो हैं नहीं, केवल आचार-भेद होने से उनके मत से साक्षात सम्बन्ध न होना चाहिए। क्योंकि परम्परा सम्बन्ध तो संसार में किसी के साथ भी बचा नहीं है। सभी ब्रह्मा या ऋषियों की संतानें हैं। यदि कोई आदमी किसी चांडाल का स्पर्श नहीं करता तो साक्षात ही नहीं करता, परंतु परम्परा स्पर्श तो रहता ही है। क्योंकि दोनों उसी पृथ्वी पर रहते हैं। बल्कि हम तो साक्षात सम्बन्ध को ही पसंद करते हैं और बहुत जगह ऐसा होता भी है।
एक बात और भी हैं कि जैसे भूमिहार ब्राह्मण अयाचक हैं वैसे ही याचक दल में भी तो बहुत से अयाचक हैं। तो क्या वे लोग सम्बन्ध करना ही छोड़ कर बिना ब्याहे रह जावे? हाँ प्राय: जहाँ तक होता है साक्षात सम्बन्ध करना ही छोड़ देते हैं। वैसे ही आप लोगों (भूमिहारादि ब्राह्मणों) में भी हैं। इसलिए कोई भी हर्ज नहीं। यदि आप कहें कि हम लोगों ने तो संकल्पपूर्वक दान का परित्याग किया है, न कि याचक दलवाले अयाचकों ने, इसलिए उनका दृष्टांत नहीं दिया जा सकता। सो तो ठीक नहीं है। क्योंकि जैसा कि हम अच्छी तरह सिद्ध कर चुके हैं कि क्रमश: याचकों से अचायक होते गए और कभी-कभी अयाचक से याचक भी इत्यादि। इसलिए संकल्पपूर्वक दान त्यागने में कोई प्रमाण नहीं हैं। यह तो ऐच्छिक धर्म है।
दूसरे यह कि मैथिल परमहंस महोपदेशक नामक एक महात्मा ने भी 'ब्राह्मण सम्बन्ध' नाम की एक छोटी-सी पुस्तक लिखी है। यद्यपि उसमें विशेष रूप से मैथिलों और भूमिहार ब्राह्मणों के ही सम्बन्ध दिखलाए गए हैं। तथापि उसके चौथे पृष्ठ में लिखा है कि 'पंजी के पूर्व मैथिल, कान्यकुब्ज, सरवरिया और पश्‍चिम ब्राह्मण में सम्बन्ध था,' इत्यादि।
इसी जगह यह समझ लेना चाहिए कि मैथिल ब्राह्मणों में दो प्रकार के विवाह प्रचलित हैं, एक तो उनकी सौराष्ट्र की केवल विवाह संबंधिनी सभा में होता है, जहाँ पर कन्या विक्रय प्रधान धर्म माना गया है। जिसके लिए 'मिथिला मिहिर' प्रभृति पत्र और मैथिल महासभा चिल्लाती ही रह गई, मगर कुछ न हुआ इस विवाह से बड़ा भारी अनर्थ यह होता है कि रुपए दे कर अन्य जातियाँ भी वहाँ से लड़कियाँ ब्याह लाती है, क्योंकि वहाँ के विवाह का दारमदार पंजीकारों पर होता। जो बड़े ही लालची होने के कारण किसी से विशेष घूस पाते हैं उसी का नाम पंजी में लिख देते हैं। फिर क्या? अब तो वेद वाक्य ही हो गया और उसके मैथिल होने में कोई संदेह नहीं रहा। क्योंकि मैथिलों का निर्भर उसी काल्पनिक पंजी पर ही होता है। इस विषय में बहुत बार विचार और लिखा-पढ़ी 'मिथिला मोद' प्रभृति उनके पत्रों में भी हो चुकी है। और भागलपुर की मैथिल महासभा में इस विषय का एक प्रस्ताव भी हो चुका हैं। यद्यपि इस प्रकार के विवाह पर पुराने लकीर के फकीर मैथिलों को बड़ा अभिमान हैं, तथापि सच पूछिए तो यह विवाह नहीं, किंतु अनर्थ हैं। परंतु यह विवाह प्राय: अप्रसिद्ध और गरीबों का ही है। दूसरे प्रकार का विवाह, जिसे पुराने ढंग के मैथिल अच्छा नहीं समझते, युक्‍त प्रांतादि की रीति पर तिलक, दहेज दे कर और लड़के-लड़कियों के घर-बार देख कर हुआ करता है। जिसमें पूर्व ब्याह की तरह गड़बड़ मचने की संभावना भी नहीं रहती। क्योंकि सौराष्ट्र सभावाला विवाह दो ही चार दिनों में हो जाता है। परंतु इसमें तो परीक्षा के लिए पूर्ण समय मिलता है। इस विवाह को मैथिल लोग 'तिलकौआ विवाह' कहते हैं। यह केवल प्रतिष्ठित और धनी एवं जमींदार मैथिलों में हुआ करता है। और यही दूसरे प्रकार का विवाह उन लोगों का पश्‍चिम ब्राह्मणों के साथ होता है। क्योंकि दोनों दल जमींदार और प्रतिष्ठित ही है। इसलिए यह कहने का भी अवकाश नहीं रहा कि मिथिला के विवाह का तो कुछ ठिकाना ही नहीं, वहाँ तो धोखे से अन्यों के साथ भी हो जाता है। क्योंकि धोखे की बात प्रथम प्रकार के ही विवाह में रहती है, न कि दूसरे प्रकार के विवाह में भी। यदि पश्‍चिम ब्राह्मणों और मैथिलों का परस्पर विवाह सच्ची रीति से होता न रहता, तो भागलपुर की मैथिल महासभा में उसके रोकने का प्रस्ताव क्यों किया जाता, जिसका विवरण आगे मिलेगा?
इसके सिवाय ता. 11 जनवरी, 1916 ई. के भारतमित्र में भी इसी विषय की संपादकीय टिप्पणी ऐसी निकली है कि 'मैथिलों और भूमिहारों के वैवाहिक सम्बन्ध होते हैं इससे भूमिहार काशीनरेश के ब्राह्मण होने में संदेह करना व्यर्थ है, संपादक महोदय को कान्यकुब्जों और सर्यूपारियों के साथ भूमिहार, जमींदारादि ब्राह्मणों के सम्बन्ध विदित न थे। इसलिए उन्होंने उनका वर्णन नहीं किया, यह दूसरी बात है। इस संपादकीय टिप्पणी को देखते ही किसी दरभंगा निवासी मैथिल जीवछ मिश्र का माथा ठनक उठा और चटपट उन्होंने संपादक जी को बड़े रोष के साथ लिख भेजा कि आपने विवाह सम्बन्ध के विषय में जो लिखा है वह सब गलत हैं। जो विवाह मैथिलों के नाम पर होते हैं, वे बनावटी मैथिलों के ही नाम पर, न कि सच्चे मैथिल कभी भी भूमिहार ब्राह्मणों के साथ विवाह करते हैं। अत: आपको यह बात विचार कर लिखनी थी इत्यादि। यह ता. 11 जनवरी के बाद के भारतमित्र के किसी अंक में संक्षेप से प्रकाशित है।
इस पर पुन: ता. 25-1-16 ई. के अंक में पूर्व लेख का संपादकीय उत्तर निकला कि 'किसी पिछले लेख में हमने लिखा था कि जब भूमिहारों का मैथिलों से वैवाहिक सम्बन्ध होता है, तब भूमिहारों के ब्राह्मण होने में संदेह नहीं किया जा सकता। इस पर दरभंगे के श्रीयुत जीवछ मिश्र हम पर बहुत बिगड़े हैं, परंतु इसका कोई कारण हमारी समझ में नहीं आता। जब एक समाज का मनुष्य किसी दूसरे समाज के विषय में कुछ लिखता है, तब उसका हाल वह दूसरे से ही सुन कर लिखता है, क्योंकि भीतर की बात विशेष घनिष्ठता हुए बिना वह नहीं जान सकता। परमहंस महोपदेशक नाम के एक सज्जन ने कई वर्ष हुए हमारे पास एक पुस्तक छपने को भेजी थी, जिसमें उन्होंने यह बात लिखी थी। हमारे यहाँ तो वह पुस्तक नहीं छपी, पर वह छप गई या नहीं यह भी हमें मालूम नहीं है, क्योंकि वह यहाँ से लौटा दी गई थी। उसके बाद हमने एक मैथिल वैष्णव से यही बात पूछी थी और उन्होंने भी परमहंस जी का समर्थन किया था। इस कारण हमने परमहंस जी की बात प्रामाणिक समझी और उसे लिख दिया...। जीवछ जी को अच्छी तरह खोज कर लेना चाहिए और यदि हमारी बात ठीक न ठहरे तो सूचना पाने पर हम सहर्ष उसका खण्डन प्रकाशित कर देंगे।'
इसके बाद उक्‍त मिश्र जी की लेखनी जो रुकी सो आज तक रुकी ही है। फिर ता. 28-1-16 ई. के अंक में यह प्रकाशित हुआ कि 'मोकामे से श्रीयुत आदित्य नारायण सिंह लिखते हैं : आपने गत मंगलवार के 'भारतमित्र' में दरभंगे के श्रीयुत जीवछ मिश्र जी के क्रोध का जिक्र करते हुए लिखा है कि 'जब भूमिहारों का मैथिलों से वैवाहिक सम्बन्ध होता है तब भूमिहारों के ब्राह्मण होने में संदेह नहीं किया जा सकता है।' आपका कथन निस्संदेह युक्‍तिसंगत और सत्य है। भूमिहारों तथा मैथिलों के अनेक वैवाहिक सम्बन्ध हुए और होते हैं। इसके अतिरिक्‍त अनेक मैथिल और भूमिहार धन के बढ़-घट जाने पर मैथिल से भूमिहार और भूमिहार से मैथिल कहलाने लगते हैं। यदि में कथन पर किसी को विश्‍वास न हो और इसकी सत्यता जानना चाहे तो मैं उसके साथ घूम कर इसकी सत्यता दिखा दूँगा। इसके सिवाय आपने भी श्रीयुत जीवछ मिश्र जी को अपने कथन की सत्यता प्रमाणित करने के लिए खण्डन करने की आज्ञा दे दी है। देखें मिश्र जी खण्डन में क्या लिखते हैं।'
इस पर मिश्र जी की ओर से किसी की लेखनी न उठी, और अन्त में काशीवासी पं. शयामनारायण शर्मा सं. 'भू. ब्रा.' का एक लेख ता. 8-2-16 ई. के अंक में प्रकाशित हो कर यह लिखा-पढ़ी बंद हो गई। वह लेख यों हैं :
'गत पौष शुक्ल सप्तमी को प्रकाशित 'दैनिक भारत मित्र' की संपादकीय टिप्पणी 'मैथिलों और भूमिहारों के वैवाहिक सम्बन्ध होते हैं, इससे भूमिहारों के ब्राह्मण होने में संदेह करना व्यर्थ है', देख कर दरभंगा निवासी श्री युत जीवछ मिश्र जी आपे से बाहर हो गए हैं और गत किसी अंक में संपादक महोदय को उलाहना देते हुए आप लिखते हैं कि पूर्वोक्‍त विवाह सम्बन्ध की बात मिथ्या है। भूमिहारों के साथ जिन मैथिल के ब्याह होते हैं वे कल्पित मैथिल हैं इत्यादि। परंतु मैं कहता हूँ कि यदि वास्तव में सच्चे मैथिलों के साथ भूमिहार ब्राह्मणों के ब्याह नहीं होते, तो गत सन 1911 ई. में भागलपुर की मैथिल महासभा के अधिवेशन में इनके रोकने का प्रस्ताव क्यों किया जाता? और उसके लिए एक सिलेक्ट कमिटी क्यों बनाई जाती? इसका विवरण उसी वर्ष के 29 अप्रैल के 'मिथिला मिहिर' नामक उन्हीं लोगों के पत्र में इस प्रकार है :
'तदनंतर एकटा महाशय (नाम हमरा विस्मृत भैगेल अछि, मि. मि. स) ई प्रस्ताव कैलन्हि जे बहुतो मैथिल ब्राह्मण भूमिहार ब्राह्मण सँ सम्बन्ध करैत छथि। एहि विषय में सभा क दिश स प्रबंध होवाक चाही, जाहि सही सम्बन्ध बंद हो। सर्व सम्मति सही निश्‍चय भेल जे एहि विषयक ऊपर विचार करवा कर हेतु एकटा सिलेक्ट कमिटी नियत कैल जावे। ' बनावटी मैथिलों के नाम पर जो विवाह सम्बन्ध होते थे या होते हैं, वे तो कन्या विक्रय द्वारा कन्या-विक्रय-स्थान 'सौराष्ट्र' नाम्नी मैथिलों की प्रसिद्ध वैवाहिक सभा में हुआ करते हैं। परंतु भूमिहार ब्राह्मणों के साथ सम्बन्ध में तो तिलक-दहेज की रीति पर होते हैं, जैसी प्रथा संयुक्‍त प्रांतदि देशों में प्रचलित हैं और जिसे मैथिल लोग 'तिलकौआ' ब्याह कहा करते हैं।
क्या दरभंगा प्रांतस्थ दुलारपुर निवासी मैथिल तुरंतलाल चौधरी का विवाह उसी प्रांतस्थ शेरपुर ग्राम के जलेवार मूलवाले भूमिहार ब्राह्मण खगन चौधरी के घर नहीं हुआ है, या वे सच्चे मैथिल नहीं हैं? अथवा उन्हीं के घर देवधावाले भू. ब्रा. रामबकस राय सनैवार की लड़की का ब्याह नहीं हुआ है? क्या उसी प्रांत में दहौरा निवासी मैथिल (योग्य श्रेणी के) वनमाली सरस्वती (सरस्वती बाबू) प्रभृति के घर में ठाहर ग्राम के सगोत्र वल्लीपुर निवासी दामोदर चौधरी की बहन का विवाह नहीं हुआ है? जिस ठाहर ग्राम में नया नगरस्थ सनैवार भू. ब्रा. चौधरी झरूला सिंह तथा ऊदनसिंह की बहनों का सम्बन्ध है। तथा कुरसों ग्रामस्थ मैथिल चित्रा नारायण चौधरी का ब्याह भिरहा ग्रामस्थ बेलखंडी राय की पुत्री से और नंदूराय के घर में कुरसों के सगोत्र दसौतवाले प्यारेलाल चौधरी के पुत्र का ब्याह क्या नहीं हुआ है? जिन भिरहावाले नंदूराय मैथिल के लड़के का सकरपुर ग्रामवासी सनैवार भू. ब्राह्मण नथुनी राय के घर में सम्बन्ध हैं। इत्यादि 12 गाँव भिरहा आदिवाले अनरिए मैथिलों का सम्बन्ध भू. ब्राह्मणों से नया नगरादि ग्रामों में हैं और भिरहावाले बड़े-बड़े योग्य और पंजीबद्ध मैथिलों में मिले हुए हैं। यदि आवश्यकता हो तो सहस्त्रों ऐसे सम्बन्ध नाम बनाम दिखलाए जा सकते हैं। यदि मैथिल मिश्र जी को संदेह हो तो उन ग्रामों में¹ 'ब्राह्मण सम्बन्ध' नाम की पुस्तक से स्पष्ट है कि मैथिल मूर्द्धन्य श्रोत्रिय दरभंगा महाराज का भी सम्बन्ध परम्परया भूमिहार ब्राह्मणों से मिलता है। जा जाँच कर अपना संतोष कर ले। मैथिल और भूमिहार ब्राह्मण सम्बन्धवाली पुस्तक 'ब्राह्मण' सम्बन्ध नाम्नी दरभंगास्थ रामेश्‍वर प्रेस में छप चुकी है। जिन्हें इच्छा हो' बा. महावीर सिंह, ग्राम गंगापुर, पो. ताजपुर-दरभंगा के पते से मँगा ले। मुफ्त मिलती है।'
इसके सिवाय बनावटी मैथिलों के विवाह तो केवल लड़कियों के हुआ करते हैं क्योंकि वहाँ लड़केवालों को बनावटी बनने का अवसर मिलता है, परंतु लड़कीवाले के तो घर जाना पड़ता है और दो-चार दिन रहना भी पड़ता है। इसलिए बनावट हो तो पता ही लग जावे। परंतु मैथिलों और भूमिहार (पश्‍चिम) ब्राह्मणों के सम्बन्ध तो लड़की और लड़के दोनों के ही होते हैं, जैसा कि आगे विदित होगा। अन्त में हम दरभंगा के नया नगरवासी श्री पारसमणि सिंह नामक अतिवृद्ध अत्यन्त अनुभवी और विचारशील पश्‍चिम ब्राह्मण रत्‍न सज्जन को हार्दिक धन्यवाद देते हैं, जिनकी ही सहायता से विशेष रूप से नाम बनाम सम्बन्ध संगृहीत हुआ है जैसा नाम हैं वे वैसे ही हैं। और परमहंस जी तो धन्यवाद के पात्र हैं ही। क्योंकि सम्बन्ध संग्रह का सूत्रपात उन्हीं का किया हुआ है, जिसमें प्रमाण स्वरूप पूर्वोक्‍त 'ब्राह्मण सम्बन्ध' नामक पुस्तक ही है।
अब विवाह सम्बन्ध दिखलाया जाता है। उसमें भी प्रथम मैथिल ब्राह्मणों के ही साथ अयाचक ब्राह्मणों का सम्बन्ध दिखला कर पीछे कान्यकुब्जों, सर्यूपारियों और गौड़ों के साथ दिखलाया जावेगा। क्योंकि अभी मैथिलों के सम्बन्ध में बहुत सी बातें कह चुके हैं। इस स्थान पर इतना समझ लेना चाहिए कि जिन मैथिलों का अयाचक, पश्‍चिम या भूमिहार ब्राह्मणों के साथ विवाह सम्बन्ध होता है वे सामान्यत: दो प्रकार के प्रसिद्ध है, एक तो दोगमियाँ और दूसरे दोगमियों से अन्य। दोगमियाँ नाम उस प्रांत में उन मैथिलों का है, जिनका सम्बन्ध पश्‍चिम (भूमिहार) ब्राह्मणों से भी है और मैथिलों ब्राह्मणों से भी। वे दोनों ब्राह्मण दल में विवाह के लिए जाते हैं, अत: दोगमियाँ कहलाते हैं। उनसे वे अन्य हैं जिनके सम्बन्ध केवल मैथिलों से ही है। यद्यपि जिनका सम्बन्ध केवल मैथिलों से ही है वे भी परम्परया पश्‍चिम ब्राह्मणों से दोगमियों के द्वारा विवाह सम्बन्ध में मिल जाते हैं, जैसा कि आगे स्पष्ट हो जावेगा, और कहीं-कहीं ऐसे भी मैथिल है जो दोगमियाँ न भी कहलाने पर साक्षात पश्‍चिम ब्राह्मणों से सम्बन्ध करते हैं। तथापि दोगमियों का सम्बन्ध पश्‍चिम ब्राह्मणों के साथ साक्षात और प्रसिद्ध हैं जिसे सभी जानते हैं, परंतु अन्यों का या तो अधिकतर साक्षात सम्बन्ध है ही नहीं या है भी तो कम होने से उतना प्रसिद्ध नहीं है। इसलिए वे दोगमियाँ नहीं कहलाते।
मैथिलों और पश्‍चिम (भूमिहार) ब्राह्मणों के सम्बन्ध इस प्रकार हैं - (1) परगना लोआम, जिला दरभंगा, ग्राम दुलारपुर, मूल अड़ैवारनान पुर, गोत्र वत्स, तुरंतलाल चौधरी मैथिल का विवाह सरैसा, जिला दरभंगा, ग्राम मऊ शेपुर, गोत्र शांडिल्य अथवा वत्स, मूल जलैवार, खगन चौधरी और पोखन चौधरी पश्‍चिम ब्राह्मण की बहन से हैं। जिससे उत्पन्न पुत्र बच्चा चौधरी उर्फ कारी चौधरी का विवाह ग्राम भवानीपुर जमसम, परगना हाटी, जिला दरभंगा में किसी योग्य श्रेणीवाले मैथिल के घर में हैं। इसके अतिरिक्‍त नीचे के सभी विवाह दरभंगा जिले के ही हैं। (2) पूर्वोक्‍त तुरंत लाल चौधरी के ही घर नयानगर स्टेशन के पास ग्राम देवधा, मूल सनैवार, गोत्र भारद्वाज, रामबकस राय की लड़की का विवाह है, जो पश्‍चिम ब्राह्मण हैं। (3) दुलारपुर के मगनी राम चौधरी मैथिल का विवाह भिरहा ग्राम में, परगना जखलपुर, मूल अनरिए, गोत्र शांडिल्य, पारसमणि राय दोगमियाँ मैथिल की कन्या से हैं, जिन भिरहावाले अनरियों का सम्बन्ध देवधा, नया नगर इत्यादि ग्रामवाले सनैवार मूल के पश्‍चिम ब्राह्मणों में भरा है। (4) दुलारपुर के ही मनोहर चौधरी का विवाह ग्राम माखनपुर बसहा, मूल ब्रह्मपुरिये, ब्रह्मपुर गोत्र शांडिल्य, चुरामन चौधरी की बहन से है। ये ब्रह्मपुरिए मैथिल भी सनैवार पश्‍चिम ब्राह्मणों से मिले हुए हैं। (5) पूर्वोक्‍त भिरहा ग्राम के नंदूराय मैथिल के पुत्र का विवाह ग्राम सकरपुरा, मूल सनैवार पश्‍चिम ब्राह्मण नथुनीराय की भतीजी से है। (6) उसी भिरहा नंदूराय के घर परगना भरौरा ग्राम भरौरा, छोटे झा और जगतमणि झा का सम्बन्ध है। (7) भिरहावाले बेलखंडी राय मैथिल, मूल अनरिए का भी सम्बन्ध सकरपुरा के पश्‍चिम ब्राह्मणों से है। (8) जिस बेलखंडी राय की कन्या का विवाह झंझारपुर स्टेशन के पास कुरसी ग्राम, मूल जलैवार, अवध नारायण चौधरी के पिता चित्रानारायण चौधरी मैथिल से हैं। (9) पूर्वोक्‍त भिरहावाले नंदूराय के ही घर में कुरसी ग्रामवाले प्यारे लाल चौधरी के पुत्र बच्चा चौधरी का विवाह है। (10) भिरहा ग्राम के शीतल राय मैथिल के भतीजे लाल जी राय के पुत्र बच्चन राय का विवाह ग्राम मालपुर के सनैवार पश्‍चिम ब्राह्मण नथुनी राय की बहन से हैं। (11) जिस भिरहावाले शीतल राय के घर से दरभंगा शहर से पश्‍चिम पंचोभ गाँव के कीर्तिनारायण चौधरी के पुत्र द्वारिका नाथ चौधरी मैथिल का विवाह है। (12)पूर्वोक्‍त शीतल राय के पुत्र रामकिशुन राय की विवाह बस्ती बढ़ौना ग्राम, परगना सरैसा में बबुई काल चौधरी मैथिल मूल मर्रैं मगरौनी की पुत्री से हुआ। (13) उसी बढ़ौना के इशरू चौधरी नयानगरवाले सनैवार पश्‍चिम ब्राह्मण विंधएश्‍वरी प्रसाद सिंह के नाना हैं। (14) उसी बढ़ौना के बद्री चौधरी का विवाह मौजे भथाही परगना विसारा में फतेह नारायण सिंह कोदरिया पश्‍चिम ब्राह्मण के सगोत्र (गोतिया) के घर में हुआ है और उसके निस्संतान होने से बद्री चौधरी उसके हिस्से के मालिक है। (15) उन्हीं बद्री चौधरी के पुत्र बबुवे लाल चौधरी का विवाह मैथिल के ही घर ग्राम पकड़ा, जिला भागलपुर, परगना छई में श्री गूदर सिंह के यहाँ हैं। (16) बढ़ौना के ही देवी लाल चौधरी के पुत्र रक्षाराम चौधरी का विवाह जिला पटना ग्राम (स्टेशन भी) पुनारक में श्री यदुनन्दन सिंह भूमिहार ब्राह्मण सावर्ण्य गोत्रवाले के घर हुआ है। (17) बढ़ौना के ही कुंजी लाल चौधरी का विवाह जिला मुंगेर ग्राम (स्टेशन) खगरिया के श्री जानकी प्रसाद सिंह पश्‍चिम ब्राह्मण सावर्ण्य गोत्री की बहन से हैं। (18) बढ़ौना के ही पदार्थ सिंह चौधरी का विवाह जिला मुंगेर, गाँव तथा स्टेशन बरही श्री संतोष सिंह पश्‍चिम ब्राह्मण की भतीजी से है। बस्ती बढ़ौनावाले मैथिलों का स्टेशन मुहीउद्दीन नगर हैं। बढ़ौनावालों का सम्बन्ध शांडिल्य गोत्री अनरियों में भी है जो सनैवार मूल के पश्‍चिम ब्राह्मणों से मिले हुए हैं।(19) बद्री चौधरी के संबंधी सूबाराय मैथिल अनरिए या ब्रह्मपुरिए ग्राम देकुली, परगना जबलपुर। (20) प्रयागदत्त चौधरी की बहन के लड़के श्री लक्ष्मीनारायण राय मैथिल, अनरिए, गाँव पतैली। (21) तिल्लू चौधरी के संबंधी हरिहर राय अनरिए ग्राम जगन्नाथपुर। (22) तिल्लू चौधरी के संबंधी रामगोविंद झा ग्राम फुलेरा, मूल जलैवार, गोत्र वत्स अथवा काश्यप। (23) बस्ती गाँव, स्टेशन मुहीउद्दीन नगर, जगदीश राय मैथिल मूल जलैवार का विवाह भथाही ग्राम में अवधासिंह कोदरिया की लड़की से। (24) बढ़ौना के गंगू चौधरी की पुत्री का विवाह रामसुंदर झा से, ग्राम बेला, मुजौना के पास, परगना सरैसा। (25) पूर्वोक्‍त पनचोभ गाँव से उत्तर सिमरी गाँव में रहनेवाले मैथिल मेवालाल चौधरी के भतीजे का विवाह भिरहा में दिगंबर राय के यहाँ हैं। यह मेवालाल दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्‍वर सिंह के मुँहलग्गू और मधुबनी के प्रसिद्ध बाबू दुर्गादत्त के तहसीलदार थे। (26) दरभंगा से दो कोस पश्‍चिम ग्राम कलि गाँव के मैथिल ज्ञानीलाल चौधरी का विवाह भिरहावाले भाईलाल की लड़की से। (27) उसी कलिगाँव के कुँवर चौधरी भिरहावाले धर्मलाल राय के भगिना (बहन के लड़के) हैं अथवा थे। (28) पूर्वोक्‍त जगन्नाथपुर के हरिहर राय अनरिए मैथिल का ब्याह सनैवार ही ब्राह्मण नया नगर निवासी भुजंगा सिंह की लड़की से और देवधा में सनैवार ही ब्राह्मण लक्ष्मण राय की लड़की से। (29) बैरमपुर के अनरिए मैथिल बच्चू राय की शादी नया नगरवाले भुजंगासिंह के घर है। इस तरह 12 गाँववाले अनरिए मैथिलों का सम्बन्ध 12 गाँववाले सनैवार पश्‍चिम ब्राह्मणों से एक में एक मिला हुआ है। जिन भिरहा प्रभृति गाँववाले अनरियों का सम्बन्ध कुरसों दसौत इत्यादि ग्रामों में तथा योग्य श्रेणी के मैथिलों में भी हैं।
इसी प्रकार केवटा, आसिनचक प्रभृति गाँवों के ब्रह्मपुरिए मैथिल शांडिल्य गोत्री भी सनैवार इत्यादि मूल के ब्राह्मणों में मिले हुए हैं, जैसे (30) केवटा के गजराज चौधरी की तीन लड़कियों के विवाह नया नगर में सनैवार ब्राह्मण नरसिंह दत्त सिंह, रघुवर शरण सिंह और जालिम सिंह से हुए। (31) केवटा के वर्तमान सेठ रामाश्रय चौधरी के बाबा रघुवर दयाल सिंह की बहन से नयानगर जीवलाल सिंह का विवाह था। (32) आसिनचक के रामदयाल चौधरी की बहन का विवाह नया नगरवाले महोदय सिंह से। (33) रामपुर कचहरी के सनैवार ब्राह्मण दिगंबर राय के पिता लेखा राय की लड़की से देकुली के अनरिए या (ब्रह्मपुरिए) हरख राय के पुत्र सूबाराय का विवाह हुआ। (34) केवटा के सेठ की लड़की से भिरहावाले दिगंबर राय का ब्याह हुआ। (35) वर्तमान सेठ श्री रामाश्रय सिंह चौधरी के चचेरे भाई का विवाह पूर्वोक्‍त बढ़ौनावाले प्रयाग दत्त चौधरी की लड़की से है। (36) और बढ़ौना के ही उदय सिंह चौधरी के घर में नया नगरवाले अमृत प्रसाद और बलदेव सिंह के विवाह है। (37) विभूत पुर नरहन के द्रोणवार ब्राह्मण श्री द्वारिका प्रसाद सिंह के भाई हरिकृष्ण सिंह का विवाह ग्राम बदलपुरा, बेगूसराय स्टेशन के पास, जिला मुंगेर में श्री वेदनारायण सिंह के भाई चमन सिंह की पोती से हुआ है, और वेदनारायण सिंह की पुत्री का विवाह केवटा के सेठ छत्रधारी चौधरी के पुत्र वर्तमान सेठ श्री रामाश्रय सिंह चौधरी से हुआ है। इन छत्रधारी चौधरी के पिता रघुवर दयाल चौधरी दरभंगा के पास के विलौठी ग्राम के रामाधीन राय मैथिल के मामा थे। जिस रामाधीन राय की पुत्री का विवाह बछौल परगना, दरभंगा, ग्राम भरतपट्टी, टोले वरदेपुर में बच्चा ठाकुर मैथिल के पुत्र से हुआ। (38) सेठ छत्रधारी चौधरी की पुत्री का विवाह दरभंगा से 4 कोस पूर्व वैगनी नेवादा ग्राम में सुवंशलाल झा के घर में हुआ। (39) दरभंगा-खिरहर के श्री भातू प्रसाद चौधरी दिघवैत पश्‍चिम ब्राह्मण के मामा दुलारपुर के भाई जी चौधरी और खुशी चौधरी हैं। क्योंकि भातू प्रसाद के मामा देवघा के मधूसिंह भाई जी चौधरी के मामा हैं। भातू चौधरी के पिता रामशिष्ठ चौधरी और खुशी चौधरी के पिता हंसराज चौधरी थे। (40) कुशेश्‍वरस्थान के पास केवटगाँव के श्री काली प्रसाद सिंह द्रोणवार भूमिहार ब्राह्मण और दरभंगा से पूर्व पोखराँव ग्राम के मैथिल कौशिकी दत्त चौधरी, इन दोनों के विवाह विभूतपुर के पास बेगूसराय सब डिवीजन के मेंघौल गाँव में वंशीराय मैथिल की पुत्रियों से हुए, जिस वंशी राय का लड़का जगद्वीप वर्तमान है। (41) विसुनपुर, बेगूसराय के पास जिला मुंगेर, के श्री रामचौधरी मैथिल, मूल मर्रै मगरौनी की पुत्री का विवाह नयानगरवाले श्री पारसमणि सिंह के पोते से हुआ है। (42) गाँव केशावे, मूल दधिअरे, काश्यप गोत्री मैथिल बाला राय की लड़की का विवाह श्री पारसमणि सिंह के भाई से हुआ। (43) गाँव नाव कोठी, मूल सुरोरे कांटी, गोत्र गौतम मैथिल चौधरी अयोध्या प्रसाद का विवाह नयानगर के श्री शिवनन्दन सिंह की फुफेरी बहन से है। जो मुहम्मदपुर गाँव की रहनेवाली हैं और जिसका मूल सिहोरिया और गोत्र शांडिल्य है। (44) गाँव जोगियारा मूल सिहोरिया अथवा सिहुलिया (सोहगौरिया) श्री खूब लाल सिंह के पुत्र ईश्‍वर दयाल सिंह का विवाह जिला मुंगेर गाँव बीरपुर, छोटी गंडक के तट में, मैथिल मूल सुरगणै, गौत्र पराशर श्री अनूप सिंह के भाई डोमन सिंह की पोती से और दोनों की फुआ से श्री शिवनन्दन सिंह नया नगरवाले के दादा चौधरी रामदयाल सिंह का विवाह था। जिस शिवनन्दन सिंह के यहाँ गंगापुर के श्री रामबहादुर सिंह द्रोणवार ब्राह्मण का विवाह है। (45) देवधावाले सनैवार ब्राह्मण रामेश्‍वर प्रसाद सिंह का विवाह केवटा में रामदीन चौधरी मैथिल ब्रह्मपुरिए के घर में हैं। (46) पूर्वोक्‍त भिरहावाले धर्मलाल राय की पुत्री का विवाह ग्राम ठाहर, परगना जखलपुर, मूल पनचोभे भानपुर, गोत्र सावर्ण्य, मैथिल भगवान दत्त चौधरी से। (47) उसी ठाहर ग्राम में मैथिल जीवन चौधरी के यहाँ नया नगर के चौधरी झरूला सिंह की बहन का विवाह और खेदन चौधरी के घर, चौधरी ऊदन सिंह की बहन का विवाह है। (48) ठाहर के सगोत्र (गोतिया) बल्लीपुर में, सकरी स्टेशन के पास दहौरा ग्राम के वनमाली सरस्वती प्रभृति (सरस्वती बाबू) योग्य श्रेणी के मैथिल के घर के किसी लड़के का विवाह हुआ है, अर्थात वर्तमान महीन्द्र नारायण सरस्वती का बल्लीपुर में मातृक (ननिहाल) है। जिस सरस्वती बाबू का सम्बन्ध श्रोत्रिय महाराजा दरभंगा से भी हैं।(49) जिस कुरसों का सम्बन्ध प्रथम पश्‍चिम ब्राह्मणों से दिखला चुके हैं, उसी कुरसों के अवध नारायण चौधरी की पुत्री से बनमाली सरस्वती दहौरावाले का विवाह था, जिसके पुत्र लक्ष्मी नारायण सरस्वती हैं। (50) बल्लीपुर के ही वंशी चौधरी का विवाह परगना सरैसा, ग्राम वमैया, मूल अरिनए, भोली चौधरी की कन्या से हुआ। (51) ग्राम लामा उजान, मूल जलैवार गरौल, गोत्र काश्यप, वंशी लाल चौधरी मैथिल का विवाह देवधा ग्राम में सनैवार मूल के ब्राह्मण बालमुकुंद राय की कन्या से हुआ। (52) नयानगरवालों के आदि पुरुष श्री पीताम्बर सिंह से भिरहावाले मैथिल रंगलाल राय के बाप की फुआ का विवाह था। (53) पूर्वोक्‍त केशावे ग्राम के दधिअरे मूलवाले सभी मैथिलों की लड़कियों के विवाह नया नगर गाँव में हैं। (54) ग्राम पटोरी, परगना सरैसा के सहदौलिया पश्‍चिम ब्राह्मण मणि मिश्र के पुत्र का विवाह पूर्वोक्‍त बस्ती ग्राम के गोपाल राय मैथिल की बहन से हैं। (55) बछवारा स्टेशन के पास नाड़ीपुर के मैथिल मोहन राय की पुत्री से पटोरी के गणपति मिश्र के पुत्र का विवाह है। (56) परगना पिड़ारुच, गाँव पिड़ारुच, गोत्र गौतम, मूल खौवाड़े नानपुर, मित्रलाल चौधरी के पिता का विवाह जिला मुंगेर, परगना नईपरु, गाँव मराँची मूल जलैवार जाले, गोत्र वत्स खेदू ईश्‍वर मैथिल की बहन से हुआ। (57) उसी खेदू ईश्‍वर की बहन का विवाह भिरहावाले वेलखंडी राय से। (58) लोहार-भवानीपुर के योग्य श्रेणी के मैथिल बच्चू चौधरी के पितामह का विवाह भूमिहार ब्राह्मणों के यहाँ मगध देश में था। (59) समौल ग्राम के फतुरीठाकुर के घर महाराज लक्ष्मीश्‍वर सिंह का दूसरा विवाह हुआ और उसी घर में बनैली का सम्बन्ध हैं। बनैली का सम्बन्ध तो पश्‍चिम ब्राह्मणों के यहाँ दिखाया जा चुका है।
इस प्रकार से दलसिंगसराय स्टेशन से 15-20 कोस उत्तर, दक्षिण और 20-22 कोस पूर्व, पश्‍चिम प्राय: सरैसा परगना और उसके आस-पास हजारों मैथिल और पश्‍चिम ब्राह्मणों के सम्बन्ध होते चले आए हैं, कहाँ तक गिनाया जा सकता है। (60) जिस दुलारपुर का सम्बन्ध पश्‍चिम ब्राह्मणों से सिद्ध कर चुके हैं, उसी दुलारपुर का सम्बन्ध भौड़खौवाड़े मूल में उस ग्राम में हुआ है, जिसमें महामहोपाध्याय श्रीकृष्णसिंह ठाकुर महाराज दरभंगा के सगोत्र रहते हैं। (61) वर्तमान दरभंगा नरेश महाराजा सर रामेश्‍वरसिंह जी का विवाह मंगरौनी पारसमणि झा की पुत्री से हुआ है जो कटिरबूझा की पितिऔत (चचेरी) बहन है। कटिरबू झा का विवाह कारज के बुच्ची चौधरी की फुआ से है। बुच्ची चौधरी की चचेरी बहनों का ब्याह सोनबरसा, भागलपुर के गोरेलाल कुँवर और गौरीपुर के लाल जी ठाकुर (चौ.) से है। कारज ग्राम का सम्बन्ध पूर्वोक्‍त मुंगेर के मराँची ग्राम में लक्खी बाबू के घर और पनचोभ ग्राम का सम्बन्ध मराँची हैं, और मराँची का तथा पनचोभ का भी सम्बन्ध पश्‍चिम ब्राह्मणों से प्रथम ही दिखला चुके हैं। (62) मूल वेलौंचे सुदई, ग्राम समौल के दौहित्र कुल में स्वर्गीय श्रीमान महाराज बहादुर दरभंगा नरेश श्रोत्रिय लक्ष्मीश्‍वर सिंह का विवाह था। जो छोटी महारानी साहिबा अभी वर्तमान हैं, और समौल का सम्बन्ध दुलारपुर और हाबी भौआड़ में है। जिस दुलारपुर का सम्बन्ध प्रथम ही पश्‍चिम ब्राह्मणों से दिखला चुके हैं और हाबी भौआड़ का भी सम्बन्ध दिखलावेंगे। इस प्रकार जब मैथिल शिरोमणि श्रोत्रिय महाराज दरभंगा भी भूमिहार (पश्‍चिम) ब्राह्मणों से विवाह में मिले हुए हैं, और योग्य श्रेणी के भी मैथिलों का सम्बन्ध दिखला चुके हैं, तो अन्य मैथिलों का क्या कहना हैं?(63) जिस कारज ग्राम का सम्बन्ध पश्‍चिम ब्राह्मणों से सिद्ध हो चुका हैं उसी का सम्बन्ध परगना सरैसा, सलेमपुर गाँव में हैं और सलेमपुर का सम्बन्ध मैथिल राजा बनैली से है। (64) खिरहर, दरभंगा के दिघवैत ब्राह्मण श्री रामजुल्म चौधरी और दुलारपुर के तुरंत लाल चौधरी दोनों मौसेरे भाई हैं। इनकी माताएँ परस्पर बैमात्र बहनें हैं और दोनों का ननिहाल समस्तीपुर के निकट झहुरी ग्राम में हैं। (65) नेहरा के श्री गोपी चौधरी का सम्बन्ध पूर्वोक्‍त बरारी (भागलपुर) के मैथिल बाबू के यहाँ है और श्री गोपी चौधरी का सम्बन्ध पूर्वोक्‍त मराँची ग्राम (मुंगेर) में नन्हा ईश्‍वर और नूनू ईश्‍वर मैथिल के घर भी है। जिस मराँची का सम्बन्ध प्रथम ही पश्‍चिम ब्राह्मणों से दिखला दिया गया है। इस प्रकार से बनैली के मैथिल महाराजा श्रीकरीत्यानन्द सिंह और बरारी के मैथिल बाबुआन और उनके सम्बन्ध में जितने बाबुआन हैं। सभी पश्‍चिम ब्राह्मणों से मिले हुए हैं और राजा बनैली का सम्बन्ध महामहोपाध्याय श्रीकृष्ण ठाकुर से हैं, इसलिए उनका भी सम्बन्ध सिद्ध हो गया। इस प्रकार से यदि परम्परा सम्बन्ध का मिलान किया जावे तो मिथिला के किसी भी मैथिल ब्राह्मण का सम्बन्ध इन अयाचक (पश्‍चिम) ब्राह्मणों से बच नहीं सकता। इसीलिए परमहंस जी ने लिखा है कि 'धाखजरी, कुरसों, वल्लीपुर, दसौत, दुलारपुर, नवादा और नेहरा प्रभृति के कुटुंब (संबंधी), कुटुंब के कुटुंब और उनके कुटुंब में सभी सोति (श्रोत्रिय), योग्य और पंजीबद्ध (मैथिल) हैं।' क्योंकि मिथिला में विख्यात ये सभी ही हैं। अब नाम बनाम सम्बन्ध न दिखला कर केवल उन ग्रामों के कुछ नाम ही लिखते हैं, जिनमें प्राय: पश्‍चिम ब्राह्मण दोगमियाँ मैथिल और अन्य मैथिल रहा करते हैं और जिनका परस्पर विवाह सम्बन्ध हैं।
(1) नीचे लिखे हुए नाम प्राय: उन ग्रामों के हैं, जिनमें पश्‍चिम ब्राह्मण रहते हैं और उनका सम्बन्ध दोगमियाँ मैथिलों अथवा अन्य मैथिलों से हैं। वे ये हैं - जिला मुंगेर, परगना नईपुर में दहिया, रसलपुर, दामोदरपुर, आगान, आलापुर, चिल्हाई, पाली, बनहरा, अंबा, रामपुर, सजात, नरहरपुर, ताजपुर, चड़िया, हरपुर नयाटोला, फतहा, रसीदपुर, आगापुर, लाड़ेपुर, बछवारा, तेमुहा, सर्यूपुरा, प्रभृति एवं परगना भुसाड़ी में मेघौल, हरखपुरा आदि ग्रामों में सुरगणै मूल पराशर गोत्रवाले ब्राह्मण रहते हैं। दरभंगा जिले के सरैसा परगने के भथाही, सुस्ता, चाँदीचौर प्रभृति 12 ग्रामों में कोदरिए मूल के ब्राह्मण रहते हैं। जलालपुर, रामपुर, सुरौली, मऊ, शेरपुर प्रभृति ग्रामों में जलैवार मूलवाले रहते हैं। देवधा, पटसा, नयानगर, रामपुर, दुधौना, कचहरी रामपुर, सकरपुर, खडहैंया, मधोपुर, सिहमा आदि ग्राम सरैसा परगने में सनैवार ब्राह्मणों के हैं। मुंगेर में बदलपुरा, मालती, बहादुर नगर प्रभृति ग्राम मर्रैं मगरौनी मूल के ब्राह्मणों के हैं। इनके अतिरिक्‍त विभूतपुर, महथी आदि ग्रामों को भी जानना चाहिए। इन पूर्वोक्‍त ग्रामों में या तो पश्‍चिम ब्राह्मण रहते हैं, अथवा वे मैथिल भी रहते हैं जिनके बहुत दिनों से पश्‍चिम ब्राह्मणों से अधिक सम्बन्ध होते-होते वे भी पश्‍चिम ब्राह्मण हो गए हैं।
(2) अब नीचे उन ग्रामों के नाम हैं जिनमें प्राय: दोगमियाँ मैथिल रहा करते हैं - भिरहा, बंदा, जगन्नाथपुर, दसौत, जोड़पुरा, बमैया, बेलसंडी, सिहमा, पतैली, ढरहा, रुपौली प्रभृति ग्रामों में जिला दरभंगा, सरैसा परगने में अनरिए मूल के शांडिल्य गोत्री मैथिल रहते हैं। लछिमिनियाँ, पवरा और कांकड़ आदि ग्रामों में टकवारे मूलवाले वत्स गोत्री मैथिल रहते हैं। अख्तियारपुर, मथुरापुर, ऐस झखड़ा, गुर्महा, तिसवारा, महेशपुर, बाजीतपुर, खजुटिया, बस्ती, बढ़ौना, तोयपुर, ब्यासपुर, सूर्यपुर, गाऊपुर, कुम्हिरा मोरवा, नौवाचक, भोजपुर प्रभृति ग्रामों में जलैवार मूल के वत्स गोत्री मैथिल सरैसा परगने में रहते हैं। उदयपुर आदि ग्रामों में परिसरै मूलवाले शांडिल्य गोत्री रहते हैं। पोखराम और मोतीपुर प्रभृति ग्रामों में गर्ग गोत्री बसे हैं, मूलवाले बसते हैं। केवटा और आसिनचक प्रभृति ग्रामों में ब्रह्मपुरिए ब्रह्मपुर मूल के गौतम गोत्री रहते हैं। नारी ग्राम करमहेउड़रा मूलवाले रहते हैं।
(3) इन दोगमियों और पूर्वोक्‍त पश्‍चिम ब्राह्मणों का भी सम्बन्ध जिन-जिन ग्रामों में होता है उन मैथिल ग्रामों को अब दिखलाते हैं। जैसे, गरौल, दसौत, कुरसों, शेरपुर, कथवार, विष्णुपुर और मकरम पुर आदि में जलैवार गरौल मूल के मैथिल रहते हैं। हाबी भौआड़, वाथो, धाड़ोड़ा, बिठौली, मोहली, सिमरामा, उफरदहाँ, पौड़ी, बैहड़ा आदि ग्रामों में बेलौचे बेहड़ा मूलवाले रहते हैं। बल्लीपुर, गाहड़, बनहार, वड़गामा, ठाहर, हसनपुर, बैजनाथपुर, गैघट्टा, टेंगरहा, गूदरघाट और प्रमाना प्रभृति ग्रामों में पनचोभे भानपुर मूलवाले रहते हैं। सहाम, पटनियाँ, डुमरी, जमुवाँ, मोहद्दीपुर आदि गाँवों में टकवारै नीमा मूल के रहते हैं। पड़री, बोरंज, दहियार, बलिगामै डरहार और गोविंदपुर प्रभृति ग्रामवासी मैथिल खौवाड़ सिमड़वार मूल के हैं। गंगा पट्टी सेनुवार आदि ग्रामों में ऊनैवार मूल के हैं। कुशोथर आदि में भुसवड़ै मूलवाले तथा लवानी आदि ग्रामों में कोइयारै जड़ैल मूलवाले रहते हैं। इसी प्रकार थलवार, मँझौलिया कारज, मिश्रौलिया, पिड़ारुच, पनचोभ और देवराम प्रभृति भी उन्हीं मैथिलों के ग्राम हैं जिनका साक्षात अथवा परम्परया अयाचक दल ब्राह्मणों से सम्बन्ध हैं।
मैथिल ब्राह्मणों के प्रसिद्ध चार विभाग हैं, जिनमें सबसे श्रेष्ठ श्रोत्रिय, उनके बाद योग्य, पंजीबद्ध और चौथे जैवार हैं। इन चारों का सम्बन्ध पश्‍चिम ब्राह्मणों से दिखलाया जा चुका है। संभव है कि कहीं-कहीं मूल, गोत्र या ग्राम दिखलाने में अन्तर पड़ गया हो, परंतु बात तो ठीक ही निकलेगी। जैसे काशी के प्रांत में स्थान या डीह कहलाता है, यथा - पिंडी के तिवारियों का पिंडी स्थान है। वैसे ही उसी स्थान को पश्‍चिम में निकास और मिथिला में मूल कहते हैं और जिन ग्रामों में उनके पूर्व पुरुष रहते थे तथा जिनको किसी प्रकार से उपार्जन किया था, उन दोनों को मिला कर प्राय: मूल की जगह वहाँ व्यापार होता है। जैसे पनचोभे भानपुर इत्यादि। एक बात और भी मैथिलों के सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य यह है कि उनके बहुत से मूल और गोत्र वे ही हैं, जो पश्‍चिम ब्राह्मणों के; जैसे दिघवै या दिघवैत मूल, गोत्र शांडिल्य दोनों का एक ही हैं। इसी प्रकार, कोथवे या कोथवैत मूल, गोत्र विष्णुवृद्ध। सुरगणै मूल, गोत्र पराशर, कोदरिए मूल, शांडिल्य गोत्र बसहैं या वसमैत मूल, गोत्र गर्ग। जनकपुर पिपरा के सुबा गोपाल मिश्र बसमैत ही ब्राह्मण थे। जलैवार मूल, गोत्र वत्स या काश्यप। पनचोभे मूल, गोत्र सावर्ण्य एवं दधिअरै, चकवार और सनैवार प्रभृति को भी जानना चाहिए। यह भी इस बात में दृढ़ प्रमाण हैं कि मैथिलों और पश्‍चिम ब्राह्मणों का सम्बन्ध घनिष्ठ था और है।
सनैवार ब्राह्मणों के पूर्व पुरुष दो भाई थे, गोपालराय और केसरीराय। जिसमें से केसरीराय की संतान पटसा प्रभृति ग्रामों में हैं और गोपालराय की नयानगर प्रभृति में। 2-3 वर्षों से ही पटसावाले राघवराय आदि पश्‍चिम ब्राह्मणों से पृथक हो मैथिलों में मिले हैं। यद्यपि अभी तक नयानगरवालों से उनका खान-पान पूर्ववत हैं। सरैसा परगने के लोमा ग्राम में प्रथम कोदरिए ब्राह्मणों के आदि पुरुष रहते थे। वहीं से कुछ लोग भथाही और सुस्ता प्रभृति ग्रामों में जा बसे, जो भूमिहार ब्राह्मण या पश्‍चिम ब्राह्मण कहलाते हैं। क्योंकि भूमिहार ब्राह्मण महासभा के सेक्रेटरी श्री रघुनन्दन सिंह जी सुस्ता ग्राम के ही कोदरिया ब्राह्मण हैं। उसी लोमा ग्राम से कुछ लोग धाखजरी ग्राम में जा बसे और पंजीबद्ध हो कर मैथिलों में मिल गए। जो मुकुंद मिश्र प्रभृति अब अपने को कोदरिए लोआम अथवा धाखजरी लोआम कहते हैं। ये सब बातें क्या दोनों दल की एकता को सिद्ध नहीं करती है?
परमहंस जी की पुस्तक 'ब्राह्मण सम्बन्ध' देखने से विदित होता है कि बहुत से मैथिल पश्‍चिम (भूमिहार) ब्राह्मणों से ही हुए हैं। दृष्टांत के लिए पूर्वोक्‍त भारद्वाज गोत्री दुमटिकारों को लीजिए। आगे चल कर कान्यकुब्ज और सर्यूपारियों के सम्बन्ध दिखलाने के समय दिखलावेंगे कि वास्तव में सर्यूपारी ब्राह्मण ही दुमटिकार के तिवारी या पांडे आदि कहलाते हैं। इसलिए ठीक नाम दुमटिकार या दुमटिकारिए होना चाहिए परंतु भूल से लोग डोमकटार, डम्म या दम्मकटरिए इत्यादि कहने लग गए हैं। पिलखवाड़ ग्राम वासी पंजीकार जयनाथ शर्मा मैथिल ने जो मैथिल ब्राह्मण वंशावली बनाई और सुगौना के बालकृष्ण शर्मा ने छपाई हैं, उससे भी भारद्वाज गोत्र के वर्णन में दम्मकरिए मूल आया है। चाहे इस समय मैथिलों ने उनका नाम बदल डाला हो, या वे लोग फिर पश्‍चिम ब्राह्मणों में ही मिल गए हों, परंतु एक समय पश्‍चिम से ही मैथिल हुए थे। अब भी दरभंगा स्टेशन के पास मिर्जापुर में डोमकटरिए मैथिल रहते हैं। इस बात को भी परमहंस जी ने सिद्ध किया है कि पश्‍चिम से मैथिल, फिर मैथिल से पश्‍चिम और पुन: मैथिल हो जानेवाले भी ब्राह्मण बहुत से हैं। दृष्टांत के लिए, सुरौरे मूलवाले पश्‍चिम से मैथिल बने और फिर पश्‍चिम बने। जैसे सबौड़ा से एघु, एघु से नावकोठी, मोहनपुर चाँदपुरा, बंदोवार और खम्हार। सबौड़ा से ही रामदीरी, गौड़ा, बिजलपुरा, सोंगडाहा और अंबा आदि है। गौड़ा से नौला, और नौला से पुन: मैथिल हुए, जैसे उजियारपुर।
परमहंस जी ने भूमिहार (पश्‍चिम) ब्राह्मणों के इस कथन के खण्डन में कि मैथिलों से विवाह नहीं होना चाहिए, यह दिखलाया है कि द्रोणवार ब्राह्मणों के वंश की जड़ तो मैथिलों से ही हैं। फिर निषेध किसका होना चाहिए? क्योंकि कान्यकुब्ज, देवकली के पांडे साधोराम के पुत्र राजा अभिमान के पुत्र राय गंगाराम ही द्रोणवार ब्राह्मणों के आदिपुरुष हैं। जिनसे गंगापुर और नरहन आदि सभी हुए हैं। उन राय गंगाराम का एक विवाह चकवारों के मूल ग्राम चाक के निवासी राजा सिंह चकवार मैथिल की पुत्री भाग रानी से और दूसरा तिसवारा ग्राम वासी पं. गोपी ठाकुर मैथिल ब्राह्मण ही की पुत्री मुक्‍ता रानी से हुआ था। जिनमें से एक के छह और दूसरी के तीन पुत्र हुए। इन्हीं नौवें से संपूर्ण द्रोणवार वंश हैं। इसलिए सच पूछा जावे तो मैथिल और भूमिहार ब्राह्मणों में बिलकुल ही भेद नहीं है। इसलिए पूर्वोक्‍त डा. विलसन और बंगदेशी ब्राह्मण लाहिरी महाशय ने अपने बंगभाषा के 'पृथिवीर इतिहास' में भूमिहार ब्राह्मणों को मैथिल ब्राह्मण लिखा है और इसीलिए मैथिल भाषा के बाभन शब्द का व्यवहार भूमिहार ब्राह्मणों में होता है, जिसका नाम लाहिरी महाशय ने भी लिया है। जैसा कि आगे स्फुट होगा।
अब सर्यूपारियों और कान्यकुब्जों के साथ भी जमींदार या भूमिहार ब्राह्मणों का विवाह सम्बन्ध दिखलाते हुए प्रथम सर्यूपारियों के साथ ही दिखलावेंगे। क्योंकि सर्यूपारी कहलानेवालों की ही संख्या काशी के आसपास बहुत हैं। इतना ही समझ लेना और उसी से अंदाज कर लेना चाहिए कि मैथिलों के शिरोमणि महाराजा दरभंगा और महामहोपाध्याय श्रीकृष्ण सिंह ठाकुर का सम्बन्ध स्पष्ट दिखलाया गया है, यों तो मिलाने से सभी के साथ पहुँच सकता है। उसी प्रकार इस तरफ मिलान करने से इधर भी कोई नहीं बच सकते।
जिला प्रयाग, परगना अरैल, गाँव पनासा आदि के भारद्वाज गोत्री भूमिहार ब्राह्मणों का उसी जिले में सम्बन्ध नीचे लिखा है। भूमिहार ब्राह्मण हीरापुरी पांडे कहलाते हैं, जिनका सम्बन्ध काशी के गौतम आदि भूमिहार ब्राह्मणों से हैं। वे लड़केवाले और सर्यूपारी ब्राह्मण प्राय: लड़कियोंवाले हैं। परंतु कहीं-कहीं विपरीत भी हैं, जो कह देंगे।
लड़केवाले भू. ब्रा. के नाम लड़कीवाले सर्यूपारी पते सहित
(1) रामकुमार सिंह : पं. महावीर पांडे, ग्राम पँवर, गौतम गोत्र परगना अरैल
(2) माताबदल सिंह : पं. शीतलाबख्श पांडे ' ' '
(3) ठाकुर प्रसाद सिंह : पं. बवोलराम पांडे, ग्राम पँवर, गोत्र गौतम, परगना अरैल
(4) राम किशोर सिंह : पं. सूर्यदीन ' ' ' '
(5) शिवबालक सिंह : पं. रामप्रसन्न तिवारी, ग्राम विरौल, गोत्र वसिष्ठ, परगना अरैल
(6) अलोपी सिंह : पं. दुर्गाप्रसाद तिवारी, ग्राम चाका '
(7) शीतल सिंह : ' ' ' ' '
(8) जगन्नाथ सिंह : पं. विंदा प्रसाद तिवारी, चाका, अरैल।
(9) ठाकुर प्रसाद सिंह : ' ' ' ' ' '
(10) बाबूसिंह मेधई : पं. मदन मोहन ' ' ' '
(11) माताबदल सिंह : पं. रामरतन ' ' ' '
(12) माताबदल सिंह : पं. शिवनन्दन राम ' शिंधुवार
(13) राधामोहन सिंह : पं. ' ' ' '
(14) रामकृपाल सिंह : ' दातादीन पांडे, ग्राम पँधार, गौतम
(15) रामकृपाल सिंह : 'संपतराम तिवारी, सिंधुवार, वसिष्ठ
(16) काशी प्र. सिंह : ' महावीर प्रसाद ' '
(17) विन्धएश्‍वरी प्र. : ' ' ' ' '
(18) वैरीसाल सिंह : पं. माताप्रसन्न पांडे वामपुरी, चौकी, पराशर,खैरागढ़।
(19) भोदू सिंह : ' ' ' ' '
(20) दानसिंह, मचैयाँ पांडे, भारद्वाज गोत्री : पं. माताप्रसन्न पांडे वामपुरी, चौकी, पराशर, खैरागढ़।


अब रामगढ़ देवरी , वसही , लकहा खाईं के भारद्वाज गोत्री , भूमिहार ब्राह्मणों के नाम है।
(21) शिवजगत सिंह, रामगढ़ : ' पं. दातादीन पांडे, ग्राम पँवर, गौतम गोत्र, परगना अरैल।
(22) शत्रुहन सिंह : ' विंदाप्रसाद तिवारी, चाका, वसिष्ठ,
(23) इंद्रजीत सिंह : ' मदन मोहन तिवारी ' '
(24) गयाप्रसाद सिंह, देवरी : ' बोधीराम पांडे, पँवर, गौतम, अरैल
(25) भरत सिंह : ' शिवनन्दन तिवारी, सिंधुवार, वसिष्ठ
(26) चंद्रभान सिंह, वसही : ' बोधीराम पांडे, पँवर, विरौल, अरैल
(27) गयाप्रसाद सिंह, देवरी : ' रामनारायण तिवारी, विरौल, वसिष्ठ
(28) गंगोत्री सिंह, लकठहा : ' मदनमोहन तिवारी, चाका, अरैल
(29) रामकृपाल सिंह : ' संपतराम ' ' '
(30) छत्राधारी, खाईं : ' हरिचंद पांडे पँवर, गौतम '
(31) ब्रजमंडल : ' शिवनन्दनराम तिवारी, सिंधुवार, ' वसिष्ठ
अब खैरागढ़ परगना के वसिष्ठ गोत्री भूमिहार ब्राह्मणों के नाम देते हैं , उनकी उपाधि मिश्र हैं।
(32) महावीर सिंह, बिहगना : पं. शीतलबख्श पांडे, पँवर, गौतम, अरैल
(33) चौ. ठाकुरप्रसाद सिंह : ' बिंदुराम तिवारी, सिन्धुवार, वसिष्ठ
(34) रघुनाथ सिंह, रामनगर : ' दुर्गा प्रसाद ' चाका '
लड़केवाले सूर्यपारियों के नाम पते सहित लड़कीवाले भू. ब्राह्मणों के नाम पते सहित।
(35) पं. गंगाराम तिवारी उनवलिया के,
ग्राम बसही कोटहा, परगना अरैल,
गोत्र वसिष्ठ : श्री पितापालसिंह, ग्राम पुरैनी, परगना अरैल, भारद्वाज गोत्री पांडे।
(36) रामसुंदर तिवारी : श्री शिवसरन सिंह ' ' '
(37) समयलाल तिवारी : श्री जयगोपाल सिंह, ग्राम पुरैनी, परगना अरैल
(38) रामफल पांडे, मलैयाँ, गाँव मलाका, तहसील सुराम,
इलाहाबाद, गोत्र सांकृत, अब महरू डीह
में रहते हैं। : जसवंत सिंह, गौतम, गं जारी, गंगापुर, कुसवार परगना, बनारस।


श्री जसवंत सिंह की लड़की का विवाह रामफल पांडे , मलैयाँ से हुआ था। वह अभी तक जीती हैं। यद्यपि जसवंत नावल्द हो गए और उनके दामाद गंगापुर में हैं।
(39)शिष्ट नारायण सिंह; ग्राम गठौली, : रामसेवक तिवारी उनवलिया के, ग्राम वसही
परगना, अरैल, गोत्र गौतम मिश्र कोटहा, परगना अरैल, गोत्र वसिष्ठ
(40) शिव प्रसाद सिंह : पं. माताभीख तिवारी, मरौ, परगना केवाई,
कठौली, परगना खैरागढ़, इलाहाबाद, कठौली, परगना इलाहाबाद
गोत्र भारद्वाज, पांडे।
(41) ननकूसिंह कठौली : पं. शिवलाल तिवारी, हरिपुर ' '
(42) लौलीन सिंह : पं. अयोध्या दूबे, खेमापट्टी, परगना मही, इलाहाबाद
(43) शिव संपत सिंह : पं. रामावतार दूबे ' ' '
(44) शिवरतन सिंह : पं. शिवदीन पांडे, मिसिरी गड़ौरा, परगना केवाई, प्रयाग।
(45) शिव दर्शन सिंह : पं. रामदीन पांडे ' ' '
(46) हनुमान सिंह : पं. गंगाराम दूबे, कोट, ' '
(47) शिवटहल सिंह : पं. यदुनन्दन शुक्ल, कृपालपुर ' '
(48) झग्गा सिंह : पं. स्वयंवर मिश्र, धर्म पूरा के, गूदनपूरा, खैरागढ़।
(49) राजनारायण सिंह : पं. रामभरोस उपाध्याय, सुरियाँवाँ, भदोही, मिर्जापुर।
(50) भोलीसिंह : पं. कोलाहल उपाध्याय, कोड़र, भदोही, मिर्जापुर।
(51) कोलई सिंह : पं. कालिका, रामदीन उपाध्याय' अबरना '
(52) हनुमान सिंह : पं. परसन उपाध्याय बरमोहनी ' ' '
(53) कालिका सिंह : पं. रघू अपा. दोहिया भदोही, मिर्जापुर
(54) गणेश सिंह : पं. नागेश्‍वर दूबे, वरमोहनी ' '
(55) आत्मनारायणसिंह : पं. झींगुर दूबे, कवल ' ' '
(56) शिवशंकर सिंह, कठौली खैरागढ़, प्रयाग : पं. रामदास दूबे, वरमोहनी, भदोही, मिर्जापुर।
(57) सूर्यनारायण सिंह : ईश्‍वरीराम उपाध्याय, सुरियाँवाँ, '
(58) कामता सिंह : पं. संपतिराम ' पतूलकी, '
(59) भवानीचरण सिंह : पं. रामकुमार ' वसवरा, '
(60) रामकृपाल सिंह : बोधराम उपाध्याय, अवरना, '
पूर्वोक्‍त ब्राह्मणों में से जिनके गोत्र में संदेह था उनका गोत्र निश्‍चित रूप से नहीं लिखा गया है, परंतु इसी पूर्वोक्‍त पते से मालूम किया जा सकता है।
अब दो-चार प्रसिद्ध-प्रसिद्ध कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के साथ भी सम्बन्ध दिखला कर फिर कान्यकुब्ज और सर्यूपारी दोनों के साथ मिले हुए सम्बन्ध एक साथ दिखलावेंगे:
(61) परगना सुराम, जिला प्रयाग, आनापुर के श्री देवकीनन्दन सिंह तथा आसपासवाले बहुत से ग्रामों में जो अयाचक (भूमिहार) ब्राह्मण रहते हैं वे सर्यूपारी ब्राह्मण, शांडिल्यगोत्री, पहिती पुर के पांडे, सूक्ष्ममति पांडे के वंशज हैं। यह बात उन लोगों की छपी हुई वंशावली से विदित हैं, परंतु बहुत दिनों से भूमिहार ब्राह्मणों के साथ विवाह सम्बन्ध करते-करते वे लोग इन्हीं में मिल गए हैं। दृष्टांत के लिए श्री देवकी नन्दन सिंह की बहन का विवाह काशी के श्री अलरव सिंह से था, जिनके पुत्र कृष्णप्रसाद सिंह हुए। और स्वयं श्री देवकीनन्दन का विवाह जिला आजमगढ़ के सूर्यपुर में कुढ़नियाँ भूमिहार ब्राह्मण श्री राम गोविंद सिंह की फुआ से था।
(62) उसी विवाह से जो लड़कियाँ श्री देवकी नन्दन की हुईं, उनमें एक का विवाह जिला फतेहपुर, गाँव वीरसिंहपुर, परगना कोड़ा जहानाबाद के कान्यकुब्ज ब्राह्मण काश्यप गोत्री सीरू के घर हुआ था, जिनके साथ अभी तक आना-जाना बना है।
(63) उनकी दूसरी लड़की का विवाह जिला फतहपुर, स्टेशन बिंदकी रोड, गाँव सुलतानागंज में कान्यकुब्ज ब्राह्मण हरनारायण सिंह और सुदर्शन सिंह सीरू के अवस्थी गोत्री के घर हुआ था, जिनके वंश में इस समय शंकर सिंह गंधर्वसिंह वगैरह मौजूद हैं और आते-जाते भी हैं।
(64) जिला कानपुर, बिठूर, के चौधरी खुमान सिंह अवस्थी, गोत्र काश्यप के यहाँ आनापुर श्री सिद्धनारायण सिंह की फुआ का ब्याह हैं। खुमान सिंह के घर में अब शिव सिंह हैं।
(65) इसी प्रकार श्री प्रसिद्धनारायण के पिता की फुआ का ब्याह जिला बस्ती, तहसील हरैया, ग्राम त्रिगनौता, राम नारायण ओझा खैरी के, वत्स गोत्री सर्यूपारी के घर था, जिनके पुत्र अवधबिहारी ओझा का आना-जाना अब तक पूर्ववत हैं।
(66) श्री सिद्धनारायण की पिता की फुआ का ही सम्बन्ध जिला बस्ती, परगना अमोढ़ा, गाँव नाथपुर विसनैयाँ, कश्यप गोत्री त्रिफला पांडे लक्ष्मीनारायण से था।
(67) जिला गोरखपुर, गाँव महावनखोर में बैसी के दीन मिश्र से उनकी तीसरी फुआ का सम्बन्ध हैं। ये दोनों सर्यूपारी हैं।
(68) जिला प्रयाग, परगना सुराम, कल्याणपुर के विक्रमाजीत सिंह आदि भी आनापुर के सगोत्र पहिती पुर के पांडे हैं। परंतु ये लोग अब जमींदार ब्राह्मण कहलाते हैं। विक्रमाजीत की लड़की का सम्बन्ध सर्यूपारी से जिला सुलतानपुर, गाँव व परगना बेरौंसा में मंगलराम, शिवचरण राम नगवा के शुक्ल गर्ग गोत्री के घर हैं।
(69) उसी ग्राम के कामताप्रसाद सिंह की लड़की का विवाह बेरौंसा के शीतलराम शुक्ल और बाबू शुक्ल के यहाँ हैं।
(70) वहीं के महावीर प्रसाद सिंह की पुत्री बेरौंसा के बालगोविंद राम शुक्ल के घर ब्याही हैं।
(71) वहाँ के ही सुखनन्दन प्रसाद सिंह की पुत्री का विवाह बेरौंसा में शालग्राम शुक्ल के घर हैं। इसके अतिरिक्‍त महरूडीह, सराय गाँव, मलाका गाँव परेशपुर, चौहारे, आनापुर, इस्माईलपुर, सराय हरीराम, चतुरी पुर, सराय गोपाल और चौरा रोड आदि ग्रामों के जमींदार ब्राह्मणों का सम्बन्ध बेरौंसा आदि 10 या 12 ग्रामों के नगवा शुक्लों में भरा हुआ है,
(72) जैसे कि बेरौंसा के भगवती शुक्ल महरूडीहवाले बैजनाथ प्रसाद सिंह की चर्चा की कन्या के पुत्र हैं इत्यादि। अब कान्यकुब्ज और सर्यूपारियों के साथ मिले हुए सम्बन्ध दिखलाए जाते हैं :
(73) जिला मिर्जापुर, कठिनहीं ग्राम के कामता प्रसाद पांडे और दुर्गाप्रसाद पांडे पिंडी के तिवारी शांडिल्य गोत्री सर्यूपारी ब्राह्मण हैं। उनका सम्बन्ध, प्रयाग-झूंसी के पन्नालाल, बेनी प्रसाद तिवारी के घर से हैं, जो खोरिया के तिवारी सर्यूपारी हैं और जिनकी कोठी आगरा-बेलनगंज में हैं। उन्हीं पन्नालाल, बेनी प्रसाद के पुत्र से जिला प्रयाग, परगना चायल, चरवा के श्री रामशरण सिंह पांडे की लड़की ब्याही है। यह कौशिक गोत्री टेकार के पांडे हैं, परंतु अब भूमिहार ब्राह्मणों से मिले हुए हैं। क्योंकि उन्हीं रामशरण सिंह की लड़की का विवाह पूर्वोक्‍त पनासा के श्री ब्रजबिहारी सिंह उर्फ मटर सिंह से भी है। और मटर सिंह की फुआ का विवाह जिला बनारस ग्राम खोचवा के श्री महावीर प्रसाद सिंह से हैं, जो गौतम भूमिहार ब्राह्मण पिपरा के मिश्र हैं।
(74) उसी पूर्वोक्‍त कटिनहीं के पांडे के घर जिला प्रयाग, परगना करारी, बेरौंचा गाँव के निवासी कुसुमी के तिवारी, शांडिल्य गोत्री, त्रिपाठी बूआ सिंह के दो पुत्रों के विवाह हुए हैं और बूआ सिंह का, या जिला बाँदा के ही मडौर आदि 24 ग्रामों में रहनेवाले त्रिपाठी नृपति सिंह, माधव सिंह, रघुवीर सिंह, अवधसिंह, शिवपालसिंह और रामशरणसिंह प्रभृति सर्यूपारी कुसुमी तिवारियों के-जो अब जमींदार ब्राह्मणों के सदृश हो रहे हैं - पुत्रों का विवाह सम्बन्ध सावर्ण्य टिकरा के पांडे लोगों में होता है, जो छप्पन गाँववाले बोले जाते हैं और जिला प्रयाग, परगना कड़ा में रहते हैं। जैसे परसरा गाँव के विश्‍वनाथ, ठाकुरदीन, चंद्रदयाल पांडे आदि बिसरा के सूर्यपाल, बलदेव पांडे प्रभृति। असवा के रामरत्‍न, भागीरथ पांडे आदि। बालक मऊ के सुखनन्दन राम, जगमोहन राम पांडे प्रभृति। ककोड़ा के शिवसहाय राम, रघुवीर राम पांडे आदि। विदनपुर के रामप्रसन्न राम पांडे प्रभृति। टिकरा डीह के रामजियावन पांडे, मथुरा प्रसाद पांडे प्रभृति हैं और इन छप्पनवाले टिकरा के पांडे लोगों का सम्बन्ध सुराम परगना के पूर्वोक्‍त आनापुर इत्यादि ग्रामों और पनासा प्रभृति ग्रामों के पूर्वोक्‍त भूमिहार ब्राह्मणों में खुल्लमखुल्ला होता है और पूर्वोक्‍त चरवा ग्राम में भी होता है, जिसका सम्बन्ध पनासा आदि में दिखला चुके हैं। चरवा ग्राम में रामशरण सिंह, रामनिधि सिंह और रामप्रताप सिंह इत्यादि 150 घर सर्यूपारी या जमींदार ब्राह्मण रहते हैं। चरवा के पास टाटा गाँव में भी ब्रह्मदत्त सिंह तिवारी इत्यादि के घर भी छप्पन गाँव वालोंका विवाह सम्बन्ध होता है। टाटा गाँव के पास चौराडीह में मथुरा प्रसाद सिंह तिवारी, साना जलालपुर में श्री कल्लू सिंह तिवारी, सिंहपुर में भग्गूसिंह, फरीदपुर में छेदी सिंह एवं कमालपुर, सुधावल, नीमी और साना प्रभृति 12 गाँवों में सर्यूपारी रहते हैं, जो अबप्राय: जमींदार ब्राह्मण हो रहे हैं और भारद्वाज गोत्री दुमटिकार के तिवारी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्‍त चरवा में टेकार के कौशिक गोत्री पांडे और परसरा इत्यादि गाँवों में सावर्ण्य गोत्री टिकरा के पांडे लोगों को कह चुके हैं और टिकरा डीह भी बतला चुके हैं।
बस, इन्हीं टिकरा और दुमटिकार के पांडे और तिवारियों में से मगध में टिकारी के महाराज तथा अन्य भूमिहार ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र या अन्य गोत्रों के हैं, जो अब तक बहुत जगह पांडे, तिवारी और दूबे इत्यादि उपाधियों से मगध और तिरहुत प्रभृति प्रांतों में प्रसिद्ध हैं और कहीं-कहीं राय, सिंह और चौधरी भी बोले जाते हैं। दुमटिकार के तिवारी और पांडे प्रभृति ये छप्पनवाले ब्राह्मण अपने पूर्वजों का मगध के टिकारी स्थान से आना बतलाते हैं। संभव है कि उन लोगों ने वहाँ से आने से ही उसी टिकारी के स्मरणार्थ टिकरा नामक ग्राम बसाया हो।
इसी नाम को लोग भूल से दुमकटार, डोमकाटर, डोमकटार इत्यादि भिन्न-भिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न स्थानों में व्यवहार करते और तदनुसार ही बहुत सी मिथ्या कल्पनाएँ भी किया करते हैं। परंतु शुद्ध नाम दुमटिकार या दुमटेकार हैं। इसीलिए सर्वत्र इसी का व्यवहार होना चाहिए। ये लोग वास्तव में सर्यूपारी ब्राह्मण हैं।
(75) पूर्वोक्‍त छप्पनवालों के लड़कों का विवाह सम्बन्ध फतेहपुर जिले में सिराथू स्टेशन के पास सोनही के तिवारियों में होता है। जो भदवा, बह्मनौली और इचौली आदि 12 गाँवों में रहते हैं और कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं।
(76) चरवा गाँव के ब्राह्मण रामशरणसिंह जिनका सम्बन्ध पनासा आदि में दिखला चुके हैं - के दायाद माता दयाल सिंह की लड़की का विवाह जिला प्रतापगढ़, परगना नवाबगंज, ग्राम बंहनपुरा के लक्ष्मीनारायण मिश्र, मैनच के वत्स अथवा कात्यायन गोत्री से हुआ है, जिसका पुत्र नारायणदास मिश्र है।
(77) माता दयाल सिंह की पुत्री, प्रयाग-कटरा नवाई जयसिंह में जय (ज्वाला) शंकर दूबे, कमलाकांत दूबे, बेलवा सौरी के गोत्र वत्स के घर भी ब्याही गई है।
जिन कुसुमी के तिवारी बुआसिंह प्रभृति का सम्बन्ध भूमिहार ब्राह्मणों में दिखला चुके हैं उन्हीं की लड़कियों के विवाह रीवाँ और प्रयाग में सर्यूपारियों के यहाँ नीचे लिखे जाते हैं।
(78) जिला रीवाँ, ग्राम रंग पतेरी, बलदेवप्रसाद तिवारी के घर मंडौर के नृपतिसिंह की।
(79) जिला रीवाँ, ग्राम मटियारी, पं. अयोध्याप्रसाद मिश्र, पड़रहा के वसिष्ठ गोत्री के घर माधवसिंह की।
(80) जिला प्रयाग, गाँव बादशाही मंडई, बैजनाथ मिश्र पिपरा के, गौतम गोत्री के यहाँ रघुवीर सिंह की।
(81) जिला प्रयाग, गाँव बहादुर गंज, महादेव शुक्ल, मामखोर के गर्गगोत्री के घर अवधसिंह की।
(82) प्रयाग, परगना सुराम, किलहनापुर, रुद्रप्रसाद मिश्र, धर्मपुर लगुनीवाले के यहाँ शिवपालसिंह की।
(83) प्रयाग, परगना सुराम, गाँव बाँधपुर, सुखनन्दन राम पंडित के घर रामशरण सिंह तिवारी की लड़कियों के विवाह हैं। कुसुमी तिवारी लोग बेरौंचा और मंडौर के अतिरिक्‍त तारी, मऊ, अहिरी, सुरोधा और अखौड़ा आदि गाँवों में रहते हैं।
(84) प्रयाग में दो या तीन कोस पर जसड़ा स्टेशन के पास यमुना तट में बेरौल ग्राम के सर्यूपारी रामनारायण तिवारी आदि तिवारियों में पनासा और सुराम परगना के भूमिहार ब्राह्मणों के सम्बन्ध हैं।
पूर्वोक्‍त अरैल परगना के पनासा आदि और सुराम परगना के कल्याणपुर आदि ग्रामों के भूमिहार ब्राह्मणों से बदर्का के मिश्र, कात्यायन गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का सम्बन्ध है, जो जिला इलाहाबाद, परगना मिर्जापुर चौहारी के भागीपुर आदि ग्रामों में रहते हैं। जैसे :
(85) भागीपुर के पं. विंधेश्‍वरी बख्शसिंह मिश्र का सम्बन्ध अरैल के वराँव गाँववाले राजासाहब श्री राघवेंद्रनारायण सिंह के घर ही हैं।
(86) विंधेश्‍वरी बख्श के भतीजे रामानन्दसिंह मिश्र की भतीजी का विवाह प्रयाग के सिरसा रामनगर में भूमिहार ब्राह्मण श्री आदित्यनारायण सिंह के घर हैं, जो गाना के मिश्र, वत्स गोत्री हैं।
(87) इसी प्रकार से जिस चरवा आदि के रामशरण सिंह वगैरह का सम्बन्ध भूमिहार ब्राह्मणों से दिखला चुके हैं उसी चरवा के रामनाथ सिंह और काशी प्रसन्न सिंह के घर में भी पूर्वोक्‍त विंधेश्‍वरी बख्श के लड़के का विवाह है।
(88) विंधेश्‍वरी बख्श के छोटे भाई का विवाह चौरा के अंबिका प्रसाद सिंह तिवारी, दुमटिकार के, भारद्वाज गोत्री के घर हैं। जिन चौरावालों का भूमिहार ब्राह्मणों से सम्बन्ध सिद्ध हो चुका हैं अब उसी विंधेश्‍वरी बख्श का सम्बन्ध अन्य कान्यकुब्जों और सर्यूपारियों से दिखलाते हैं :
(81) विंधेश्‍वरी बख्श की लड़की का विवाह जिला फैजाबाद, गाँव अंजना, रामलाल मिश्र, मार्जनी के वसिष्ठ गोत्री, सर्यूपारी के घर है।
(90) विंधेश्‍वरी बख्श की बहन का विवाह जिला प्रतापगढ़, गाँव भकड़ा, काशी नाथ मिश्र सुगौती के, गौतम गोत्री सर्यूपारी के यहाँ है।
(91) उनकी ही दूसरी बहन का विवाह जिला जौनपुर, गाँव पहितियापुर, हूबेराज दूबे, राज किशोर दूबे, सरार के, भारद्वाज गोत्री, सर्यूपारी के घर हैं।
(92) उनकी तीसरी बहन का विवाह जिला प्रतापगढ़ गाँव छेमर सरैया, प्रयाग मिश्र, मऊ के, कश्यप गोत्री, सर्यूपारी के यहाँ हैं।
भागीपुर के अतिरिक्त बदर्का के मिश्र नीचे लिखे गाँवों में रहते हैं।
(1) गाँव हुसेनपुर - जिला प्रतापगढ़ (1) दुर्गा प्रसाद सिंह। धीनापुर जिला प्रयाग, (2) मातादयालसिंह। जिला प्रतापगढ़, गाँव वरदहा (3) शीतलदीनसिंह। गाँव केसरुवा (4) सूर्यसिंह। गढ़चंपा, भानपुर, सिंगही और महम्मदपुर में भी बदर्का के मिश्र रहा करते हैं। (5) गाँव केसरुवा गाँव में राम सुखसिंह, (6) बरदहा में जानकी सिंह और (7) इस्माइलपुर में शिव शंकर सिंह रहते हैं। इन लोगों के सम्बन्ध इस प्रकार है :
(93) जिला प्रतापगढ़ गाँव छेमर सरैया, शीतलदीन मिश्र, मऊ के, कश्यप गोत्री के घर में श्रीयुत राम सुख सिंह की लड़की ब्याही है।
(94) जिला प्रतापगढ़, गाँव डोमीपुर, जानकी मिश्र, मऊ के, कश्यप गोत्री के यहाँ जानकी सिंह की लड़की ब्याही है।
(95) प्रतापगढ़, सरुवा के शिवमंगल मिश्र मऊवाले के यहाँ शिवशंकर सिंह की पुत्री ब्याही है।
(96) प्रतापगढ़ शेखपुर, देवकीनन्दन उपाध्याय, खोरिया के, भारद्वाज गोत्री सर्यूपारी के यहाँ भागीपुर के विंधेश्‍वरी बख्शसिंह मिश्र की पुत्री का विवाह है।
(97) मिर्जापुर के ओधी आदि गाँव के गौतम गुरईसिंह, राम मनोरथ सिंह वगैरह की पुत्रियों के विवाह रीवाँ के तिलिया पाँती गाँव के पाठकों के घर हैं और वहाँ के एक पाठक ओधी में गोद लिए गए हैं।
(98) जिला प्रयाग, परगना चायल, गाँव मर्दापुर के वृजलाल पांडे, नागचौरी के, की बहन मातादयाल सिंह, सराय राघो, परगना नवाबगंज, प्रयागवाले से ब्याही है। वृजलाल पंडित अभी तक आठ-दस गाँवों के पुरोहित हैं।
(99) पं. इंद्रनारायण द्विवेदी, मन्त्री किसान सभा का भतीजा विरौंचा के कुसुमी तिवारियों के यहाँ ब्याहा है। उनकी लड़की का ननिहाल ककोड़ा है।
(100) पं. बलराज सहाय उपाध्याय, वकील (प्रतापगढ़) के भतीजे का विवाह भैरो प्रसाद सिंह कल्याणपुर, सुराम, प्रयागवाले की पुत्री से हैं और बलराज सहाय के पुत्र का विवाह गयाप्रसाद पांडे, मिर्जापुर के घर है।
इसके बाद अब त्यागियों (तगे) और गौड़ों के भी कुछ विवाह सम्बन्ध दिखलाते हैं। इसमें हरेक नाम के आगे विवाहित का निर्देश हैं और इसके आगे गाँव और जिले लिखे हैं। विवाह इस प्रकार है :
वरपक्षीय त्यागी ब्राह्मण कन्यापक्षीय गौड़ ब्राह्मण
(1) गंगाराम, स्वयं, गोविंदपुरी, अंबाला : तुलसीराम, बहन, मुलाना,अंबाला
(2) मधुसूदन दास, स्वयं, गोविंदपुरी, अंबाला : कालीराम पुत्री, छजरौली, अंबाला
(3) आया राम, स्वयं, गोविंदपुरी, अंबाला : गीताराम, पुत्री, दसानी, अंबाला
(4) दीननाथ स्वयं, गोविंदपुरी, अंबाला : बद्रीदास पुत्री, अंबाला, अंबाला
(5) आशाराम, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : मोल्हड़मल, पुत्री, छजरौली, अंबाला
(6) कृष्णदत्त, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : कन्हैयालाल, पुत्री, सरमोरनाहन, अंबाला
(7) मूलराज, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : गीताराम, पुत्री, साल्हापुर, अंबाला
(8) शादीराम, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : परशुराम, बहन, मुजाफत, अंबाला
(9) प्रतापसिंह, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : शंकरलाल, बहन, दसानी, अंबाला
(10) धर्मसिंह, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : तेलूराम, बहन, हरियावास, अंबाला
(11) नानकचंद्र, पुत्र, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : बद्रीप्रसाद, बहन, दसानी, अंबाला
(12) शंभूदयाल, पुत्र, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : माड़ेराम, बहन, दसानी, अंबाला
(13) कालीराम, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : देवीचंद, पुत्री, जगाधारी, अंबाला
(14) हरजस शर्मा, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : श्री निवास, पुत्री, गामली, अंबाला
(15) जीराजसिंह, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : रामजीदास, बहन, खूड़ा, अंबाला
(16) अमीचंद, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : अनंतराम, बहन, ममेदी, अंबाला
(17) अमीचंद, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : मनसाराम, बहन, गढ़ीलौकरी, अंबाला
(18) बादामसिंह, पुत्र, विजैपुरा, सहारनपुर : दौलतराम, बहन, हरियावास, अंबाला
(19) सीसराम, पुत्र, विजैपुरा, सहारनपुर : दौलतसिंह, बहन, तेहिमा, अंबाला
(20) मुख्तारसिंह, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : रामप्रसाद, पुत्री, माँड़खेड़ी, अंबाला
(21) गिरधारीलाल, स्वयं, गोवर्धनपुर, सहारनपुर : नत्थूराम, पुत्री, हरियावास, अंबाला
(22) पृथ्वीसिंह, स्वयं, बड़ागाँव, सहारनपुर : तेलूराम, पुत्री, काटकी, बधावली, अंबाला
(23) सीसूसिंह, स्वयं, सहारनपुर : नन्दराम, पुत्री, रायपुरडमोली अंबाला
(24) मनसाराम, स्वयं, रुल्हाकी, सहारनपुर : रामजीदास, पुत्री, भूड़ ब्राह्मण, अंबाला
(25) गोविंदराम, पुत्र, मेहरवानी, सहारनपुर : हरिशंकर, पुत्री, मारवा, अंबाला
(26) रामचंद्र, स्वयं, मेहरवानी, सहारनपुर : रामजीसहाय, पुत्री, विलासपुर, अंबाला
(27) आशाराम, स्वयं, सुलतानपुर, सहारनपुर : हीरालाल, पुत्री, माँड़खेड़ी, अंबाला
(28) ईश्‍वरदत्त, स्वयं, गोविंदपुरी, अंबाला : प्रभुदयाल, पुत्री, करनाल, करनाल
(29) बुधाराम, पुत्र, गोविंदपुरी, अंबाला : सूर्यभान, बहन, यारा, करनाल
(30) मोलड़सिंह, स्वयं, नुकड़, सहारनपुर : देवीचंद, पुत्री, जटलाना, करनाल
(31) रिसालसिंह, ... अघियाना, सहारनपुर : राजमीदास, ... साँच, करनाल
(32 बख्तावरसिंह, ... अघियाना, सहारनपुर : खुशीराम, ... कोहंड, करनाल
(33) मुखराम ... अघियाना, सहारनपुर : गोपीनाथ, ... जालखेड़ी, करनाल
(34) गंगासिंह, स्वयं, शिकारपुर, दिल्ली : जसराम, भतीजी, दुजाणा, रोहतक
(35) सीसासिंह स्वयं, शिकारपुर, दिल्ली : सत्तू, बहन, मकसूदपुर, रोहतक
(36) रामप्रसाद, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : गंगाराम, बहन, सागीहेड़ा, रोहतक
(37) भनवानसहाय, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : रामरीख, पुत्री, मकसूदपुर, रोहतक
(38) खुशहाली, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : पीरूशर्मा, पुत्री, मकसूदपुर, रोहतक
(39) बालाराम, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : हरीराम, पुत्री, मकसूदपुर, रोहतक
(40) किसुनराम, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : शिवकरन, पुत्री, मकसूदपुर, रोहतक
(41) उदयराम, स्वयं, शिकारपुर, दिल्ली : बख्शीराम, फुआ, दिवाना, रोहतक
(42) कूड़ेसिंह, स्वयं, शिकारपुर, दिल्ली : नानकचंद, बहन, दिवाना, रोहतक
(43) खुशिया, स्वयं, शिकारपुर, दिल्ली : हरदेव, बहन पेरवल, रोहतक
(44) साखीराम, स्वयं, केशवपुर, दिल्ली : बद्रीप्रसाद, पुत्री, नागल, रोहतक
(45) तृखाराम, स्वयं केशवपुर, दिल्ली : कूड़ेसिंह, नंबरदार नागल, रोहतक
(46) मोहरा, स्वयं, धर्मपुर, गुरुगाँव : नन्दपंडित, बहन, मकसूदपुर, रोहतक
(47) परसा, स्वयं, मोमेढरी गुरुगाँव : शोबला, बहन, कन्नौर, रोहतक
(48) लक्ष्मण, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : लेखी, पुत्री, भागई, झींद
(49) देवीसहाय, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : सौजीराम, पुत्री, सितोबपुर, झींद
(50) प्रभु, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : धर्मा, नंबरदार, पुत्री, भावास, झींद
(51) लच्छू, स्वयं, झटिकरा, गुरुगाँव : छबीले, पुत्री, घिराना, झींद
(52) जीराम, स्वयं, धर्मपुर, गुरुगाँव : शादीराम, बहन, सितोबपुर, झींद
(53) शादीराम, स्वयं, धर्मपुर, गुरुगाँव : तोताराम, बहन, समसपुर, झींद
(54) हातम, स्वयं, भगेल, बुलंदशहर : बल्लराम, पुत्री, डंडिकारामपुर, झींद
(55) चंदसेन, स्वयं, दलेलपुर, बुलंदशहर : नत्थू, पुत्री, कुरुथल, गुरुगाँव
(56) रामचंद्र, पिता सुलखनी, अंबाला पटियाला : बिशनलाल, बहन, शाहपुर, मछोड़ा,
(57) फतेह सिंह, स्वयं, धर्मपुर, गुरुगाँव : पतिराम, पुत्री, बाबल, हिसार
(58) हरज्ञान, स्वयं, मोमेढरी, गुरुगाँव : जयराम, पुत्री, थानेजी, दिल्ली
(59) हरजस, स्वयं, मोमेढरी, गुरुगाँव : शुंडराम, पुत्री, रोढ़कामुवाना, दिल्ली
(60) नत्थाराम...हैंबतपुर, अंबाला : मुंशीलाल...कुतुबपुर, मुजफ्फरनगर
(61) मथुरादास...ओंड़ाना, करनाल : उमरावसिंह,...तेवड़ा, सहारनपुर
(62) द्वारकादास...जटलाना, करनाल : गणेशीलाल, ...सुलतानपुर, सहारनपुर
(63) रामजीदास...तेहमा, अंबाला : दीनदयाल, ...सुलतानपुर, सहारनपुर
(64) शालिग्राम,...छोली, अंबाला : दीनदयाल सुलतानपुर, सहारनपुर
(65)पं. उमादत्तपुत्र, साँभली, करनाल : पं. कुंदनजी, भतीजी, जलवाना, करनाल
वरपक्षीय गौड़ ब्राह्मण कन्यापक्षीय त्यागी ब्राह्मण
(66) केशव, स्वयं, कन्नौर, रोहतक : जयलाल, बहन, शिकारपुर, दिल्ली
(67) यमुनादास, स्वयं, सलौधा, रोहतक : तूखाराम, बहन, हस्तसाल, दिल्ली
(68) जीराम, स्वयं, भैंसावल, रोहतक : मोमचंद, बहन, झटिकरा, गुरुगाँव
(69) दुब्बाबुधा, स्वयं, मकसूदपुर, गुरुगाँव : मोहराम, पुत्री, धर्मपुर, गुरुगाँव
(70) डॉ. गीताराम, स्वयं, करनाल, करनाल : नानकचंद, पुत्री, गोविंदपुरी, अंबाला
(71) शिवचरण, पिता, डीघ : करनाल साहब सिंह, गोविंदपुरी, अंबाला
(72) सुंदरलाल, स्वयं, लाड़वा, करनाल : गंगाराम, पुत्री, गोविंदपुरी, अंबाला
(73) जगन्नाथ, स्वयं, बीजलपुर, अंबाला : गंगाराम, पुत्री, गोविंदपुरी, अंबाला
(74) बिहारीलाल, पुत्र, बीजलपुर, अंबाला : आशाराम, पुत्री, गोविंदपुरी, अंबाला
(75) विश्‍वंभरदास जज, पोता, सरकोरनाहन, अंबाला : लायकराम, पुत्री, गोविंदपुरी, अंबाला
(76) छज्जूराम, पुत्र, ईसोपुर, अंबाला : रामस्वरूप, पुत्री, गोवर्धनपुर, सहारनपुर
(77) मोहनलाल, पुत्र, गदौली अंबाला : जगराम सिंह, पुत्री, गोवर्धनपुर, सहारनपुर
(78) राजाराम, स्वयं, सुलखनी, अंबाला : दीनदयालु, पुत्री, गोवर्धनपुर, सहारनपुर
(79) झटिकरा, गुरुगाँव का निवासी मोल्हड़ रोहतक के मांडू ग्राम के गौड़ों का नाती है और अब मांडू में ही नाना की जायदाद पर रहता है।
(80) शिवलाल त्यागी, रेवला, दिल्लीवाले की बहन ग्राम दतौर, रोहतक में पं. हिरौड़ा जी गौड़ से ब्याही गई, जिसके पुत्र खीमा का विवाह रोहतक जिले के कसार गाँव में है।
(81) मेरठ, असौंढ़ा के रईस और तालुकेदार चौ. रघुबीर नारायण सिंह जी के चिरंजीव सुपुत्र चौ. रघुवंश नारायण सिंह का विवाह गोवर्धनपुर, जिला सहारनपुर के रईस चौ. रूपचंदशर्मा की पुत्री से है। इसी गोवर्धनपुर के सगोत्र और भाई-बिरादर इन गाँवों में रहते हैं:- सढौलीहरिया, (पं. राम जी दास), उमरी (पं. परमानन्द), अंबष्टा वरिजादा (पं. मंगलसेन), रनदेवा (पं. सुगनचंद) वगैरह। ये लोग गौड़ कहाते हैं और गौड़ों के साथ रोटी-बेटी का सम्बन्ध रखते हैं। चौ. रूपचंद जी शर्मा वगैरह के साथ भी इनका खान-पान ज्यों का त्यों बना है। पूर्वोक्‍त गोविंदपुरी, अंबालावालों के सगोत्र और सगे भाई-बिरादर जो गौड़ कहलाते हैं, इन गाँवों में रहते हैं:-गदौली (स्वामी भाऊराम, सीताराम), कोराली (भ्यावी मोहनलाल), डिगौंली (चौ. हरिवंश, इच्छाराम), नलेड़ा, रायपुर (पं. तुलसीराम) वगैरह। पूर्व के दो गाँव अंबाला में हैं और शेष तीन सहारनपुर में। इनका भी खानपान गोविंदपुरीवालों के साथ है। गोविंदपुरी के सगोत्र पं. राजेंद्र मिश्र वकील अमृतसर में रहते हैं। भगल, गेझा, कुलेसरा, सुलतानपुर, गिगरोड़ा ये पाँचों गाँव कौशिक गोत्री त्यागियों के जिला बुलंदशहर में हैं। इनका निकास (डीह या मूल स्थान) पसोर हैं। मगर पसोरवाले इनके सगोत्री होने पर भी गौड़ कहे जाते हैं।
इस विवाह सम्बन्ध के देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि जैसे मैथिल ब्राह्मणों में कुछ ऐसे हैं जो पश्‍चिम और मैथिल दोनों से विवाह सम्बन्ध करते हैं, वैसे ही गौड़ों में भी कुछ ऐसे हैं जो त्यागियों और गौड़ों के साथ विवाह करते हैं। नागल, जिला रोहतक के पं. बद्री प्रसाद 12 गाँवों के पुरोहित हैं और उनके यहाँ त्यागियों का सम्बन्ध दिखलाया गया है। इसके सिवाय यह भी देखा जाता है कि एक भाई त्यागी हैं तो दूसरा गौड़ हो गया और बहुत से गौड़ धीरे-धीरे जमींदारी के कारण त्यागी हो गए और होते जा रहे हैं और कितने ही त्यागी वंश गौड़ हो गए हैं। उदाहरण के लिए पं. हेमचंद जी तहसीलदार सरधाना जो पहाड़पुर, सहारनपुर के निवासी थे गौड़ ब्राह्मण कहे जाते हैं। मगर जिस ग्राम धानूखेड़ी, करनाल से उनके पूर्वज आए थे वहाँ उन्हीं के भाई लोग अब भी त्यागी ही कहलाते हैं। इसी धानूखेड़ी से ही सहारनपुर के पहाड़पुर और नुकड़ में गए हुए पं. हरप्रसाद जी तथा पं. हरिप्रसाद जी के पूर्वज गौड़ ब्राह्मण हो गए और अभी तक उन लोगों के वंशज गौड़ ही हैं। गाँव फेराहेड़ी, सहारनपुर के त्यागियों के कुछ बिरादर रुड़की तहसील के ज्वालापुर में जा बसे और दानवाही हो कर गंगापुरोहित गौड़ कहलाते हैं। हर की पैड़ियों का दान वही लेते हैं। उनमें इस समय सरदार परमानन्द जी हैं। खेड़ी जिन्नारदार, सहारनपुर से कुछ त्यागी वंशवाले जालखेड़ी, करनाल में चले गए और उन्हीं के वंश में पं. गोपीचंद जी प्रभृति दानग्राही हो गए। राना जसमोर, जिला सहारनपुर के पुरोहित के वंशज चौ. फतह सिंह वगैरह तेवड़ा, जिन्नारदार, सहारनपुर में जा कर जमींदारी करने से त्यागी हो गए। परंतु अभी तक दोनों दल में सम्बन्ध करते हैं। पूर्वोक्‍त खेड़ी ग्राम से ही कुछ लोग करोंदी में जा कर ग्राही गौड़ कहाते हैं और बड़गाँव, तहसील नुकड़ में भी जा कर दानग्राही ही हैं। मगर इन्हीं के भाई जालखेड़ी, करनाल में त्यागी हैं और ग्राही एवं त्यागी दोनों के यहाँ विवाह करते हैं।
जैसे इस समय पश्‍चिम ब्राह्मणों में पुरोहिती करनेवाले बहुत हैं और पहले से भी हजारीबाग जिले के चतरा और इटखोरी थाने के बाभनों (भूमिहार ब्राह्मणों) का पेशा पुरोहिती हैं और यही पेशा कागजों में लिखा जाता है। वे माहुरी वैश्यों, राजपूतों और कायस्थों के पुरोहित हैं। देव-गया के सूर्यमन्दिर के पुजारी खेदा पांडे वगैरह भी सोनभदरिया बाभन मयूरभट्ट के वंशज हैं। ठीक उसी तरह त्यागियों में भी कहीं-कहीं पहले से ही पुरोहिती करनेवाले पाए जाते हैं। दृष्टांत के लिए जमधारपुर, तुगलपुर, खानपुर, गजरौला, जिला बिजनौर के तगे (त्यागी) रवे राजपूतों के पुरोहित हैं। जरौला के पुरोहित नाथूराम और सलेखू राम वगैरह हैं। लंढौरा रियासत, जिला सहारनपुर के पुरोहित ताँसी ग्राम, तहसील रुड़की के त्यागी ब्राह्मण हैं। पाँचों पुरियों के सरदार और हर की पैड़ी के दानग्राही पं. दिसौंदीराम जी त्यागी वंश से ही हैं जिनके पुत्र सरदार परमानन्द जी वर्तमान हैं। इसी प्रकार और भी बहुत से दृष्टांत ढूँढ़ने से मिल सकते हैं। जिसको मिथिला में मूल और मूल में काशी, सर्यूपार एवं कन्नौज में स्थान और डीह बोलते हैं, उसे ही पश्‍चिमी जिलों में निकास कहते हैं। करनाल जिले के जितने ग्राम विवाह सम्बन्ध में दिखलाए गए हैं वे प्राय: पानीपत, थानेसर और करनाल तहसील के हैं, सहारनपुरवाले सहारनपुर, नुकड़ के और अंबालावाले अंबाला और जगाधारी तहसील के हैं। नाहन तहसील भी है। गोविंदपुरी की तहसील जगाधारी और गोवर्धनपुर की नुकड़ हैं। ये दो गाँव बहुत प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित हैं एवं इन्हीं गाँवों का सम्बन्ध दोनों दलों में बहुत ज्यादा हैं। सढौलीहरिया, उजरी और डिगौली देवबंद तहसील में हैं। नलेड़ा रुड़की में हैं। गदौली, कोरालो नारायण गढ़ में हैं।
इस प्रकार से यह स्पष्ट हो गया है कि अयाचक ब्राह्मण दल पूर्व में मिथिला से ले कर पश्‍चिम में अंबाला, करनाल और पंजाब के झेलम तक फैले हुए हैं। इनमें से पूर्ववाले मिथिलावासी और पश्‍चिम छोरवाले या काशी पुरी से पश्‍चिम के रहनेवाले दोनों ही याचक (पुरोहित) दलवाले ब्राह्मणों के विवाह द्वारा एक में एक मिले हुए हैं। यहाँ तक कि दोनों दिशाओं में प्रतिष्ठित और प्रधान जो-जो हैं उन सभी का सम्बन्ध अयाचक ब्राह्मणों से मिलता है। इसलिए यदि मध्य के अर्थात काशी और गंडक के बीच वालों से अन्य ब्राह्मणों के विवाह सम्बन्ध, अज्ञान या किसी अन्य कारणवश क्योंकि वहाँ के याचक दलवाले प्राय: दीन हैं, नहीं भी मिलते हैं तो कोई हर्ज नहीं हैं और इससे ये मध्य के अयाचक ब्राह्मण अन्य ब्राह्मणों से पृथक नहीं समझे जा सकते हैं। प्रत्युत ब्राह्मण समाज के ही सुंदर और हृष्ट-पुष्ट अंग हो सकते हैं। क्योंकि जब इनके दल का आदि और अन्त दोनों ही ब्राह्मण मात्र से घनिष्ठ मिलाव रखता है और अन्य ब्राह्मणों से भिन्न नहीं मालूम हो रहा है, तो मध्य में यदि किसी कारण से न मिलने से भेद भी प्रतीत होता हो तो विवेकीजन उस भेद को सत्य न समझ मिथ्या ही समझते हैं। जैसे यदि किसी रस्सी को अंडाकार (0) में फैला देंवे, तो यद्यपि उसके दो छोर मिले हुए हैं और बीच का भाग एक दूसरे से दूर पड़ गया है, परंतु सभी की सभी रस्सी ही समझी जाती है, न कि बीच का हिस्सा रस्सी से भिन्न कुछ और ही समझा जाता है। क्योंकि 'जो चीजें किसी एक ही चीज के बराबर होती है वे आपस में भी बराबर होती ही होती है', यह इस जगह भी अच्छी तरह लगाया जा सकता है। इसीलिए वेदांत का सिद्धांत है कि ब्रह्म में अज्ञान होने से प्रथम और अज्ञान नाश के पश्‍चात् यदि जीव और ब्रह्म का वस्तुत: भेद नहीं है, तो मध्य में अर्थात अज्ञान काल में, जो भेद प्रतीत होता है वह मिथ्या ही है, क्योंकि जो राजा निद्रा से पूर्व और निद्रा टूटने पर भी अपने को राजा ही समझता है, वह यदि निद्रा दोष से स्वप्न देखता हुआ अपने को राजा न देख भिक्षुक के रूप में देखता हैं, तो उससे वह वस्तुत: भिखमँगा न हो कर उस समय भी राजा ही रहता हैं और विचार शक्‍ति उसे राजा ही समझते हैं, चाहे वहस्वयं अपने को प्रचंड निद्रा अथवा अज्ञान दोष से राजा न समझे वह दूसरी बात है। इसीलिए भगवान श्री गौडपादाचार्य ने मांडूक्योपनिषद की कारिकाओं में लिखा है कि :
आदावन्ते च यन्नास्ति वर्त्तमानेपि तत्तथा।
वितथै: सदृशा: सन्तौ वितथा इव लक्षिता:॥ 6, प्र. 3॥
और उसी के ऊपर भगवान श्री शंकराचार्य का भाष्य ऐसा है कि
यदादावन्ते च नास्ति वस्तुमृगतृष्णादि, तन्मधये पि नास्ति निश्‍चितं लोके। तथेमे जाग्रद्दृश्या भेदा आद्यन्तयोरभावाद्वितथैरेव मृगतृष्णिकादिभि: सदृशत्वाद्वित था एव, तथा प्यवितथा इव लक्षिता मूढैर नात्मविदि्भ:।
इन दोनों वचनों का तात्पर्य यह है कि जो वस्तु आदि और अन्त में रहे, परंतु मध्य में प्रतीत हो, तो उसे मध्य में भी मिथ्या ही समझना चाहिए। यही संसार की रीति है। केवल मूर्ख लोग ही उसे सत्य समझते हैं। क्योंकि मरुस्थल में मृगतृष्णा का जल मृग के विचार से प्रथम भी न था और आगे भी न रहेगा, केवल बीच में ही मालूम होता है। इसीलिए वह मिथ्या हैं। यही दशा इस प्रकार के पदार्थों की हैं। क्योंकि वे भी उसी तरह के हैं। फिर उन्हें सत्य मानना मूर्खता के अतिरिक्‍त कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
जब यह स्पष्ट रूप से दिखला चुके हैं कि मैथिल, कान्यकुब्ज, गौड़ और सर्यूपारी सभी ब्राह्मणों में इन अयाचक दल के ब्राह्मणों के लड़के और लड़कियों दोनों के ही विवाह होते हैं, प्रत्युत मिथिला में लड़कियों के ही अधिक और सर्यूपारी प्रभृति में लड़कों के ही और लड़कियों के कम अथवा दोनों जगह बराबर ही और यही दशा गौड़ों की भी है तो बंगाल, बिहार और उड़ीसा की 1911 ई. की मनुष्य गणना की रिपोर्ट में मनुष्य गणना के सुपरिन्टेंडेंट ने जो उसके पाँचवें भाग के प्रथम खण्ड के जाति विवरण नामक 11वें प्रकरण में 444वें पृष्ठ के नोट में लिखा है कि :
It is reported that in Purnea there have been a few Cases of Babhans marrying Maithil Brahman girls, but none of Maithil Brahmans taking wives from among Babhans.
अर्थात 'यह कहा जाता है कि पुरनिया जिले में चंद बाभनों (पश्‍चिम ब्राह्मणों) ने मैथिल ब्राह्मणों की लड़कियों से विवाह किया है, परंतु किसी भी मैथिल ब्राह्मण ने बाभनों (पश्‍चिम ब्राह्मणों) की लड़कियों से विवाह नहीं किया है।' इससे समझ लेना चाहिए कि रिपोर्ट लिखनेवाले को ब्राह्मण समाज या भारत के समाज मात्र का कितना ज्ञान था या सभी वैदेशिक लेखकों को रहा करता है। इसीलिए ऐसी दशा में वे लोग जिस किसी भारत समाज के विषय में जो कुछ न लिख डालें उसी में आश्‍चर्य है और केवल उन्हीं के आधार पर समाज के तत्व का निर्णय करना कितनी भूल है। हाँ, यदि किसी समाज के ही मनुष्य ने, जो उसके विषय में पूर्ण परिचित हो, लिखा हो तो उसके अनुसार वैदेशिक के भी लेख मानने में कोई हर्ज नहीं है। भला यह कितनी बड़ी भूल है कि जब आज तक दोनों तरफ बराबर सैकड़ों लड़के-लड़कियों के विवाह हो रहे हैं, तो केवल चंद ही बतलाना, सो भी बीते हुए, न कि वर्तमान? उसी मनुष्य गणना की रिपोर्ट में पूर्वोक्‍त ही स्थान में जो यह लिखा गया है कि :
The name Bhumihar Brahman has been recognized by Government, and they are now returned as Babhan (Bhumihar Brahman). It was however, impossible to have given them a name and status not recognized by their co-religionisto, and also because in the returns they would have been merged in the main body of Brahmans, and all record of them as a community would have been lost.
अर्थात 'गवर्नमेंट ने भूमिहार ब्राह्मण नाम को स्वीकार किया है। इसलिए अब ये लोग 'बाभन (भूमिहार ब्राह्मण)' इस प्रकार से रिपोर्ट वगैरह में लिखे जाते हैं। इन लोगों को ऐसा नाम (ब्राह्मण) और ऐसा स्थान देना असंभव था, जिसे कि इनके सधर्म (समान धर्मवाले ब्राह्मण, क्षत्रियादि) स्वीकार नहीं करते। और ऐसा करने से, अर्थात केवल 'ब्राह्मण' लिख देने से, ब्राह्मणों में ही वे लोग भी मिल जाते और इनके एक पृथक समाज होने की सब बात ही लुप्त हो जाती।' इससे पहला कारण जो यह दिखलाया गया है कि इन लोगों (भूमिहार ब्राह्मणों) को ब्राह्मण-क्षत्रियादि ब्राह्मण नाम देना स्वीकार नहीं करते, वह कहाँ तक सत्य है इसके लिए विशेष कहने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब सभी ब्राह्मणों के साथ इन लोगों से विवाह सम्बन्ध और खान-पान मिले हुए हैं, तो हम नहीं समझते कि इससे अधिक ब्राह्मण स्वीकार करना किसको साहब बहादुर ने समझा है। क्या अन्य ब्राह्मणों में भी एक-दूसरे को ब्राह्मण स्वीकार करने के लिए सिवाय खान-पान और विवाह सम्बन्ध के और भी कोई रजिस्टरी वगैरह की जाती है? क्या कोई ब्राह्मण अपने से भिन्न क्षत्रियादि के साथ विवाह वगैरह करते देखा गया है?
बल्कि उधर तो मैथिल केवल मैथिल को ही ऐसा स्वीकार करता है ऐसे ही अन्य ब्राह्मण भी, परंतु इधर तो सभी ब्राह्मण स्वीकार कर रहे हैं। इसलिए इससे बढ़ कर और क्या होना चाहिए? क्योंकि एक काम केवल बातों से ही किया जाता (Theoratical) है, परंतु दूसरा कार्य रूप में परिणत (Practical) कर के दिखलाया जाता है। उनमें से द्वितीय पक्ष को ही श्रेष्ठ मानते हैं और इन अयाचक दलवाले ब्राह्मणों के विषय में दूसरा ही पक्ष है, इसे सिद्ध ही कर चुके हैं।

साहिर लुधियानवी ,जावेद अख्तर और 200 रूपये

 एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे ।  ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक़्त लेकर उनसे...