.सृजन -मूल्यांकन

देव औरंगाबाद बिहार 824202 साहित्य कला संस्कृति के रूप में विलक्ष्ण इलाका है. देव स्टेट के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर अपने जमाने में मूक सिनेमा तक बनाए। ढेरों नाटकों का लेखन अभिनय औऱ मंचन तक किया. इनको बिहार में हिंदी सिनेमा के जनक की तरह देखा गया. कामता प्रसाद सिंह काम और इनकi पुत्र दिवंगत शंकर दयाल सिंह के रचनात्मक प्रतिभा की गूंज दुनिया भर में है। प्रदीप कुमार रौशन और बिनोद कुमार गौहर की भी इलाके में काफी धूम रही है.। देव धरती के इन कलम के राजकुमारों की याद में .समर्पित हैं ब्लॉग.

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

करवा चौथी महिलाओं के नाम





गिरीश पंकज

(करवा चौथ के पावन-पर्व पर संस्कृति का सम्मान करने
वाली दुनिया की समस्त स्त्रियों को समर्पित) 



त्याग है नारी, प्यार है नारी / ईश्वर का उपहार है नारी
पार लगाती जो दुनिया को / वो अद्भुत पतवार है नारी
देह नहीं है ये नादानो / हम सब पे उपकार है नारी
सबका दुःख बन जाता उसका / एक महा किरदार है नारी
बिन इसके घर भूत का डेरा / घर के गले का हार है नारी
मुक्ति जहां से हो कर मिलती / वो इक पावन द्वार है नारी
इस पर अत्याचार न करना / देवी का अवतार है नारी
बिगड़ी सदा बनाने वाली / जादू का संसार है नारी
लगे फूल -सी कोमल है पर / वक्त पड़े तलवार है नारी
उसे हराना मुश्किल है पर / खुद ही जाती हार है नारी
एक पंक्ति में बोलूं तो फिर / धरती का श्रृंगार है नारी
तेरे कारण दुनिया सुन्दर / बार-बार आभार है नारी
पुरुष सदा पत्थर है 'पंकज' / पर निर्मल जलधार है नारी
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सुभद्राकुमारी चौहान







सुभद्राकुमारी चौहान
www.kavitakosh.org/subhadrakumari
Subhadra-kumari-chauhan.jpg
जन्म: 16 अगस्त 1904
निधन: 15 फ़रवरी 1948
जन्म स्थानग्राम निहालपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
त्रिधारा, ‘मुकुल’ (कविता-संग्रह), ‘बिखरे मोती’ (कहानी संग्रह), ‘झांसी की रानी’ इनकी बहुचर्चित रचना है।
विविध‘मुकुल’ तथा ‘बिखरे मोती’ पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार।
जीवनीसुभद्राकुमारी चौहान / परिचय
Globe-Connected-32x32.pngकविता कोश पता
www.kavitakosh.org/subhadrakumari

कविताएँ

  • झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मेरा नया बचपन / सुभद्राकुमारी चौहान
  • जलियाँवाला बाग में बसंत / सुभद्राकुमारी चौहान
  • साध / सुभद्राकुमारी चौहान
  • यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान
  • ठुकरा दो या प्यार करो / सुभद्राकुमारी चौहान
  • कोयल / सुभद्राकुमारी चौहान
  • पानी और धूप / सुभद्राकुमारी चौहान
  • वीरों का कैसा हो वसंत / सुभद्राकुमारी चौहान
  • खिलौनेवाला / सुभद्राकुमारी चौहान
  • उल्लास / सुभद्राकुमारी चौहान
  • झिलमिल तारे / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मधुमय प्याली / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मेरा जीवन / सुभद्राकुमारी चौहान
  • झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान
  • इसका रोना / सुभद्राकुमारी चौहान
  • नीम / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मुरझाया फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
  • फूल के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान
  • चलते समय / सुभद्राकुमारी चौहान
  • कलह-कारण / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मेरे पथिक / सुभद्राकुमारी चौहान
  • जीवन-फूल / सुभद्राकुमारी चौहान
  • भ्रम / सुभद्राकुमारी चौहान
  • समर्पण / सुभद्राकुमारी चौहान
  • चिंता / सुभद्राकुमारी चौहान
  • प्रियतम से / सुभद्राकुमारी चौहान
  • प्रथम दर्शन / सुभद्राकुमारी चौहान
  • परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान
  • अनोखा दान / सुभद्राकुमारी चौहान
  • उपेक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान
  • तुम / सुभद्राकुमारी चौहान
  • व्याकुल चाह / सुभद्राकुमारी चौहान
  • आराधना / सुभद्राकुमारी चौहान
  • पूछो / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मेरा गीत / सुभद्राकुमारी चौहान
  • वेदना / सुभद्राकुमारी चौहान
  • विदा / सुभद्राकुमारी चौहान
  • प्रतीक्षा / सुभद्राकुमारी चौहान
  • विजयी मयूर / सुभद्राकुमारी चौहान
  • स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान
  • बिदाई / सुभद्राकुमारी चौहान
  • मेरी टेक / सुभद्राकुमारी चौहान
  • प्रभु तुम मेरे मन की जानो / सुभद्राकुमारी चौहान
  • बालिका का परिचय / सुभद्राकुमारी चौहान
  • स्मृतियाँ / सुभद्राकुमारी चौहान
  • सभा का खेल / सुभद्राकुमारी चौहान
श्रेणियाँ:
  • रचनाकार
  • "स" अक्षर से शुरु होने वाले नाम
  • 16 अगस्त को जन्म
  • अगस्त में जन्म
  • 1904 में जन्म
  • दशक 1900-1909 में जन्म
  • उत्तर प्रदेश
  • महिला रचनाकार
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श्याम नारायण पाण्डेय






चित्र:श्याम940.jpg
वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991)
श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे।

अनुक्रम

  • 1 जीवनी
  • 2 कृतियाँ
  • 3 उदाहरण
  • 4 सन्दर्भ
  • 5 इन्हें भी देखें
  • 6 बाहरी कड़ियाँ

जीवनी

श्याम नारायण पाण्डेय का जन्म श्रावण कृष्ण पंचमी सम्वत् 1964, तदनुसार ईसवी सन् 1907 में ग्राम डुमराँव, मऊ, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। आरम्भिक शिक्षा के बाद आप संस्कृत अध्ययन के लिए काशी चले आये। यहीं रहकर काशी विद्यापीठ से आपने हिन्दी में साहित्याचार्य किया। द्रुमगाँव (डुमराँव) में अपने घर पर रहते हुए ईसवी सन् 1991 में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। मृत्यु से तीन वर्ष पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर में अभिलेखागार हेतु उनकी आवाज में उनके जीवन के संस्मरण रिकार्ड किये गये।

कृतियाँ

श्याम नारायण पाण्डेय जी ने चार उत्कृष्ट महाकाव्य रचे, जिनमें हल्दीघाटी (काव्य) सर्वाधिक लोकप्रिय और जौहर (काव्य) विशेष चर्चित हुए।
हल्दीघाटी में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन और जौहर में चित्तौड की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। हल्दीघाटी के नाम से विख्यात राजस्थान की इस ऐतिहासिक वीर भूमि के लोकप्रिय नाम पर लिखे गये हल्दीघाटी महाकाव्य पर उनको उस समय का सर्वश्रेष्ठ सम्मान देव पुरस्कार प्राप्त हुआ था। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण आप कवि सम्मेलन के मंचों पर अत्यधिक लोकप्रिय हुए। उनकी आवाज मरते दम तक चौरासी वर्ष की आयु में भी वैसी ही कड़कदार और प्रभावशाली बनी रही जैसी युवावस्था में थी।
उनका लिखा हुआ महाकाव्य जौहर भी अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। उन्होंने यह महाकाव्य चित्तौड की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित करने के उद्देश्य को लेकर लिखा था[1]।.
  • हल्दीघाटी
  • जौहर
  • तुमुल
  • रूपान्तर
  • आरती
  • जय-पराजय
  • गोरा-वध
  • जय हनुमान
  • शिवाजी (महाकाव्य)

उदाहरण

श्याम नारायण पाण्डेय की वीर रस शैली का एक उदाहरण उनके प्रसिद्ध खण्डकाव्य जय हनुमान से-
ज्वलल्ललाट पर अदम्य तेज वर्तमान था,
प्रचण्ड मान-भंग-जन्य क्रोध वर्धमान था,
ज्वलन्त पुच्छ-बाहु व्योम में उछालते हुए,
अराति पर असह्य अग्नि-दृष्टि डालते हुए,
उठे कि दिग-दिगन्त में अवर्ण्य ज्योति छा गयी,
कपीश के शरीर में प्रभा स्वयं समा गयी।

सन्दर्भ


  1. Das, Sisir Kumar, "A Chronology of Literary Events / 1911–1956", in Das, Sisir Kumar and various, History of Indian Literature: 1911-1956: struggle for freedom: triumph and tragedy, Volume 2, 1995, published by Sahitya Akademi, ISBN 978-81-7201-798-9, retrieved via Google Books on December 23, 2008

इन्हें भी देखें

  • कवि सम्मेलन

बाहरी कड़ियाँ

  • हल्दीघाटी - यहाँ सभी सर्ग उपलब्ध हैं।
  • भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य
  • हल्दीघाटी का युद्ध और पुस्तक के अंश
  • श्यामनारायण पांडेय (भारतकोश)
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  • वा
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भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के कवि

सुभद्रा कुमारी चौहान । रामधारी सिंह दिनकर । मैथिलीशरण गुप्त । श्याम नारायण पाण्डेय । राम प्रसाद 'बिस्मिल' । माखनलाल चतुर्वेदी । श्रीकृष्ण सरल
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कार्लो गोल्दोनी










  
कार्लो गोल्दोनी
कार्लो गोल्दोनी की अर्द्ध प्रतिमा
पूरा नाम कार्लो ओसवाल्दो गोल्दोनी
जन्म 25 फ़रवरी, 1707
जन्म भूमि वेनिस
मृत्यु 6 फ़रवरी, 1793
मृत्यु स्थान पेरिस, फ़्राँस
पति/पत्नी निकोलेत्ता कोनिओ
कर्म भूमि वेनिस और पेरिस
मुख्य रचनाएँ 'ला वेदोवा स्कल्त्रा', 'बोत्तेगा देल कफ्फे', 'लोकांदिएरा', 'इन्नमोरती', 'ई रूस्तेगी', 'ले स्मानीए देल्ला वीसेज्जातूराद' आदि।
भाषा ग्रीक, लैटिन, इतालवी तथा फ़्राँसीसी।
प्रसिद्धि नाटककार
नागरिकता इटेलियन
अन्य जानकारी 18वीं शती के इतालवी साहित्यिक जगत का बहुत ही रोचक चित्रण कार्लो गोल्दोनी के संस्मरणों में मिलता है। अपने जीवन की घटनाओं का बड़े निरपेक्ष ढंग से इन्होंने वर्णन किया है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कार्लो ओसवाल्दो गोल्दोनी (अंग्रेज़ी: Carlo Osvaldo Goldoni ; जन्म- 25 फ़रवरी, 1707, वेनिस; मृत्यु- 6 फ़रवरी, 1793, पेरिस, फ़्राँस) प्रसिद्ध इतालवी नाटककार थे। आरंभ से ही गोल्दोनी की रुचि रंगमंच की ओर रही थी। ग्रीक, लैटिन, इतालवी तथा फ़्राँसीसी नाट्य साहित्यों तथा नाट्य शास्त्रों का इन्होंने विस्तृत अध्ययन किया था। उनकी प्रवृत्ति बहिर्मुखी थी। कार्लो गोल्दोनी ने शताधिक नाटक कृतियाँ लिखीं, जिनमें तत्कालीन समाज, विशेषकर वेनिस के जीवन के बड़े ही सटीक चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। 18वीं शती के इतालवी साहित्यिक जगत् का बहुत ही रोचक चित्रण गोल्दोनी के संस्मरणों में मिलता है।[1]

जन्म तथा शिक्षा

कार्लो गोल्दोनी का जन्म 25 फ़रवरी, 1707 ई. में वेनिस में हुआ था। इन्होंने पेरुज्या, रमिनी में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की तथा पादोवा में क़ानून की उपाधि प्राप्त कर वेनिस में वकालत करना शुरु किया।

लेखन कार्य

आरंभ से ही कार्लो गोल्दोनी की रुचि रंगमंच की ओर थी। 13 वर्ष की अवस्था में इन्होंने 'सोरेल्लीना दी दोन पीलोने' (दोन पीलोने की बहन) नामक नाट्य कृति के अभिनय में भाग लिया। ग्रीक, लैटिन, इतालवी तथा फ़्राँसीसी नाट्य साहित्यों तथा नाट्य शास्त्रों का इन्होंने विस्तृत अध्ययन किया। सन 1732 में इन्होंने 'अमालासूंता', गतिनाट्य कृति लिखी और फिर मिलान, वेरोना और वेनिस के रंगमंचों पर अभिनीत किए जाने के लिये अनेक प्रहसन तथा नाटक लिखे।[1]

प्रसिद्धि

कार्लो गोल्दोनी धीरे-धीरे दर्शकों की मनोवृत्ति को परिष्कृत करने का प्रयत्न भी कर रहे थे। 'मोमोला कोर्तेसान' (1738) तथा 'दोन्ना दी गारबोर्वो' (1743) नामक कृतियों ने इन्हें प्रसिद्ध कर दिया और 'जीरोसामो मेदेबाक' नामक नाटक मंडली ने नाट्य कृतियाँ लिखने के लिये इन्हें नौकर रख लिया। गोल्दोनी इस बीच काफ़ी प्रसिद्धि पा चुके थे, किंतु उनका विरोध करने वाले भी कम नहीं थे। उनसे तंग आकर 1762 ई. में ये पेरिस चले गए।

संस्मरण लेखन

पेरिस में इतालवी नाट्य कृतियों के अभिनय के लिये कार्लो गोल्दोनी को आमंत्रित किया गया था। अथक प्रयास के फलस्वरूप पेरिस के दर्शक भी गोल्दोनी के प्रशंसक बन गए। वहीं 1771 ई. में गोल्दोनी में फ़्राँसीसी भाषा में 'बूर्रू ब्यप्रे' नाटक लिखा और 76 वर्ष की अवस्था में फ्रेंच में ही अपने जीवन संस्मरण लिखे। 18वीं शती के इतालवी साहित्यिक जगत का बहुत ही रोचक चित्रण गोल्दोनी के संस्मरणों में मिलता है। अपने जीवन की घटनाओं का बड़े निरपेक्ष ढंग से इन्होंने वर्णन किया है।

नाटक

कार्लो गोल्दोनी की प्रवृत्ति बहिर्मुखी थी। उन्होंने शताधिक नाटक कृतियाँ लिखीं, जिनमें तत्कालीन समाज, विशेषकर वेनिस के जीवन के बड़े ही सटीक चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। नाटकों में सुधार की दृष्टि से भी गोल्दोनी का स्थान महत्वपूर्ण है। नाटकों के कृत्रिम तथा कुरुचि पूर्ण रूप को उन्होंने सँवारा। इनकी प्रारंभिक कृतियाँ दु:ख-सुख-मिश्रित हैं- 'बेलिसारियो', 'रोसमुंद्रा', 'दोन ज्योवान्नी' नाटक, कुछ प्रहसन- 'वास्न', 'ओर्रोते', 'जेरमोंदो' आदि, कुछ 'इंतरमेज्जो'[2] 'ला पेल्डारीना', 'ला पुपील्ला' आदि हैं।[1]

प्रमुख कृतियाँ

इनकी महत्वपूर्ण नाटक कृतियों का काल सन 1748 ई. के बाद प्रारंभ होता है- 'ला वेदोवा स्कल्त्रा'[3], 'बोत्तेगा देल कफ्फे'[4], 'इल वूज्यार्दो'[5], रचनाओं में रूढ़िवादी कल्पित निष्प्राण पात्रों के स्थान पर वास्तविक जीवन को प्रस्तुत करने का प्रयत्न लक्षित होता है। 'बुऔना मोल्ये'[6], 'पेत्तेगोलेज्जी देल्ले दोन्ने'[7] जैसी कृतियों में गोल्दोनी ने वास्तविक जीवन के दृश्य चित्रित किए हैं। उनकी सुंदरतम कृतियाँ हैं-
  1. 'लोकांदिएरा'[8]
  2. 'इन्नमोरती'[9]
  3. 'ई रूस्तेगी'
  4. 'कासा नोवा'[10]
  5. 'बारूफ्फे क्योज्जोत्ते'[11]

पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण

पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण तथा वातावरण कार्लो गोल्दोनी के सूक्ष्म जीवन अध्ययन का परिचायक है। इन्होंने यात्रा के अनुभवों को लेकर 'ले स्मानीए देल्ला वीसेज्जातूराद्' (प्रवास की चोटें) जैसी कृतियाँ भी लिखी हैं। अंत में दुखित होकर जब गोल्दोनी अपने जन्म स्थान वेनिस को छोड़कर पेरिस जा रहे थे तो मानो विदा लेने के लिये उन्होंने रूपक नाट्य 'ऊना देल्ले उल्तिमे सेरे देल कानेंवाले दि वेनेत्सिया'[12] लिखी। गोल्दोनी ने वेनिस की बोली को साहित्यिक रूप प्रदान किया। वेनिस की बोली का ही उन्होंने अपनी कृतियों में प्रयोग किया और इस प्रकार अलग साहित्यिक शैली का निर्माण किया। इतालीय नाटक की अनवरत स्थिति को सुधारने का श्रेय कार्लो गोल्दोनी को प्राप्त है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार

प्रारम्भिक



माध्यमिक



पूर्णता



शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ



  • कार्लो गोल्दोनी (हिन्दी) भारतखोज।

    1. वेनिस के कानेंवाल की अंतिम संध्याओं में से एक

    संबंधित लेख

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    नाटककार

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    जयशंकर प्रसाद · मोहन राकेश · बादल सरकार · भवभूति · रबीन्द्रनाथ ठाकुर · रामकुमार वर्मा · हर्षवर्धन · विजय तेंदुलकर · गिरीश कर्नाड · भिखारी ठाकुर · हबीब तनवीर · अण्णा साहेब किर्लोस्कर · सत्यदेव दुबे · के. वी. सुबन्ना · सफ़दर हाशमी · भुवनेश्वर · सर्वेश्वर दयाल सक्सेना · विश्वंभर 'मानव' · रतन थियम · जगदीशचन्द्र माथुर

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    • जीवनी साहित्य
    • प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश
    • चरित कोश


  • दो अंको के बीच में अभिनीत होने वाली संक्षिप्त नाटक कृति

  • चालाक विधवा

  • कॉफी की दुकान

  • झूठा

  • अच्छी पत्नी

  • औरतों के झगड़े

  • होटल वाली

  • प्रेमी

  • नया घर

  • मछुओं के झगड़े

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    सुभद्रा कुमारी चौहान


      

    सुभद्रा कुमारी चौहान
    Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg
    पूरा नाम सुभद्रा कुमारी चौहान
    जन्म 16 अगस्त, 1904
    जन्म भूमि निहालपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
    मृत्यु 15 फरवरी, 1948
    मृत्यु स्थान सड़क दुर्घटना (नागपुर - जबलपुर के मध्य)
    अभिभावक ठाकुर रामनाथ सिंह
    पति/पत्नी ठाकुर लक्ष्मण सिंह
    संतान सुधा चौहान, अजय चौहान, विजय चौहान, अशोक चौहानत और ममता चौहान
    कर्म-क्षेत्र लेखक
    मुख्य रचनाएँ 'मुकुल', 'झाँसी की रानी', बिखरे मोती आदि
    विषय सामाजिक, देशप्रेम
    भाषा हिन्दी
    पुरस्कार-उपाधि सेकसरिया पुरस्कार
    प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, कहानीकार
    विशेष योगदान राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में स्त्रियों में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं।
    नागरिकता भारतीय
    अन्य जानकारी भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रॅल, 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उन का नाम दिया है।[1]
    अद्यतन‎ 11:59, 24 मार्च 2011 (IST)
    इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
    सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ
    कविता सूची
    • कोयल -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • आराधना -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • उल्लास -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • अनोखा दान -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • उपेक्षा -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • कलह-कारण -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • इसका रोना -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • चलते समय -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • चिंता -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • जीवन-फूल -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • खिलौनेवाला -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • तुम -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • झांसी की रानी -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • झाँसी की रानी की समाधि पर -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • ठुकरा दो या प्यार करो -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • झिलमिल तारे -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • परिचय -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • पानी और धूप -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • पूछो -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • नीम -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • प्रथम दर्शन -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • प्रभु तुम मेरे मन की जानो -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • प्रतीक्षा -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • प्रियतम से -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • फूल के प्रति -सुभद्रा कुमारी चौहान

    • मेरी टेक -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • भ्रम -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मुरझाया फूल -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मेरा गीत -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मेरे पथिक -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • बिदाई -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • विजयी मयूर -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मेरा जीवन -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मेरा नया बचपन -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • विदा -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • मधुमय प्याली -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • यह कदम्ब का पेड़ -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • यह कदम्ब का पेड़-2 -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • वीरों का हो कैसा वसन्त -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • वेदना -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • साध -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • स्वदेश के प्रति -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • समर्पण -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • व्याकुल चाह -सुभद्रा कुमारी चौहान
    • जलियाँवाला बाग में बसंत -सुभद्रा कुमारी चौहान


























     सुभद्रा कुमारी चौहान ( Subhadra Kumari Chauhan,)
    जन्म: 16 अगस्त, 1904 - मृत्यु: 15 फरवरी, 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं।
    'चमक उठी सन् सत्तावन में
    वह तलवार पुरानी थी
    बुंदेले हरबोलों के मुँह
    हमने सुनी कहानी थी
    ख़ूब लड़ी मरदानी वह तो
    झाँसी वाली रानी थी।[2]
    वीर रस से ओत प्रोत इन पंक्तियों की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को 'राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला' का विरुद दिया गया था। यह वह कविता है जो जन-जन का कंठहार बनी। कविता में भाषा का ऐसा ऋजु प्रवाह मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा जी के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। इनकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी ऊर्जा से भर सकता है।[3] ऐसा नहीं कि कविता केवल सामान्य जन के लिए ग्राह्य है, यदि काव्य-रसिक उसमें काव्यत्व खोजना चाहें तो वह भी है -
    हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में।
    लक्ष्मीबाई की वीरता का राजमहलों की समृद्धि में आना जैसा एक मणिकांचन योग था, कदाचित उसके लिए 'वीरता और वैभव की सगाई' से उपयुक्त प्रयोग दूसरा नहीं हो सकता था। स्वतंत्रता संग्राम के समय के जो अगणित कविताएँ लिखी गईं, उनमें इस कविता और माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा' की पुष्प की अभिलाषा का अनुपम स्थान है। सुभद्रा जी का नाम मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन की यशस्वी परम्परा में आदर के साथ लिया जाता है। वह बीसवीं शताब्दी की सर्वाधिक यशस्वी और प्रसिद्ध कवयित्रियों में अग्रणी हैं।

    जीवन परिचय

    सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म नागपंचमी के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'ठाकुर रामनाथ सिंह' था। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। आपका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता। 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में आपने शिक्षा प्राप्त की। 1913 में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई थी। यह कविता 'सुभद्राकुँवरि' के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी। सुभद्रा चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उसको इनाम मिलता था। सुभद्रा अत्यंत शीघ्र कविता लिख डालती थी, मानो उनको कोई प्रयास ही न करना पड़ता हो। स्कूल के काम की कविताएँ तो वह साधारणतया घर से आते-जाते तांगे में लिख लेती थी। इसी कविता की रचना करने के कारण से स्कूल में उसकी बड़ी प्रसिद्धि थी।

    बचपन

    सुभद्रा और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। दोनों ने एक-दूसरे की कीर्ति से सुख पाया। सुभद्रा की पढ़ाई नवीं कक्षा के बाद छूट गई। शिक्षा समाप्त करने के बाद नवलपुर के सुप्रसिद्ध 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ आपका विवाह हो गया।[4] बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि थी। प्रथम काव्य रचना आपने 15 वर्ष की आयु में ही लिखी थी। सुभद्रा कुमारी का स्वभाव बचपन से ही दबंग, बहादुर व विद्रोही था। वह बचपन से ही अशिक्षा, अंधविश्वास, जाति आदि रूढ़ियों के विरुद्ध लडीं।

    विवाह

    1919 ई. में उनका विवाह 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' से हुआ, विवाह के पश्चात वे जबलपुर में रहने लगीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हे-नन्हे बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति की सेवा की। देश के लिए कर्तव्य और समाज की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ की बलि चढ़ा दी-
    न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।
    सुभद्रा जी ने बहुत पहले अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों, धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयत्नों को रेखांकित कर दिया था-
    मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी
    पूजा-पाठ, ध्यान जप-तप है घट-घट वासी यह मेरी।
    कृष्णचंद्र की क्रीड़ाओं को, अपने आँगन में देखो।
    कौशल्या के मातृमोद को, अपने ही मन में लेखो।
    प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास
    जीव दया जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास।
    जबलपुर से माखनलाल चतुर्वेदी 'कर्मवीर' पत्र निकालते थे। उसमें लक्ष्मण सिंह को नौकरी मिल गईं। सुभद्रा भी उनके साथ जबलपुर आ गईं। सुभद्रा जी सास के अनुशासन में रहकर सुघड़ गृहिणी बनकर संतुष्ट नहीं थीं। उनके भीतर जो तेज था, काम करने का उत्साह था, कुछ नया करने की जो लगन थी, उसके लिए घर की सीमा बहुत छोटी थी। सुभद्रा जी में लिखने की प्रतिभा थी और अब पति के रुप में उन्हें ऐसा व्यक्ति मिला था जिसने उनकी प्रतिभा को पनपने के लिए उचित वातावरण देने का प्रयत्न किया।

    स्वतंत्रता में योगदान

    1920 - 21 में सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और घर-घर में कांग्रेस का संदेश पहुँचाया। त्याग और सादगी में सुभद्रा जी सफ़ेद खादी की बिना किनारी धोती पहनती थीं। गहनों और कपड़ों का बहुत शौक़ होते हुए भी वह चूड़ी और बिंदी का प्रयोग नहीं करती थी। उन को सादा वेशभूषा में देख कर बापू ने सुभद्रा जी से पूछ ही लिया, 'बेन! तुम्हारा ब्याह हो गया है?' सुभद्रा ने कहा, 'हाँ!' और फिर उत्साह से बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आए हैं। इसको सुनकर बा और बापू जहाँ आश्वस्त हुए वहाँ कुछ नाराज़ भी हुए। बापू ने सुभद्रा को डाँटा, 'तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है और तुमने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनीं? जाओ, कल किनारे वाली साड़ी पहनकर आना।' सुभद्रा जी के सहज स्नेही मन और निश्छल स्वभाव का जादू सभी पर चलता था। उनका जीवन प्रेम से युक्त था और निरंतर निर्मल प्यार बाँटकर भी ख़ाली नहीं होता था।
    1922 का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख लोकल सरोजिनी कहकर किया था। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं।
    लक्ष्मणसिंह चौहान जैसे जीवनसाथी और माखनलाल चतुर्वेदी जैसा पथ-प्रदर्शक पाकर वह स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल भी गईं। काफ़ी दिनों तक मध्य प्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। गांधी जी की असहयोग की पुकार को पूरा देश सुन रहा था। सुभद्रा ने भी स्कूल से बाहर आकर पूरे मन-प्राण से असहयोग आंदोलन में अपने को दो रूपों में झोंक दिया -
    1. देश - सेविका के रूप में
    2. देशभक्त कवि के रूप में।
    ‘जलियांवाला बाग,’ 1917 के नृशंस हत्याकांड से उनके मन पर गहरा आघात लगा। उन्होंने तीन आग्नेय कविताएँ लिखीं। ‘जलियाँवाले बाग़ में वसंत’ में उन्होंने लिखा-
    परिमलहीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है
    हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
    आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना
    यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
    कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर
    कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।[5]
    सन 1920 में जब चारों ओर गांधी जी के नेतृत्व की धूम थी, तो उनके आह्वान पर दोनों पति-पत्नि स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए कटिबद्ध हो गए। उनकी कविताई इसीलिए आज़ादी की आग से ज्वालामयी बन गई है।[6]

    रचनाएँ

    उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की। किसी कवि की कोई कविता इतनी अधिक लोकप्रिय हो जाती है कि शेष कविताई प्रायः गौण होकर रह जाती है। बच्चन की 'मधुशाला' और सुभद्रा जी की इस कविता के समय यही हुआ। यदि केवल लोकप्रियता की दृष्टि से ही विस्तार करें तो उनकी कविता पुस्तक 'मुकुल' 1930 के छह संस्करण उनके जीवन काल में ही हो जाना कोई सामान्य बात नहीं है। इनका पहला काव्य-संग्रह 'मुकुल' 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ 'त्रिधारा' में प्रकाशित हुई हैं। 'झाँसी की रानी' इनकी बहुचर्चित रचना है। राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-
    1. 'बिखरे मोती (1932 )
    2. उन्मादिनी (1934)
    3. सीधे-सादे चित्र (1947 )।
    इन कथा संग्रहों में कुल 38 कहानियाँ (क्रमशः पंद्रह, नौ और चौदह)। सुभद्रा जी की समकालीन स्त्री-कथाकारों की संख्या अधिक नहीं थीं।

    स्त्रियों की प्रेरणा

    राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। स्त्रियों को सम्बोधन करती यह कविता देखिए--
    "सबल पुरुष यदि भीरु बनें, तो हमको दे वरदान सखी।
    अबलाएँ उठ पड़ें देश में, करें युद्ध घमासान सखी।
    पंद्रह कोटि असहयोगिनियाँ, दहला दें ब्रह्मांड सखी।
    भारत लक्ष्मी लौटाने को , रच दें लंका काण्ड सखी।।"
    असहयोग आन्दोलन के लिए यह आह्वान इस शैली में तब हुआ है, जब स्त्री सशक्तीकरण का ऐसा अधिक प्रभाव नहीं था।
    Blockquote-open.gif 1922 का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख लोकल सरोजिनी कहकर किया था। Blockquote-close.gif

    देशप्रेम

    वीरों का कैसा हो वसन्त' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की सधि मापर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।

    राष्ट्रभाषा प्रेम

    'राष्ट्रभाषा' के प्रति भी उनका गहरा सरोकार है, जिसकी सजग अभिव्यक्ति 'मातृ मन्दिर में', नामक कविता में हुई है, यह उनकी राष्ट्रभाषा के उत्कर्ष के लिए चिन्ता है -
    'उस हिन्दू जन की गरविनी
    हिन्दी प्यारी हिन्दी का
    प्यारे भारतवर्ष कृष्ण की
    उस प्यारी कालिन्दी का
    है उसका ही समारोह यह
    उसका ही उत्सव प्यारा
    मैं आश्चर्य भरी आंखों से
    देख रही हूँ यह सारा
    जिस प्रकार कंगाल बालिका
    अपनी माँ धनहीता को
    टुकड़ों की मोहताज़ आज तक
    दुखिनी की उस दीना को"

    काव्य में प्रेमानुभुति

    Blockquote-open.gif सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। Blockquote-close.gif

    - गजानन माधव मुक्तिबोध
    तरल जीवनानुभुतियों से उपजी सुभद्रा कुमारी चौहान कि कविता का प्रेम दूसरा आधार-स्तम्भ है। यह प्रेम द्विमुखी है। शैशव - बचपन से प्रेम और दूसरा दाम्पत्य प्रेम, 'तीसरे' की उपस्थिति का यहाँ पर सवाल ही नहीं है।

    बचपन से प्रेम

    शैशव से प्रेम पर जितनी सुन्दर कविताएँ उन्होंने लिखी हैं, भक्तिकाल के बाद वे अतुलनीय हैं। निर्दोष और अल्हड़ बचपन को जिस प्रकार स्मृति में बसाकर उन्होंने मधुरता से अभिव्यक्त किया है, वे कभी पुरानी न पड़ने वाली कविता है। उदाहरणार्थ -
    "बार-बार आती है मुझको
    मधुर याद बचपन तेरी",
    "आ जा बचपन, एक बार फिर
     दे दो अपनी निर्मल शान्ति
    व्याकुल व्यथा मिटाने वाली
    वह अपनी प्राकृत विश्रांति।"
    अपनी संतति में मनुष्य किस प्रकार 'मेरा नया बचपन कविता' कविता में मार्मिक अभिव्यक्ति पाता है-
    "मैं बचपन को बुला रही थी
    बोल उठी बिटिया मेरी
    नंदन वन सी फूल उठी
    यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।"
    शैशव सम्बन्धी इन कविताओं की एक और बहुत बड़ी विशेषता है, कि ये 'बिटिया प्रधान' कविताएँ हैं - कन्या भ्रूण-हत्या की बात तो हम आज ज़ोर-शोर से कर रहे हैं, किन्तु बहुत ही चुपचाप, बिना मुखरता के, सुभद्रा इस विचार को सहजता से व्यक्त करती हैं। यहाँ 'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो' का भाव नहीं, अपितु संसार का समस्त सुख बेटी में देखा गया है। 'बालिका का परिचय' बिटिया के महत्व को इस प्रकार प्रस्थापित करती है-
    "दीपशिखा है अंधकार की
    घनी घटा की उजियाली
    ऊषा है यह कमल-भृंग की
    है पतझड़ की हरियाली।"
    कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पुत्री का कन्यादान करने से मना कर दिया कि 'कन्या कोई वस्तु नहीं कि उसका दान कर दिया जाए।' स्त्री-स्वतंत्र्य का कितना बड़ा पग था वह।

    दाम्पत्य प्रेम

    प्रेम की कविताओं में जीवन-साथी के प्रति अटूट प्रेम, निष्ठा एवं रागात्मकता के दर्शन होते हैं- 'प्रियतम से', 'चिन्ता', 'मनुहार राधे।', 'आहत की अभिलाषा', 'प्रेम श्रृखला', 'अपराधी है कौन', 'दण्ड का भागी बनता कौन', आदि उनकी बहुत सुन्दर प्रेम कविताएँ हैं। दाम्पत्य की रूठने और मनुहार करती 'प्रियतम से' कविता का यह अंश देखिए-
    "ज़रा-ज़रा सी बातों पर
    मत रूको मेरे अभिमानी
    लो प्रसन्न हो जाओ
    ग़लती मैंने अपनी सब मानी
    मैं भूलों की भरी पिटारी
    और दया के तुम आगार
    सदा दिखाई दो तुम हँसते
    चाहे मुझसे करो न प्यार।[7]"
    अपने और प्रिय और बीच किसी 'तीसरे' की उपस्थिति उनके लिए पूर्ण असहनीय है। 'मानिनि राध', कविता में व्यक्त यह आक्रोश पूरे साहित्य में विरल है-
    "ख़ूनी भाव उठें उसके प्रति
    जो हों प्रिय का प्यारा
    उसके लिए हृदय यह मेरा
    बन जाता हत्यारा।"
    दाम्पत्य की विषम, विर्तुल और गोपन स्थितियों की जिस अकुंठ भाव से अभिव्यक्ति सुभद्रा कुमारी चौहान ने की है, वह बड़ी मार्मिक बन पड़ी है-
    "यह मर्म-कथा अपनी ही है
    औरों की नहीं सुनाऊँगी
    तुम रूठो सौ-सौ बार तुम्हें
    पैरों पड़ सदा मनाऊँगी
    बस, बहुत हो चुका, क्षमा करो
    अवसाद हटा दो अब मेरा
    खो दिया जिसे मद जिसे मद में मैंने
    लाओ, दे दो वह सब मेरा।"

    भक्ति भावना

    उनका भक्ति-भाव भी प्रबल है। पूर्ण मन से प्रभु के सम्मुख सर्वात्म समर्पण की इससे सुन्दर, सहज अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती-
    "देव! तुम्हारे कई उपासक
    कई ढंग से आते
    में बहुमूल्य भेंट व
    कई रंग की लाते हैं।"

    प्रकृति प्रेम

    प्रकृति से भी सुभद्रा कुमारी चौहान के कवि का गहन अनुराग रहा है--'नीम', 'फूल के प्रति', 'मुरझाया फूल' आदि में उन्होंने प्रकृति का चित्रण बड़े सहज भाव से किया है। इस प्रकार सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का फ़लक अत्यन्त व्यापक है, किंतु फिर भी.........खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी, उनकी अक्षय कीर्ति का ऐसा स्तम्भ है जिस पर काल की बात अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पायेगी, यह कविता जन-जन का ह्रदयहार बनी ही रहेगी।

    बाल कविताएँ


    सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में जारी डाक टिकट
    सुभद्रा जी ने मातृत्व से प्रेरित होकर बहुत सुंदर बाल कविताएँ भी लिखी हैं। यह कविताएँ भी उनकी राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत हैं। 'सभा का खेल' नामक कविता में, खेल-खेल में राष्ट्रीय भाव जगाने का प्रयास इस प्रकार किया है -
    सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे,
    जीजी आओ मैं गांधी जी, छोटे नेहरु, तुम सरोजिनी बन जाओ।
    मेरा तो सब काम लंगोटी गमछे से चल जाएगा,
    छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा।
    मोहन, लल्ली पुलिस बनेंगे,
    हम भाषण करने वाले वे लाठियाँ चलाने वाले,
    हम घायल मरने वाले।
    इस कविता में बच्चों के खेल, गांधी जी का संदेश, नेहरु जी के मन में गांधी जी के प्रति भक्ति, सरोजिनी नायडू की सांप्रदायिक एकता संबंधी विचारधारा को बड़ी खूबी से व्यक्त किया गया है। असहयोग आंदोलन के वातावरण में पले-बढे़ बच्चों के लिए ऐसे खेल स्वाभाविक थे। प्रसिद्ध हिन्दी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध ने सुभद्रा जी के राष्ट्रीय काव्य को हिन्दी में बेजोड़ माना है- कुछ विशेष अर्थों में सुभद्रा जी का राष्ट्रीय काव्य हिन्दी में बेजोड़ है। क्योंकि उन्होंने उस राष्ट्रीय आदर्श को जीवन में समाया हुआ देखा है, उसकी प्रवृत्ति अपने अंतःकरण में पाई है, अतः वह अपने समस्त जीवन-संबंधों को उसी प्रवृत्ति की प्रधानता पर आश्रित कर देती हैं, उन जीवन संबंधों को उस प्रवृत्ति के प्रकाश में चमका देती हैं।… सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। उनमें एक ओर जहाँ नारी-सुलभ गुणों का उत्कर्ष है, वहाँ वह स्वदेश प्रेम और देशाभिमान भी है जो एक क्षत्रिय नारी में होना चाहिए।

    नारी समाज का विश्वास

    सुभद्रा जी की बेटी सुधा चौहान का विवाह प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय से हुआ था जो स्वयं अच्छे लेखक थे। सुधा ने उनकी जीवनी लिखी- मिला तेज से तेज।[8] सुभद्रा जी का पूरा जीवन सक्रिय राजनीति में बीता। वह नगर की सबसे पुरानी कार्यकर्ती थीं। 1930 - 31 और 1941 - 42 में जबलपुर की आम सभाओं में स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होती थीं जो एक नया ही अनुभव था। स्त्रियों की इस जागृति के पीछे सुभद्रा जी थीं जो उनकी तैयार की गई टोली के अनवरत प्रयास का फल था। सन् 1920 से ही वे सभाओं में पर्दे का विरोध, रूढ़ियों के विरोध, छुआछूत हटाने के पक्ष में और स्त्री-शिक्षा के प्रचार के लिए बोलती रही थीं। उन सबसे बहुत-सी बातों में अलग होकर भी वह उन्हीं में से एक थीं। उनमें भारतीय नारी की सहज शील और मर्यादा थी, इस कारण उन्हें नारी समाज का पूरा विश्वास प्राप्त था। विचारों की दृढ़ता के साथ-साथ उनके स्वभाव और व्यवहार में एक लचीलापन था, जिससे भिन्न विचारों और रहन-सहन वालों के दिल में भी उन्होंने घर बना लिया था।

    कहानी लेखन

    सुभद्रा जी ने कहानी लिखना आरंभ किया क्योंकि उस समय संपादक कविताओं पर पारिश्रमिक नहीं देते थे। संपादक चाहते थे कि वह गद्य रचना करें और उसके लिए पारिश्रमिक भी देते थे। समाज की अनीतियों से जुड़ी जिस वेदना को वह अभिव्यक्त करना चाहती थीं, उसकी अभिव्यक्ति का एक मात्र माध्यम गद्य ही हो सकता था। अतः सुभद्रा जी ने कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों में देश-प्रेम के साथ-साथ समाज की विद्रूपता, अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए संघर्षरत नारी की पीड़ा और विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है। एक ही वर्ष में उन्होंने एक कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' बना डाला।[9] 'बिखरे मोती' संग्रह को छपवाने के लिए वह इलाहाबाद गईं। इस बार भी सेकसरिया पुरस्कार उन्हें ही मिला- कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' के लिए। उनकी अधिकांश कहानियाँ सत्य घटना पर आधारित हैं। देश-प्रेम के साथ-साथ उनमें गरीबों के लिए सच्ची सहानुभूति दिखती है।

    अंतिम रचना

    Blockquote-open.gif उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों। Blockquote-close.gif

    मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।
    किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥
    प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।
    यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥
    इसीलिए इस अंधकार में, मैं छिपती-छिपती आई हूँ।
    तेरे चरणों में खो जाऊँ, इतना व्याकुल मन लाई हूँ॥
    तुम देखो पहिचान सको तो तुम मेरे मन को पहिचानो।
    जग न भले ही समझे, मेरे प्रभु! मेमन की जानो॥
    • यह कविता कवियत्री की अंतिम रचना है।[10]

    दु:खद निधन

    14 फरवरी को उन्हें नागपुर में शिक्षा विभाग की मीटिंग में भाग लेने जाना था। डॉक्टर ने उन्हें रेल से न जाकर कार से जाने की सलाह दी। 15 फरवरी 1948 को दोपहर के समय वे जबलपुर के लिए वापस लौट रहीं थीं। उनका पुत्र कार चला रहा था। सुभद्रा ने देखा कि बीच सड़क पर तीन-चार मुर्गी के बच्चे आ गये थे। उन्होंने अचकचाकर पुत्र से मुर्गी के बच्चों को बचाने के लिए कहा। एकदम तेज़ी से काटने के कारण कार सड़क किनारे के पेड़ से टकरा गई। सुभद्रा जी ने ‘बेटा’ कहा और वह बेहोश हो गई। अस्पताल के सिविल सर्जन ने उन्हें मृत घोषित किया। उनका चेहरा शांत और निर्विकार था मानों गहरी नींद सो गई हों। 16 अगस्त 1904 को जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान का देहांत 15 फरवरी 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। एक संभावनापूर्ण जीवन का अंत हो गया।
    उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों। सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो ‘झाँसी वाली रानी’ की गायिका, झाँसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई। सुभद्रा जी का जाना ऐसा लगता है मानो अपने मातृत्व के दुग्ध, स्वर और आँसुओं से उन्होंने अपने नन्हे पुत्र को कठोर उत्तरदायित्व सौंपा हो। प्रभु करे, सुभद्रा जी को अपनी प्रेरणा से हमारे बीच अमर करके रखने का बल इस पीढ़ी में हो।

    सम्मान और पुरस्कार

    • इन्हें 'मुकुल' तथा 'बिखरे मोती' पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार मिले।
    • भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रॅल 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उन का नाम दिया है।[1]
    • भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।[11]
    • जबलपुर के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण 27 नवंबर 1949 को कवयित्री और उनकी बचपन की सहेली महादेवी वर्मा ने किया। प्रतिमा अनावरण के समय भदन्त आनन्द कौसल्यायन, हरिवंशराय बच्चन जी, डॉ. रामकुमार वर्मा और इलाचंद्र जोशी भी उपस्थित थे। महादेवी जी ने इस अवसर पर कहा, नदियों का कोई स्मारक नहीं होता। दीपक की लौ को सोने से मढ़ दीजिए पर इससे क्या होगा? हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तर फैलाएँ और आचरण में उसके महत्व को मानें- यही असल स्मारक है।


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    शोध


    टीका टिप्पणी और संदर्भ


  • सुभद्रा कुमारी चौहान (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) iloveindia.com/indian-heroes। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।
    1. खूब लड़ी मर्दानी का प्रतिरूप थीं सुभद्रा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।

    बाहरी कड़ियाँ

    • सुभद्राकुमारी चौहान
    • मेरा नया बचपन - सुभद्राकुमारी चौहान
    • सुभद्राकुमारी चौहान
    • झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान
    • सुभद्रा कुमारी चौहान - बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज
    • सुभद्रा कुमारी चौहान
    • सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि
    • COMMISSIONING OF COAST GUARD SHIP SUBHADRA KUMARI CHAUHAN 28 APR 2006

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  • झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी कुंज। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।

  • सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) काव्यांचल। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।

  • सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मिलनसागर। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।

  • जलियाँवाला बाग़ में बसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी कुँज। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।

  • सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) स्वराज संस्थान। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2011।

  • प्रियतम से (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2011।

  • सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।

  • सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2011।

  • प्रभु तुम मेरे मन की जानो (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2011।

  • - अक्तूबर 30, 2015 कोई टिप्पणी नहीं:
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