मंगलवार, 31 मार्च 2020

शर्त / टालस्टाय



टालस्टाय की   कहानी *- "शर्त "*

इस कहानी में दो मित्रो में आपस मे शर्त लगती है कि, यदि उसने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले,बातचीत किये एक कमरे में बिता देता है, तो उसे 10 लाख नकद वो देगा । इस बीच, यदि वो शर्त पूरी नहीं करता, तो वो हार जाएगा ।
पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है । उसे दूर एक खाली मकान में बंद करके रख दिया जाता है । बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई ।

उसने जब वहां अकेले रहना  शुरू किया तो 1 दिन 2 दिन किताबो से मन बहल गया फिर वो खीझने लगा । उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वो घण्टी बजा के संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा ।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घण्टे युगों से लगने लगे । वो चीखता, चिल्लाता लेकिन शर्त का खयाल कर बाहर किसी को नही बुलाता । वोअपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता तड़फ जाता,मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त की याद कर अपने को रोक लेता ।

कुछ दिन और बीते तो धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी।अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव नही होने लगा। वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत उसका चीखना चिल्लाना बंद हो गया।

इधर, उसके दोस्त को चिंता होने लगी कि एक माह के दिन पर दिन बीत रहे हैं पर उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा है ।
माह के अब अंतिम 2 दिन शेष थे,इधर उस दोस्त का व्यापार चौपट हो गया वो दिवालिया हो गया।उसे अब चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा ।
वो उसे गोली मारने की योजना बनाता है और उसे मारने के लिये जाता है ।

जब वो वहां पहुँचता है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहता ।
वो दोस्त शर्त के एक माह  के ठीक एक दिन पहले वहां से चला जाता है  और एक खत अपने दोस्त के नाम छोड़ जाता है ।
खत में लिखा होता है-
प्यारे दोस्त इन एक महीनों में मैंने वो चीज पा ली है जिसका कोई मोल नही चुका सकता । मैंने अकेले मे रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूं कि जितनी जरूरतें हमारी कम होती जाती हैं उतना हमें असीम आनंद और शांति मिलती है मैंने इन दिनों परमात्मा के असीम प्यार को जान लिया है । इसीलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के पैसे की कोई जरूरत नही।

       इस उद्धरण से समझें कि लॉकडाउन के इस परीक्षा की घड़ी में खुद को झुंझलाहट,चिंता और भय में न डालें,उस परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न कीजिये,
इसमे भी कोई अच्छाई होगी यह मानकर सब कुछ भगवान को समर्पण कर दें।
विश्वास मानिए अच्छा ही होगा ।
लॉक डाउन का पालन करे।स्वयं सुरक्षित रहें,परिवार,समाज और राष्ट्र को सुरक्षित रखें।
लॉक डाउन के बाद जी तोड़ मेहनत करना है। स्वयं, परिवार विद्यालय और राष्ट्र के लिए...देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए👍🏻👍🏻👍🏻

सभी को🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

महामारी / लेखक के नाम का उल्लेख नहीं है।



^महामारी^
~~~~~~
एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे
उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के
बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर
अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक
घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में
डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और
लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।
राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह
घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है । अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक
बाल्टी "पानी" डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ
भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए
के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।
दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी।
राजा समझ गया कि इसी कारण से
महामारी दूर नहीं हुई और लोग
अभी भी मर रहे हैं।
दरअसल ऐसा इसलिये हुआ
क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में
आया था वही विचार पूरे राज्य के
लोगों के मन में आ गया और किसी ने
भी कुंए में दूध नहीं डाला।
मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ
वैसा ही हमारे जीवन में
भी होता है। जब
भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे
लोगों को मिल कर करना होता है
तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह
सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और
हमारी इसी सोच की वजह से
स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।
अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।
               
                🙏Jai Mata Di🙏

कुछ कथा - कविताएं




: ए गमे दिल क्या करूँ


रवि अरोड़ा

असरार उल हक़ यानि मजाज़ लखनवी मेरे पसंदीदा शायरों में से एक हैं । बेबसी से उपजे आक्रोश को उनसे बेहतर शायद ही कोई शायर व्यक्त कर सका होगा । मशहूर फ़िल्मी गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर के मामा और जानिसार अख़्तर के साले मजाज़ साहब की एक मशहूर नज़्म है- ए गमे दिल क्या करूँ , ए वहशते दिल क्या करूँ । सन 1953 में फ़िल्म ठोकर के लिए इसे तलत महमूद ने गाकर अमर कर दिया । हताशा में आदमी क्या कुछ सोचता है और किस किस का दामन चाक कर देना चाहता है , इस  ख़याल को अदबी दुनिया में शायद यह नज़्म ही पहली बार लाती है । यह नज़्म पिछले पाँच दिनो से मेरे भी दिलो दिमाग़ पर तारी है । बेशक मजाज़ साहब की तरह मैं नहीं कह सकता कि मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने , सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने ,सैकड़ों चंगेज़ ओ नादिर हैं नज़र के सामने । मगर मन का भाव तो कुछ एसा ही है । अब देखिये न कोरोना के आतंक के चलते अपने अपने घर लौटने को सड़कों पर उतरे ये लाखों लोग क्या आसमान से आ गये ? ये लोग दिल्ली एनसीआर में आख़िर कहीं तो रहते होंगे ? इनका कोई तो मकान मालिक होगा, कोई तो होगा जिसकी नौकरी ये लोग बजाते थे , कोई तो पड़ोस में रहता होगा ? क्या एसा कोई नहीं था जो हाथ पकड़ कर इन्हें रोक लेता और कहता कि कहाँ जाते हो , संकट में हम तुम्हें यूँ अकेला कैसे छोड़ दें ?

सरकारों को गाली देते देते कभी कभी ख़ुद को गरियाने का भी मन करता है । हम किसी सरकार से कम निकम्मे हैं क्या ? सरकारें तो हमेशा भिखमँगा समाज ही चाहती हैं । एसे लोग ही सत्ता तक पहुँचते हैं जो तमाम शक्तियाँ अपनी मुट्ठी में रखने का ख़्वाब देखते हैं । समाज नपुंसक हो यही इनकी सबसे बड़ी ख़्वाहिश होती है । मगर क्या सारा दोष इन्हीं लोगों का है , हमारी क्या कोई भूमिका नहीं ? इन्हें इतनी ताक़त दी किसने ? याद तो कीजिये एक दौर में सरकारों को कोई पूछता तक नहीं था । सत्ता में कौन नेता आया और कौन गया, लोगों को पता भी नहीं होता था । हर गाँव की अपनी एक व्यवस्था थी जिसमें किसी सरकार की कोई भूमिका ही नहीं होती थी । मगर आज क्यों ये लोग हमारे माई बाप हो गये और हर बात पर हम इनका मुँह ताकते हैं ? क्या सब कुछ यही लोग करेंगे , हमारी कोई भूमिका नहीं ? ये जो लाखों लोग सड़कों पर भूखे प्यासे उतरे , ये कौन थे ? अवश्य ही इनमे कोई हमारा ड्राईवर होगा , हमरे घर में चौका-बर्तन करने वाली बाई होगी, हमारी दुकान का छोटू होगा अथवा हमारी फ़ैक्ट्री का कोई कर्मचारी होगा ।  यक़ीनन हमने उन्हें हाथ पकड़ कर नहीं रोका और उन्होंने हमसे विदा लेने का फ़ैसला लिया ।
इंसान का जीवन ख़ुशहाल बनाने को सारी दुनिया में माथापच्ची हुई । सत्ता किस तरह संचालित हो और किसके हाथ में हो इस पर सदियों तक तजुर्बे हुए और फिर लोगबाग़ इस नतीजे पर पहुँचे कि लोकतंत्र ही सबसे बेहतर तरीक़ा है । शुक्र है कि हमने भी लोकतंत्र का मार्ग चुना मगर क्या यही लोगतंत्र है ? जिसमें लोक की कोई भूमिका ही न हो और पाँच साल में एक बार वोट देने के अतिरिक्त उसका कोई दायित्व ही न हो ? कैसा समाज गढ़ लिया है हमने अपना जिसमें हमारी कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं और अपने निजी दुःख सुख के लिए भी हम सरकार की ओर मुँह उठा कर देखते हैं ? बुरा मत मानिये हालात यही रहे तो समाज से कई मजाज़ फिर उठ खड़े होंगे और कहते फिरेंगे- बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ ,उसका गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ , तख़्त-ए-सुल्ताँ क्या मैं सारा क़स्र-ए-सुल्ताँ फूँक दूँ । ए गमे दिल क्या करूँ , ए वहशते दिल क्या करूँ ।।



*गाजियाबाद शहर की स्थिति:-*

*पुलिस खड़ी है डगर डगर।*
*तुम ना जाना विजय नगर।।*

*मिलेगा बस.. डंडों का फाइन*
*पहुँच ना जाना, पुलिस लाइन ।।*

*लट्ठ सज़ा रखे हैं : हर मोड़ पर।*
*निकलो तो सही..चौधरी मोड़ पर।।*

*मार मार के कर देंगे, तबियत हरी।*
*घूमना मत तुम, कालका गढ़ी ।।*

*तुम्हे उठा के पटक देंगे :  धड़ाम।*
*जो ग़लती से पहुचे तुम - नन्दग्राम ।।*

*ना पैदल निकलो. ना मचाना गदर।*
*पड़ेंगे लट्ठ अगर दिखे, रामनगर।।*

*मारमार कर सुजा देंगे हाथ पांव।*
*जो बेवजह पहुंच जाओगे, कोटगाँव ।।*

*इतना पिटोगे कि ना उठ पाओगे कल।*
*बस ग़लती से जाकर देखो संतोष मेडिकल।।*

*लट्ठ भी पड़ते है और जाता है खचेडा *
*ग़लती से पहुँच मत जाना डुण्डाहेडा ।।*

*डर रहा है आदमी काँप रहा थर-थर  ।*
*जो भूल के पहुंच गया है,घण्टाघर ।।*

🙏🏻🙏🏻



*इसलिये, मित्रों : घर पर बैठने मे ही शराफ़त है,*

राधास्वामी

सोमवार, 30 मार्च 2020

सरस सरल सुगम सुंदर उक्तियां







प्रस्तुति - कृति /सृष्टि /दृष्टि /अम्मी और मेहर

😷🧴😷🧴🧴



*रेस चाहे गाड़ियों की हो या ज़िंदगी की  ,  जीतते वही लोग हैं जो सही वक़्त पे गियर बदलते  है    ••*
                👉🏻    *शायद*     👈🏻


🧴😷🧴😷🧴😷🧴😷🧴😷🧴😷🧴😷

*👌

पुराने लोग भावुक थे,*
*तब वो संबंध को संभालते थे।*

*बाद मे लोग प्रॅक्टिकल हो गये*
*तब वो संबंध का फायदा उठाने लग गए।*

*अब तो लोग प्रोफेशनल हो गए*
*फायदा अगर है तो ही संबंध बनाते है*
          ..🌹सुप्रभात 🌹


🙏🏼🌺🙏🏼🌺🙏🏼🌺🙏🏼🌺🙏🏼


*जिन्दगीं को देखने का*
              *सबका*
*अपना अपना नजरिया होता है*

*कुछ  लोग  भावना  में  ही*
*दिल की बात कह देते है,*
              *और...*
   *कुछ  लोग  गीता  पर  हाथ*
   *रख कर भी सच नहीं बोलते*

* Good Morning *


*वक्त नाजुक है ,*
*संभल कर रहिये ,*
*ये युद्ध थोड़ा अलग है ,*
*अलग थलग रहकर लड़िये।*

*दुश्मन इतना सूक्ष्म है ,*
*जो दिखाई भी नहीं देता ,*
*हराने का अचूक अस्त्र ,*
*हर जगह साफ़ सफाई रखिये।*

*संकट भारी है ,*
*लेकिन गुजर जायेगा ,*
*संयम और धैर्य से ही ,*
*इस दुश्मन को हराया जायेगा।*

*खुद बचेंगे ,*
*दूसरे खुदबखुद बचेंगे ,*
*इस लड़ाई में अब ,*
*यत्र सर्वत्र सबका सहयोग चाहिये


😊


आत्मप्रेम
कोई मामूली बात नहीं है।
आत्मप्रेम जीवन में
बड़े सौभाग्य से घटित होता है।
आत्मप्रतिरोध,अहंकार है।
सर्वत्र आत्मप्रतिरोध की शिक्षा है।
इसलिए आत्मप्रेम करने और
इसके लिए प्रोत्साहित करनेवाले को,
अपना परम हितैषी समझना चाहिए।
आत्म प्रेम, प्रेम का सर्वोपरि रुप है।
यही भेद रहित सर्वव्यापी प्रेम है।
पूरी तरह से इसमें डूब जाइये।
आत्मा का आनंद स्वयँ प्रकट हो जायेगा,
ढूंढना नहीं पड़ेगा।
ऐसा आदमी जहाँ भी होगा
आनंद ही बिखेरेगा
हरि ओम

🙏


 🍃🌾🌾

        *30 March 2020*
    *🍁 आज की प्रेरणा 🍁*

दूसरों के द्वारा यदि आप अपना आदर चाहते हैं तो पहले दूसरों का आदर करें।

👉 *आज से हम* सभी का आदर करें...

🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃

*#वज़न तो सिर्फ हमारी*
*इच्छाओं का है,*
*बाकी #ज़िन्दगी तो बिल्कुल*
*#हल्की फुल्की ही है*

*#जय जिनेन्द्र*👍🙏🏻
[30/03, 09:15] anami sharan: *

🙏🏻🙏🏻सुबह का प्यारभरा वंदन🙏🏻🙏🏻*



*वो कागज की दौलत ही क्या*
           *जो पानी से गल जाये और*
             *आग से जल जाये*

         *दौलत तो दुआओ की होती हैं*
            *न पानी से गलती हैं*
              *न आग से जलती हैं...*                                                                                                   
         *आनंद लूट ले बन्दे,*
           *प्रभु की बन्दगी का।*
             *ना जाने कब छूट जाये,*
               *साथ जिन्दगी का।।*
 
*"ईश्वर से मेरी एक ही प्रार्थना है..*
*"महंगी घड़ी" सबको दे देना* !
         *लेकिन.....*
*"मुश्किल घड़ी" किसी को न  देना*

       *🌹🌹सुप्रभात🌹🌹*

*🌺🌺आपका दिन मंगलमय हो🌺🌺*




_*रिश्तों*_
_*को जोड़े रखने के लिए...*_

_*कभी*_
_*अंधा,*_
_*कभी गुंगा,*_
_*और कभी बहरा होना पड़ता है...*



मौजूदा हालात पर कुछ कहने की कोशिश...
*उनके माथे पे बोझ और पांव में छाले है*
*हां वही लोग जो मेहनत से कमाने वाले है*

*कहां जाएंगे,क्या खाएंगे,क्या होगा*
*हाल सारा अब तो क़िस्मत के हवाले है*

*हालात से मजबूर पेशे से मजदूर*
*भूख और ग़रीबी ने पोसे और पाले है*

*रोटी की अहमियत क्या ख़ाक समझेंगें*
*जिनके पास ज़रूरत से ज़्यादा निवाले है*

*कान ना बहरे हो जाएं कहीं सुनकर*
*चाहे जिधर देखो बस दर्द है नाले है*

*चाल चली जाती हैं सोच समझ कर*,
*भीख के सिक्के भी वक़्त आने पे उछाले है*

*उनको अपना हक़ है क्यूं नहीं हासिल*,
*क्या हुआ?क्यूं ज़ुबां पे सबकी अब ताले है*
@अपर्णा


 💐*

*अभ्यास हमें बलवान बनाता है* ,
    *दुःख हमें इंसान बनाता है*,
  *हार हमें विनम्रता सिखाती है*,
              *जीत हमारे*
     *व्यक्तित्व को निखारती है*,
                  *लेकिन*
         *सिर्फ़ विश्वास ही है*,
                  *जो हमें*
    *आगे बढने की प्रेरणा देता है*.
              *इसलिए हमेशा*
  *अपने लोगों पर अपने आप पर*
         *और अपने ईश्वर पर*
      *विश्वास रखना चाहिए*

*🙏🏻शुभ प्रभात् 🙏🏻*


*आपका आज का दिन शुभ हो*



ना इलाज है ना दवाई है,*

*ए इश्क तेरे टक्कर की बला आई है...*
[31/03, 11:03] anami sharan: *शहरों का यूं विरान होना भी*,
*क्या गजब कर गया*
*सदियों से तन्हा पड़े घरों को*,
*जैसे आबाद कर गया*।।

🙏🙏🙏🙏🙏



*✍️छाछ में मक्खन हो तो कोई बाधा नहीं,लेकिन मक्खन में छाछ नहीं होनी चाहिए!*

 *कोयले में हीरा आ जाये तो कोई बाधा नहीं,लेकिन हीरा लेते हुए कोयला नहीं आना चाहिए!*

*जहर में मिलावट हो तो कोई बाधा नहीं,लेकिन मीठाई में जहर की मिलावट नहीं होनी चाहिये!*

*पानी में नाव हो तो कोई बाधा नहीं,लेकिन नाव में पानी नहीं होना चाहिये!*

*इसी तरह*
*संसार में रहते हुए प्रभु की याद आती है तो कोई बाधा नहीं,* *परंतु*
*प्रभु भक्ति में संसार की याद नहीं आनी चाहिए..!!*
            🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*✍️विचारों को वश में रखिये*
    *"वो तुम्हारें शब्द बनेंगे"*
*शब्दों को वश में रखिये*
    *"वो तुम्हारें कर्म बनेंगे"*
*कर्मों को वश में रखिये*
    *"वो तुम्हारी आदत बनेंगे"*
*आदतों को वश में रखिये*
    *"वो तुम्हारा चरित्र बनेगा"*
*चरित्र को वश में रखिये*
  *"वो तुम्हारा भाग्य बनेंगे..!!*
  *🙏🏿🙏🏾🙏🏼जय जय श्री राधे*🙏🏽🙏🏻🙏




*🙏🏻🙏🏻सुबह का प्यारभरा वंदन🙏🏻🙏🏻*

*कोई तराज़ू नहीं होता*
 *रिश्तों का वज़न तोलने के लिए..*
 *परवाह बताती है, कि*
 *ख्याल का पलड़ा कितना भारी है ||*

      *रब ने सभी को*
*धनुष के आकार के होंठ दिये है......*
   *मगर इनसे शब्दों के बाण*
           *ऐसे  छोड़िये..*
*जो सामने वाले के दिल को छू जाये*
   *ना की दिल को छेद जाये*

*पहाड़ो पर बैठ कर तप करना सरल है...*
*लेकिन परिवार मे सबके बीच रहकर धीरज बनाये रखना कठिन है...*
*और यही तप है।*

*"अपनों में रहे, अपने मे नही"।*

        *🌹🌹सुप्रभात🌹🌹*

*🌺🌺आपका दिन मंगलमय हो🌺🌺*

*🌷🌷घर रहे और स्वस्थ रहे🌷🌷*


राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।।।।




दोहा छंद / दिनेश श्रीवास्तव




           "अपना भारत देश"
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सभी स्वस्थ सानंद हों,ईश हरे त्रय ताप।
विकट समय है देश का,मिटे सभी संताप।-१

कभी अँधेरा था कहाँ,इतना बड़ा महान।
रोक सका है आज तक,होता रहा विहान।।-२

संचित भारत देश में,पुन्य प्रसून अगाध।
भष्म सभी होंगे यहाँ, इनसे शीघ्र निदाध।।३


ऋषि मुनियों की भूमि है,अति पवित्र यह देश।
इसके कण कण में भरा,जिजीविषा संदेश।।-४

धैर्य धरा धरती यहाँ,रत्नों की है खान।
पूरित करती है सदा,खान पान अनुपान।।-५

गंगा जल से है जहाँ, बनता अमृत योग।
रोग शोक शीतल करे,करता सदा निरोग।-६

देता हो जिस देश को,सूरज  दिव्य प्रकाश।
निश्चित ही होगा यहाँ, कृमि अणुओं का नाश।।-७

पवन जहाँ इस देश को,देता मलय समीर।
आशंका निर्मूल है,होगा स्वस्थ शरीर।।-८

पत्ता पत्ता है जहाँ, औषधि का भंडार।
देने को आतुर सदा,वृक्ष हमे उपहार।।-९

ऐसे भारत देश में,होगा शीघ्र विनाश।
यहाँ गले में आज जो,फँसा 'कोरोना' फाँस।।-१०

कुछ दिन की ही बात है,घर मे रहो 'दिनेश'।
शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा,अपना भारत देश।।-११

                     दिनेश श्रीवास्तव

                     २९ मार्च २०२०
                         7.०० सायं

मंगलवार, 17 मार्च 2020

भगवान ने बनाया?




प्रस्तुति - कृति शरण /सृष्टि शरण।

भगवान ने पहले
गधे को बनाया
और कहा तुम गधे होगे |
तुम सुबह से शाम तक
बिना थके काम करोगे |
तुम घास खाओगे और
तुम्हारे पास अक्ल नहीं होगी
और तुम 50 साल जियोगे |”
गधा बोला –
मै 50 साल नहीं जीना चाहता |
ये बहुत ज्यादा है |
आप मुझे 20 साल ही दें |
भगवान ने कहा तथास्तु
———————————
भगवान ने फिर कुत्ते को बनाया –
और कहा तुम कुत्ते होगे|
तुम घर की रखवाली करोगे |
तुम आदमी के दोस्त होगे |
तुम वह खाओगे
जो आदमी तुम्हे देगा |
तुम 30 वर्ष जियोगे|”
कुत्ता बोला –
मै 30 साल नहीं जीना चाहता |
ये बहुत ज्यादा है |
आप मुझे 15 साल ही दें |
भगवान ने कहा तथास्तु...
———————————
फिर भगवान ने बन्दर को बनाया –
और कहा तुम बन्दर होगे |
तुम एक डाली से दूसरी में
उछलते कूदते रहोगे |
तुम 20 वर्ष जियोगे |”
तो बन्दर बोला – मै
20 साल नहीं जीना चाहता |
ये बहुत ज्यादा है |
आप मुझे 10 साल ही दें |
भगवान ने कहा तथास्तु……
आखिर में भगवान ने
आदमी को बनाया –
और कहा तुम आदमी होगे |
तुम धरती के सबसे अनोखे जीव होगे|
तुम अपनी अकलमंदी से
❤सभी जानवरों के मास्टर होगे|
❤तुम दुनिया पे राज करोगे |
❤तुम 20 साल जियोगे |”
💙तो आदमी ने जवाब दिया –
💙20 साल तो बहुत कम है|
💙आप मुझे 30 साल दे
💙जो गधे ने मना कर दिए,
💙15 साल कुत्ते को नहीं चाहिए थे,
💗10 साल बन्दर ने मना कर दिए,
💗वह भी दे दें|
💗भगवान ने कहा तथास्तु…
💗और तीनो जानवरों के साल
💗(30 साल, 15 साल, 10 साल),
💜 जो की जानवरों ने माना कर दिए थे,
💜आदमी को मिल गए |
💜तब से आज तक आदमी
💜20 साल इन्सान की तरह जीता है|
💜शादी करता है और
💛30 साल गधो की तरह बिताता है|
💛काम करता है और
💛अपने ऊपर सारा भोझ उठाता है |
💛और फिर उसके
💛बच्चे जब बड़े हो जाते है तो
💖वह 15 साल कुत्ते की तरह
💖घर की रखवाली करता है,
💖बच्चे जो उसे दे देते है
💖वह खा लेता है |
💖उसके बाद जब वह
💚रिटायर हो जाता है| तो
💚वह 10 साल बन्दर की तरह
💚जीवन बिताता है
💚एक घर से दूसरे घर या
💚अपने एक बेटे या बेटी के घर से
❤दूसरे बेटा या बेटी के घर पर
❤अता- जाता रहता है और
❤नए – 2 तरीके अपनाता है
❤अपने पोतो को खुश करने मे
❤और कहानी सुनाने में !!!!!!

👍 ये ही जीवन की सच्चाई है...

साहिर लुधियानवी ,जावेद अख्तर और 200 रूपये

 एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे ।  ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक़्त लेकर उनसे...