सबके चौकस कान खड़े हैं
चारों ओर फुसफुसाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
चारों ओर मच रहा दंगा
परजा कहती राजा नंगा
कैसी अजब खलबलाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
खुशहाली है अखबारों में
बदहाली है बाजारों में
बस हर ओर बलबलाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
जुआ खेलते धर्मराज हैं
सबके उलटे कामकाज हैं
फैली अजब सनसनाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
पार्थ-भीम के होंठ सिले हैं
भीष्म-द्रोण भी हिले-हिले हैं
बस सब ओर सनसनाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
द्रौपदियों का चीरहरण है
राजा कहता पुरश्चरण है
मन में बहुत दलदलाहट है
यह तुम मुझे कहाँ ले आये!
---धनञ्जय सिंह.