गुरुवार, 28 सितंबर 2023

नालंदा यूनिवर्सिटी की कुछ अनकही बातें


।। ----- नालंदा विश्वविद्यालय की कुछ खास रहस्य -----।।


नालंदा यूनिवर्सिटी - अभी तक के ज्ञात इतिहास की सबसे महान यूनिवर्सिटी ।


आज भले ही भारत शिक्षा के मामले में 191 देशों की लिस्ट में 145वें नम्बर पर हो लेकिन कभी यहीं भारत दुनियाँ के लिए ज्ञान का स्रोत हुआ करता था। आज सैकड़ो छात्रों पर केवल एक अध्यापक उपलब्ध होते हैं वहीं हजारों वर्ष पहले इस विश्वविद्यालय के वैभव के दिनों में इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक शामिल थे यानी कि केवल 5 छात्रों पर एक अध्यापक ..।  नालंदा में आठ अलग-अलग परिसर और 10 मंदिर थे, साथ ही कई अन्य मेडिटेशन हॉल और क्लासरूम थे। यहाँ एक पुस्तकालय 9 मंजिला इमारत में स्थित था, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियों सहित लाखों किताबें रखी हुई थीं ।  यूनिवर्सिटी में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के स्टूडेंट्स भी पढ़ाई के लिए आते थे। और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौर में यहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, भाषा विज्ञानं, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाएं जाते थे।


इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी । केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी। इस यूनिवर्सटी में देश विदेश से पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधा भी थी ।

यूनिवर्सिटी में प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन होती थी की केवल विलक्षण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। यहां आज के विश्विद्यालयों की तरह छात्रों का अपना संघ होता था वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। छात्रों. को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता न थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य की ओर से विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान में मिले थे, जिनसे प्राप्त आय और अनाज से उसका खर्च चलता था।


लगभग 800 सालों तक अस्तित्व में रहने के बाद इस विश्वविद्यालय को  तहस नहस कर दिया ।।


लोकार्पण का मेगा शो

 आज दिनांक 28.09.2023 को इडिंया इन्टरनेशनल सेन्टर के एनेक्स भवन के भूतल पर दो रचनाकारों के द्वारा रचित काव्यों के विमोचन का कार्यक्रम था....

जिसमे से एक रचनाकार इस सस्थां की माननीय सम्मानजनक सदस्या है...

रचनाकार की रूचि....

दो दिनों से लगातार इस ग्रुप के सदस्यों को पूरे पते के साथ आमन्त्रित कर रही थी..और लोगों ने इनके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुये अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराया...उनमे से एक मै भी था...

कार्यक्रम का आकर्षण...

1) पहला यह कि मचं पर गणमान्य बुद्धिजीवी सम्मानित श्रेष्ठ लोग विराजमान थे...शायद उनके शब्दों को सुनने के लिये समय ने भी अपनी प्रतिबद्धता बांध रखा था..जिसके अनुरूप लोगों ने अपना अपना उदबोधन दिया...वातावरण भी शान्त होकर शब्दों का अवलोकन कर रहा था....

2) दुसरा यह कि जब आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने अपना उदबोधन दिया तो एक बड़ा ही सटीक और मार्मिक वाक्य बोला कि आज ये जो श्रोता बैठे है वो शायद सबसे बेहतर है...ये शब्द वाकई मन के विचारों मे सामजंस्य बिठाने योग्य थे और दिल को छु लेने वाले थे...मुझे सिर्फ यही एक वाक्य याद रह गया...बाकी उन्होंने कुछ कविताओं के पक्तियों का भी जिक्र किया था...खैर आदरणीय श्री सुभाष चन्द्रा जी ने जो बोला वो प्रशंसनीय था..

3) तीसरा यह कि मचं पर यदि गुणवत्ता वाले लोग थे तो श्रोताओं मे भी सभी लोग गुणवत्ता वाले थे...तात्पर्य उदबोधन करने वाले आदरणीय लोगों को एकटक देखते हुये उनके एक एक शब्द को कड़ियों मे पिरो रहे थे...मतलब बड़े आराम से सुन रहे थे...प्रत्येक श्रोता तारीफे काबिल थे....

4) सस्थां की रचनाकार ने अपने काव्य के विमोचन के लिये जो वातावरण तैयार करना था...उन्होंने बखूबी किया अपने मेहनत लगन से...

5) खास बात कि रचनाकार ने अपने काव्य मे रचनात्मक तरीके से उन सभी वीरांगनाओं का जिक्र किया है जो जो उनके जेहन मे थे...या आते गये...हालांकि यूं देखा जाये तो पूरे देश मे अनगिनत वीरागंनायें ऐसी और भी है जिनका न तो इतिहास मे कहीं जिक्र है...न ही पुरातन विभाग मे...न ही केन्द्रीय पुस्तकालय मे, यदि उनका जिक्र है तो उस प्रदेश मे रहने वाले उन स्थानीय लोगों मे जो उन्हें अपनी मां दीदी मानते है, केरल की ही एक ऐसी वीरांगना है जिन्होंने राजा के आदेशों के खिलाफ पोशाक पहन लिया और जब राजा ने सजा सुनाया आदेशानुसार तो राजा के फरमान आने से पहले ही उन्होंने अपने शरीर का एक खास अगं काटकर अन्दर से भिजवा दिया (राजा के सिपाही हैरान कि फरमान पहुंचा भी नही और उसने उससे पहले ही...)...हालांकि शरीर के कटे अगं मे दर्द इतना था कि असहनीय था...जिसके कारण चन्द रोज मे ही उनके प्राण पखेरु हो गये...किन्तु जाते जाते उस निर्दयी राजा को सोचने के लिये मजबूर कर दिया और वो राजा अपने कानून को बदलने के लिये विवश हो गया...और बदल भी दिया...जिसके कारण वो वीरांगना आज उस क्षेत्र मे देवी मां के (उनका मन्दिर बनवाया है वहीं पर उसी गावं मे स्थानीय लोगों ने)रूप मे पूजी जातीं है...ऐसे ही एक और वीरांगना जो सेल्युलर जेल मे हथकड़ियों मे बन्द थी, अग्रेंज यातनाओं पर यातनाएं दे रहे थे मगर वो टस से मस नही हुयी..न हो रहीं थी, अग्रेंजो को इतना गुस्सा आया कि हथकड़ियों मे बन्द उस वीरागंना के शरीर का खास अगं काटकर लेके चले गये...वीरागंना दर्द मे कराहा...तड़पा..मगर अग्रेंजों के सामने घुटने नही टेके...उनकी भी मृत्यु उसी दर्द के कारण उसी जेल मे हुआ..मगर उनका भी जिक्र कहीं नही है...ऐसे ही मालदा शहर ( वेस्ट बगांल) मे भी कुछ वीरांगना थी जिन्होंने बहुत कुछ खोया था..है...मगर आवाज बुलन्द था तो बुलन्द था...शहीद हो गयी...अग्रेंजो के बन्दूक की गोलियां खा ली...मगर झुकी नही...

6) खैर आजादी के इतिहास के पन्नों को ठीक (महीन बारीकी से सूक्ष्मता के साथ) से खगांला (उन प्रदेशों के स्थानीय क्षेत्रों मे भ्रमण के द्वारा)जाये तो शायद गिनतीयां कम पड़ जाये...

कार्यक्रम का एक खास आकर्षण और था कि सस्थां की सदस्य बड़ी ही शालीनता के साथ सबसे मिल रहीं थी...अभिवादन स्वीकार भी कर रहीं थी तो अभिन्दन भी कर रही थी...एक ऐसी अन्जान महिला से भी मिल रही थी और उसके बातों का जवाब शिष्टतापूर्वक दे रहीं थी..जिसपर कई लोगों की अचरच भरी निगाहें थी.. देख रही थी...

एक और आकर्षण था अल्पाहार मे जो काफी सुन्दर तरीके से सुसज्जित था और लोग लुत्फ के साथ आनन्द ले रहे थे...

अन्त मे यही कहुंगा कि सस्थां की सदस्या ने दिल्ली के व्यस्ततम क्षेत्र के व्यस्ततम भवन मे कार्यक्रम का सृजन कर आयोजित किया वो और उनके पारिवारिक सदस्य सभी बधाई के योग्य है..मै उनका आभार प्रकट करता हुं   इतने अच्छे कार्यक्रम मे सभी को आमंत्रित करने के लिये....

सस्थां के सदस्या सबसे प्रिय छोटी बहन का नाम श्रीमती रिकंल शर्मा (कौशम्बी, गाजियाबाद निवासी) है...जो अक्सर कार्यक्रम मे अपनी विशेष प्रस्तुति से सबके दिलो दिमाग विचारों मे अपनी अलग जगह बना लेतीं है...

लेखन मे उनकी कलम और गतिशील हो, नयी रचनाओं मे नये अन्वेषण हो. ये मगंलकामना करता है..👌

🙏🙏🙏🙏🙏❤️🌹👍✌🏽👆

सोमवार, 25 सितंबर 2023

मदद

 किसी जंगल में एक गधा रहता था । उसने बाकी जानवरों से कहना आरंभ कर दिया कि शेर एक अच्छा राजा नहीं है । उसमें कोई दम नहीं है । संकट के समय वह तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा । इसलिए तुम सब लोग मुझे अपना राजा मान लो ।


सभी जानवर हंसने लगे । गधा अपने आप को ताकतवर दिखाने के लिए सुरक्षित दूरी से शेर को गालियां बकने लगा । उस पर तरह-तरह के आरोप लगाने लगा । वह शेर को चैलेंज करने लगा कि हिम्मत है तो मुझसे लड़ कर दिखा ।


शेर ने गधे को पूरी तरह इग्नोर किया और अपना काम करता  रहा। थक हार कर गधा वापस चला गया । और बाकी जानवरों को बताया कि शेर बिल्कुल कमजोर है । मैंने उसे इतनी गालियां दीं , चैलेंज किया, पर वह चुपचाप सुनता रहा ।


बकरी, खरगोश और चूहे जैसे कुछ जानवर , जो गधे का एहसान मानते थे क्योंकि गधा उन्हें भोजन के लिए घास के मैदानों का पता बताता था, वे गधे की हां में हां मिलाने लगे ।


गधे के जाने के बाद शेर के महामंत्री हाथी ने उससे पूछा," महराज!! वो गधा आपको इतनी गालियां बकता रहा, आपको लड़ने के लिए ललकारता रहा। फिर भी आप चुप क्यों रहे ? चहते तो पंजे के एक वार से ही उसका काम तमाम कर सकते थे? या मुझे आदेश देते , मैं उसकी चटनी बना देता ? इससे आपकी धाक क़ायम रहती ?


शेर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " हाथी भाई !! इसके तीन कारण हैं । 


पहला अगर मैं या आप गधे से लड़ते तो बाकी जानवर यह कहते कि हमारा राजा बड़ा तानाशाह है । भला गधे जैसे निरीह प्राणी से भी कोई लड़ता है ? 


दूसरे लड़ाई में गधा मर जाता तो उसकी मां ,परिवार वाले और चमचे उसे शहीद बता कर बाकी जानवरों की सहानुभूति अर्जित करते और हमारे खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाते । 


तीसरे गधे के परिवार को फायदा मिलता देख कई दूसरे जानवर भी शहीद बनने की जुगाड़ में लग जाते । 


मैं गधे या उसके साथियों की वजह से राजा नहीं हूं।


न अभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते वने,

विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।


अर्थ :- जंगल में सिंह का राज्याभिषेक संस्कार आदि कुछ नहीं किया जाता । उसके पराकृम के कारण उसे स्वयमेव राजा-पद अर्जित हो जाता है ।


नोट : कृपयाइस कहानी का राजनैतिक अर्थ न लगाए।

शनिवार, 23 सितंबर 2023

मथुरा* / डॉ. वेद मित्र शुक्ल


मथुरा पर केंद्रित दो रचनाएं 🙏


 वेद मित्र शुक्ला


*1.*


कृष्ण भजन में डूबी राधे राधे जपती मथुरा प्यारी,

भोग, आरती, माखन-मिश्री की अलमस्ती मथुरा प्यारी|


पूजें पूरी ब्रज-अवनी को, पग-पग जन्मी कथा कृष्ण की,

पर, उर में तो पुण्यभूमि यह पावन धरती मथुरा प्यारी|


सजते हैं कुरुक्षेत्र मगर मत भूलें, देखो, रंगभूमि को,

युग हो कोई भी कंसों का वध तय करती मथुरा प्यारी|


साथ-साथ हैं वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, बरसाना सब,

हँसते-गाते यमुना के घाटों पर बसती मथुरा प्यारी|


जन्माष्टमी पर्व हो या हो लट्ठमार होली रंगीली,

'जीवन है उत्सव' संदेशा देती रहती मथुरा प्यारी|


*2.*



आसाँ कब वसुदेव-देवकी होकर तप करना मथुरा में,

समझी यह संघर्ष-कथा सो अच्छा था रुकना मथुरा में|


अपनों की कारा में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है जो -

वह तो ही है कृष्ण-जन्म का एक रात घटना मथुरा में|


बारिश, बाढ़, अमावस हों या कंस-राज, मुश्किलें बड़ी, पर

धर्म यही वसुदेव भाँति हो क्रांति-कथा गढ़ना मथुरा में|


गोकुल औ वृंदावन माना हृदय बीच बसते हैं, लेकिन -

कृष्ण सिखाते कर्तव्यों की खातिर है बसना मथुरा में|


महसूसो वह 'जन्मभूमि' जो कारा के भीतर थी जकड़ी,

'रंगभूमि' फिर जहाँ पाप का निश्चित था मिटना मथुरा में|


(सौ.- राष्ट्रधर्म, सितंबर 2023, पृ. 10)


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid032kgN7NYXchBaFnbQ3sdaHrkX8d6n9ieivP3T37FdbiMD4XY6E2ZE6csR7at2XMNLl&id=1113073210&mibextid=Nif5oz

हिंदी वर्णमाला संकलित कविता

 *पति-पत्नी  की नोक झोंक में प्रयुक्त सम्पूर्ण हिंदी वर्णमाला संकलित कविता...*

😆😆


*मुन्ने के नंबर कम आए,*

*पति श्रीमती पर झल्लाए*, 

*दिनभर मोबाइल लेकर तुम,*

*टें टें टें बतियाती हो...*

*खा़क नहीं आता तुमको,* 

*क्या मुन्ने को सिखलाती हो?* 


*यह सुनकर पत्नी जी ने,*

*सारा घर सिर पर उठा लिया l*

*पति देव को लगा कि ज्यों,* 

*सोती सिंहनी को जगा दिया l*


*अपने कामों का लेखा जोखा,* 

*तुमको मैं अब बतलाती हूँ l*

*आओ तुमको अच्छे से मैं,* 

*क ,ख, ग,घ सिखलाती हूँ l*


*सबसे पहले "क" से अपने,* 

*कान खोलकर सुन लो जी..*

*"ख"से खाना बनता घर में,* 

*मेरे इन दो हाथों से ही!* 


*"ग"से गाय सरीखी मैं हूँ,*

*तुम्हें नहीं कुछ कहती हूँ* l

*"घ" से घर के कामों में मैं,* 

*दिनभर पिसती रहती हूँ* l


*पतिदेव गरजकर यूँ बोले..* 

*"च" से तुम चुपचाप रहो* 

*"छ" से ज्यादा छमको मत,*

*मैं कहता हूँ खामोश रहो!* 


 *"ज" से जब भी चाय बनाने,* 

*को कहता हूँ लड़ती हो..*

*गाय के जैसे सींग दिखाकर,* 

*"झ" से रोज झगड़ती हो!*


*पत्नी चुप रहती कैसे,* 

*बोली "ट" से टर्राओ मत* 

*"ठ" से ठीक तुम्हें कर दूँगी..* 

*"ड" से मुझे डराओ मत!*


*बोले पतिदेव सदा आफिस में,*

*"ढ" से ढेरों काम करूँ..* 

*जब भी मैं घर आऊँ,* 

*"त" से तुम कर देतीं जंग शुरू!* 


*"थ" से थक कर चूर हुआ हूँ..*

*आज तो सच कह डालूँ मैं!*

*"द" से दिल ये कहता है...*

*"ध" से तुमको धकियाऊँ मैं!*


*बोली "न" से नाम न लेना,* 

*मैं अपने घर जाती हूँ!* 

*"प" से पकड़ो घर की चाबी*

*मैं रिश्ता ठुकराती हूँ!*


*"फ" से फूल रहे हैं छोले,*

*"ब" से उन्हें बना लेना l*

*" भ" से भिंडी सूख रही हैं,*

*वो भी तल के खा लेना...!!* 


*"म" से मैं तो चली मायके,* 

*पत्नी ने बांधा सामान l*

*यह सुनते ही पति महाशय,*

 *के तो जैसे सूखे प्राण*


*बोले "य" से ये क्या करती* 

*मेरी सब नादानी थी...*

*"र" से रूठा नहीं करो.....*

*तुम सदा से मेरी रानी थी!* 


*"ल" से लड़कर कहते हैं कि..*

*प्रेम सदा ही बढ़ता है!*

*"व" से हो विश्वास अगर तो,* 

*रिश्ता कभी न मरता है l*


*"श" से शादी की है तो हम,*

*"स" से साथ निभाएंगे...* 

*"ष" से इस चक्कर में हम....*

*षटकोण भले बन जाएंगे!*


*पत्नी गर्वित होकर बोली,*

*"ह" से हार मानते हो!*

*फिर न नौबत आए ऐसी*

*वरना मुझे जानते हो!*


*"क्ष" से क्षत्राणी होती है नारी*

*" त्र" से त्रियोग भी सब जानती है*

*"ज्ञ" से हे ज्ञानी पुरुष! चाय पियो*

*और खत्म करो यह राम कहानी!*


🤣🤣🤣🤑🤑🤣🤣


हिन्दी दिवस की बधाई 🙏🙏🙏

गुरुवार, 21 सितंबर 2023

पर इंसान परेशान बहुत है।।*/ कमल शर्मा



*अच्छी थी पगडंडी अपनी।*

*सड़कों पर तो जाम बहुत है।।*


*फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।*

*सबके पास काम बहुत है।।*


*नहीं जरूरत बुज़ुर्गों की अब।*

*हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।*

  

*उजड़ गए सब बाग बगीचे।*

*दो गमलों में शान बहुत है।।*


*मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।*

*कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।*


*पीते हैं जब चाय तब कहीं।*

*कहते हैं आराम बहुत है।।*


*बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*

*फोनों पर पैगाम बहुत है।।*


*आदी हैं ए.सी. के इतने।*

*कहते बाहर तापमान बहुत है।।*


*झुके-झुके स्कूली बच्चे।*

*बस्तों में सामान बहुत है।।*


*सुविधाओं का ढेर लगा है।*

*  पर इंसान परेशान बहुत है।।*

मंगलवार, 19 सितंबर 2023

जात बीच में आ जाती हैं / वीणा शर्मा सागर

 उगने छिपने वाले इस काम तलक़ जाते जाते

सूरज बुढिया जाता है शाम तलक़ जाते जाते ।


यूँ तो इश्क़ उन्हें इकदूजे से है परले दर्जे का

ज़ात बीच मे आ जाती है नाम तलक़ जाते जाते ।


शुरु करी तूने लेकिन सब बेकाबू हो जायेंगी

इतनी बिगड़ेंगी बातें अंज़ाम तलक़ जाते जाते ।


आग लगाने निकले थे कि राख करेंगे पलभर में

नीयत बदली बस्ती-ए- बदनाम तलक़ जाते जाते ।


भाईचारा पलभर में ही दंगे में तब्दील हुआ

अल्लाहु अकबर से लेकर राम तलक जाते जाते ।


साधू बनकर बैठे थे वो ज्ञानपीठ के आसन पर

साधू से शैतान हुये हैं धाम तलक जाते जाते ।


प्यास सहारा बनती तो है जीने का लेकिन 'सागर'

दमघोटू हो जायेगी ये बाम तलक़ जाते जाते ।


🖋️साभार 


वीणा शर्मा 'सागर'

रविवार, 17 सितंबर 2023

मैं राजा बेटा🔸/ डा बीना सिंह "रागी


सुनो ना मम्मी  सब कहते हैं

मैं   घर का  राज   दुलारा हूं

मां बाबाके आंखो का तारा हूं

दादा दादीजी का मैं  प्यारा हूं

हांमैं राजाबेटा राज दुलारा हूं


मुझे  पापा जैसा ही बनना है

सारे  बोझ  उठाकर सहना है

शायद इसीलिए बड़ा न्यारा हूं

जग के लिए जवाब करारा हूं

हांमैं राजाबेटा राज  दुलारा हूं


बीबी कागर पति बन जाता हूं 

मां के लिए अति  हो जाता हूं 

श्रवण राम दोनों  ही  बनना है

हमको तोयूं ही जीना मरना है

क्या करूं बेटा बस बेचारा  हूं 

हां मैं राजाबेटा राज दुलारा हूं 


मां कहें संभालो जिम्मेदारी है

तेरी  बहन तो अबला नारी है

त्यौहार पेद्वार पर जाना होगा

भैया का  फर्ज  निभाना होगा

मैं बेटा सबकेकर्ज का मारा हूं 

हांमैं राजा बेटा राज दुलारा हूं



रविवार, 3 सितंबर 2023

रामधारी सिंह दिनकर की कविता

 “रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, 

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! 

उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, 

और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। 


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? 

मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते; 

और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी 

चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। 

आदमी का स्वप्न?हैवह बुलबुला जल का

आज उठता और कल फिर फूट जाता है

किन्तु, फिर भी धन्य,ठहरा आदमी ही तो

बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है। 


मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली, 

देख फिर से, चाँद!मुझको जानता है तू? 

स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी? 

आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?


मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते, 

आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ, 

और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की, 

इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ। 


मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने,जिसकी 

कल्पना की जीभ में भी धार होती है, 

वाण ही होते विचारों के नहीं केवल, 

स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। 


स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,

"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, 

रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को, 

स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।" 

✍️रामधारीसिंह दिनकर 🙏

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

सुहाना लोकोत्सव


 झारखण्ड करतल ध्वनि भरा सुहाना लोकोत्सव है


झारखण्ड के लोकज्ञान से सम्बंधित अपनी आगामी किताब में संग्रह किये गए कई लोकगीतों में एक आपसे साझा करता हूँ,

बिक गईल महुवा,बेचा गईल सखुवा

कइसे के जिए रे आज के बग्वैया

बसवां में आगि लागी

भौका में बाधा लागी

मांदर के दाम अब

कहवां से देयी रे।

मोरवाअ न अब मारे देयी

तेनुआ न खाये देयी

मोरछल कहवां से जाई लिवाय रे

आज के बग्वैया।


इस गीत से झारखंड के रहवासियों की पीड़ा उमगकर हमसे पूछती है कि क्यों न सफल हो अराजकता का लोक उत्सव नक्सलवाद।आगामी किताब में ऐसे ही तकरीबन डेढ़ सौ लोकगीतों का संकलन है।लोक कथाएं भी हैं और लोकोक्तियाँ भी।


फ़ोटो साभार: विकिपीडिया

संदर्भ: जादुपेटिया चित्रकारी



प्रो. (डॉ.) सत्या जांगिड / विविध प्रसंग


 मैम के बारे में जितना जाना, जितना सुना बस यही लगा काश मैं उनसे मिल पाती, काश उनका स्नेह मुझे भी मिल पाता है, उनसे मैं भी कुछ सीख पाती। कितना विराट व्यक्तित्व था उनका पर उसके उलट एकदम सहज, सरल, पानी सी पारदर्शी, ख़ुद भूखी रह जाएं पर उनके सामने कोई भूखा नहीं रह सकता था, साड़ियों का बहुत शौक था। महिला सशक्तिकरण की मिसाल।  अदभुत व्यक्तित्व की धनी थीं हमारी सत्या मैम। मैम को शत शत नमन और जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं। 


भावना


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A revered member of our Economics department at Kalindi College, we did not get much opportunity to meet and interact with ma’am Dr. Satya Jangid (as I joined college in 2005) but have heard numerous instances of her great personality, kindness and fearlessness from senior colleagues. It seems she lived a life and had a character true to the meaning of her name ‘Satya’. What touches me the most is the beautiful relationship shared between Sir and Ma’am which has run beyond the usual dimensions of time and space. It is indeed an immortal love story between two great souls that have touched lives of countless people. Even when ma’am was bedridden and could not be there for events organized by the department after her retirement Sir would ensure her presence by representing his beloved wife. Today too even though she has gone to the other world, their love story continues and shall serve as an inspiration for us all. With warm regards always fondly remembering ma’am on her birthday 🙏🙏

Dr. Indu Choudhary

Professor

Department of Economics

Kalindi कॉलेज



 drramjilaljangid70b Rlj: We extend our invitation to you to join us at the Swadesh Conclave & Awards, centered around the theme "Influential India." We kindly request your esteemed presence at the Swadesh Conclave 2023, scheduled for August 21st, 2023, at Vigyan Bhawan in New Delhi, commencing from 10 am and concluding at 7 pm.  With best regards,





प्रिय राजश्री,

कल सोमवार, 21 अगस्त 2023 को

विज्ञान भवन, नई दिल्ली में

तुम्हारे 'अपना प्रदेश न्यूज (APN)

की ओर से हो रहे कार्यक्रम

को शानदार सफलता मिले

और तुम्हारा यश लगातार

बढ़ता रहे, इस कामना के साथ।

- प्रो. (डॉ.) रामजीलाल जांगिड



स्वर्गीया प्रो. (डा.) सत्या सदैव इस बात को लेकर चिन्तित रहती थीं कि अपने से कमजोर व्यक्ति की मदद कैसे की जाए? उनका कालेज करोलबाग, नई दिल्ली के रैगड़पुरा क्षेत्र से सटा हुआ था। इसमें रामेश्वरी, नेहरू नगर, अमृतपुरी और देवनगर के कई ऐसे हिस्से भी शामिल हैं, जहाँ सत्तर प्रतिशत से अधिक

लोग भारत और पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों से आकर बसे थे। उन्होंने अपने कालेज में राष्ट्रीय सेवा

योजना ( एन. एस. एस.) की स्थापना की और दिसम्बर

1969 से जुलाई 1970 के बीच की अवधि में अमृत कौर पुरी तथा देवनगर ब्लाक 6 के 88 घरों का गहराई से सामाजिक एवं आर्थिक सर्वेक्षण किया, जिससे कालेज उनकी यथा संभव मदद कर सके। भारत में किसी भी कालेज द्वारा किया गया यह पहला सर्वेक्षण था।

कॉलेज की संस्थापिका प्राचार्य डा. (कुमारी)

शिवा दुआ ने इस सर्वेक्षण की रपट की भूमिका में लिखा कि भारत के सीमित उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग और सामाजिक व आर्थिक

नीतियों का सही निर्धारण तभी सार्थक हो सकता है

जब नीति बनाने वालों और जिनके लिए नीति बनाई जा रही हो उनके बीच बेहतर संवाद हो।इस कॉलेज द्वारा अमृत कौर पुरी और देवनगर ब्लाक 6 के 88 घरों का जो सामाजिक तथा आर्थिक सर्वेक्षण किया गया है, वह ऐसे ही संवाद का आधार है।

शिक्षा संस्थाएं ऐसे संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण

योगदान कर सकती है।

इस सर्वेक्षण में जन्म स्थान, रहने की अवधि, जाति

परम्परागत व्यवसाय, आयु, लिंग, शिक्षा का स्तर (विशेषतः स्त्रियों और बच्चों में), लिंग के आधार पर कामकाजी व्यक्तियों का

ब्यौरा, औसत मासिक आय, औसत मासिक खर्च, जरूरतमंद और विकलांग व्यक्तियों का ब्यौरा, घरों का ब्यौरा, घरों में उपलब्ध सुविधाएं

आदि ग्यारह बिन्दुओं पर ध्यान दिया गया।

इसमें यह प्राध्यापिकाओं और २८ छात्राओं का सहयोग लिया गया। इस सर्वेक्षण में रैगरों के 37 घर और खटीकों के 19 घर यानी 88 में से 55 घर दो अनुसूचित जातियों के थे। इसमें 617 व्यक्तियों में

334 पुरुष थे और 278 स्त्रियां 116 वर्ष की आयु तक 138 मैं 36 ने पढ़ाई छोड़ दी थी और 102 पढ़ रहे थे 116 वर्ष की आयु

तक 143 स्त्रियों में से 62 शिक्षित थीं। इन62 स्त्रियों में से 8 ने 16 वर्ष तक आते. जाते पढाई छोड़ दी थी और 54 पढ़ रही थीं। 140 कामकाजी व्यक्यिों में केवल बीस महिलाएं कुछ न कुछ काम कर रही थीं। 617 व्यक्तियों में केवल 140 के पास रोजगार था | इस सर्वेक्षण में शामिल प्रति परिवार की औसत मासिक आय 206 रु थी। 88 परिवारों में प्रतिव्यक्ति औसत मासिक खर्च 31 रु था।  

88 परिवारों में 7 व्यक्ति जरूरत मंद और 19 विकलॉग थे। 88 घरों के 102 कमरों में 617 लोग रहते थे। इनमें से

59 परिवार किरायेदार थे 21 के अपने घर थे, ओर 2 परिवार झुग्गियों में रहते थे। यह स्थिति थी वर्ष 1976 में कालिन्दी कालेज, पूर्वी पटेलनगर, नई दिल्ली 110-008 (दिल्ली विश्वविद्यालय) की पड़ोसी बस्ती की। 

इसमें प्रो. (डॉ.) सत्या जांगिड़ ने पर्चा बंटवाया कि किसी भी महिला को शराब पीकर पति पीटे या कोई

ससुर, जेठ, देवर, 'सास, जिठानी, देवरानी दुर्व्यवहार

करे तो वह कालिन्दी कालेज

 के नारी विकास केन्द्र में आकर शिकायत दर्ज कराए तो दो महिला वकील उसे

मुफ्त कानूनी मदद देगी। पहला नारी विकास केन्द्र दिल्ली विश्व विद्यालय में उन्होंने ही स्थापित किया था। स्त्रियों के अधिकारों की

जानकारी देने वाली पहली हिन्दी पत्रिका 'नारी विकास' भी उन्होंने शुरू की थी। उन्होंने 1965 में अपनी पी. एच. डी. उपाधि के लिए

कृषिकानूनों में महिलाओं की स्थिति को चुना था।





On this solemn day, we honor the memory of our beloved nani, a remarkable soul who graced our lives with her wisdom, grace, and boundless compassion. As we commemorate her death anniversary, we're reminded of the profound impact she had on everyone fortunate enough to know her.


Our nani's brilliance shone brightly through her education and her insatiable thirst for knowledge. Her intellectual curiosity was infectious, and she inspired countless minds to explore the depths of understanding. But it was her heart that truly set her apart. Her dedication to helping others was unwavering, her actions a testament to her innate kindness.


Through her selfless contributions to society, she demonstrated that education and compassion are a powerful combination. Her legacy lives on through the lives she touched, the lessons she imparted, and the positive change she sparked. As we reflect on her life today, let us be reminded of the importance of making a difference in the lives of others, just as she did.


Though she may have left this physical world, her spirit endures in the memories, stories, and lessons she left behind. Let us celebrate her life by carrying forward her legacy of knowledge, empathy, and generosity. May her soul find eternal peace, and may her legacy continue to inspire us to create a better world for generations to come. May her memory continue to inspire us to make positive impacts in the world.


Lots of Love

Your grand डॉटर


❤️🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤️🌹

डॉ. सत्या जांगिड़ / My Dearest Nani,


Dearest Nani,


Today, as the world celebrates your birthday, we feel the void of your physical presence, but your legacy of knowledge and education lives on, a testament to the remarkable woman you were.


Your wisdom was a guiding light, illuminating our paths with insights that only someone as learned as you could provide. You possessed a thirst for knowledge that was truly inspiring, and your dedication to learning left an indelible mark on our lives.


You were more than a grandmother; you were a source of wisdom, and a beacon of intelligence. Your passion for education ignited a flame within us to pursue knowledge, to never stop seeking, and to always strive for excellence.


Although you're no longer here to celebrate with us, your memory continues to shape the way we approach life. We carry your teachings, your love, and your wisdom in our hearts, and they guide us through both the joyful and challenging moments.


On this day, we celebrate not just your birthday, but the incredible person you were. We remember the countless stories you shared, the knowledge you bestowed upon us, and the warmth of your love that made every moment spent with you precious.


Though you're beyond our reach now, we feel your presence in the memories we cherish, the lessons we've learned, and the love that surrounds us. Happy Birthday, dear Nani, in the realm where you shine as a bright star of knowledge and love.



With all our love and gratitude

Your grand daughter


❤️ 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤️

भविष्यदृष्टा प्रो० (डा०) सत्या जांगिड*

 

(10 अगस्त 1938-26 अगस्त 2016)


- आज जिन्हें बिछुड़े सात साल हो गए -


डा. कमल टावरी, आई.ए.एस. (रिटायर्ड),


पूर्व सचिव, भारत सरकार और कुलपति, पंचगव्य विद्यापीठ  कांचीपुरम (तमिलनाडु)


ज्यादातर लोग अपना जीवन अपने परिवार की चिन्ता में ही बिता देते हैं। मगर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो

देश और समाज को आगे कैसे बढ़ाया जाए, इसकी भी चिन्ता करते हैं। प्रो. (डा.) सत्या जांगिड उन विरले भारतीयों में से एक थीं, जिन्हें भारत के लाखों निरक्षरों और अर्ध शिक्षित लोगों को शिक्षा के लिये सहज, सस्ते और सुलभ

साधन कैसे जुटाएं जाए, इसका ख्याल था। 

उन्होंने 22 मई 1976 को अंग्रेजी की प्रतिष्ठित पत्रिका'मेनस्ट्रीम', नई दिल्ली में एक लेख छपवाकर लाखों लोगों के लिए शिक्षा पाने का नया रास्ता सुझाया था-

'खुला विश्वविद्यालय | अपने सुझाव को पाठकों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने 07 नवम्बर 1976

और 21 नवम्बर 1976 को अंग्रेजी दैनिक 'द इकनामिक टाइम्स' के नई दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता

संस्करणों में छपवाया- 'द यूनिवर्सिटी ऑफ सेकेन्ड चांस | भारत सरकार ने इसके लगभग दस साल बाद नई दिल्ली में स्थापित किया इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय (IGNOU)

इसलिए स्थापना के दस साल पहले इस तरह के संस्थान का प्रस्ताव देना किसी 'भविष्यदृष्टा' के ही वश का हो सकता है। उनकी पुण्य स्मृति को नमन।

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किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...