शनिवार, 29 अप्रैल 2023

❤ समझौता ख़ामोशी से / धर्मवीर भारती

 


ख़ामोश हूँ सदा

मैं चलती-फिरती मूरत

संस्कृति का प्रतीक है मेरा चाल-चलन

सर पर है पल्लू का बोझ

मन में बगावत की आग 

पर चेहरे पर मौन की काली छाया

कज़रारी आँखें बड़ी-बड़ी 

मासूम सी मैं मृगनयनी

ग्रहिणी हूँ 

नया संसार बसाकर


पर भय है मेरी आँखों में 

शराबी  ससुर से

सास की आँखों  से 

देवर के ऐंठन से 

ननद के ताने से 

पर आशा है 

मुझे पति के क्षणिक प्यार से

जो कभी-कभी मिलती है ख़ैरात में 

प्यार की भीख 

संभाल कर रखती हूँ दिल में

ताकती  रहती पति नयन में अनवरत

शायद मिलेगी ही निरंतर जलती आग को

क्षण भर की ठंडक


कभी-कभी अकेले में सोचती

कर दूँ आज बगावत

मिटा दूँ अबला होने का शक O

जी लूँगी ज़िन्दगी अकेले 

बेहतर है कहीं अकेलापन 

उस दरिन्दगी  से 

जो मुझे न जलाते है

न ही बुझाते  है 

उन्हें शौक है सिर्फ़

धूं-धूं कर जलाना 

मिलता है अति आनंद उन्हें 

मेरी ख़ामोशी भरी तडप से

सोचती हूँ आज मचा दूं तहलका

पर पल में ही सोचती हूँ

शायद जाग्रत ज्वालामुखी की ख़ामोशी 

बेहद पसंद है मेरे माँ-बाप को 

जो सर उठा कर जीते हैं संसार में

बन कोल्हू का बैल 

बाँध आँखों में काली पट्टी 

नाचती है अथक 

खाती है 

तन पर डंडे ,कोड़े-लप्पड़-थप्पड़ 

गाली, गलौज, कटुता, ओताने 

बार-बार मेरे कानों  में गूंजते हैं

मेरे माँ-बाप भाई के नपुंसकता भरे शब्द

फट जाते है मेरे कान के परदे 

जो हथौड़े-सी चोट पहुँचाते दिल पर 

कि बेटी दोनों कुल का मान बढ़ाती है 

जिस घर में बेटी की डोली जाती है 

उसी घर से बेटी की अर्थी निकलती है

क्या फ़र्क़ है ? 

मेरे नपुंसक भाई-पिता को

खुश होंगे वे

जब ससुराल से अर्थी मेरी निकलेगी 

गायेंगे झूठी शान गर्व भरी गाथा  

मेरी लाडली रही सदा सुहागन,मरी-भी सुहागन

पर उन्हें क्या मतलब ?

की कैसे मरूँगी  तिल-तिलकर 

क्या फ़र्क़ होगा ?

मृत शरीर विष से नीली है 

या फंदे से कसी हुई ?

सिर्फ़ खोखला गर्व होगा उन्हें

लाडली मरी ससुराल में 

दोनों कुलों का मान बढ़ाकर

अर्थी निकली उसकी 

ससुराल में जाकर


न हूँ मैं घर की ना घाट की 

शायद यही है मेरे जीवन का निष्कर्ष

तभी तो लाचार, कायर, निट्ठाली हूँ

अबला बन कर

कर समझौता ख़ामोशी से

कर समझौता ख़ामोशी से



- धर्मवीर भारती 

मो.न. - 7070886737 

Email-drdharmveerfilm@gmail.com

सोमवार, 24 अप्रैल 2023

*💐💐पेंशन:-सम्मान निधि 💐💐*

🌳🦚आज की कहानी🦚n



माँ, तुम भी न ...यह क्या पिताजी की जरा सी 12000 रुपये की पेंशन के लिए इतना माथापच्ची कर रही हो, अरे इससे ज़्यादा तो हम तनख्वाह तो हम एक कर्मचारी को दे देतें हैं..


मोहित ने चिढ़कर अपनी माँ के साथ स्टेट बैंक की लंबी कतार में लगने की बजाय माँ को घर वापस घर पर ले जाने के लिए आग्रह करने लगा।


वैसे मोहित ने सच ही कहा था, करोड़ों का बिजनेस था उनका, लाखों रुपये तो साल भर में यूँ ही तनख्वाह और भत्ते के नाम पर कर्मचारियों पर निकल जाते हैं, फ़िर मात्र 12000 रुपये प्रतिमाह की पेंशन पाने के लिये, स्टेट बैंक की लम्बी कतार में खड़े होकर पेंशन की औपचारिकता पूर्ण करने के लिये इतना समय व्यर्थ करने का क्या औचित्य  ??


मोहित के पिता विशम्भरनाथ जी का निधन  पिछले माह ही बीमारी की वजह से हुआ था, वह लगभग 12 वर्ष पूर्व एक सरकारी स्कूल में प्राध्यापक पद से रिटायर हुये थे , तब से उनके नाम पर पेंशन आया करती थी, विशम्भर नाथ जी मृत्यु के उपरांत आधी पेंशन उनकी  पत्नी सरला जी को मिलने का शासकीय योजना के अनुसार प्रावधान था, जिसके लिये सरला जी आज स्टेट बैंक में अपने बेटे मोहित के साथ जाकर  पेंशन की औपचारिकता पूर्ण करने  आई हुई थी।

                                    

उस दिन मोहित के बेटे कुशाग्र का आठवां जन्मदिन था, उसने अपनी दादी से साइकिल की फ़रमाइश की थी, सरला के खुद के बैंक अकाऊंट में पैसे नाममात्र के ही बचे थे, उनकी पेंशन अभी शुरू नहीं हुई थी..इसलिए उन्होंने मोहित से 10000 हज़ार रुपये माँगें... मोहित अपने ऑफिस जाने की तैयारी में व्यस्त था, उसने अचानक माँ के द्वारा दस हज़ार रुपये की माँग पर थोड़ा अचरज़ से देखा, फिर अपनी पत्नी श्रेया को माँ को दस हज़ार रुपये देने को कहकर चला गया।


श्रेया ने एक दो बार माँगने पर अपनी सास को दस हजार रुपये देते हुये कहा, "पता नहीं आजकल बहुत मंदी चल रही है, थोड़ा हाथ सम्भालकर खर्च करना... " हालांकि शाम को जब सरला ने उन पैसों से कुशाग्र की साइकिल खरीदी, तो घर का माहौल पूर्ववत हँसी मज़ाक का हो गया।

अगले हफ्ते मोहित की बड़ी बहन दो दिन के लिए मायके आई थी,  जब तक विशम्भरनाथ जी जीवित थे, सरला को कभी पैसे के लिये किसी से पूछना नही पड़ता, वह खुद ही अपनी पेंशन से एक रकम निकाल कर सरला को दे देते थे, मग़र आज बेटी की विदाई के लिए सरला को बहु से पैसे माँगते समय उसके शब्द "पता नहीं आजकल बहुत मंदी चल रही है, थोड़ा हाथ सम्भालकर खर्च करना"... याद आ गये और बहुत दुःखी मन से बेटी को बिना कुछ दिये ही विदा करने लगी, तब बहु ने खुद आकर सरला के हाथ में 2000 रुपये पकड़ाकर कहा, बेटी को खाली हाथ विदा करेंगी क्या? सरला ने महसूस कर लिया था कि बहु की बात में अपनापन कम उलाहना ज्यादा है।


ऐसा नहीं था कि सरला के जीवन में पैसे का आभाव आ गया हो, उसके इलाज़ के लिए, दवा के लिये, मोबाइल रिचार्ज करना, छोटी मोटी जरूरतों के लिए तो मोहित बिना कुछ कहे ही पैसा लाकर दे देता था, परन्तु इसके अलावा सरला को जो भी खर्च करना होता जैसे किसी मंदिर में दान करना, नौकरों को उनकी जरूरत या त्योहार पर पैसा देना या अपने रिश्तेदारों के आने पर उपहार देना जैसे छोटी मोटी जरूरतों के लिए उसे मोहित या बहु से पैसा माँगना स्वाभिमान को चोट करता था।


अभी दो दिन पहले सरला की बहन आई हुई थी, बहन की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, इसलिए वह सरला से कुछ आर्थिक सहयोग की अपेक्षा कर रही थी, मग़र खुद सरला को छोटे-छोटे खर्चो के लिए बहु की तरफ मुँह देखते देखकर उसने अपनी बहन से कुछ न कहा।


आज जैसे ही उसके मोबाईल पर पहली बार स्टेट बैंक का SMS आया, सरला ने आश्चर्य से मैसेज खोलकर देखा, पिछले छः महीने की पेंशन 72000 रुपये उसके अकाउंट में क्रेडिट होने का मैसेज था वह।

सरला नज़दीक के ATM से 10000 रुपये  निकालकर जब सरला घर आ रही थी, उसके आत्मविश्वास और कदमों की चाल ही बता रही थी कि पेंशन को "सम्मान निधि" क्यों कहतें हैं। 


अपने करोड़पति बेटे की करोड़ों की दौलत से ज्यादा वजन सरला को अपने पति की पेंशन से मिले 12000 रुपयों में लग रहा था।











*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*


🙏🙏🙏🙏🌳🌳🌳🙏🙏🙏🙏🙏

रविवार, 23 अप्रैल 2023

धीरेन्द्र अस्थाना की नजर में पंकज सुबीर


धीरेन्द्र अस्थाना की नजर में पंकज  सुबीर



 तुम्हारे पास तीन बेटियों की संपदा है, मेरे पास चाहने के बावजूद एक भी नहीं। रूदादे सफ़र जैसा महत्वपूर्ण उपन्यास तुम ही लिख सकते थे, मैं नहीं। कंटेंट के स्तर पर यह उपन्यास बहुत बहुत समृद्ध है और संवेदना के स्तर पर कातिलाना। यह लिखने का कारण है कि मैं उपन्यास पढ़ते हुए तीन चार बार रोया हूं। इसका अच्छा मतलब यह लेना चाहिए कि उपन्यास के पात्र अपनी व्यथाओं के साथ किताब से बाहर निकल कर आJपको अपने जीवन में ले आए हैं और आप उनके साथ ही रो और हंस रहे हैं। कायांतरण प्रवेश की यह कितनी बड़ी ताकत तुमने पात्रों के साथ पाठकों को भी सौंप दी है, ऐसा कोई कर पाता है क्या?

  यह देहदान की प्रक्रिया, पब्लिसिटी स्टंट, जरूरत, और अनिवार्यता का पाठ उपलब्ध कराता है,एक। यह पिता पुत्री के मायावी और महत्वपूर्ण रिश्तों की व्याख्या करता है और उसके समीकरण सुलझाता है,दो। यह पति पत्नी के तिलिस्मी रिश्तों पर पड़ी चादर हटाता है और उसे यथार्थ तथा स्नेह के संयुक्त आभासों के दर्पण में दिखाता है,तीन। चौथा सनसनीखेज यह कि मेडिकल जैसे ईश्वरीय पेशे के भीतर पनपते रक्तरंजित मंसूबों को निर्ममता से उघाड़ देता है।यह एजुकेटिव और फैमिलियर एक साथ है। मेरे जैसे आदमी के लिए बोनस भी है इसमें। इस उपन्यास के जरिए मैंने भोपाल को उसकी रूह के साथ महसूस कर लिया।

   तुम बेहतरीन कथागो हो पंकज सुबीर। आज से तुम मेरे महबूब लेखक हुए।

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

इक्यावन_कविताएँ #ऋषभदेवशर्मा

 

इक्यावन_कविताएँ #ऋषभदेवशर्मा


डॉ. ऋषभदेव शर्मा की 51 चयनित कविताओं के इस गुलदस्ते का हर पुष्प अपने-आप में नयनाभिराम, सुगंधित और चटख रंगों वाला है। किसी भी रचनाकार के लिए अपने शिल्प की सीमा से बाहर लिखना कठिन होता है, लेकिन इन कविताओं में शिल्प की विविधता सहज नज़र आती है। कविताओं में विशुद्ध भारतीय और पौराणिक संदर्भों का विलक्षण मिथकीय प्रयोग और इसे आज की समस्याओं/विषमताओं से जोड़ना एक ऐसे पुल का निर्माण करता है, जिसे पार करते हुए पाठक हजार वर्षों की अंतर्यात्रा कर आता है। 


'अहं ब्रह्मास्मि' के सूत्रवाक्य की तरह इन कविताओं का विषय भी 'मैं' से 'ब्रह्म' तक व्यापक है। लेकिन इस विस्तार में जो समानता है, वह यह कि ये कविताएँ मनुष्यता के पक्ष में रची गई रचनाएँ हैं, जो साबित करती हैं कि ऋषभदेव शर्मा जन-मानस के कवि हैं। खासतौर पर एक ऐसे वक़्त में जब कविताओं के विषय सिमटते जा रहे हैं और भाषा में एकरूपता आती जा रही है, इन कविताओं को पढ़ना एक सुखद अहसास है। 


इन कविताओं से गुज़रना किसी चुंबकीय रास्ते से गुज़रने जैसा है, जहाँ इन कविताओं के अंश पाठकों की आत्मा से चिपक जाते हैं और फिर देर तक उन्हें गुदगुदाते, कचोटते, कोसते और ढाढ़स बँधाते रहते हैं। इस संकलन की कविताओं का रसास्वादन करने के बाद पाठक, प्रो. ऋषभदेव शर्मा के कवि-कर्म की गंगोत्री तक जरूर जाना चाहेंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।


                ✒️ #प्रवीण_प्रणव

           (Praveen Pranav)

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

नभ और धारा की ये दोस्‍ती

 


नभ और धारा की ये कहानी दोस्‍ती, प्‍यार और नफरत के बीच के अजीब सफर से गुजरती है। नभ एक आर्मी ऑफिसर है जो आर्मी में इसलिये गया क्‍योंकि उसे अपनी बचपन की दोस्‍त धारा की नाराजगी को दूर करना था।


धारा और नभ बचपन में गहरे दोस्‍त थे लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ये दोस्‍ती नफरत में बदल गई। धारा ने अपने हालात और पापा से एक लंबी जंग लड़ने के बाद अपना डॉक्‍टर बनने का सपना पूरा किया लेकिन उसे ये नहीं पता था कि एक दिन नभ खुद मरीज बनकर आएगा। आर्मी का ये जांबाज़ सिपाही तीन गोली खाकर उसी के हॉस्‍पिटल में एडमिट हुआ। 

डॉ धारा क्‍या अपनी नफरत को भुला कर नभ का ऑपरेशन कर पाएगी? 

पढ़िये मेरी किताब 

“प्‍यार मुझसे जो किया तुमने”


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BFC Publications Kahani Ankahi



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लाजवाब 


यदि आपने : / shashi singh

 यदि आपने : 

बखरी की कोठरी के ताखा में जलती ढेबरी देखी है।

दलान को समझा है।

ओसारा जानते हैं।

दुवारे पर कचहरी (पंचायत) देखी है।

राम राम के बेरा दूसरे के दुवारे पहुंच के चाय पानी किये हैं।

दतुअन किये हैं।

दिन में दाल-भात-तरकारी 

खाये हैं।

संझा माई की किरिया का मतलब समझते हैं।

रात में दिया और लालटेम जलाये हैं।

बरहम बाबा का स्थान आपको मालूम है।

डीह बाबा के स्थान पर गोड़ धरे हैं।

तलाव (ताल) के किनारे और बगइचा के बगल वाले पीपर और स्कूल के रस्ता वाले बरगद के भूत का किस्सा (कहानी) सुने हैं।

बसुला समझते हैं।

फरूहा जानते हैं।

कुदार देखे हैं।

दुपहरिया मे घूम-घूम कर आम, जामुन, अमरूद खाये हैं।

बारी बगइचा की जिंदगी जिये हैं।

चिलचिलाती धूप के साथ लूक के थपेड़ों में बारी बगइचा में खेले हैं।

पोखरा-गड़ही किनारे बैठकर लंठई किये हैं।

पोखरा-गड़ही किनारे खेत में बैठकर 5-10 यारों की टोली के साथ कुल्ला मैदान हुए हैं।

गोहूं, अरहर, मटरिया  का मजा लिये हैं

अगर आपने जेठ के महीने की तीजहरिया में तीसौरी भात खाये हैं,

अगर आपने सतुआ का घोरुआ पिआ है,

अगर आपने बचपन में बकइयां घींचा है।

अगर आपने गाय को पगुराते हुए देखा है।

अगर आपने बचपने में आइस-पाइस खेला है।

अगर आपने जानवर को लेहना और सानी खिलाते किसी को देखा  है।

अगर आपने ओक्का बोक्का तीन तलोक्का नामक खेल खेला है।

अगर आपने घर लिपते हुए देखा है।

अगर आपने गुर सतुआ, मटर और गन्ना का रस के अलावा कुदारी से खेत का कोन गोड़ने का मजा लिया  है।

अगर आपने पोतनहर से चूल्हा पोतते हुए देखा है।

अगर आपने कउड़ा/कुंडा/ सिगड़ी/ कंडा  तापा है।

अगर आप ने दीवाली के बाद दलिद्दर खेदते देखा है।


तो समझिये की आपने एक अद्भुत ज़िंदगी जी है, और इस युग में ये अलौकिक ज़िंदगी ना अब आपको मिलेगी ना आने वाली  पीढ़ी को  क्योंकि आज उपरोक्त चीजें विलुप्त प्राय होती जा रही हैं या हो चुकी हैं।

शनिवार, 15 अप्रैल 2023

बनारसी दास जैन ( आगरा )

बनारसी दास जैन ( आगरा )


 अक्सर हम केवल उन्हीं किताबों को पढ़ते हैं जो बहुत चर्चित होती हैं। किंतु कई अच्छी किताबें ऐसी भी हैं, जिनकी तरफ ध्यान कम ही जा पाता है। ‘अर्धकथानक’ या ‘द हाफ स्टोरी’ (The Half Story) भी एक ऐसी ही किताब है जिसकी तरफ लोगों का ध्यान शायद कम ही गया है। यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि, यह किताब भारतीय भाषा में लिखी गयी पहली आत्मकथा है जिसे 1641 में बनारसीदास द्वारा तत्कालीन ब्रजभाषा में लिखा गया था। मध्यकाल तक किसी भी लेखक या कवि ने अपने बारे में नहीं लिखा किंतु ऐसा पहली बार हुआ जब बनारसीदास द्वारा अपनी आधी जिंदगी की पूरी कहानी को पुस्तक के रूप में वर्णित किया गया। हिंदी की इस आरंभिक आत्मकथा में पहली बार किसी लेखक ने अपने आत्म जीवन को प्रकट किया।

बनारसी दास एक जौनपुरी लेखक, कवि, दार्शनिक और व्यापारी थे जो आगरा में निवास करते थे। उनकी यह आत्मकथा 17वीं शताब्दी में पूरे उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुई। इस आत्मकथा को लिखने का उनका एक ही मकसद था कि वे अपनी कहानी सबको बताएं। यह आत्मकथा पारदर्शिता और स्पष्टता के साथ उनके जीवन को प्रकट करती है तथा मानव अस्तित्व की प्रकृति पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। यह बात आश्चर्यजनक है कि पुस्तक का लहजा मध्ययुग की तरफ ना होकर काफी अधिक आधुनिक है। पुस्तक के माध्यम से उनके जीवन के उतार-चढ़ाव तथा बौद्धिक और आध्यात्मिक संघर्षों को जाना जा सकता है। उस समय बनारसीदास आगरा में रहते थे और उनकी उम्र 55 साल थी। उनका जन्म एक श्रीमल जैन परिवार में हुआ था तथा उनके पिता खड़गसेन जौनपुर में जौहरी का कार्य करते थे। उन्होंने अपना बचपन जौनपुर में बिताया लेकिन बाद में वे आगरा आ गए।

इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद रोहिणी चौधरी द्वारा किया गया है तथा उन्होंने ही इस पुस्तक की भूमिका भी तैयार की। जैन शास्त्रों के अनुसार मनुष्य का पूर्ण जीवनकाल 110 वर्षों का होता है, किंतु क्योंकि इसमें केवल आधे जीवन की ही व्याख्या की गयी है इसलिए इसे ‘अर्ध कथानक’ कहा गया है। लेखक वैश्य परिवार से सम्बंधित थे तथा उनकी आपबीती उनके समाज की भी व्याख्या करती है। लेखक बताते हैं कि कैसे उनके समाज में बचपन से ही बच्चों को व्यापार में पारंगत किया जाता था। लेकिन बनारसीदास न केवल व्यापार में बल्कि छंद, शास्त्र, और प्रेम में भी पारंगत हुए। उन्होंने लिखा कि अपने प्रेमालंबन की उनके ऊपर ऐसी धुन सवार थी कि वे अपने पिता से मानिक, मणि आदि चुराते और खूब पान और मिठाइयां खरीदते तथा अपनी प्रेमिका को पेश करते। अपने प्रेम के ऊपर उन्होंने हज़ार दोहे और चौपाइयां लिखीं हैं। एक बार जब वे बुरी तरह बीमार हुए तब परिवार के सब लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया। उस कठिन समय में अपनी पत्नी की सेवा से वे ठीक हुए और उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया। बाद में उन्होंने जैन धर्म का गहरा अध्ययन किया और अध्यात्म से जुड़ गये।

बनारसीदास की यह कहानी जौनपुर, बनारस, आगरा, और इलाहाबाद में फैली हुई है। वे यह जानते थे कि आपबीती बताते हुए व्यक्ति को पूरी इमानदारी बरतनी चाहिए और इसलिए उन्होंने बिना गुण-दोष विवेचन के यह कहानी बड़ी स्पष्टता से व्यक्त की है। पुस्तक में अनेक स्त्रियों का भी वर्णन है जैसे - उनकी नानी, बूढ़ी दादी जो उनकी पहली कमाई पर मिठाई बांटती हैं, उनकी पत्नी, प्रेमिका आदि। यह दिलचस्प बात है कि इन स्त्रियों के नाम नहीं बताये गये हैं जिससे पता चलता है कि तत्कालीन समाज में सार्वजनिक रूप से महिलाओं का नाम नहीं लिया जाता था। उन्होंने अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ तीन मुग़ल बादशाहों का दौर देखा। पुस्तक में मुगलों के आतंक और उनके इन्साफ का वर्णन तो है ही, समाज में उनकी व्याप्ति के भी प्रसंग हैं। वे लिखते हैं कि जब बादशाह अकबर की मृत्यु हुई उस समय लेखक जौनपुर में थे तथा मौत की खबर सुनकर सीढ़ियों से गिर पड़े और उनके सिर पर चोट लग गयी। अकबर के न रहने के समाचार से पूरे शहर में दंगे भड़क उठे और लोगों में असुरक्षा की भावना भर गयी। तब लोगों ने अपने अच्छे वस्त्र और कीमती आभूषण ज़मीन में गाड़ दिए तथा नकद पैसा सुरक्षित स्थानों में छिपा दिया। दस दिनों तक जौनपुर में भय का ऐसा ही माहौल व्याप्त रहा किंतु जब आगरा से खबर आई कि अकबर का बेटा सलीम शाह गद्दी पर बैठ गया है, तब सब कुछ ठीक हो गया और शहर में शांति लौटी। तीनों बादशाहों के दौर में उनके परिवार को अपमानित होना पड़ा था। लेकिन किताब में मुगलिया सल्तनत को लेकर अच्छी ही बातें कही गई हैं।

निम्नलिखित श्लोक 1605 में अकबर की आकस्मिक मृत्यु के प्रभाव का वर्णन करते हैं कि कैसे उत्तराधिकार की अनिश्चितता ने धनी वर्गों Pके बीच व्यापक भय पैदा किया ‌-
घर-घर डर-डर किये कपाट,
हतवानि नाहिं.न बइठे हाट।
अर्थात, हर घर में सभी कपाट बंद कर दिये गये तथा व्यापारियों ने अपनी दुकानों पर बैठना बंद कर दिया।

भले वस्त्र अरु भूषण भले,

ते सब गड़े धरती तले।

अर्थात सुन्दर वस्त्रों और आभूषणों को ज़मीन के नीचे गाड़ दिया गया।
घर घर सबने विसाहे सशस्त्र,
लोगन पहिने मोटे वस्त्र।

अर्थात लोगों ने अपने हथियार तैयार कर लिये तथा मोटे (खुरदुरे) वस्त्र धारण किये।

हालांकि लेखक ने इसके अलावा अन्य किताबें भी लिखी हैं किंतु उनके नाम के साथ अर्धकथानक ही लोकप्रिय रूप से जुड़ी है। इसकी भाषा को लेखक ने ‘मध्यदेश की बोली’ कहा है जिसके बारे में विद्वानों का कहना है कि वह आज की खड़ी बोली के अधिक करीब है। इसीलिए शायद इसे हिंदी की पहली आत्मकथा कहा जाता है।

संदर्भ:
1. 
https://www.goodreads.com/en/book/show/10509627-ardhakathanak
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Banarasidas
3. https://www.jankipul.com/2010/11/blog-post_03-2.html
4. http://shabdavali.blogspot.com/2009/04/4.html
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.rohinichowdhury.com/Translations/39-/Ardhakathanak



शून्य

 जितनी बार पढ़ो उतनी बार जिंदगी का सबक दे जाती है ये कहानी ....


जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।


फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी।


और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।


और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।


समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।

इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।


बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी


इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।


इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।


एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"


उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"

कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।


तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।


बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।


उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।


दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।


अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।


एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।


उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।


मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "

वो तुरंत बोली " अभी आई"।


मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!


उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"


लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।


क्षण भर को वो शून्य हो गयी।

" क्या करू ? "


उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।


मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली

"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!

ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......

वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।


क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??


जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।

टोटल टीवी में काम करने वाले तमाम दोस्तों की याद में / पंडित संदीप

 

पंडित संदीप 


टोटल टीवी में काम करने वाले भूत और वर्तमान दोस्तों की याद में... 


इसमे सब है देखो तुम्हारा  नाम है क्या एक यादो की कविता अर्पित है


टोटल के टोटल स्टाफ 


कुछ चहक कर जो मिलते थे मिलेंगे 

कुछ हंस-हंसकर बातें करते थे फिर करेंगे

कुछ खुश होते थे देख कर खुश होंगे 

कुछ भौ ताने गढ़ते थे गढ़ेंगे जलेंगे 

कुछ जिन से कह ना सके अब कहेंगे 

कुछ जिन्हें जान  नहीं पाये जानेंगे कुछ नए-नए से हों कर फिर मिलेंगे

कुछ बदले से बदल कर आएंगे आतुरता है बस अब आलिंगन की 

उन सपनों को फिर फिर जीने की 

जब बांध कमर पर बोझ चले थे जीवन का समझ मोल चले थे 

वह नुक्ताचीनी तल्लफुश की बातें पीटीसी फोनों से मस्त मुलाकाते कथूरिया का पानीपती मुरब्बा नसीम की स्टोरी के अम्मी अब्बा विकास की पेंट पकड़ पीटूसी 

और नोएडा को कहना गुड़गांवा सी 

शालिनी के नाम पर नागिन लिख देना 

वो एमसीडी वाले सोलंकी का कैरा मैन कहना 

प्रदीप की पीटीसी वाली एक अलग टेप

परफ़ेक्ट के लिए भाई के सौ सौ टेक

Live के लिए सुबह कतार में लगना 

का बताये बहिन मस्टरवा का कच्छा में घुसना

कुछ vo करने की हसरत 

चन्दन सर का शीशा लगवाने की हरकत 

अरोड़ा जी का चुप चुप समझाना शरद नारायणर का हाजिरी दिखाना 

शैलेश सर की थी शान निराली 

राहुल पंडिता शब्दों की प्याली नवीन शर्मा थे बड़े कलाकार 

सेंगर साहब ने दिया नया आकार 

नीलम दुबे की पर्ची पर्ची का खेल शशि की टोपी सरवन का मेल

फिर आया केएम का राज

अपनी कोने पड़ गई खाट

सालवी की साधना ov गढ़ना

Gfx वालों का ताना-बाना बुनना मेहता सर थे बहुत असरदार

पवार की इलायची जायकेदार

मनचंदा का नोटो का झोला

टोटल ने बाज़ार में हल्ला बोला

रूबी का रौब ज्योति की शांति

करुणा कि कृपा याद है आतीI

कुलदीप का केला प्रेम भूल न जाना

भटनागर का कर के पछताना

तारा जोशी का अमिट मुकाम

अमित शुक्ला गीता प्रियंका का अद्भुत कामI

प्रीति पांडे का जुनून कुंदन का अभियान 

मनीष शुक्ला की स्क्रिप्ट स्टोरी तमाम 

राणा का चश्मा पूजा की एंकरिंग संतोष तिवारी का सटीक चित्रण 

कमल गौरी का गज़ब था तोता ज्ञान

सच टोटल फैमली एक बड़ी मधुशाला थी  

जहां सत्यम की एक मस्त पाठशाला थी

एक और था नाम बहुत दमदार प्रताप टोटल का पहला चौकीदार संजीत गंगा मुकेश बेहद थे खास यह देते थे मेरा मौके पर साथ 

एक ओझा मानकर मासूम की तिगड़ी 

राय तप्पन दा की भूजा पार्टी ओम मनोहर गांधी धर्मेंद्र ज्ञानेंद्र इनकी भी है बहुत याद सताती लाइब्रेरी के संजीव स्टोर का राक्षस

परवीन pcr मेरा परविंदर एडिटर

विकाश शर्मा और सनरिका का Becoming

टोटल का बस इतना ही मुझे याद है

ये मेरी  यादों की छोटी बरसात है

संदीप मेरे भाई जैसा आज भी साथ है

और जिन्हें भूल गया गलती माफ है।

एक मेरा साथी छूट गया वो कैसे?

अरे कहा मिलेंगे अनिल और चन्द्रशेखर जैसे।


कुछ गलती तो माफी बुरा न मानो  6 की तैयारी है।)

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

विरासत •

 

  • विरासत •

प्रस्तुति - विकास कृष्ण 



        महेश के घर आते ही बेटे ने बताया कि वर्मा अंकल आर्टिगा गाड़ी ले आये हैं। पत्नी ने चाय का कप पकड़ाया और बोली पूरे 13 लाख की गाड़ी खरीदी और वो भी कैश में। महेश हाँ हूँ करता रहा। आखिर पत्नी का धैर्य जवाब दे गया, हम लोग भी अपनी एक गाड़ी ले लेते हैं, तुम मोटर साईकल से दफ्तर जाते हो क्या अच्छा लगता है कि सभी लोग गाड़ी से आएं और तुम बाइक चलाते हुए वहाँ पहुंचो, कितना खराब लगता है। तुम्हे न लगे पर मुझे तो लगता है।


       देखो घर की किश्त और बाल बच्चों के पढ़ाई लिखाई के बाद इतना नही बचता कि गाड़ी लें। फिर आगे भी बहुत खर्चे हैं। महेश धीरे से बोला।


      बाकी लोग भी तो कमाते हैं, सभी अपना शौक पूरा करते हैं, तुमसे कम तनखा पाने वाले लोग भी स्कोर्पियो से चलते हैं, तुम जाने कहाँ पैसे फेंक कर आते हो। पत्नी तमतमाई।*


अरे भई सारा पैसा तो तुम्हारे हाथ मे ही दे देता हूँ, अब तुम जानो कहाँ खर्च होता है। महेश ने कहा।


मैं कुछ नही जानती, तुम गाँव की जमीन बेंच दो ,यही तो समय है जब घूम घाम लें हम भी ज़िंदगी जी लें। मरने के बाद क्या जमीन लेकर जाओगे। क्या करेंगे उसका। मैं कह रही कल गाँव जाकर सौदा तय करके आओ बस्स। पत्नी ने निर्णय सुना दिया।


अच्छा ठीक है पर तुम भी साथ चलोगी। महेश बोला । पत्नी खुशी खुशी मान गयी और शाम को सारे मुहल्ले में खबर फैल गयी कि सरला जल्द ही गाड़ी लेने वाली है।


सुबह महेश और सरला गाँव पहुँचे। गाँव में भाई का परिवार था। चाचा को आते देख बच्चे दौड़ पड़े। बच्चों ने उन्हें खेत पर ही रुकने को बोला, चाचा माँ आ रही है। तब तक महेश की भाभी लोटे में पानी लेकर वहाँ आईं और दोनों के जूड़ उतारने के बाद बोलीं लल्ला अब घर चलो।


बहुत दिन बाद वे लोग गाँव आये थे, कच्चा घर एक तरफ गिर गया था। एक छप्पर में दो गायें बंधीं थीं। बच्चों ने आस पास फुलवारी बना रखी थी, थोड़ी सब्जी भी लगा रखी थी। सरला को उस जगह की सुगंध ने मोह लिया। भाभी ने अंदर बुलाया पर वह बोली यहीं बैठेंगे। वहीं रखी खटिया पर बैठ गयी। महेश के भाई कथा कहते थे। एक बालक भाग कर उन्हें बुलाने गया। उस समय वह राम और भरत का संवाद सुना रहे थे। बालक ने कान में कुछ कहा, उनकी आंख से झर झर आँसू गिरने लगे, कण्ठ अवरुद्ध हो गया। जजमानों से क्षमा मांगते बोले, आज भरत वन से आया है राम की नगरी। श्रोता गण समझ नही सके कि महाराज आज यह उल्टी बात क्यों कह रहे। नरेश पंडित अपना झोला उठाये नारायण को विश्राम दिया और घर को चल दिये।


महेश ने जैसे ही भैया को देखा दौड़ पड़ा, पंडित जी के हाथ से झोला छूट गया, भाई को अँकवार में भर लिए। दोनो भाइयों को इस तरह लिपट कर रोते देखना सरला के लिए अनोखा था। उसकी भी आंखे नम हो गयीं। भाव के बादल किसी भी सूखी धरती को हरा भरा कर देते हैं। वह उठी और जेठ के पैर छुए, पंडित जी के मांगल्य और वात्सल्य शब्दों को सुनकर वह अन्तस तक भरती गयी।


दो पैक्ड कमरे में रहने की अभ्यस्त आंखें सामने की हरियाली और निर्दोष हवा से सिर हिलाती नीम, आम और पीपल को देखकर सम्मोहित सी हो रहीं थीं। लेकिन आर्टिगा का चित्र बार बार उस सम्मोहन को तोड़ रहा था। वह खेतों को देखती तो उसकी कीमत का अनुमान लगाने बैठ जाती।


दोपहर में खाने के बाद पण्डित जी नित्य मानस पढ़ कर बच्चों को सुनाते थे। आज घर के सदस्यों में दो सदस्य और बढ़ गए थे। अयोध्याकांड चल रहा था। मन्थरा कैकेयी को समझा रही थी, भरत को राज कैसे मिल सकता है। पाठ के दौरान सरला असहज होती जाती जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो। पाठ खत्म हुआ। पोथी रख कर पण्डित जी गाँव देहात की समसामयिक बातें सुनाने लगे। सरला को इसमें बड़ा रस आता था। उसने पूछा कि क्या सभी खेतों में फसल उगाई जाती है? पण्डित जी ने सिर हिलाते हुए कहा कि एक हिस्सा परती पड़ा है। सरला को लगा बात बन गयी, उसने कहा क्यों न उसे बेंच कर हम कच्चे घर को पक्का कर लें। पण्डित जी अचकचा गए। बोले बहू, यह दूसरी गाय देख रही, दूध नही देती पर हम इसकी सेवा कर रहे हैं। इसे कसाई को नही दे सकते। तुम्हे पता है, इस परती खेत में हमारे पुरखों का जांगर लगा है। यह विरासत है, विरासत को कभी खरीदा और बेंचा थोड़े जाता है। विरासत को संभालते हुए हम लोगों की कितनी पीढ़ियाँ खप गयीं। कितने बलिदानों के बाद आज भी हमने अपनी मही माता को बचा कर रखा है। तमाम लोगों ने खेत बेंच दिए, उनकी पीढ़ियाँ अब मनरेगा में मजूरी कर रही हैं या शहर के महासमुन्दर में कहीं विलीन हो गए। तुम अपनी जमीन पर बैठी हो, इन खेतों की रानी हो। इन खेतों की सेवा ठीक से हो तो देखो कैसे माता मिट्टी से  सोना देती है।  शहर में जो हर लगा है बेटा वो सब कुछ हरने पर तुला है, सम्बन्ध, भाव, प्रेम, खेत, मिट्टी, पानी हवा सब कुछ। आज तुम लोग आए तो लगा मेरा गाँव शहर को पटखनी देकर आ गया। शहर को जीतने नही देना बेटा। शहर की जीत आदमी को मशीन बना देता है। हम लोग रामायण पढ़ने वाले लोग हैं जहाँ भगवान राम सोने की लंका को जीतने के बाद भी  उसे तज कर वापस अजोध्या ही आते है, अपनी माटी को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं।


तब तक अंदर से भाभी आयीं और उसे अंदर ले गईं। कच्चे घर का तापमान ठंडा था। उसकी मिट्टी की दीवारों से उठती खुशबू सरला को अच्छी लग रही थी। भाभी ने एक पोटली सरला के सामने रख दी और बोलीं, मुझे लल्ला ने बता दिया था, इसे ले लो और देखो इससे कार आ जाये तो ठीक नही तो हम इनसे कहेंगे कि खेत बेंच दें।


सरला मुस्कुराई, विरासत कभी बेंचा नही जाता भाभी। मैं बड़ों की संगति से दूर रही न इसलिए मैं विरासत को कभी समझ नही पाई। अब यहीं इसी खेत से सोना उपजाएँगे और फिर गाड़ी खरीदकर आप दोनों को तीरथ पर ले जायेंगे, कहते हुए सरला रो पड़ी, क्षमा करना भाभी। दोनो बहने रोने लगीं। बरसों बरस की कालिख धुल गयी।


अगले दिन जब महेश और सरला जाने को हुए तो उसने अपने पति से कहा, सुनो मैंने कुछ पैसे गाड़ी के डाउन पेमेंट के लिए जमा किये थे उससे परती पड़े खेत पर अच्छे से खेती करवाइए। अगली बार  उसी फसल से हम एक छोटी सी कार लेंगे और भैया भाभी के साथ हरिद्वार चलेंगे।


शहर हार गया, जाने कितने बरस बाद गाँव अपनी विरासत को  मिले इस मान पर गर्वित हो उठा था।

🚩

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

एक श्रद्धांजलि ऐसा भी / अनिल कुमार चंचल



एक श्रद्धांजलि ऐसा भी  / अनिल कुमार चंचल 


 एहसास 

"एहसास ए दिल "

AGAM SANGEET  की ओर से मेरे संपादन में गीत ग़ज़लों  को संकलित पुस्तक प्रकाशन के क्रम में है. 

अभी तक औरंगाबाद से जनाब shabbir Hasan shabbir ,Sri Dhananjay Jaipuri, Himanshu Chakrapani, Janab Ekbal Akhtar Dil, Arvind Akela, sri Praveen Parimal,  sri sewa Sadan Prasad Smt Reema Sinha lakhnow, Debnath Ranj 

के रचनाएँ मुझे मिल चुकी है. 

यह स्व विनोद कुमार सिन्हा पुत्र स्व डॉ AGAM और हमारी माँ स्व सावित्री देवी को एक अनिल चंचल और उनके बच्चों की ओर से एक श्रद्धांजलि अर्पित होगी. 

स्व विनोद आपके जिले के ही एक गुमनाम गीतकार, लोक संगीत का composers जिसने 1966 में औरंगाबाद को छोड़कर  नौकरी के लिए Daltonganj, घर बसाया और 11july 2011 को अंतिम सांसे ली. 

ये औरंगाबाद का पुत्र झारखंड में परिचय का मोहताज़ भी नहीं है जिसने नटराज कला केंद्र की स्थापना, स्व महेंद्र नाथ त्रिपाठी, स्व हरिशंकर प्रसाद, स्व दीनानाथ साथी जैस संगीतप्रेमी के साथ स्थानीय प्रबुद्ध लोंगो का भरपूर साथ मिला. इनकी बेटी की समान शिष्य स्व नीलिमा सहाय  Ranchi Doordarshan ki Station Director ने उन तमाम नटराज कला केंद्र से जुड़े कलाकारों को आकाशवाणी और Doordarshan केंद्र में बतौर सहायता कर अपने रिश्तों को कायम मरते दम तक रखा. 

चुकीं मैं नौकरी में बाहर था लेकिन दो चार बार भेट हुई एक सगे चाचा का सम्मान वो अपने कार्यालय के कक्ष में मेरे चरण स्पर्श कर ही आशीर्वाद लेती रहीं. 

  यदि नीलम के लिए लोग कुछ कहना चाहे तो प्रक्रियाओं को मैं पुस्तक में स्थान देना चाहूंगा. 

मेरे अनुज funtus जी कुछ अटपटा लगेगा लेकिन बचपन से हम क्या पूरा मुहल्ला स्व प्रदीप कुमार रोशन को जनता था. कब रोशन रौशन हुआ मैंने उसके चले जाने के बाद शहर के लोंगो और उसके लिखे गीत ग़ज़ल नज़्म से पहचाना..

रौशन पर पहली क़िताब, अनामी शरण बबल और उसके बाद दूसरी किताब श्री विजय प्रकाश IAS ने creative learning के माध्यम से लोंगो तक पहुँचा है. 

 चर्चा के क्रम में प्रदीप के प्रति उनके मन में बहुत कुछ है और प्रदीप के कुछ रचनाएँ इस किताब का एक अहम हिस्सा होगी. 

 औरंगाबाद काव्य गोष्ठी में मैंने 2 अप्रैल को घोषणा किया है और ये जून तक काम हो जाना है. 

 वादे के अनुसार कुछ मित्रों की प्रतीक्षा में हूँ. 


सूचनार्थ 


!!  हमे लगता है कि 'एहसास ए दिल की छपाई नवी मुंबई में कराना सुविधाजनक होगा. !

कुछ मित्रों से बात हुई है और उनके बुक्स की छपाई भी हुई है, इसलिए मेरे लिए भी यही सुविधाजनक होगी.


धन्यवाद


अनिल कुमार चंचल 







रविवार, 9 अप्रैल 2023

लघु फिल्म बेसिक स्टेप्स

एक लघु फिल्म बनाने के लिए भी हमें फिल्ममेकिंग के जो बेसिक स्टेप्स है उसको फॉलो करनाहोता है |


एक फीचर फिल्म और लघु फिल्म में क्या अंतर होता है पहले इसके बारे में जानते है ?

एक फीचर फिल्म फुल लेंथ की फिल्म होती है | जो फिल्म 1 घंटा से ज्यादा की होती है वो फीचर फिल्म

की केटेगरी में आती है |

वहीं अगर लघु फिल्म की बात की जाए तो 1 घंटे से कम समय की होती है और ये 1 मिनट की भी हो सकती है |


लघु फिल्म देखना लोग ज्यादा पसंद करते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह है की कम समय में भी लघु फिल्म

के माध्यम से लोग पूरी कहानी जान जाते हैं |

6 आसान तरीके में कैसे एक लघु फिल्म बनाई जा सकती यही इसके बारे में जानकरी प्राप्त करते हैं –

Step 1: Create a Plan (लघु फिल्म निर्माण)

लघु फिल्म बनाने से पहले उसकी पहली स्टेप प्लानिंग की होती है | आप किस प्रकार की फिल्म बना रहे हैं
उसकी बजट क्या होगी? फिल्म को किस प्लेटफार्म पे रिलीज़ किया जायेगा ?और फिल्म बनाने का मुख्य
उद्देश्य क्या है ? इन सभी सवालों के बारे में विचार विमर्श करना और फिर लघु फिल्म बनाने की तैयारी
शुरू करना होता है |

लघु फिल्म लोग ज़्यदातर फिल्म फेस्टिवल्स में भेजने के लिए ही बनाते हैं | अगर लघु फिल्म की
बजट की बात की जाये तो किसी भी बजट में लघु फिल्म बनाई जा सकती है बस फिल्म बनाने का
जूनून आपमें होना आवश्यक है |

अगर फिल्म रिलीज की बात की जाये तो अभी शोशल मीडिया का जमाना है और लघु फिल्म के लिए
सबसे ज्यादा परफेक्ट जगह है जहाँ पे आप अपने टैलेंट को दिखा सकते हैं और अगर आपकी लघु
फिल्म अच्छी हुई तो सोशल मीडिया के वजह से वायरल भी जा सकती है |

फेसबुक और यूट्यूब पे आप लघु फिल्म को रिलीज कर सकते हैं और उसके माध्यम से पैसे भी कमा
सकते हैं |

स्टेप 1 में ये सभी प्लानिंग आपकी पूरी होनी चाहिए की आप जो फिल्म बना रहे हैं उसमे
बजट क्या होगा? फिल्म कितने देर की बनेगी और उसको रिलीज कहाँ करना है |

फिर आते हैं अगले स्टेप में और वो प्री-प्रोडक्शन |

Step 2: प्री-प्रोडक्शन (लघु फिल्म निर्माण)

प्री-प्रोडशन के अंदर फिल्म की शूटिंग से पहले की सभी प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है | जैसे कहानी लिखने
से लेकर फिल्म शूटिंग ताकि की जो भी प्रक्रिया है उसकी पूरी तरह से तयारी फिल्म के प्री-प्रोडक्शन चरण में
कर ली जाती है |

फिल्म के कहानी लिखने की प्रक्रिया को स्क्रिप्ट राइटिंग बोलते हैं | स्क्रिप्ट कैसे लिखते हैं इसके बारे में
जानने के लिए अलग से एक पोस्ट काफी डिटेल्स में लिखा हुआ उसको पढ़ के जानकरी प्राप्त कर सकते हैं |

स्क्रिप्ट लिखने के बाद फिल्म की शूटिंग कहाँ की जाएगी उसके लिए लोकेशन ढूँढना भी प्री-प्रोडक्शन चरण
में ही हो जाता है | फिल्म के अंदर कौन करैक्टर के लिए कौन से एक्टर रोल करेंगे ये सभी निर्णय इसी चरण में
कर लिया जाता है |

एक्टर का सिलेक्शन करना कास्टिंग कहलाता है और इस काम के लिए कास्टिंग डारेक्टर जिम्मेबार होता
होता है | अगर आपके फिल्म की बजट कम है तो आप खुद से भी एक्टर की कास्टिंग कर सकते हैं |

कास्टिंग करने के लिए एक्टर का ऑडिशन ले सकते हैं | ऑडिशन लेने के लिए आप एक्टर से एक्टिंग
करवा के देख सकते हैं आप जो फिल्म बना रहे हैं उसके ही कुछ सीन करवा के देख सकते हैं और जो
परफेक्ट लगे उस एक्टर को अपने फिल्म के लिए रख सकते हैं |

फिल्म को शूट जो करेगा उसे सिनेमेटोग्राफर कहते हैं तो आपके फिल्म के लिए सिनेमेटोग्राफर कौन होगा ये
निर्णय लेना प्री-प्रोडक्शन चरण में ही जरुरी है |

आपके फिल्म की शूटिंग के लिए बजट के हिसाब से ही फिल्म इक्विपमेंट का चुनाव करना होता है |
ये सभी निर्णय भी आपको इसी चरण में लेना होता है |

Step 2: प्रोडक्शन (लघु फिल्म निर्माण)

ये सभी तैयारियां होने के बाद फिल्म चली जाती है प्रोडक्शन के लिए |
प्रोडक्शन चरण के अंदर फिल्म की शूटिंग की जाती है | फिल्म शूटिंग में हरेक शार्ट को सेट पे
ही कन्फर्म करना जरूरी होता है |

एक बार आपकी फिल्म अगर शूट हो गयी तो फिर दुबारा से उस सीन को बाद में शूट करना मुश्किल
हो सकता है | फिर से सब लोग को सेट पे बुलाना और फिर से किसी सीन के गलतियों को ठीक करने के
लिए दुबारा से शूट करना मुश्किल हो सकता है | इसी लिए समय रहते सेट पे ही फिल्म के गलतियों को ठीक कर लें |

Step 2: पोस्ट-प्रोडक्शन

फिल्म शूट हो जाने के बाद फिल्म अगले चरण यानि पोस्ट प्रोडक्शन में चली जाती है |
पोस्ट प्रोडक्शन में फिल्म की एडिटिंग की जाती है | अगर फिल्म कलर ग्रेडिंग करना है तो
वो भी फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन चरण में ही की जाती है |

इसी चरण में ऑडियो मिक्सिंग , फिल्म की डबिंग और फिल्म की फाइनल एडिटिंग कर के पूरी तरह
कम्पलीट और रिलीज के लिए तैयार फुटेज निकाला जाता है |

उसके बाद आप फिल्म को जहाँ चाहे रिलीज कर सकते हैं |

लघु फिल्म को फिल्म फेस्टिवल्स में भी भेज सकते हैं लेकिन कुछ फिल्म फेस्टिवल्स में पहले से
रिलीज की हुई लघु फिल्म एक्सेप्ट नहीं की जाती है उसका पको ख्याल रखना है |
इस तरह आसान चरणों में आप अपना पहली लघु फिल्म बना सकते हैं |

How to Make an Independent Film |एक स्वतंत्र फ़िल्म निर्माण कैसे करें

खो गयी कहीं चिट्ठियां

 प्रस्तुति  *खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे।  बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते...