गुरुवार, 18 जुलाई 2024

प्रवीण परिमल की काव्य कृति तुममें साकार होता मै का दिल्ली में लोकार्पण


 कविता के द्वार पर एक दस्तक : राम दरश मिश्र 

38 साल पहले विराट विशाल और भव्य आयोज़न 


 तुममें साकार होता मैं 💕/ प्रवीण परिमल 

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#पाटलिपुत्र_टाइम्स (पटना),

(दिनांक 11 मई ,1986) में प्रकाशित 


#अनामी_शरण_बबल की रिपोर्ट 


(मेरी पहली कविता- पुस्तक 

#तुममें_साकार_होता_मैं  

(लोकार्पण  रिपोर्ट आप सभी मित्रों के लिए)




विगत दिनों #नई_दिल्ली, रफी मार्ग पर स्थित विट्ठल भाई पटेल हाउस के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में गया (बिहार) के युवा कवि प्रवीण परिमल की प्रथम काव्य- कृति "तुममें साकार होता मैं" का विमोचन एवं समीक्षा- गोष्ठी संपन्न हुई।

   पुस्तक का विमोचन एवं गोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात कवि, कथाकार एवं आलोचक #डॉ_रामदरश_मिश्र ने की और विशिष्ट अतिथि के रूप में थे प्रकाशन विभाग के निदेशक एवं कवि #डॉ_श्याम_सिंह_शशि।

    कार्यक्रम के संयोजक #श्री_अखिल_अनूप ने सर्वप्रथम कवि का संक्षिप्त परिचय कराते हुए कहा कि प्रवीण परिमल कविता के द्वार पर एक दस्तक है और इसे इसी रूप में लेना चाहिए। 

     विमोचन के उपरांत कवि ने अपनी पुस्तक से छ: रचनाओं का पाठ किया जिनकी प्रशंसा कार्क्रयम में उपस्थित लगभग सभी लोगों ने मुक्तकंठ से की।

     समीक्षा- गोष्ठी के अंतर्गत सर्वप्रथम #डॉ_रमाशंकर_श्रीवास्तव ने अपना आलेख पढ़ते हुए कहा कि मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि प्रवीण परिमल के इस संग्रह की कुछ रचनाएँ बेहद अच्छी हैं। पुस्तक के तीनों खंडों से उदाहरणार्थ तीन रचनाएँ उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि सहज अनुभूतियों के धरातल पर परिमल की रचनाएँ सच्चाई की तस्वीर हैं और इनमें मानव- समाज के विविध पक्षों और उनकी असंगतियों की रेखाएँ उभर कर सामने आई हैं तथा जीवन की सच्चाई कविता में सूक्ति बन गई है। अंत में दो-तीन कविताओं के बारे में श्री श्रीवास्तव ने कहा कि ये कवि की कमजोर रचनाएँ हैं क्योंकि क्रमिक विवरणों के समूह वाली चौखटों में बँध जाने के कारण ये पाठकों का मनोरंजन तो कर पाती हैं परंतु संवेदन का स्थायी आस्वाद दे पाने में अक्षम हैं।

    इस क्रम में #डॉक्टर_अरविंद_त्रिपाठी एवं #विनय_विश्वास ने भी अपने- अपने आलेख पढ़े और इन दोनों वक्ताओं के अनुसार प्रथम खंड की कविताओं को ही बेहतर बताया गया। गीतों को छायावाद से प्रभावित एवं अधिकांश ग़ज़लों को रूमानियत की पुट लिए हुए होने के कारण उक्त दोनों वक्ताओं के द्वारा 'अच्छी रचना ' की श्रेणी में नहीं रखा गया। 

डॉक्टर त्रिपाठी ने कुछ प्रेम कविताओं को भी निम्न श्रेणी का बताया और उदय प्रकाश तथा मंगलेश डबराल को प्रेम- कविता का बेहतर कवि कहा। बाद में, अपने वक्तव्य के दौरान डॉ रामदरश मिश्र ने डॉक्टर त्रिपाठी के इस विचार से अपनी स्पष्ट असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल कविताओं के साथ 'नाम ' जोड़ देने का फैशन- सा चल गया है, जो कि अच्छा नहीं है।

     पुस्तक पर विचार प्रस्तुत करने के क्रम में #डॉक्टर_नरेंद्र_मोहन ने गीतों और ग़ज़लों के प्रति अपनी 'एलर्जी ' स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि यद्यपि परिमल की ये रचनाएँ पढ़ने में अच्छी लगती हैं तथापि इनमें कवि का वह स्वर नहीं दीखता जो कविताओं में है और जो कि आज की युवा- पीढ़ी का स्वर है। वैसे, कवि के पास छंद में भी सफलतापूर्वक लिख पाने का सामर्थ्य है, यही बात परिमल जैसे नवोदित कवि के लिए कम महत्वपूर्ण नहीं है। पुस्तक के प्रथम खंड पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हुए डॉ मोहन ने आगे कहा कि जैसा कि और वक्ताओं ने कहा है, मैं भी महसूसता हूँ कि परिमल की कविताओं में अनुभव की ताजगी है, ईमानदारी है। अहसास की गर्मी है, तपिश है। अच्छी से अच्छी ईमानदार अनुभूतियों की ये कविताएँ सचमुच हमारे हृदय को छूती हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश कविताएँ प्रतीक- निर्भर ही बन पड़ी हैं, बिंब- निर्भर नहीं और इनमें व्यंग्य की भी कमी प्रतीत होती है। हां, क्षणिक तिलमिलाहट पैदा करने वाले 'कटाक्ष '  की मात्रा भरपूर है। इस संदर्भ में एक तरफ जहाँ डॉ मोहन के विचार उपर्युक्त हैं, वहीं डॉक्टर रामदरश मिश्र एवं डॉ श्याम सिंह शशि के सम्मिलित विचारों के अनुसार परिमल की ये कविताएँ स्पष्टत: विंबधर्मा हैं और इनमें पर्याप्त व्यंग्य भी मौजूद है।

     #श्री_प्रताप_सहगल ने भी डॉक्टर नरेंद्र मोहन के एक विचार से अपने आप को असहमत बताते हुए कहा कि ऐसा वे नहीं मानते कि ग़ज़ल या गीत नहीं लिखना चाहिए। डॉ शशि का भी इस संदर्भ में यही मानना है। इन दोनों ही वक्ताओं के अनुसार महत्व की बात यह नहीं है कि कोई ग़ज़ल लिख रहा है या गीत,  बल्कि महत्व की बात यह है कि लिखनेवाला इनके माध्यम से समाज को दे क्या रहा है। डॉ अरविंद त्रिपाठी और विनय विश्वास की ही भांति व्यक्ति- विशेष पर लिखी गई दो कविताओं पर ऐतराज जाहिर करते हुए श्री सहगल भी प्रथम खंड की कविताओं को ही महत्वपूर्ण बताते हैं, खासकर प्रारंभ की कुछ कविताओं को। गीतों और ग़ज़लों को भी मात्र छायावाद से प्रभावित या रूमानियत की पुट लिए हुए होने के कारण नज़रअंदाज नहीं किए जाने के संदर्भ में सिफारिश करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें क्या नहीं है, हमें इस पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए बल्कि इनमें क्या है, हमें यह देखना चाहिए और यही देखने की आवश्यकता भी है। और इस दृष्टि से परिमल के गीत और ग़ज़लें पूर्णत: नज़रअंदाज कर दिए जाने लायक नहीं हैं।

    #डॉ_हरिवंश_अनेजा ने अपने विचार, खासकर ग़ज़ल  खंड को ही ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया और ग़ज़ल की कुछ टेक्निक पर बात करते हुए इस खंड की अधिकांश ग़ज़लों को संतुलित, सशक्त और प्रभावी बताया।

     #डॉ_श्याम_सिंह_शशि ने इस कृति को एक श्लाघनीय एवं बेहतर प्रयास बताते हुए कहा कि परिमल की पुस्तक के प्रथम खंड की कविताएँ निसंदेह बहुत ही अच्छी हैं। इनमें व्यंग्य की प्रचुरता भी है और पाठक के अंदर में बहुत गहरे तक उतर जाने का सामर्थ्य भी। कुछ वक्ताओं के विचारों से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए उन्होंने दूसरे और तीसरे खंड की रचनाओं में से भी अधिकांश को अच्छी एवं पठनीय बताते हुए कहा कि किसी भी कवि की हर कविता की हर पंक्ति कविता नहीं होती और यदि सिर्फ दोष निकालने की दृष्टि से देखा जाए तो प्रवीण परिमल जैसा नया कवि ही नहीं अपितु यहाँ उपस्थित अथवा अनुपस्थित हमारी पीढ़ी या हमसे भी वरिष्ठ पीढ़ी के किसी भी कवि की किसी भी कविता में दोष नहीं निकाला जा सकता है, ऐसा नहीं है। 

      लगभग सभी वक्ताओं के विचारों से अपने को सहमत करते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में #डॉ_रामदरश_मिश्र ने भी प्रवीण परिमल की पुस्तक के प्रथम खंड की प्रारंभिक कुछ कविताओं को 'बहुत अच्छी रचना' की श्रेणी में रखते हुए कहा कि मुझे आश्चर्य है कि डाॅक्टर नरेंद्र मोहन को इनमें बिंब एवं व्यंग्य कैसे नज़र नहीं आया। प्रतीक एवं बिंब के सूक्ष्म अंतर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे कहा कि, जैसा कि अभी-अभी डॉ शशि ने कहा भी है, किसी भी कवि की सभी रचनाएँ अच्छी नहीं होतीं और यदि ऐसा होता तो हम सबों के सब-के-सब संग्रह बहुत अच्छे आते।

     एक संग्रह में, बिना किसी लाग- लपेट के, बिल्कुल ही सहज ढंग से बहुत बड़ी बात उभारने वाली यदि पाँच- छ: अच्छी कविताएँ भी निकल आती हैं तो हमारे लिए बहुत सुख की बात होती है। ऐसा विचार व्यक्त करने वाले डॉक्टर मिश्र का कहना है कि मैं कवि की प्रारंभिक कुछ कविताओं को देखते हुए इसकी शक्ति के प्रति बहुत आश्वस्त हूँ।

     उपर्युक्त सभी वक्ताओं की प्रतिक्रियाओं पर सम्मिलित एवं संक्षिप्त प्रतिक्रिया स्वयं कवि के द्वारा भी प्रस्तुत की गई जिसमें उन्होंने कहा कि भविष्य में कवि- कर्म करते हुए वे यहाँ प्रस्तुत सुझावों को ध्यान में रखेंगे। अपनी उक्त पुस्तक पर विचार प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने सभी वक्ताओं के प्रति हृदय से आभार प्रकट किया।

     इस कार्यक्रम का संचालन #श्री_वीरेंद्र_कुमार_यादव ने किया और #अयन_प्रकाशन, नई दिल्ली की ओर से कवि के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए श्रीमती चंद्रप्रभा ने अध्यक्ष, विशिष्ट अतिथि तथा अन्य अतिथियों के प्रति अपना हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया।

      इस अवसर पर उक्त वक्ताओं के अलावा #डॉ_रमेश_उपाध्याय, डॉ विनय, #असगर_वजाहत, #पंकज_बिष्ट, नरेंद्र सिन्हा, #रामकुमार_कृषक, प्रताप अनम, प्रवीण उपाध्याय, आलोक देशवाल, राजेंद्र उपाध्याय, विजय कपूर, मृदुला अरुण, प्रभा भारद्वाज, #ज्ञानप्रकाश_विवेक  महेश अनुज, #अरविंद_गौड़, अनुराज, सुरेंद्र सिंह, अनामी शरण बबल व कुछ अन्य साहित्यकार, पत्रकार एवं लेखकों की भी उपस्थितयाँ रहीं

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