रविवार, 10 अप्रैल 2011

तथागत अवतार तुलसी

Thursday, April 7, 2011

तथागत अवतार तुलसी से एक मुलाकात/

तथागत अवतार तुलसी से एक मुलाकात

अनामी शरण बबल

मुबंई के बोरीवली रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद पवई होते कांजुरमार्ग जाते समय एकाएक मेरी नजर आईआईटी कैम्पस की तरफ गई। देखते ही मुझे तथागत अवतार तुलसी की याद आई। वही अवतार तुलसी जिसने सबसे कम उम्र में दसवी की परीक्षा में पास होने के बाद सीधे स्नात्तक करके एक रिकार्ड बनाया था। एमए किए बगैर ही तथागत ने पीएचडी करके डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। बाद में बेंगलुरू और अमरीका
के न्यूजर्सी और कनाडा के कई यूनिवर्सिटी में रिसर्च फेलोशिप के साथ साथ विजीटिंग प्रोफेसर  के रूप में काम किया। सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार पाने की हसरत रखने वाले अवतार तुलसी को पिछले साल ही आईआईटी मुंबई में दुनिया में सबसे कम उम्र का लेक्चरर होने का मौका मिला था। मुंबई में पहुंचे मुझे दो घंटे भी नहीं हुए थे कि अवतार से मिलने की इच्छा प्रबल हो गई। हूमा मल्टीप्लेक्स के पास जहां मैं ठहरा था वहां से आईआईटी मुंबई नजदीक नहीं होता तो शायद अवतार से मेरी मुलाकात भी नहीं हो पाती।
अवतार तुलसी के पापा प्रोफेसर तुलसी नारायण प्रसाद जी को पटना फोन लगाकर मुबंई का नंबर पूछा। परिचय देते ही अवतार पहचान गया और शनिवार दो अप्रैल को घर पर आने का वादा किया। एक शख्शियत बन जाने के बाद भी उसकी बातों में कहीं से भी गुमान या अहं का पुट नहीं दिखा। अवतार आज एजूकेशन की दुनिया में हीरो बन चुका है। मगर  1995 से लेकर 1998 तक जो संघर्ष अपमान और उपेक्षा का सामना उसे करना पड़ा था वह समय भी तुलसी के बाल मन को काफी आहत किया। इनके पिता तुलसी नारायण के रोजाना के संपर्क में रहने की वजह से अनगढ़ तथागत की हर एक गतिविधि की सूचना रहती थी। दिल्ली में जब कोई भी न्यूजपेपर या न्यूज एजेंसी तथागत के बारे में एक लाईन भी छापने को तैयार नहीं था। उस समय राष्ट्रीय सहारा के संपादक राजीव सक्सेना के भरपूर प्रोत्साहन की वजह से ही यह संभव हो पाया कि दर्जनों छोटी बड़ी खबरों के अलावा तथागत एवं तुलसी नारायण जी का आधे पेज में बड़ा इंटरव्यू राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ। बाद में सबसे कम उम्र में 10वी पास करने और बादकी सफलता को लेकर तो फिर तथागत मीडिया का चहेता ही बन गया।
अपनी लगन मेहनत और कुछ कर गुजरने की प्रबल महत्वकांक्षा की वजह से ही 23 साल के तथागत ने एक मुकाम हासिल की है। मुंबई में काफी व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद जब तक  तथागत से मुलाकात को लेकर मैं अपना प्रोग्राम तय करता तभी तथागत का फोन आ गया कि अंकल आप बुरा ना माने तो क्या मैं शनिवार की बजाय रविवार की सुबह नौबजे तक आ सकता हूं। हांलाकि इसके लिए मुझे नौसेना में कभी शान रहे विक्रांत जहाज देखने की पहले से तय कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा, मगर मैं करीब 10 साल के बाद तथागत से होने वाली मुलाकात की इच्छा को रोक नहीं सका। नौसेना अधिकारियों के फ्लैट से महज दस मिनट की दूरी पर आईआईटी था। ठीक नौ बजे मैंने तथागत को फोन करके पूछा कि क्या मैं लेने आ जाऊ ? तो मुझे आने को कहने की बजाय दस मिनट में खुद आने को कहकर फोन रख दिया। तथागत को घर में आने को लेकर पूरा परिवार उत्साहित था। तथागत के पिता तुलसी नारायण प्रसाद तो मेरे घर पर कई बार आ चुके थे, मगर मेरी पत्नी ममता तथागत से कई बार फोन पर बात करने के बावजूद वह कभी तथागत से मिली नहीं थी। राकेश सिन्हा समेत उनकी पत्नी रागिनी उनकी चार साल की बिटिया पिहू और मेरी बेटी कृति भी तथागत को देखने के लिए काफी उत्सुक थी।
तथागत को लेने के लिए जबतक मैं कालोनी के गेट तक पहुंचता कि वो सामने से पैदल आता हुआ दिख गया। मैंने तो उसे बालक के रूप में देखा था, मगर सामने लंबा चौड़ा खूबसूरत नौजवान को देख कर मेरा मन खिल उठा। आईआईटी मुंबई का टी शर्ट पहने तथागत को घर में आते ही सारे लोग खिल उठे। एकदम सहज सामान्य और हमेशा मुस्कुराहट बिखेरने वाले इस युवक को देखकर कोई अंदाज भी नहीं लगा सकता कि एक छात्र सा दिखने वाला यह युवक एक इंटरनेशनल टैंलेट है। अपने हम उम्र लड़को को पढ़ाने वाले तथागत की पीड़ा है कि आईआईटी में भी ज्यादातर लोग उसे स्टूडेंट ही समझ बैठते है।
घर में सामान्य स्वागत के बीच ही सारे लोग अपनी सारी उत्सुकताओं के साथ तथागत पर सवालों की बौछार करने लगते हैं। यहां पर मैं साफ कर दूं कि तथागत अवतार तुलसी नाम होने के बावजूद तथागत ने अपने नाम को अब अवतार तुलसी कर लिया है। इस बारो में तथागत ने बताया कि कई साल के अपने विदेश प्रवास के दौरान आमतौर पर तथागत को टटागत या टथागत या टकाटक आदि के गलत ऊच्चारण से परेशान होकर ही तथागत ने विदेशियों की सुविधा के लिए अपने नाम से तथागत को हटा दिया। पिछले दस साल के दौरान दर्जन भर देशों नें रहने और अलग अलग य़ूनिवर्सिटीमें रिसर्चर को पढ़ाने वाले तथागत को अपना हिनदुस्तान ही सबसे ज्यादा भाया है। हालांकि भविष्य को लेकर वे अभी ज्यादा आश्वस्त तो नहीं हैं, मगर उनका पक्का इरादा अपने देश में ही रहकर काम और देश का नाम रौशन करने का है।
अलबत्ता वह यह जरूर मानते हैं कि भारत में उन तमाम सुविधाओं की हम उम्मीद या यों कहे कि कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हमारा देश गरीब और बहुत मामलों में सुविधाहीन भी है। किसी भी सरकार के लिए यह आसान नहीं है।, मगर हमारी सरकार या निजी संस्थानों द्वारा पूरी तरह सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश भी नहीं की जाती है। तथागत का मानना है कि विदेशों में जाकर हमारे देश का जीनियस ब्रेन ड्रेन हो रहा है। इसके बावजूद ग्लोबल फोकस के लिए विदेश में जाकर काम करना या अपने लेबल से संपर्को के दायरे को बढ़ाना और बनाना ही पड़ता है।
अपने भावी कार्यक्रमों को लेकर तथागत फिलहाल ज्यादा नहीं सोच रहे है। अपने आपको को स्थापित करने और एक लेक्चरर या एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में खुद को साबित करने में पूरी तरह लगे है। हालांकि उनके चेहरे पर यह पीड़ा साफ तौर पर झलकती है कि शायद वे सबसे कम उम्र के नोबल पाने वाले 25 साल की आयु के रिकार्ड को नहीं तोड़ पाएंगे। यह कहते हुए निराशा के भाव के बाद भी खिलखिलाकर हंसने की कोशिश जरूर करते हैं।
 तथागत के फीजिक्स में अब तक करीब एक दर्जन लेख विभिन्न जनरल में छप चुके है। एक शोध पर अब तक 31 रिसर्च हो चुके है। तथागत ने कहा कि किसी भी रिसर्च पेपर पर 50 से ज्यादा रिसर्च होने पर उसे लैंडमार्क मान लिया जाता है। क्वाटंम कम्प्यूटर पर किए जा रहे अपने रिसर्च को लेकर तथागत में काफी उमंग है। कई प्रकार के रिसर्च पर तथागत ने अपनी योजनाओं को आने वाले दिनों में साकार होने की संभावना जाहिर की। हालांकि उन्होनें यह भी माना कि बचपन में संभावित कई रिसर्च फेल हो गए।
पटना निवासी तुलसी नारायण के तीन पुत्रों में सबसे छोटे तथागत ही है। लंबे समय से तुलसी नारायण को जानने के बाद भी तथागत के तीन भाईयों के बाबत मैं नहीं जानता था, और इस मामले में अपने एक दोस्त से बाजी लगाकर 250 रूपये की चपत भी खानी पड़ी थी। तथागत के सबसे बड़े भाई नार्थ इस्ट में एक सेन्ट्रल स्कूल में सीनियर टीचर है। नंबर दो पटना में रहकर वकालत कर रहे है। अभी शादी किसी की नहीं हुई है, मगर कम उम्र होने के बाद भी ज्यादातर लोग तथागत को अपना दामाद बनाने के लिए आतुर है। इस बारे में मुस्कुराहट के साथ तथागत का कहना है कि मेरे से पहले तो लंबी लाईन है।
अपने बारे में बहुत सारी भ्रांतियो को साफ करते हुए तथागत ने कहा कि मैं भी सामान्य तौर पर बचपन चाहकर भी कहां बीता पाया हूं ? तथागत ने कहा कि बचपन को मैं नहीं जानता और इसका दुख अब होता है। सात साल की उम्र में छठी क्लास का स्टूडेंट रहा था। इसके बाद फिर कभी क्लास रूम में नहीं गया। लिहाजा आईआईटी में तो पहले अपने स्टूडेंट के साथ तालमेल बैठाना पड़ा। क्लासरूम के दांवपेंच को नहीं जानता था,और अभी भी नहीं जानता हूं। मगर मेरा यह सौभाग्य था कि आईआईटी मुंबई में पढ़ाने का मौका और मैं जल्द ही एडजस्ट कर गया। एक प्रोफेसर होने के बाद भी ज्यादातर सहयोगी समेत ज्यादातर टीचिंग स्टाफ और सिक्योरिटी वाले अक्सर और अमूमन तथागत को छात्र या प्रोफेसर के रूप में पहचानने में भूल कर जाते है।
घर में आकर तथागत को बहुत अच्छा लगा।. एक पारिवारिक माहौल में करीब तीन घंटा गुजारने के बाद तथागत ने आईआईटी मुंबई चलने का प्रस्ताव रखा। हालांकि हंसते हुए यह भी साफ किया कि फ्लैट में चाय तक की व्यवस्था नही हैं कि मैं कोई सत्कार नहीं कर सकता हूं। आईआईटी घूमने को लेकर राकेश के साथ मेरी पत्नी ममता और बेटी भी साथ हो गई। करीब 40 मिनट में पूरा आईआईटी का चक्कर लगाने के बाद पवई झील समेत फीजिक्स डिपार्टमेंट के अपने रूम में भी ले गया। सबसे अंत में तथागत के कमरे को भी देखना चाहा तो वह बार बार संकोच करने लगा। .उनकी लज्जा को भांपकर कहा कि एक बैचलर का डेरा सामान्य हो ही नहीं सकता। जब हमलोग तथागत के फलैट में इंटर कि तो एक कमरें में केवल किताबों का जमघट था। कई कार्टून में बेतरतीब किताबें थी। जबकि दूसरे कमरे में भी चारो तरफ बिखरी किताबों पत्रिकाओं और कपड़ो के बीच जमीन पर दो बिस्तर थी। एक बिस्तर पर कपड़े और दो लैप्टाप रखे थे। खाना से लेकर चाय तक के लिए भी मेस पर पूरी तरह निर्भर तथागत  के पास इतना समय ही नहीं मिल पाता था कि वह बाजार से जाकर सामान्य चीज भी खरीद सके। तथागत की मां इस बार गरमी की छुट्टियों में मुंबई आने वाली है, तब कहीं जाकर तथागत का फ्लैट सामान्य जरूरी चीजों से भर पाएगा ?  मुबंई से लेकर बंगलौर (बेंगलुरू) हो या न्यूजर्सी या कनाडा हो इस इंटेलीजेंट के लिए संघर्ष का दौर अभी रूका नहीं है। यानी मन में नोबल विजेता होने का तो यकीन है, मगर इसमें कितना समय लगेगा इसको लेकर वह आश्वस्त नहीं है। अब देशना है कि तथागत का यह सपना कब साकार होता है, जिसपर कमसे कम ज्यादातर भारतीयों की नजर लगी है।

  

1 टिप्पणी:

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...