मंगलवार, 26 नवंबर 2024

महेंद्र अश्क़ की आहट पर कान किसका है?

 मैंने कानों से मयकशी की है,  जिक्र उसका शराब जैसा है

Il महेंद्र अश्क़ की शायरी का संसार ll 

देवेश त्यागी 


नितांत निजी और सामाजिक अनुभूतियां जब कभी व्यापक और दृष्टिबोध से युक्त अभिव्यक्ति बन जाती हैं, तब  भाषाई संप्रेषण से न तो दामन बताया जा सकता है और न इस अजस्र ऊर्जा के स्रोत को अवशोषित किया जा सकता है।  जब भी ऐसा प्रस्फुटन होता है तब  हिंदी हो या उर्दू दोनों जगह रचनात्मकता किसी परिचय की मोहताज नहीं होती। उर्दू अदब की रोशन मीनारों में से एक शख्स ऐसे भी हैं जिनका ताआर्रुफ़ किसी संज्ञा का मोहताज़ नहीं है।  मैं मकबूल शायर महेंद्र अश्क की बात कर रहा हूं। उनके फन का, उनके मिज़ाज़ का, उनकी काबिलियत का आइए दीदार करते हैं। उर्दू की जुल्फे संवारने में अश्क़ साहब का बड़ा योगदान रहा है।  असरदार तेवर के साथ उन्होंने संतुलित और नए अंदाज में मंजर और पसमंजर पर जो भी लिखा है वह उनकी शख्सियत को उजागर करता है। उनकी गजलों में बौद्धिक स्तर भावुकता के वशीभूत होने से बचता है। भाषा का अनोखा स्वाद महसूस कराता है। मैं तो एक शायर की हैसियत से उनका दर्जा हिंदी गजल के प्रणेता दुष्यंत त्यागी और प्रख्यात कवि रामावतार त्यागी की श्रृंखला को जीवित रखने वाला मानता हूं।  दुष्यंत जी और अश्क़ साहब में एक सबसे बड़ा साम्य ये है कि दोनों ने ही अव्यवस्था पर प्रहार किया है। 

अश्क़ साहब ने  गजलों के तमाम परंपरागत विषयों पर बहुत खूबी से जो भी लिखा है, उसमें  आधुनिकता के साथ बहुत से ऐसी हसीन शेर भी हैं जो अन्यत्र नहीं मिलते।

 जज्बातों को गजल में ढालने का कमाल उनको हासिल है। माहिरे फन हैं । शेरों में जो गहराई है जो कल्पना है , जो शऊर है, जो नर्मी और लोच है, जो नई शैली है, जो नए विषय दिये हैं वो फ़ख़्र के क़ाबिल हैं। उपमा, बिम्बों का बड़े सलीके से उन्होंने इस्तेमाल किया है। सौंदर्यबोध और प्रकृतिबोध अनुपम है तो मनोभाव और अहसास भी उतना ही सुखद।


गजलों की मर्यादा और सीमाओं का कहीं भी उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया है।  इसे इन्होंने निश्छल मन से बहुत सहजता के साथ स्वीकारते हुए लिखा है।


 मैं आंसुओं से वजू करके शेर कहता हूं 

किसी का गम भी जरूरी है शायरी के लिए


 दरअसल कल्पनाशीलता और सृजनशीलता  के साथ  जब भी संवेदनशीलता बढ़ जाती है तो गजब की संप्रेषणीयता पैदा होती है।  अच्छा शायर होना या अच्छा शेर कहना बहुत मुश्किल काम है यह कोई मामूली बात नहीं है। चिंतन और जज्बात सदाकत के साथ जब रूह के  अंदर से निकलते हैं तब ऐसा शेर बनता है।

 दिन के माथे पर लिखा जाएगा ये शब का अज़ाब

 वो धुआं छिड़का गया हाथों में लेकर मशअलें


 उन्होंने गजल को कई नए विषय और आयाम भी दिए हैं और नई शैली भी।  सरलता तो उनकी गजलों का जैसे एक आभूषण है।  गहरी सोच सहजता से अपनी बात कहने का गुण और विचारशीलता,  संवेदनाओं का सजीव चित्रण  इस शेर से समझा जा सकता है।


 तमाम उम्र चले खुद तलक़ नहीं पहुंचे 

ये फैसला तो बहुत दूर का सफर निकला


 आम आदमी की पीड़ा, तनाव, संघर्ष का एहसास कराती बहुत सी ऐसी गजलें हैं जो झकझोरती हैं, उद्वेलित करती हैं। इसे  एक जुदा अंदाज में उन्होंने प्रस्तुत किया है।


 आंहों को खींच खींच के नालों में ढाल के

 मैं पी रहा हूं बादा ए हस्ती संभाल के


 रिश्तो में बिखराव, टूटन अलगाव  भी उनकी बेचैनी का सबब है। शेर के चिंतन को भाव में ढालने का हुनर भी उन्हें बखूबी आता है। 


 इस कदर तर्के ताल्लुक से तो मर जाऊंगा 

मुझे मत मिलाना मेरे गांव तो आते रहना


 खूबसूरत और दिलकश अशआर  खासकर छोटी बहर में कहने में तो उन्हें  महारत हासिल है। बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहना कोई अंतर्मुखी और बहुर्मुखी ही कह सकता है।


 लौटती रुत के साथ आ जाओ

 शहर का दिल पड़ा है गांवों में।


 अनुभूति की गहराई, कोमलता  जैसे तत्वों का समावेश तो उन्होंने किया ही है। एहसास की पगडंडी पर चलते हुए आम आदमी की मुफलिसी का दर्द साझा करते हुए अपनेपन को भूल चुके समाज पर भी उन्होंने तीखा प्रहार किया है  लेकिन नए अंदाज में महसूस कराते हुए।


 हम गरीबों से न बच कर चलो के वक्त पड़े

 काम आ जाता है टूटा हुआ पैमाना भी


 उनकी शायरी के अनेक पहलू हैं। जिनमें उनकी सोच व्यापक आकार लेती हुई साफ दिखाई देती है।  शेरों का एक एक लफ्ज़ पुरमानी है।  यूं तो मयखाना, रिंद, सागर, शराब और साक़ी पर बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन यह शेर  उनकी मकबूलियत बयान करता है।


 मैंने कानों से मयकशी की है

 जिक्र उसका शराब जैसा है


 उनके जज्बातों में जहां समंदर की ऊंची ऊंची लहरों का अक़्स है वहीं पहाड़ जैसी  बुलंदी भी नजर आती है। जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों को उजागर करने का यह नया अंदाज देखिए। 


 लोग जब तर्के ताल्लुक का सबक पूछेंगे

 मुझे कुछ भी ना कहा जाएगा तुम साथ चलो


 जैसा मैंने पहले कहा सरल शब्दों में दिल को छू लेने वाले अशआर उनकी सजीवता, उत्कृष्टता संतृप्तता और व्यापकता को स्पष्ट रूप से परिलक्षित करते हैं। व्यवस्था पर कुठाराघात करता यह शेर देखिए। इसमें डुबिये और उतराइए।


 हम यहां आफताब लाए थे 

जब यहां पर नहीं थे जुगनू भी


  कोई ऐसा विषय अछूता नहीं रहा जिस पर उन्होंने नहीं लिखा। सुखद अनुभूति कराता उनकी प्रखर लेखनी की एक और बानगी देखिए।  मां के प्रति समर्पण,  निष्ठा उनकी ही बयानी।


 महक रहे हैं उजालों के फूल बूढी मां

 के सांस सांस जले हैं तेरी दुआ के चिराग


 मकबूल शायर फिराक गोरखपुरी ने कहा था कि शायरी जिंदगी में इस तरह डूब जाने का नाम है कि जब जब हम इस गोताज़नी से उभरे तो हर बार हमें जिंदगी का एक नया एहसास हो।  फ़िराक़ साहब का जिक्र मैंने यहां इसलिए किया क्योंकि अश्क़ साहब भी ऐसा ही फरमा रहे हैं।


 लफ्जों के अदाकारों की एक भीड़ बहुत है

 कोई ग़ज़ल का दर्द समझता ही नहीं है


 अश्क़ साहब की शायरी में अलंकारों और प्रतीकों का शानदार प्रयोग बहुतायत में है। दिलचस्प ये है ये अभिनव है। उनका मिज़ाज़, उनका अंदाज , साफगोई लोगों के दिलों तक पहंचने में कामयाब रहा है।  मजबूरी की बेड़ियों की झनझनाहट में भी जलतरंग या सितार जैसी झंकार भी वही पैदा कर सकता है जो समाज को जीता रहा हो।


 हमारी जिंदगी एक बांझ औरत

 किसी बच्चे का स्वेटर बना रही थी


 सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने एक भी शेर बिना वजह के नहीं कहा और एक भी शेर ऐसा नहीं है जिसको नजरअंदाज किया जा सके।  गजल की बारीकियों से वह कितने वाकिफ हैं , देखिए।

 न जाने कितने ही पेड़ों के अधबने सपने 

इन्हीं गिने चुने कुछ बरगदों में रखे हैं


 हर गजल में उनकी ईमानदारी, दयानतदारी,  मन और दिल को छू लेने वाली, हर किसी को लुभाने वाली बातें,  नवीनतम पहलू सबको आश्चर्यचकित करते हैं।


 तुझे पता नहीं मैं भी तो अपना दुश्मन हूं

 कुछ ऐसे मुझ में उतर जा मुझे पता ना लगे


 अश्क़ साहब ने पत्थरों से पानी निकाला है । अगर मैं ऐसा कहूं तो यह गलत नहीं होगा।  इससे बेहतर और कोई मिसाल उनके बारे में हो सकती है क्या।


 मैं अगर जिंदा हूं इस अंधे कुएं में तो फिर

 एक मुद्दत से क्यों आवाज ना आई मेरी


 उनके साहित्य संसार में घनीभूत संवेदनाओं की अभिव्यक्ति,  रचनात्मक वैशिष्टय क्या कुछ नहीं है। 


 हमें भूल बैठे हैं जीने का मकसद

 तेरे गम का एजाज अपनी जगह है


 हालात से मजरूह बदन सेकने वाला 

सूरज भी नहीं अब तो हमें देखने वाला


 जिंदगी तूने बहुत तंग किया है मुझको 

ख्वाब तक देखना दुश्वार रहा है मुझको


 लिबास तैरते हैं आंख आंख लफ्जों के

 हमारी फिक्र की आहट पर कान किसका है


_ देवेश त्यागी, 

पूर्व वरिष्ठ समाचार संपादक/ 

केंद्रीय समीक्षक जागरण समूह

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मंगलवार, 19 नवंबर 2024

जरा गांव में कुछ दिन ( या घर लौटकर ) तो देखो 😄😄

 गांव का मनोरंजन 


डेढ़ महीना गांव में ठहर जाओ,तो गाँववाले बतियाएंगे "लगता है इसका नौकरी चला गया है

सुबह दौड़ने निकल जाओ तो फुसफुसाएंगे  “लग रहा इसको शुगर हो गया है ...."

कम उम्र में ठीक ठाक कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव मान लेगा कि बाहर में दू नंबरी काम करता है।

जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये "।

शादी में देर हुईं तो_" ओकरे घरवा में  बरम बा!....लइका मांगलिक है कवनो गरहदोष है, औकात से ढेर मांग रहे है  "।

बिना दहेज़ का कर लिये तो “ लड़की प्रेगनेंट थी पहले से, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग"।

खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “अबहिन बाप का पैसा है तनी"।

खेत गये तो “ देखे ना,अब चर्बी उतरने लगा है "।

 मोटे होकर  गांव आये तो कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “ बीयर पीता होगा "।

दुबले होकर आये तो “ लगता है गांजा चिलम पीता है टीबी हो गया "।

बाल बढ़ा के जाओ तो, लगता है,  ई कोनो ड्रामा कंपनी में नचनिया का काम करता है....।

#कुल_मिलाकर_गाँव_में_बहुत_मनोरंजन_है.....बहुत अच्छे विचार के लोग है कितना सुनाऊ 

अगर जो बुरबक है तो नाम गाऊ के लोग इस प्रकार रखते है 

बुरबक है तो नाम ओकील साहेब 

जो कमजोर है तो पहलवान जी 

डरपोक है तो दरोगा जी 

मुर्ख है तो प्रोफेसर साहेब 

गरीब है तो जमींदार साहेब 

ना जाने और कितने 

नाम होता है 

यही तो गाऊ है 

वाकई अनोखा है 

जय हो भारत माता हमें कुछ नहीं आता 

पीटर ठाकुर 

एक अनुभव 🙏🙏🙏🙏


शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

तुम्हारी यादें / रवि अरोड़ा

 

तुम्हारी यादें 

_________


सोते से जगाती हैं तुम्हारी याद

 झूठी कहानियां सुना कर 

खुद को सुलाने का जतन करता हूं मैं 

झिंझोड़ कर फिर उठा देती है तुम्हारी याद 


मुझ से पहले कार में आ बैठती हैं तुम्हारी याद

उसे जबरन उतारने के जतन में 

छिल जाता है मेरा मन


खाना खाते समय 

कोई कोई सब्जी साथ उठा लाती तुम्हारी याद 

गर्म कटोरी किनारे सरकाते सरकाते 

जला बैठता हूं मैं अपनी रूह


कमीज के टूटे बटन इशारा करते हैं 

सिलाई कढ़ाई के डिब्बे की ओर

मगर उसे खोल कर करूं क्या

 तुम्हारी याद के सिवा उसमें कुछ भी तो नहीं 


मुंह चुराता हूं करवा चौथ के चांद से 

बंद कर लेता हूं खुद को कमरे में मगर

मुआ चांद खिड़की से फेंक जाता है तुम्हारी याद 


नए कपड़े पहनते ही टटोलता हूं खुद को 

किसने चिकोटी काट कर कहा मुझे न्यू पिंच 

कांधे पर मुस्कुराती हुई सरसरती है तुम्हारी याद 


आधी मांगने पर अब मिलती है आधी ही रोटी

छोटा सा कोना काट कर 

पूरी रोटी देने तब फिर

 बगल में आ बैठती है तुम्हारी याद 


बिस्तर पर सुनने की कोशिश करता हूं 

 किसने कहा बंद करो खर्राटे 

बगल में गुस्साई लेटी मिलती है तुम्हारी याद


नहीं जाता मैं अब उन जगहों पर 

जहां छुपी बैठी है तुम्हारी याद

न जानें क्यों फिर 

पुरानी तस्वीरों से पुकारती है तुम्हारी याद


आज भी झगड़ती हैं तुम्हारी याद

टीवी के रिमोट को लेकर

आज भी पस्त हो जाता हूं मैं 

उन यादों के समक्ष


उफ़ इतनी बेरहम क्यों हैं तुम्हारी यादें 

कुछ सिखाती क्यों नहीं इन्हें 

कम से कम थोड़ा सा तो बनाओ इन्हें अपने जैसा


रवि अरोड़ा


मंगलवार, 5 नवंबर 2024

कुछ प्रेरक कहानियाँ / वीरेंद्र सिंह

प्रेरक कहानी* 

1


बुजुर्ग महिला और बस कंडक्टर


एक बार एक गांव में जगत सिंह नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। वह अपने गांव से शहर की ओर जाने वाली डेली बस में कंडक्टर का काम करता था। वह रोज सुबह जाता था और शाम को अंतिम स्टेशन पर उतरकर घर वापिस चला आता था।


एक दिन की बात है कि जब शाम को बस का अंतिम स्टेशन आ गया तो उसने देखा कि बस के सभी यात्री उतर चुके हैं, परंतु अंतिम सीट पर एक बुजुर्ग महिला एक पोट्ली लिये हुए अभी तक बैठी हुई है । जगत सिंह ने उस महिला के पास जाकर कहा,” माता जी, यह अंतिम स्टेशन आ गया है। गाड़ी आगे नहीं जाएगी इसलिये आप उतर जाइए।“ यह सुनते ही वह बुजुर्ग महिला उदास हो गयी और कहने लगी,” बेटा मैं कहॉ जाउंगी? मेरा कोई नहीं घर नही और कोइ सगा भी नही।” जगत सिह ने उसके परिवार/अता-पता पूछा लेकिन महिला कुछ भी बता नही पा रही थी। जब काफी देर हो गयी तो जगत सिह ने सोचा कि इस बुजुर्ग बेसहारा महिला को अपने साथ घर ले चलूं। फिर उसने कहा,” माता जी आप मेरे घर चलो। यह सुनकर महिला अपनी पोट्ली साथ लेकर चल पडी।

घर जाकर जगत सिह ने पत्नी को सारा किस्सा सुनाया। पहले तो उसकी पत्नि सुलोचना उस बुजुर्ग महिला को घर पर रखने को तैयार न थी लेकिन जगत सिह के समझाने के बाद वह मान गयी। अब घर पर एक कमरा जो खाली था, उसी में वह बुजुर्ग महिला रहने लगी। जगत सिंह और सुलोचना दोनो उसका ख्याल रखने लगे। सुलोचना प्रतिदिन उसे खाना देती थी, उसकी सेवा करती थी। इस तरह वे नि:स्वार्थ भाव से उसकी सेवा करते रहे। इस तरह दो साल बीत गये और फिर एक दिन उस बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो ग़यी। उस महिला के पास जो पोट्ली थी, उसे अभी तक किसी ने खोला नही था। बुजुर्ग महिला का अंतिम संस्कार कररने के बाद जब जगत सिह ने पोट्ली को खोला तो उसकी आंखे फटी रह गयी। वह पोट्ली नोटों से भरी थी। जब नोट गिने तो दस लाख रुपये निकले। जगत सिह और उसकी पत्नि को यकीन ही नही हो रहा था कि जिस बुजुर्ग महिला को वह बेसहारा समझ कर बिना किसी स्वार्थ के सेवा कर रहे थे, वह उनके लिये इतना धन छोड कर जायेगी।


  मनुष्य द्वारा समाज व देश में समय-समय पर अनेक प्रकार की सेवाएं की जाती हैं लेकिन उनमें यदि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप कहीं स्वार्थ छुपा हुआ है तो वह सेवा, सेवा नहीं कहलाती । धर्मग्रन्थों के अनुसार अपने तन-मन-धन का अभिमान त्याग कर निष्काम व निस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही फलदायी साबित होती है। निस्वार्थ भाव की सेवा ही प्रभु भक्ति का उत्कृष्ट नमूना है। जो सेवा स्वार्थ भाव से की जाए तो स्वार्थपूर्ती होते ही उस सेवा का फल भी समाप्त हो जाता है। निस्वार्थ सेवा करते रहिए शायद आप का रंग औरों पर भी चढ़ जाये,जिसे भी आवश्यकता हो निःस्वार्थ सेवा भाव से उसकी मदद करें। आपको एक विशिष्ट शांति प्राप्त होगी।🙏




2

 *अनमोल धरोहर* 



डैडी....आज आपके रखें नये ड्राइवर ने मेरे साथ बदतमीजी की ....देर शाम लौटी जांहवी ने अपने पापा को बाहर हाल में बैठे हुए देखकर शिकायती लिहाजे में कहा...।


क्या ....उसकी ये हिम्मत .... कहा है वो बदत्तमीजी महेंद्र बाबू गुस्से में बोले।


तभी उनकी पत्नी ने कहा ....वो नौकरी छोड़कर चला गया कह रहा था मुझे मेरा आत्मसम्मान प्यारा है मुझे आपके यहां नौकरी नहीं करनी तो मैंने कहा ठीक है अगले महीने की दस तारीख को आकर जो भी हिसाब बने ले जाना ...।


हिसाब तो मैं पूरा करता हूं मेरी बिटिया के साथ बत्तमीजी की और मैं उसे ऐसे ही छोड़ दूं तुम चलो अभी मेरे साथ जांह्णवी अभी उसके घर चलते हैं वहां उसके परिवार के सामने उसकी वो हालत करुंगा की तमीज सीख जाएगा गुस्से में भरे महेंद्र बाबू अपनी बेटी और पत्नी के साथ ड्राइवर बिरजू के घर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया दरवाजा एक पंद्रह सोलह साल की लड़की ने खोला......जी .......कहिए।


कहा है वो बिरजू का बच्चा बुलाओ उसे ... गुस्से से महेंद्र बाबू गरजे ओह तो आप पापा की पहचान वाले हैं नमस्ते अंकलजी नमस्ते आंटीजी आइए आइए बैठिए मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूं।


सुनो लड़की ... महेंद्र बाबू बस इतना ही कह पाएं थे मगर वो लड़की अपनी मां को आवाज़ लगाते हुए अंदर से पानी लेने चली गई....तबतक उसकी मां बाहर निकल आई ...।


नमस्ते ....जी माफ़ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं मैं अर्पणा हूं आराध्या की मम्मी ... बिरजू कहा है जी वो तो समान लाने गये है बस आते ही होंगे लीजिए वो आ गये ...।


बिरजू को दरवाजे पर आते हुए देखकर अर्पणा बोली अरे साहब मैडम आप यहां .... अर्पणा ये हमारे साहब मैडम है जिनके यहां मैं काम कर रहा था मगर अब छोड़ चुका हूं छोड़ दिया तुम्हें धक्के देकर बाहर निकालना चाहिए तुमने मेरी बेटी के साथ क्या बत्तमीजी की है।


बत्तमीजी....माफ कीजिए साहब मैं तो अंजान लोगों से भी तमीज से पेश आता हूं तो आपकी बेटी के साथ ... जबकि ये मेरी आराध्या की हम उम्र है।


जांह्णवी तुम बताओ क्या बदतमीजी की इसने तुम्हारे साथ पापा सुबह स्कूल जाते हुए इसने अचानक बड़ी तेजी से ब्रेक मारी तो मैंने इससे कहा... देखकर नहीं चला सकते।


कितनी जोर से ब्रेक मारी है ये तो शुक्र है मैंने सीट पकड़ ली वरना मैं मुंह के बल गिर पड़ती तो जबाव में ये बोला ... बेटी वो अचानक एक छोटी सी  बच्ची रोड क्रॉस करने लगी मैं ब्रेक नहीं मारता तो... बहाने मत बनाओ और ध्यान से गाड़ी चलाओ फिर से अगर ब्रेक मारी तो मुझसे बुरा नहीं होगा पापा भी ना जाने कैसे-कैसे बदतमीज लोगों को ड्राइवर रख लेते है।


बेटी ... अगर मैं ब्रेक नहीं मारता तो वो बच्ची गाड़ी के नीचे आ जाती ये गाड़ी थाने में और मैं जेल में होता तो ....  लगता है तुमने आज से पहले कभी बढ़िया आलीशान गाड़ी नहीं चलाई हमारी लग्जरी गाड़ियों को देखकर इन छोटे लोगों को खुद ही दूर हो जाना चाहिए ना की तुम्हारी तरह डरकर गाड़ियों में ब्रेक मारनी चाहिए और ये क्या बेटी बेटी लगा रखा है ? क्या मैं तुम्हारी बेटी हूं।


तो फिर क्या कहूं आपको .... मैडम को दीदी कहते हैं तो मैं आपको दीदी कहूं ।


पागल वागल हो गया मैं तुमसे बड़ी लगती हूं अपनी उम्र देखी है बूढ़े .... मुझे बेटी दीदी नहीं नहीं सीधे सीधे जांह्णवी कहो समझे.... बस यही हुआ था डैड।


साहब मैं ही एक बेटी का पिता हूं आजतक यहां भी नौकरी की वहां मैंने सभी छोटे बड़ों का आदर किया बदलें में मुझे भी खूब आदर मिला और अधिकतर जगहों पर खुशी जाहिर करते हुए रुपए मिठाई और प्यार मिला मगर आपके यहां बदतमीजी का पुरस्कार ...जो मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा था इसलिए मैंने मैडम जी को बता दिया था कि मैं कल से आपके यहां काम करने नहीं आऊंगा बस यही बात हुई थी.....।


महेंद्र बाबू कुछ कहते तबतक आराध्या सबके लिए ठंडा ठंडा शर्बत बनाकर ले आई ... लीजिए अंकलजी लीजिए आंटीजी लो बहन .... पापा मम्मी ... अंकलजी गर्मी बहुत है ये शर्बत पीजिए हमारे यहां का खास है सभी मेहमान कहते हैं मन को ठंडक मिलती है पीजिए ना प्यार से आराध्या ने कहा तो महेंद्र बाबू ने शर्बत होंठों से लगा लिया और घुट घुट कर पीने लगे...।


शर्बत पीने के बाद महेंद्र बाबू बिरजू की और देखकर बोले .... बिरजू आया तो था तुम्हें सबक सिखाने मगर आज खुद यहां से एक सबक सीखकर जा रहा हूं कि अपने बच्चों को पैसा गाड़ी मोबाइल लेपटॉप मंहगी आयटम दो ना दो मगर तमीज और संस्कार जरूर दो ... वरना बच्चे तमीज भूलकर बदतमीज बन जाते है।


तुम एक छोटे से घर में रहते हो शायद वो तमाम जरुरतों को तुम पूरा नहीं कर सकते जो मैं मिनटों में चुटकी बजाकर पूरी कर सकता हूं मगर मेरे भाई जो अनमोल धरोहर अच्छी परवरिश अच्छे संस्कार तुमने अपनी बेटी को दिए हैं वो में अमीर होते हुए भी नहीं दे पाया ..🙏


3


 *दया पर संदेह* 


एक बार एक अमीर सेठ के यहाँ एक नौकर काम करता था। अमीर सेठ अपने नौकर से तो बहुत खुश था, लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह ईश्वर को अनाप शनाप कहता और बहुत कोसता था।


एक दिन वह अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था। संयोग से वह ककड़ी कच्ची और कड़वी थी। सेठ ने वह ककड़ी अपने नौकर को दे दी।

नौकर ने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बहुत स्वादिष्ट हो।


अमीर सेठ ने पूछा– “ककड़ी तो बहुत कड़वी थी। भला तुम ऐसे कैसे खा

गये ?”


नौकर बोला– “आप मेरे मालिक हैं। रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते हैं। 


अगर एक दिन कुछ बेस्वाद या कड़वा भी दे दिया तो उसे स्वीकार करने में भला क्या हर्ज है ?


अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया। अगर ईश्वर ने इतनी सुख – सम्पदाएँ दी है और कभी कोई कटु अनुदान या सामान्य मुसीबत दे भी दे तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं।


असल में यदि हम समझ सकें तो जीवन में जो कुछ भी होता है, सब ईश्वर की दया ही है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता   है। 🙏


4



*न्याय* 



एक कबूतर और एक कबूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।


उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया।


कबूतरी के मन में कुछ शंका हुई और उसने कबूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चलें नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।


कबूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ कबूतरी से कहा.. भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा.. बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?


कबूतर की बात सुनकर कबूतरी चुप हो गई।


जब वह आदमी उनके करीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला और झट से कबूतर को मार दिया... और बेचारे उस कबूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....


असहाय कबूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई और बिलखने लगी।


उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा और पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया। 


उसके बाद वह कबूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर उस राज्य के राजा के पास गई और राजा को उसने पूरी घटना बताई।


राजा बहुत दयालु इंसान था। राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़ कर लाने का आदेश दिया।


तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया। शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।


उसके बाद राजा ने कबूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया और उससे कहा कि "तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो, तुरंत उस पर अमल किया जाएगा"..


कबूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि "हे राजन, मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फिर कभी भी लौटकर नहीं आएगा..


इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि

अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए.. 


ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफत का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच और समाज के लिए हानिकारक होते हैं।


कबूतरी ने कहा, जब हम किसी को जीवन दे नही सकते तो किसी का जीवन लेने का अधिकार मुझे नहीं है।


कितना सुन्दर त्याग कबूतरी का?      

हमे भी अपना जीवन किसी से बदले की आग में नही बिताना, मन से उसे क्षमा करना है । 🙏


5



 बुरी स्मृतियाँ भुला ही दी जाएँ


दो भाई थे। परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे। बड़े भाई कोई वस्तु लाते तो भाई तथा उसके परिवार के लिए भी अवश्य ही लाते, छोटा भाई भी सदा उनको आदर तथा सम्मान की दृष्टि से देखता।


पर एक दिन किसी बात पर दोनों में कहा सुनी हो गई। 

बात बढ़ गई और छोटे भाई ने बडे़ भाई के प्रति अपशब्द कह दिए। बस फिर क्या था ? दोनों के बीच दरार पड़ ही तो गई। उस दिन से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे और कोई किसी से नहीं बोला।

 कई वर्ष बीत गये। मार्ग में आमने सामने भी पड़ जाते तो कतराकर दृष्टि बचा जाते, छोटे भाई की कन्या का विवाह आया। उसने सोचा बडे़ अंत में बडे़ ही हैं, जाकर मना लाना चाहिए।


वह बडे़ भाई के पास गया और पैरों में पड़कर पिछली बातों के लिए क्षमा माँगने लगा। बोला अब चलिए और विवाह कार्य संभालिए।


पर बड़ा भाई न पसीजा, चलने से साफ मना कर दिया। छोटे भाई को दुःख हुआ। 

अब वह इसी चिंता में रहने लगा कि कैसे भाई को मनाकर लगा जाए इधर विवाह के भी बहित ही थोडे दिन रह गये थे। संबंधी आने लगे थे।


किसी ने कहा-उसका बडा भाई एक संत के पास नित्य जाता है और उनका कहना भी मानता है। छोटा भाई उन संत के पास पहुँचा और पिछली सारी बात बताते हुए अपनी त्रुटि के लिए क्षमा याचना की तथा गहरा पश्चात्ताप व्यक्त किया और प्रार्थना की कि ''आप किसी भी प्रकार मेरे भाई को मेरे यही आने के लिए तैयार कर दे।''


दूसरे दिन जब बडा़ भाई सत्संग में गया तो संत ने पूछा क्यों तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ कन्या का विवाह है ? तुम क्या-क्या काम संभाल रहे हो ?


बड़ा भाई बोला- "मैं विवाह में सम्मिलित नही हो रहा। कुछ वर्ष पूर्व मेरे छोटे भाई ने मुझे ऐसे कड़वे वचन कहे थे, जो आज भी मेरे हृदय में काँटे की तरह खटक रहे हैं।'' संत जी ने कहा जब सत्संग समाप्त हो जाए तो जरा मुझसे मिलते जाना।'' सत्संग समाप्त होने पर वह संत के पास पहुँचा, उन्होंने पूछा- मैंने गत रविवार को जो प्रवचन दिया था उसमें क्या बतलाया था ?


बडा भाई मौन ? कहा कुछ याद नहीं पडता़ कौन सा विषय था ?


संत ने कहा- अच्छी तरह याद करके बताओ।

पर प्रयत्न करने पर उसे वह विषय याद न आया।


संत बोले 'देखो! मेरी बताई हुई अच्छी बात तो तुम्हें आठ दिन भी याद न रहीं और छोटे भाई के कडवे बोल जो एक वर्ष पहले कहे गये थे, वे तुम्हें अभी तक हृदय में चुभ रहे है। जब तुम अच्छी बातों को याद ही नहीं रख सकते, तब उन्हें जीवन में कैसे उतारोगे और जब जीवन नहीं सुधारा तब सत्सग में आने का लाभ ही क्या रहा? अतः कल से यहाँ मत आया करो।


अब बडे़ भाई की आँखें खुली। अब उसने आत्म-चिंतन किया और देखा कि मैं वास्तव में ही गलत मार्ग पर हूँ। छोटों की बुराई भूल ही जाना चाहिए। इसी में बडप्पन है।


उसने संत के चरणों में सिर नवाते हुए कहा मैं समझ गया गुरुदेव! अभी छोटे भाई के पास जाता हूँ, आज मैंने अपना गंतव्य पा लिया।''🙏


6



 *कुंदन काका की कुल्हाड़ी* 



कुंदन काका एक फैक्ट्री में पेड़ काटने का काम करते थे. फैक्ट्री मालिक उनके काम से बहुत खुश रहता और हर एक नए मजदूर को उनकी तरह कुल्हाड़ी चलाने को कहता.  यही कारण था कि ज्यादातर मजदूर उनसे जलते थे.


एक दिन जब मालिक काका के काम की तारीफ कर रहे थे तभी एक नौजवान हट्टा-कट्टा मजदूर सामने आया और बोला, “मालिक! आप हमेशा इन्ही की तारीफ़ करते हैं, जबकि मेहनत तो हम सब करते हैं… बल्कि काका तो बीच-बीच में आराम भी करने चले जाते हैं, लेकिन हम लोग तो लगातार कड़ी मेहनत करके पेड़ काटते हैं.


इस पर मालिक बोले, “भाई! मुझे इससे मतलब नहीं है कि कौन कितना आराम करता है, कितना काम करता है, मुझे तो बस इससे मतलब है कि दिन के अंत में किसने सबसे अधिक पेड़ काटे….और इस मामले में काका आप सबसे 2-3 पेड़ आगे ही रहते हैं…जबकि उनकि उम्र भी हो चली है.”

मजदूर को ये बात अच्छी नहीं लगी.

वह बोला-

अगर ऐसा है तो क्यों न कल पेड़ काटने की प्रतियोगिता हो जाए. कल दिन भर में जो सबसे अधिक पेड़ काटेगा वही विजेता बनेगा.

मालिक तैयार हो गए.

अगले दिन प्रतियोगिता शुरू हुई. मजदूर बाकी दिनों की तुलना में इस दिन अधिक जोश में थे और जल्दी-जल्दी हाथ चला रहे थे.


लेकिन कुंदन काका को तो मानो कोई जल्दी न हो. वे रोज की तरह आज भी पेड़ काटने में जुट गए.


सबने देखा कि शुरू के आधा दिन बीतने तक काका ने 4-5 ही पेड़ काटे थे जबकि और लोग 6-7 पेड़ काट चुके थे. लगा कि आज काका हार जायेंगे.

ऊपर से रोज की तरह वे अपने समय पर एक कमरे में चले गए जहाँ वो रोज आराम करने जाया करते थे.

सबने सोचा कि आज काका प्रतियोगिता हार जायेंगे.

बाकी मजदूर पेड़ काटते रहे, काका कुछ देर बाद अपने कंधे पर कुल्हाड़ी टाँगे लौटे और वापस अपने काम में जुट गए.

तय समय पर प्रतियोगिता ख़त्म हुई.

अब मालिक ने पेड़ों की गिनती शुरू की.

बाकी मजदूर तो कुछ ख़ास नहीं कर पाए थे लेकिन जब मालिक ने उस नौजवान मजदूर के पेड़ों की गिनती शुरू की तो सब बड़े ध्यान से सुनने लगे…

1..2…3…4…5…6..7…8…9..10…और ये 11!

सब ताली बजाने लगे क्योंकि बाकी मजदूरों में से कोई 10 पेड़ भी नहीं काट पाया था.

अब बस काका के काटे पेड़ों की गिनती होनी बाकी थी…

मालिक ने  गिनती शुरू कि…1..2..3..4..5..6..7..8..9..10 और ये 11 और आखिरी में ये बारहवां पेड़….मालिक ने ख़ुशी से ऐलान किया…


कुंदन काका प्रतियोगिता जीत चुके थे…उन्हें 1000 रुपये इनाम में दिए गए…तभी उस हारे हुए मजदूर ने पूछा, “काका, मैं अपनी हार मानता हूँ..लेकिन कृपया ये तो बताइये कि आपकी शारीरिक ताकत भी कम है और ऊपर से आप काम के बीच आधे घंटे विश्राम भी करते हैं, फिर भी आप सबसे अधिक पेड़ कैसे काट लेते हैं?”

इस पर काका बोले-

बेटा बड़ा सीधा सा कारण है इसका जब मैं आधे दिन काम करके आधे घंटे विश्राम करने जाता हूँ तो उस दौरान मैं अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज कर लेता हूँ, जिससे बाकी समय में मैं कम मेहनत के साथ तुम लोगों से अधिक पेड़ काट पाता हूँ.

सभी मजदूर आश्चर्य में थे कि सिर्फ थोड़ी देर धार तेज करने से कितना फर्क पड़ जाता है.

दोस्तों, आप जिस क्षेत्र में भी हों…. आपकी योग्यता आपकी कुल्हाड़ी  है जिससे आप अपने पेड़ काटते हैं… यानी अपना काम पूरा करते हैं…. शुरू में आपकी कुल्हाड़ी जितनी भी तेज हो…समय के साथ उसकी धार मंद पड़ती जाती है…


उदाहरण के लिए- भले ही आप कम्प्यूटर साइंस के अग्रणी रहे हों…लेकिन अगर आप नयी तकनीक, नयी भाषा नहीं सीखेंगे तो कुछ ही सालों में आप पुराने हो जायेंगे आपकी आपकी धार मंद पड़ जायेगी.


इसीलिए हर एक व्यक्ति को कुंदन काका की तरह समय-समय पर अपनी धार तेज करनी चाहिए…अपने उद्योग से जुड़ी नयी बातों को सीखना चाहिए, नयी विधि को प्राप्त करना चाहिए और तभी सैकड़ों-हज़ारों लोगों के बीच अपनी अलग पहचान बना पायेंगे, आप अपने क्षेत्र के विजेता बन पायेंगे!


6



 " *नारी* "



एक अमीर आदमी की शादी एक बेहद बुद्धिमान स्त्री से हो गई थी।  वह हमेशा अपनी पत्नी से तर्क-वितर्क और वाद-विवाद में हार जाता था। एक दिन पत्नी ने कहा, "स्त्रियां पुरुषों से कम नहीं होतीं।" पति ने हंसते हुए कहा, "अगर ऐसा है तो मैं दो साल के लिए परदेश जा रहा हूं। इस दौरान, तुम एक महल बनाकर, बिजनेस में मुनाफा कमाकर और एक बच्चा पैदा करके दिखाओ। तभी मैं मानूंगा कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं और तुम्हारी बुद्धि व ज्ञान बेमिसाल है।" 


अगले ही दिन पति विदेश चला गया। पत्नी ने कर्मचारियों में ईमानदारी और मेहनत का गुण भर दिया, और उनकी पगार भी दोगुनी कर दी। सभी कर्मचारी दिल लगाकर काम करने लगे, और मुनाफा उम्मीद से भी ज्यादा बढ़ गया। उसी मुनाफे से पत्नी ने एक आलीशान महल बनवाया, जो देखने में बहुत ही खूबसूरत था। 


महल तो बन गया, पर अब समस्या थी बच्चे की। पत्नी ने दस गायें पाली और उनकी सेवा कर दूध की नदियां बहा दीं। देश-विदेश से दूध, दही, और घी के लिए ऑर्डर आने लगे। पत्नी को अब विदेश भी जाना पड़ता था। एक दिन, संयोग से पत्नी ने अपने पति को विदेश में देखा और सोचा कि क्यों न उसे सरप्राइज़ दिया जाए, पर उसे शर्तें याद आ गईं और वह संभल गई। 😌


शर्त तो लगभग पूरी हो गई थी, पर बच्चा कैसे पैदा होगा? पत्नी एक समझदार और नैतिक महिला थी, इसलिए वह किसी गैर पुरुष के साथ हमबिस्तर नहीं होना चाहती थी। फिर उसके दिमाग में एक योजना आई। 🤔


पत्नी ने भेष बदलकर अपने पति से पार्क में मुलाकात की, वह गरीब लड़की बनकर उसके सामने आई। पति उसे पहचान नहीं पाया। पत्नी ने कहा, "मैं यहां दूध, दही और मलाई बेचती हूं।" पति ने कहा, "तुम मुझे रोज दूध और दही मेरे घर पर ला दिया करो।" इस तरह रोज़ मुलाकात होने लगी। पत्नी उसके लिए चाय-नाश्ता भी बनाती थी। एक दिन, मोहपाश में फंसाकर संबंध बना लिया। 😌


कुछ दिनों बाद, पत्नी ने अपने पति से एक अंगूठी उपहार में ली और फिर अपने देश लौट आई। अब वह एक बच्चे की मां बन चुकी थी। 🍼


दो साल बाद जब पति घर आया, तो महल और शानो-शौकत देखकर वह खुश हो गया। पर जैसे ही उसने पत्नी की गोद में बच्चा देखा, वह क्रोध से चीख उठा, "यह बच्चा किसका है?"  पत्नी ने उसे उस 'दही वाली' गूजरी की कहानी और दी गई अंगूठी याद दिलाई। पति यह सब सुनकर हक्का-बक्का रह गया। 


पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर वो दही वाली गूजरी मेरी जगह कोई और होती, तो क्या होता?" इस सवाल का जवाब शायद पूरी पुरुष जाति के पास नहीं है। 


नारी नर की सहचरी है, उसकी धर्म की रक्षक है, उसकी गृहलक्ष्मी है और उसे देवत्व तक पहुंचाने वाली साधिका है। 🙏



7



 *मुश्किल दौर* 



एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया। 

 

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

 

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।


आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था। 


जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था  उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। 


अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। 


आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है। 

 

 

अर्थात सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।🙏




8


 *मुश्किल दौर* 



एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया। 

 

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

 

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।


आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था। 


जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था  उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। 


अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। 


आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है। 

 

 

अर्थात सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।🙏







खो गयी कहीं चिट्ठियां

 प्रस्तुति  *खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे।  बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते...