देव औरंगाबाद बिहार 824202 साहित्य कला संस्कृति के रूप में विलक्ष्ण इलाका है. देव स्टेट के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर अपने जमाने में मूक सिनेमा तक बनाए। ढेरों नाटकों का लेखन अभिनय औऱ मंचन तक किया. इनको बिहार में हिंदी सिनेमा के जनक की तरह देखा गया. कामता प्रसाद सिंह काम और इनकi पुत्र दिवंगत शंकर दयाल सिंह के रचनात्मक प्रतिभा की गूंज दुनिया भर में है। प्रदीप कुमार रौशन और बिनोद कुमार गौहर की भी इलाके में काफी धूम रही है.। देव धरती के इन कलम के राजकुमारों की याद में .समर्पित हैं ब्लॉग.
रविवार, 12 जुलाई 2015
दूसरी बीबी से ही होते है बच्चे
प्रस्तुति- प्रियदर्शी किशोर, राहुल मानव
बाड़मेर। राजस्थान में बाड़मेर जिले के एक गांव में हर परिवार में दूसरी पत्नी से ही संतान होने का अजीब संयोग जुड़ा है। जिला मुख्यालय से अट्ठाइस किलोमीटर दूर गड़रा सड़क मार्ग स्थित देरासर ग्राम पंचायत के अल्पसंख्यक बाहुल रामदियों की बस्ती में 70 मुस्लिम परिवार है।
गांव के हर परिवार में हर युवक ने दो-दो निकाह किए हैं। मुस्लिम परिवारों में दो निकाह आश्चर्य का कारण नहीं है लेकिन इस गांव के लोगों द्वारा दूसरा निकाह करने के पीछे जो कारण है वह आश्चर्यजनक है। गांव के किसी भी परिवार में पहली शादी के बाद किसी के भी संतान नहीं है लेकिन दूसरी शादी के बाद सभी के घर में संतानें हुई हैं।
एक दो परिवारों में ऐसा हो तो उसे संयोग ही कह सकते है लेकिन हर व्यक्ति के दूसरी शादी के बाद ही संतान होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। गांव के बुजुर्ग 65 साल के आरब खान बताते हैं कि गांव के साथ यह संयोग कई वाकयों से जुड़ा है। गांव के लाला मीठा के कई सालों तक संतान नही हुई।
परिजनों ने कई बार उस पर दूसरा निकाह करने के लिए दबाव डाला लेकिन मीठा ने साफ इंकार कर दिया। लगभग 55 साल की उम्र में उसकी पत्नी का निधन हो गया उसके बाद परिजनों के दबाव के कारण मीठा ने दूसरी शादी के लिये अपनी रजामंदी दी। निकाह के एक साल बाद ही उसके घर लड़की पैदा हुई फिर तीन लडके भी हुए।
इसके बाद से तो हर परिवार में पहली शादी के बाद पहली बीवी से किसी को संतान नहीं हुई। दूसरी शादी करने के बाद दूसरी पत्नी से हर परिवार में संतान हुई। यह परिपाटी आज भी बदस्तूर जारी है। इसका कारण पूछने पर आरब ने इसे खुदा की मेहर बताया।
गांव में कई लोगों ने आधी उम्र बीत जाने के बाद संतान की चाह में शादियां की तो उन्हें निराशा हाथ नहीं लगी जिसने भी दूसरी शादी की उसके संताने जरूर हुई। बीते महीने भी तीन व्यक्तियों ने दूसरी शादियां की। गांव में लगभग सभी लोग अशिक्षित है।
ग्रामीण जादम खान के अनुसार उसका पहला निकाह सत्रह साल की उम्र में हो गया था। चार साल तक घर में बच्चा नहीं होने के कारण उसका दूसरा निकाह सफियत से हुआ। सफियत से उसको तीन लड़के और चार लड़कियां हुई।
गोपाल दास ‘नीरज’ के फिल्मी गीत
‘मूल्य’ समाज व व्यक्ति के जीवन में अह्म भूमिका
निभाते हैं। ‘मूल्य’ शब्द अंग्रेजी शब्द ‘वैल्यू" के पर्याय के रूप में
ग्रहण किया जाता है। प्रतिदिन के व्यवहार में ‘मूल्य’ शब्द का प्रयोग
विभिन्न अर्थों में किया गया है जैसे ‘मूल्य’ शब्द ‘कीमत’ के अर्थ में
या विशिष्ट अर्थ में यथा नैतिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौंदर्यशास्त्रीय
मूल्य, धर्मिक मूल्य या सामाजिक मूल्य के अर्थ में बोध कराता है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है अतः सामूहिक चेतना,
पारस्परिक व्यवहार, विचार-विनिमय एवं अन्य कार्यों में मूल्य बोध की
जानकारी होना अत्यावश्यक है। समाज में अनेक नियमों की अवधरणा है जो
समाज के अधिकतर व्यक्तियों को स्वीकार करना पड़ता है। वही नियम आगे चलकर
मूल्य में परिवर्तित हो जाते हैं।
फिल्मी गीत समाज एवं व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करते हैं। साहित्य में जो कुछ घटित होता है, उसका प्रभाव
व्यक्ति और समाज पर पड़ता है। हिंदी फिल्मों का संगीत देश-विदेश दोनों
जगहों पर सुना जाता है। यह समाज में आम जनता के लिए सबसे बड़ा मनोरंजन
का साधन है। अधिकतर फिल्मों के गीत मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति के भीतर
तक उतर जाते हैं और अच्छा सोचने और जीवन में कुछ बेहतर करने की प्रेरणा
देने के लिए मजबूर कर देते हैं। फिल्मी गीतों को प्रस्तुत करते हुए कवि
उसमें मनोरंजन के साथ-साथ कुछ शिक्षा का भी समावेश करते हैं।
फिल्मी जगत में अनेक गीतकारों ने अपना महत्वपूर्ण
योगदान दिया है, जैसे साहिर लुधियानवी, आनंद बख्शी, जाँ निसार अख्तर,
शैलेन्द्र, राहुल देव बर्मन, नौशाद, गोपालदास नीरज आदि इन गीतकारों ने
अपने गीतों के माध्यम से समाज में नई दिशा दी है। गोपालदास नीरज ने
जहाँ साहित्य में अपना परचम लहराया है, वहीं फिल्मी जगत में भी अपने
गीतों के माध्यम से सबको मदहोश किया है।
गोपालदास नरीज का जन्म 4 जनवरी 1925 को ग्राम
पुरावली, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ। नीरज 6 वर्ष की अल्पायु
में पिता के प्यार, दुलार से वंचित हो गए। पिता बाबू ब्रजकिशोर की
अकस्मात मृत्यु होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। घर में बड़ा
बेटा होने के कारण घर की सारी ज़िम्मेदारी गोपालदास नीरज पर आ गई।
शिक्षा को बढ़ाएँ या नौकरी कर अपने घर का लालन-पालन करें। गोपालदास नीरज
के पास पिता की सम्पत्ति के नाम पर कुछ ज़मीन थी। पिता की मृत्यु के
तुंरत बाद ज़मीन को बेचकर नौकरी में अपना भाग्य अज़माया। लेकिन ज़्यादा
समय तक वह नौकरी भी नहीं रह पाई। खानपुर स्टेट में कुछ समय तक नौकरी
करने के बाद अपने फूफा हरदयाल प्रसाद वकील के पास एटा चले गए। एटा में
नीरज नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई पर भी विशेष ध्यान देने लगे। अपनी
पढ़ाई के साथ ही अपने भाइयों की पढ़ाई व घर की आर्थिक व्यवस्था को
सुधारने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। नीरज ने इटावा के न्यायालय
में टाइपिंग करने का कार्य किया। भाग्य का खेल देखिए टाइपिंग का कार्य
भी अधिक समय नहीं चल सका। गोपालदास नीरज ने प्रयास करना नहीं छोड़ा।
दिन-रात काम के लिए भटकते रहे और वहाँ से सन् 1942 में दिल्ली आ गए।
दिल्ली में भी नीरज ने नौकरी पाने के लिए अथक प्रयास किये। आखिरकार
दिल्ली में ‘सप्लाई-विभाग’ में टाइपिस्ट की नौकरी मिल गई। इस नौकरी से
नीरज को 67 रुपये का मासिक वेतन मिलता था। मात्र 67 रुपये में घर और
अपनी ज़रूरतों को पूरा करना कठिन ही नहीं नामुमकिन था। नीरज को 40 रुपये
के करीब घर भेजने पड़ते थे। उन 40 रुपयों से घर व भाइयों की शिक्षा की
व्यवस्था चलती थी। मात्र 27 रुपये अपने पास रखते थे। जिसमें पूरा महीना
निकालना होता था। नीरज पूरे दिन में केवल एक ही टाइम का खाना खाते थे।
खाना भी तला हुआ। उसके पीछे कारण यह था। खाना तला हुआ होगा तो खाना
पचने में अधिक समय लगेगा। 11 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद भी जीवन
में सफलता का कोई क्रम नहीं आया। गोपालदास नीरज ने अपने जीवन में
अधिकतर केवल संघर्ष की प्रति छाया ही देखी है।
गोपालदास नीरज ने अपने जीवन में अनेक नौकरियाँ कीं।
दिल्ली के बाद उन्होंने कानपुर में क्लर्की की। 1949 में इण्टरमीडिएट
की परीक्षा पास कर, सन् 1951 में बी.ए. और 1953 में हिंदी साहित्य में
एम.ए. की उपाधि ग्रहण की। 1955 में गोपालदास नीरज ने मेरठ में
प्राध्यापक का कार्यभार संभाला। प्राध्यापक के पद पर भी वे अधिक समय तक
नहीं रह पाए। कर्मचारी व सहयोगियों के झूठे आक्षेपों के कारण वह नौकरी
भी उन्हें छोड़नी पड़ी। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें प्राध्यापक के पद पर
दोबारा बुलाया गया, जो भी आरोप उन पर लगे थे, वे गलत माने गए। गोपालदास
नीरज ने अपने आत्म-सम्मान के साथ समझौता नहीं किया। वे उस नौकरी के लिए
दोबारा वहाँ नहीं गए।
कविवर नीरज का कवि जीवन सन् 1942 के आसपास शुरु हुआ
माना जाता है। जब वे स्कूल में पढ़ा करते थे। ऐसा माना जाता है, स्कूली
शिक्षा के दौरान उनका प्रेम संबंध हो गया था। प्रेम-संबंध भी ज़्यादा
समय तक नहीं रहा। उसमें भी विरह-वेदना की पीड़ा को सहना पड़ा। अपनी
प्रेमिका से दूर होने के कारण उनके मन से कुछ पंक्तियाँ अनायास निकल
गईं -
"कितना एकाकी मम जीवन,
किसी पेड़ पर यदि कोई पक्षी का जोड़ा बैठा होता तो न उसे भी आँखें भरकर मैं इस डर से देखा करता कहीं नजर लग जाय न इनको॥"
इन पंक्तियों को कहकर गोपालदास नीरज कवियों की
श्रेणी में आ गए। गोपालदास नीरज अपने कवि बनने में सबसे बड़ा योगदान
श्री हरिवंश ‘बच्चन’ की कविता ‘निशा निमन्त्रण’ को मानते हैं। कविता
पढ़ने के बाद उनका मन भी कविता करने को किया। इस संबंध में नीरज ने लिखा
है - "मैंने कविता लिखना किस से सीखा, यह तो मुझे याद नहीं। कब लिखना
आरम्भ किया, शायद यह भी नहीं मालूम। हाँ, इतना ज़रूर, याद है कि गर्मी
के दिन थे, स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकी थीं, शायद मई का या जून का
महीना था। मेरे एक मित्र मेरे घर आए। उनके हाथ में ‘निशा-निमन्त्रण’
पुस्तक की एक प्रति थी। मैंने लेकर उसे खोला। उसके पहले गीत ने ही मुझे
प्रभावित किया और पढ़ने के लिए उनसे उसे माँग लिया। मुझे उसके पढ़ने में
बहुत आनन्द आया और उस दिन ही मैंने उसे दो-तीन बार पढ़ा। उसे पढ़कर मुझे
भी कुछ लिखने की सनक सवार हुई।......... बच्चन जी से मैं बहुत अधिक
प्रभावित हुआ हूँ। इसके कई कारण हैं, पहला तो यही कि बच्चन जी की तरह
मुझे भी ज़िंदगी से बहुत लड़ना पड़ा है। अब भी लड़ रहा हूँ, और शायद भविष्य
में भी लड़ता ही रहूँ।"
गोपालदास नीरज ने अपने जीवनकाल में अनेक फिल्मों में
अनेक गीत लिखे। उनके कुछ प्रमुख गीतों के आधार पर हम उनके गीतों में
सामाजिक मूल्य की विवेचना करेंगे। आज लोगों ने चेहरे के ऊपर चेहरा लगाए
हुए घूम रहे हैं उन्हें समझ पाना बड़ा मुश्किल है। असली चेहरा कौन सा
है, यह जानना आसान नहीं हैं। दुनिया एक मेला है। इस मेले में चारों तरफ
भीड़-भड़ाका है। इस भीड़ में आपको अनेक प्रवृतियों के लोग मिलेंगे।
सही-गलत, चतुर-मसखरे आदि। इन सबसे अपने आपको कैसे बचाना है। कैसे खुश
रहना या रखना है। यह सब सीखना है। व्यक्ति जोकर है। जोकर का काम सबको
हँसाने का है। अपना दुःख भुला के सबको खुश रखना बहुत मुश्किल कार्य है।
धर्म के प्रति संकुचित सोच आज भी समाज में कहीं न व्याप्त है। धर्म के
प्रति लोगों को जागरूक करना है। दुनिया बहुत सुंदर है। इसमें हँसकर जो
जीता है, वही सिकंदर कहलाता है।
गोपालदास नीरज का लिखा हुआ फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ से
यह गीत है-
कहता है जोकर सारा ज़माना
आधी हक़ीक़त आधा फ़साना चश्मा उठाओ, फिर देखो यारो दुनिया नयी है, चेहरा पुराना कहता है जोकर........ धक्के पे धक्का, रेले पे रेला है भीड़ इतनी पर दिल अकेला गम जब सताये, सीटी बजाना पर मसखरी से दिल न लगाना कहता है जोकर....... अपने पे हँस के जग को हँसाया बन के तमाशा मेले में आया हिन्दु न मुस्लिम, पूरब न पश्चिम मज़हब है अपना हँसना हँसाना कहता है जोकर सारा ज़माना आधी हक़ीक़त आधा फ़साना
आधुनिक युग में प्रेम की परिभाषाएँ ही बदल गई हैं।
प्रेम जो समर्पण, त्याग का प्रतीक था, वही अब स्वार्थ तक सीमित रह गया
है। प्रेम में पैसे का कोई महत्त्व नहीं था। लेकिन अब पैसों के बल पर
सब चीज़ें हैं। ऐसा कुछ लोगों का मानना है। व्यक्ति मुसाफिर है। सफर में
वह अनेक समस्याओं और कठिनाईयों से गुज़रता है। मन में संयम रखना ज़रूरी
है। व्यक्ति के आचरण पर बहुत कुछ निर्भर करता है। आज का व्यक्ति प्रेम
को वस्तु के रूप में अपनाने लगा है। प्रेम को प्रेम के रूप में अपनाना
चाहिए। उसमें शर्तें नहीं होनी चाहिए, जहाँ शर्तें होती हैं, वहाँ
प्यार नहीं समझौता होता है।
दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है
शब ये ग़ज़ल है सनम ग़ैरों के शेरों को ओ सुनने वाले हो इस तरफ भी करम ये प्यार कोई खिलौना नहीं है हर कोई ले जो खरीद मेरी तरह ज़िंदगी भर तड़प लो कि आना इसके करीब हम तो मुसाफ़िर हैं कोई सफ़र हो हम तो गुज़र जाएँगे ही लेकिन लगाया है जो दाँव हमने वो जीत कर आएँगे ही.......
हिंदी फिल्मी गीतों का असर व्यक्ति पर मानसिक और
शारीरिक दोनों रूपों में दिखाई देता है। यही कारण है कि जब भी हम कोई
गीत सुनते हैं, तो वह कहीं ना कहीं हमारे दिल की आवाज़ लगता है। व्यक्ति
को जीवन में बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सहायता करनी चाहिए।
संवेदनशील होना चाहिए। यही मानवता उसकी कविता का मूल स्वर है। अपनी
क्षमता एवं अक्षमता का इज़हार करते हुए व्यक्ति को जानबूझकर किसी का
अहित नहीं करना चाहिए। ज़्यादा से ज़्यादा खुशियाँ बाँटनी चाहिए। व्यक्ति
को व्यक्ति से प्रेम-भाव रखना चाहिए। गीतकार गोपालदास नीरज का लिखा हुआ
फिल्म ‘पहचान’ से ये लोकप्रिय गीत मैं अपनी अक्षमताओं को बताते हुए
कहता हूँ-
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में मुस्करा कर भेंट हर स्वीकार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ... मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर आदमी जिस में रहे बस आदमी बनकर उस नगर की हर गली तैयार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ... हूँ बहुत नादान करता हूँ ये नादानी बेचकर खुशियाँ खरीदूँ आँख का पानी हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ....
प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपना सर्वस्व माना बैठा है।
वह कहता है कि मेरा दिल अब तेरा हो गया है। तेरे सिवा मेरा कोई नहीं
है। मैंने अपनी ज़िंदगी अब तेरे नाम लिख दी है। इसे बिगाड़े या सँवारे
तेरी मर्जी। मुझे प्रेम में धोखा मत देना। नहीं तो मैं यह जीवन नहीं जी
पाऊँगा। मेरी हर अब तेरे साथ जुड़ गई है। इच्छा इस गीत में गीतकार ने
अपने प्रेम की अभिव्यक्ति की है कि उसके बिना उसका जीवन का कोई
अस्तित्व नहीं है।
मेरा मन तेरा प्यासा, मेरा मन तेरा
पूरी कब होगी आशा, मेरा मन तेरा जब से मैंने देखा तुझे मेरा मन नहीं रहा मेरा। दे दे अपना हाथ मेरे हाथों में क्या जाए तेरा अब तो न तोड़ो आशा, मेरा मन...... ज़िंदगी है मेरी इक दाँव, तू है हार-जीत मेरी ऐसे वैसे कैसे भी तू खेल हमसे जैसे मर्जी तेरी। कितनी है भोली आशा, मेरा मन...... पता नहीं कौन हूँ मैं, क्या हूँ और कहाँ मुझे जाना अपनी वो कहानी जो अंजानी हो के बन गई, फ़साना जीवन क्या है, तमाशा, मेरा मन प्यासा, मेरा मन तेरा।
मन बहुत चंचल होता है। प्रेम में चंचलता का भाव और
तीव्र हो जाता है। मन झूमने, नाचने, गाने लगता है। प्रेम में प्रकृति
की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यक्ति प्रेम में प्रकृति के अनेक
स्वरूपों को अपने भावों के अन्तर्गत व्यक्त करते हुए दिखाता है। किसी
के प्रति प्रेम, लगाव व्यक्ति को अच्छा बनाता है। उसे बुरे कार्य करने
से रोकता है। प्रेम व्यक्ति को सही दिशा देता है। प्यार को नशा कहा गया
है। व्यक्ति प्रेम में अपनी सुध-बुध खो देता है। गीतकार ने इस गीत में
प्रेम की लौकिक अभिव्यक्ति की है -
अपने होठों की बंसी बना ले मुझे
मेरी सांसों में तेरी साँस घुल जाए आरजू तो हमारी भी हैं ये मगर डर है मौसम कहीं ना बदल जाए देखा तुझे, चढ़ा ये कैसा नशा चली ये कैसी हवा, भूले हम घर का पता अब तो नहीं हम से होना जुदा अपनी बाहों का घूँघट ओढ़ा दे मुझे प्यार की ये ना डोली निकल जाए।
प्रेम में प्रेमी अपने आप से ही संवाद करता हुआ नज़र
आता है। वह अपने चारों ओर कुछ नहीं देख पाता। उसे केवल अपनी प्रेमिका
की छवि ही हर जगह दिखाई देती है। वह अपनी प्रेयसी के सौन्दर्य को
प्रकृति के रूप में कल्पना करते हुए प्रतीत होता है। प्रेमी प्रेम में
दीन-दुनिया से दूर रहता है, अपनी ही स्मृतियों में खोया रहता है।
आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन, मेरा मन,
बिना ही बात मुस्कराये ये, मेरा मन, मेरा मन। ओ री कली, सजा तू डोली ओ री लहर, पहना तू पायल ओ री नदी, दिखा तू दर्पण ओ री किरण, ओढ़ा तू आँचल इक जोगन हैं बनी आज दुल्हन आओ उड़ जाए कहीं बन के पवन आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन, मेरा मन शरारत करने को ललचाये रे, मेरा मन, मेरा मन।
माँ-बाप बनना इस संसार में बड़ी नियामत है। बच्चा माँ
का स्पर्श पाते ही सब दुःख भूल जाता है गर्भ में बच्चे के आते ही
माता-पिता अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करने लगते हैं। बच्चे के आने से
जीवन परिवर्तित हो जाएगा। परिवार में खुशहाली, संबंधें में दृढ़ता का
समावेश हो जाएगा। अपने बचपन को माता-पिता अपने बच्चे के बचपन में
ढूँढेंगे। इस गीत में गीतकार ने बच्चे के आने पर जिंद
जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी, चहकेगी
खुशियों की कलियाँ झूमेंगी, फूलेंगी वो मेरा होगा, वो सपना तेरा होगा मिलजुल के माँगा, वो तेरा मेरा होगा जब जब वो मुस्कुरायेगा, अपना सबेरा होगा थोड़ा हमारा, थोड़ा हमारा, आयेगा फिर से बचपन हमारा हम और बँधेंगे हम तुम कुछ और बँधेंगे होगा कोई बीच तो हम तुम और बँधेंगे बाँधेगा धगा कच्चा, हम तुम तब और बँधेंगे थोड़ा हमारा, थोड़ा तुम्हारा, आयेगा फिर से बचपन हमारा मेरा राजदुलारा, वो जीवन प्राण हमारा फूलेगा एक फूल, खिलेगा प्यार हमारा दिन का वो सूरज होगा, रातों का चाँद सितारा थोड़ा हमारा, थोड़ा तुम्हारा, आयेगा फिर से बचपन हमारा।
गी की सुखद अनुभूति अपनी संवेदनाओं के तहत अभिव्यक्त
की हैः
प्रेम में बिछोह को भी सहना पड़ता है। जिससे प्रेम और
दृढ़ हो जाता है। विरह की वेदना में प्रेयसी से मिलन की उत्कंठा, उत्साह
प्रेम की प्रगाढ़ता को बढ़ाता है। प्रेमी अपने प्रियतम से न मिलने के
कारण दुखी है। प्रियतम को बताना चाहता है कि वह उसके बिना जीना नहीं
चाहता है। उसे हर एक वस्तु में उसकी छवि दिखाई देती है। गीतकार
गोपालदास नीरज का लिखा फिल्म ‘कन्यादान’ का ये गीत-विरह वेदना का अनुपम
उदाहरण है। मैं उनके रूपों का विश्लेषण करते हुए लिखा है -
लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में
हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए? सबेरा जब हुआ, तो फूल बन गए जो रात आयी तो सितारे बन गए। कोई नग़मा कहीं गूँजा, कहा दिल ने ये तू आयी कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई कोई खुशबू कहीं बिखरी, लगा ये जुल्फ़ लहराई।
निष्कर्ष
समग्रतः कहा जा सकता है कि गोपालदास नीरज का जीवन
समस्याओं और कठिनाइयों में ही बीता है। पिता की मृत्यु के बाद अपनी
ज़िम्मेदारियों से विमुख नहीं हुए। उनका डटकर सामना किया। गोपालदास नीरज
समकालीन कवियों में से ही नहीं आधुनिक युग के कवियों और गीतकारों में
से एक हैं। जहाँ ‘दिनकर’ ने ‘नीरज को ‘हिंदी की वीणा’ माना है वहीं
भदन्त आनन्द कौसल्यायन उन्हें ‘अश्वघोष’ की उपाधि देते हैं। गोपालदास
नीरज समय के अनुसार अपने गीतों में नवीनता लेकर आए हैं। समाज में क्या
चल रहा है। उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर पाये हैं। उनके प्रत्येक गीत में समाज
का स्पर्श है। प्रेम की अभिव्यक्ति में वे झूमते गाते दिखाई देते हैं।
तो विरह की वेदना से भी ओत-प्रोत हैं। शायद कोई भी ऐसा विषय नहीं है
जिसमें ‘नीरज’ ने अपनी अभिव्यक्ति ना दी हो, जिसे उनकी लेखनी ने न
महसूस किया हो। समाज में जो कुछ माँगा वह दिया। इसीलिए वे लोकप्रिय
गीतकार हैं।
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बुधवार, 8 जुलाई 2015
व्यापम खेल का शिवराज
'किलर' व्यापमं घोटाले की वो 10 सबसे अहम बातें जो आप जानना चाहेंगे
Reported by NDTV.com , Edited by Rajeev Mishra , Last Updated: सोमवार जुलाई 6, 2015 03:13 PM IST
प्रस्तुति- राहुल मानव
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1. इस घोटाले का पता 2013 में चला जब कुछ खबरें आईं कि घूस देकर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन किया जा रहा है। आरोप यह लगा कि पैसे लेकर राजनेता, नौकरशाह और अन्य घूस लेकर परीक्षार्थी की जगह किसी ओर से परीक्षा दिलवाने का काम कर रहे हैं। इसी प्रकार अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रॉक्सी कैंडिडेटों ने परीक्षा दी और लोगों को डॉक्टर और टीचरों की सरकारी नौकरी मिली।
2. व्यापमं का नाम मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल पर पड़ा है। यह वही संस्था है जो राज्य में इस प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं को कराने के लिए उत्तरदायी है।
3. जब से यह घोटाला उजागर हुआ तब से 35 लोगों की मौत हो चुकी है जो इससे किसी न किसी प्रकार से जुड़े रहे।
4. हाल में एक डॉक्टर और एक पत्रकार की संदिग्ध मौत की खबरें आई जिसके बाद मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया।
अगस्त 2013 से इस मामले में मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गठित एसआईटी गठित की गई जो घोटाले की जांच कर रही है।
5. 2014 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मामले में सीबीआई जांच की कांग्रेस और अन्य की मांग को खारिज कर दिया।
6. हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड जज के नेतृत्व में तीन लोगों की एक समिति बनाई जो इस जांच की निगरानी कर रही है।
7. होईकोर्ट ने कहा कि इस समिति का काम जांच की प्रगति और दिशा पर निगरानी रखना है।
8. इस घोटाले में 2500 आरोपी हैं और करीब 1900 जेल में हैं। कोर्ट में दी गई जानकारी के अनुसार करीब 500 आरोपी लापता बताए जा रहे हैं।
9. इस घोटाले में अब तक 55 केस दर्ज किए जा चुके हैं।
10. विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि 77 लाख प्रत्याशियों ने घूस दिया और वह इस घोटाले का हिस्सा हैं।
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे...
First Published:
जुलाई 6, 2015 03:00 PM IST
- व्यापमं : पत्रकार अक्षय सिंह के घर जा सकते हैं शिवराज सिंह चौहान
- पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने एनडीटीवी से कहा, 'नम्रता दामोर की हत्या हुई थी'
- व्यापमं घोटाला : हाईकोर्ट का सीबीआई जांच से इनकार, कहा - अधिकार क्षेत्र से बाहर
- व्यापमं घोटाला : 2500 आरोपी, 2000 गिरफ्तारी और 35 मौतें
- व्यापमं घोटाला : राज्यपाल हैं आरोपी नंबर 10, एनडीटीवी के पास दस्तावेज
व्यापमं : राज्यपाल हैं आरोपी नंबर 10, एनडीटीवी के पास दस्तावेज4:41
व्यापमं मामले को लेकर कांग्रेस का जंतर-मंतर पर प्रदर्शन2:49
खबरों की खबर : व्यापमं घोटाले की सिर्फ सीबीआई जांच से संतुष्ट नहीं कांग्रेस15:46
न्यूज प्वाइंट : हर मौत के साथ हो रहा व्यापक और सनसनी फैला रहा है व्यापमं घोटाला34:14
बहुत पुराना है व्यापमं घोटाला, इंदौर के अरविंदो कॉलेज के मामला 2005 का2:27
बड़ी खबर : एसआईटी प्रमुख ने कहा अब तक की मौतों का व्यापमं घोटाले से संबंध नहीं15:35
व्यापमं की जांच सीबीआई से कराने के लिए हाईकोर्ट से अपील करेंगे : मुख्यमंत्री9:33
व्हिसिल ब्लोअर पर क्यों चुप है आरएसएस?8:09
व्यापमं ने ली एक और जान? : पंखे से लटका मिला सिपाही का शव
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साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )
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