शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

बेचन मामा

 कहानी -बेचन मामा / सीमा. मधुरिमा 


मुन्नी पॉँच साल की होगी ज़ब पहली बार अपने मामा के घर गयी या यूँ कहे उसे मामा के घर भेज दिया गया उसकी माँ द्वारा l ज़ब वो तीन साल की थी तभी उसे उसके दो और बड़े भाईयों  के साथ अपनी बड़ी अम्मा के यहाँ पढ़ने के उद्देश्य से भेज दिया गया था ....या कहा जा सकता है कि उसके माता पिता कि मजबूरी थी क्योंकि उसके पिता वन विभाग में नौकरी करते थे तो उनका सरकारी आवास भी लखीमपुर स्थिति खटीमा रेंज में सुरई नामक स्थान पर था जहाँ मुन्नी के अब दो जुड़वे भाई बहन भी हो गए थे जिससे मुन्नी की माँ का ध्यान मुन्नी पर कम ही हो पाता ऐसे में मुन्नी एक बार जंगल में खोते खोते बची l माँ बिलकुल ही डर गयीं और पिता ने मुन्नी के दोनों बड़े भाईयों सँग मुन्नी को अपने बड़े भाई भाभी के घर शहर में पढ़ने के उद्देश्य से भेज दिया l मुन्नी तीन साल में ही माँ से दूर हो गयी l बड़ी अम्मा के घर में कई और चचेरे भाई बहन थे l मुन्नी को भी एक स्कूल में दाखिला दे दिया गया l मुन्नी अक्सर माँ के प्रेम को तरस जाती l स्कूल जाती तो अक्सर अपने साथियों के टिफिन चुरा के खा जाती l मुन्नी शायद चोरी का मतलब तो उस उम्र में जानती ही नहीं रही होगी ....पर ज़ब उसे भूख लगती तो किसी न किसी का टिफिन खा जरूर लेती थी ...जिसकी शिकायतें घर पर पहुंचती ...तब मुन्नी को खूब डाँट पड़ती और सख्त हिदायतें दी जाती l उसे आये एक से ड़ेढ़ वर्ष ही हुए होंगे की उसे जबरदस्त खाँसी आने लगी जो महीनों ठीक नहीं हुयी ऐसे में उसे उसके गावँ भेज दिया गया l अब मुन्नी गावँ में रहने लगी जहाँ जल्दी ही उसकी माँ भी आ गयीं क्योंकि उसके पिता जी ने राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था जिसके कारण माँ और दोनों छोटे भाईयों को गावं शिफ्ट करा दिया गया l मुन्नी बहुत खुश हुयी की अब माँ के साथ रहने को मिलेगा l ज़ब उसकी माँ रात को सोती थी तो दोनों भाई बहन को अगल बगल लेकर सोती थी और मुन्नी अपनी माँ के पैरों की तरफ उनके पैरों को ऐसे पकड़कर सोती थी मानों उसे संसार का सब सुख उन पैरों से मिल जा रहा l एक बार मुन्नी उनके पैरों को कसकर पकड़ लेती तो सुबह नींद खुलने पर ही छोड़ती l माँ का स्पर्श उसे पुलकित करता रहता l उसके चचेरे भाई बहन गावँ के पास के पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे ....मुन्नी उनके साथ अक्सर स्कूल चली जाती ....पर शाम को लौटने पर उसकी एक चचेरी बहन रोज ही उसकी माँ पर चिल्लाती ....या तो इसका  एडमिशन करवा दिया जाय या इसे मेरे पीछे स्कूल न भेजा जाय मुझे वहाँ की गुरूजी लोग डाँटती हैँ ....l

मुन्नी अपनी माँ का उदास चेहरा देखती तो उसे अच्छा नहीं लगता l खिचड़ी आने वाली थी मुन्नी के मामा के यहाँ से एक चनरपत मामा मुन्नी की माँ के लिए खिचड़ी लाये ....बस फिर क्या था उसकी माँ ने उसे उनके साथ ही मामा के घर के लिए भेज दिया और बोल दिया इसका स्कूल में दाखिला करवा देना l मुन्नी चनरपत मामा की साइकिल पर सवार हो निकल पड़ी अपने मामा के घर l मुन्नी ने अपनी  याददाश्त में पहली बार मामा का घर देख बड़ा सा दालान अंदर बड़े बड़े कमरे किसी राजमहल से कम न था ...बाहर उसके दो दो नाना अंदर घर में एक नानी एक मामी एक भैया और एक दीदी ....सबने बड़ी ही गर्मजोशी से उसका स्वागत किया l उसकी मामी एक थाली में पानी भरकर लायीं और उसे एक खटिया पर बिठाकर बड़े ही प्यार से उसके पाँव धोये मुन्नी को बहुत सुख मिला l मुन्नी मामा के घर रम गयी l स्कूल जाने लगी मामा मामी नाना नानी सभी की लाडली हो गयी l धीरे धीरे मुन्नी गावँ में भी रम गयी l मुन्नी के घर से लगभग पचास कदम दूर ही बेचा मामा का घर था जहाँ तीन परिवार रहते थे जिसमें बेचैन मामा का भी एक परिवार था l मुन्नी बेचैन मामा के घर अक्सर खेलने जाने लगी और बेचैन मामा उनके तो जैसे मुन्नी में प्राण ही बसते थे l एक बार मुन्नी को याद है गाँव में फिरकी बेचने वाला आया मुन्नी फिरकी लेने के लिए रोने लगी ....बेचैन मामा ने उस दिन मुन्नी के लिए ढेरों फिरकियाँ बना डाली ...तब जाके मुन्नी खुश हुयी ...बेचैन मामा रोज ही उसके लिए ढेरों कंडे से कलम गढ़कर देते रहते थे ...मुन्नी का स्कूल का झोला ढेरों कलम से भ्रम रहता ...उसकी पटरी सबसे ज्यादा चमकती क्योंकि बेचैन मामा उसपर खूब मेहनत करते l मुन्नी को अक्सर सुंदर सुंदर अक्षर बनाना सीखाते l मुन्नी स्कूल से घर आते ही खाने पिने की धुन की जगह बेचैन मामा के घर भाग जाती और वहीं उनकी माँ यानि नानी से कुछ मांगकर खा लेती थी ....कई बार ज़ब बेचन मामा अपने कमरे में जो ऊपर छत पर बना था सो रहे होते तो मुन्नी चुपके से जाकर भम से करके उनके सोते शरीर पर ही कूद पड़ती और वो डर जाते पर मुन्नी को देखते ही उनका गुस्सा काफूर हो जाता और मुन्नी पर बहुत सी नेह की वर्षा करते l ऐसे ही मुन्नी के एक एक दिन बीतने लगे l एक बार बेचैन मामा का कोई मित्र आया था जो उनके कमरे में ठीक वैसे ही सो रहा था जैसे मामा सोते थे और मुन्नी उसके ऊपर भी मामा को समझकर ही कूद पड़ी ...l

वो मित्र दो तीन दिन रुका ...ज़ब वो चला गया तो मुन्नी को कुछ कुछ याद आता है की उसके बेचैन मामा ने उसे सख्त हिदायत दी थी की किसी अजनबी से यूँ घुलना मिलना नहीं चाहिए ....मुन्नी ने सिर झुकाकर उनकी बात मान ली ....मुन्नी को उनकी बात का मर्म कुछ सालों बाद पता चला ...की शायद उनका वो मित्र कुछ गलत जगहों पर हाथ लगा रहा था जो मामा को बिलकुल पसंद नहीं आया था और मुन्नी अपने मामा की ही तरह उस आदमी के भी सिर पर चढ़कर खेल रही थी कभी गोद में घुस जाती l 

समय बीतता रहा मामा और मुन्नी का प्रेम प्रगाढ़ होता रहा ....मुन्नी जिसे कभी माता पिता ने भी जी भरकर प्रेम नहीं किया ....वो अब बेचन मामा जैसे एक ऐसी प्रेम की क्षत्रछाया में थी की उसे अब दुनिया के किसी प्रेम की अभिलाषा नहीं रह गयी थी इसी बीच में बेचन मामा का विवाह हुआ जिसमें मुन्नी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और घर में एक नई मामी आयीं ....कुछ दिन तो मुन्नी को अच्छा नहीं लगा क्योंकि वो ज़ब भी अपने बेचना मामा से मिलने जाती वो मामी पहले मिलतीं लेकिन जल्दी ही मामी ने मामा और मुन्नी के वातसल्य को भाँप लिया और वो भी एक उसका हिस्सा बन गयीं ....वो भी मुन्नी को उतना ही प्रेम करने लगीं जितना कि मामा करते थे ....यूँ कहिये मुन्नी उन दोनों की पहली संतान की तरह हो गयी थीं  l इधर मुन्नी के घर में उसकी बड़ी मामी कुछ दिनों के लिए आयीं थीं जो गोरखपुर रहा करती थीं l कुछ ही दिनों बाद उसकी माँ भी आ गयीं उसके दोनों जुड़वे भाई बहन के साथ मुन्नी बहुत प्रसन्न थीं l अपनी छोटी बहन को लेकर पूरा गावँ घूमने गयी बेचन मामा से भी मिला लायी l इधर बड़ी मामी ने घर में बेचन मामा के खिलाफ सबके कान भरने शुरू कर दिए ...आखिर ये लड़की क्यों वहाँ इतना जाती है ...पता करो इसका वहाँ ज्यादा जाना ठीक नहीं मना किया करो उसकी  माँ को हिदायत देतीं ....फिर उसकी माँ उसे अक्सर डाँटने लगीं और फिर ज़ब उसके पिता आये तो उनके साथ उसे उसकी बुआ के यहाँ भेज दिया गया पढ़ने के लिए जो एक स्कूल में शिक्षिका थीं l मुन्नी वहाँ भी बुआ फूफा के प्रेम में रम गयी और ऐसे ही यहाँ वहाँ करते करते मुन्नी अब पढ़लिखकर बड़ी हो गयी l मुन्नी पन्दरह साल बाद बीस इक्कीस साल की उम्र में फिर मामा के घर गयी और बड़ी ही उत्सुकता से अपने बेचन मामा से भी मिलने गयी जो अब तीन बच्चों के पिता भी बन चुके थे l मुन्नी की आँखों के समक्ष पूरा बचपन नाच गया .....वो इस उम्र में भी एक बार अपने बेचन मामा की गोद में छुप जाना चाहती थी l 

बेचन मामा मुन्नी के समक्ष बैठे अपनी वही चीर परिचित मुस्कान और प्रेम और वातसल्य की पराकाष्ठा से भरे व्यक्तित्व मामी को मुन्नी के स्वागत के लिए चाय बनाने की आज्ञा दे अपने किसी काम में व्यस्त हो गए और मुन्नी ....मुन्नी सोचे जा रही थी कि शायद बेचन मामा न होते तो मुन्नी को अपना बचपना बिना किसी प्रेम के ही बिताना पड़ता ....मुन्नी आज मन ही मन प्रार्थना कर रही थी ईश्वर ऐसे ही मामा हर एक लड़की को जरूर देना जो अपने सुख से ज्यादा उसका ख्याल कर सके और उसकी हर जरूरत को समझ सके l


सीमा"मधुरिमा"

लखनऊ ll

बुधवार, 11 नवंबर 2020

समय के साथ बदलाव

 एक रशियन यहूदी को इजरायल में बसने का परमिशन मिला

मॉस्को हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों ने उसके थैले में लेनिन की मूर्ति देखी तो पूछ बैठा,

'ये क्या है ?

उसने कहा,

'ये क्या है ?, कॉमरेड ये गलत सवाल है, आपको पूछना चाहिये था कि ये कौन है, ये कॉमरेड लेनिन हैं जिन्होंने सोशलिज्म की बुनियाद रखी और रूस के लोगो का भविष्य उज्ज्वल किया, मैं इसे अपने साथ, अपने "यादगार हीरो" की तरह ले जा रहा हूं 

रशियन कस्टम अधिकारी थोड़ा शर्मिंदा हुये और आगे बगैर किसी जांच के उसे जाने दिया ....

तेल अवीव एयरपोर्ट पर

इजरायल के कस्टम अधिकारी ने पूछा,

'ये क्या है ?'

उसने कहा,

'ये क्या है ? ये गलत सवाल है श्रीमान, आपको पूछना चाहिये था, ये कौन है ?

ये लेनिन है, ऐसा हरामखोर दोगला का औलाद जिसने मुझे यहूदी होने के कारण,रूस छोड़ने पर मजबूर कर दिया। मैं अपने साथ उसकी मूर्ति इसलिये लाया ताकि रोज, जब भी इस चूतिये पर नजर पड़े, इसकी मां-बहन एक कर सकूं''

इजरायली कस्टम अधिकारी ने कहा,

'आपको मैंने कष्ट दिया उसके लिये माफी चाहता हूं, आप इसे अपने साथ ले जा सकते हैं'

इजरायल में जब वो अपने नये घर मे पहुंचा तो मूर्ति को एक ऊंचे मेज पर रख दिया

घर और वतन वापसी की खुशी में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को घर पर बुलाया 

उसके एक दोस्त ने सवाल किया,

'ये कौन है ?'

उसने कहा,

'मेरे दोस्त, ये कौन है ?, ये गलत सवाल है। तुम्हे पूछना चाहिये था कि 'ये क्या है ?'

ये 10 किलो शुद्ध सोना है जिसे मैं बिना कस्टम और टैक्स के लाने में सफल रहा""

निष्कर्ष :

असली राजनीति वही है जो एक ही मुद्दे को अलग अलग तरह से जैसे श्रोता हों, वैसे ही पेश किया जाये।

और इसका नतीजा भी हर तरह से बढ़िया निकलेगा

😛 😜

सोमवार, 9 नवंबर 2020

धूमिल नहीं हो सकती धूमिल की यादें / कबीर up

 यादों में धूमिल


धूमिल का आज जन्म दिन है । उन्होंने निराला और मुक्तिबोध की तरह केवल अभिव्यक्ति के खतरे नही  उठाये , कविता को साहसिक बनाया । उन्होंने कविता में लोक मुहावरों और खाटी भाषा का उपयोग किया । आम आदमी की आवाज में कविताएं लिखी ।

  धूमिल की कविता हिंदी कविता का प्रस्थान बिंदु है । उन्होंने हिंदी कविता के सौंदर्यबोध को बदलने की कोशिश की है । उनके बाद के कवियों ने उनकी कविता की खूब नकल की , और पकड़े भी गए । उन्होंने प्रजातन्त्र की विफलताओं और अंतर्विरोध को उजागर किया ।

  उनकी कविता आज के समय में ज्यादा प्रासंगिक है ।  उनकी कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि वे अभी लिखी गयी है ।  उनकी बहुपठित कविता को ही देखिए -एक आदमी रोटी बेलता है /एक आदमी रोटी खाता है /एक तीसरा आदमी भी है / जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है / वह सिर्फ रोटी के साथ खेलता है /यह तीसरा आदमी कौन है?/ मेरे देश की संसद मौन है ।

    यह आकस्मिक नही है कि उनके कविता संग्रह का नाम संसद से सड़क तक , है । उनकी कविताएं संसद में बैठे हुए विधाताओं को चुनौती देती है , उनसे प्रश्न पूछती हैं ।

  धूमिल ने उस समय जिस तीसरे आदमी की बात कही थी , वह हमारा शासक बन चुका है । उसके हाथ में देश की लगाम है । धूमिल ने इस तीसरे आदमी की धज्जियां अपनी कविता में उड़ाई है । 

  वे गुस्से के भी कवि है , कभी कभी यह गुस्सा असंयत भी हो उठता है , वे इसकी परवाह नही करते । वे क्रांतिकारी चेतना के कवि है । उन्हें यह चेतना मोचीराम में भी दिखाई देती है । समाज के ये अंतिम लोग उनकी कविता के नायक है । कुलीनता से उनका जन्म से बैर है ।

  उन्होंने लिखा है -भीड़ ने बहुत पीटा है उस आदमी को / जिसका मुख ईसा से मिलता था ।

  यही तो आज की लिंचिंग है जो आज के समय में वैध हो गयी है । पहले का विरोध अब सिंद्धात का रूप ले चुका है । यह जनतंत्र का कर्मकांड बन चुका है ।

  एक अन्य कविता में वह लिखते है - चेहरा चेहरा डर लगता है / लगता है यह गांव का नरक का / भोजपुरी अनुवाद लगता है ।

  धूमिल की कविताएं पढ़ते हुए उसमें आज के बिम्ब आसानी से मिल सकते है । उनकी कविताएं भविष्यवाणी भी करती है । 1975 के पहले की कविताएं , आज के समय मे लिखी गयी लगती हैं ।

  धूमिल अपने समय के बेचैन कवि थे , यह बेचैनी अंत तक बनी रही । मृत्यु के करीब रहते हुए उन्होंने जो काव्य पंक्तियां लिखी है , वे तस्दीक करती है कि उनकी कविता उनसे कत्तई अलग नही थी । उन्होंने लिखा था ।

  लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो /घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है ।

  उनकी स्मृति को बार बार नमन ।


 बड़े भाई स्वप्निल श्रीवास्तव के वाल से

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...