सोमवार, 9 नवंबर 2020

धूमिल नहीं हो सकती धूमिल की यादें / कबीर up

 यादों में धूमिल


धूमिल का आज जन्म दिन है । उन्होंने निराला और मुक्तिबोध की तरह केवल अभिव्यक्ति के खतरे नही  उठाये , कविता को साहसिक बनाया । उन्होंने कविता में लोक मुहावरों और खाटी भाषा का उपयोग किया । आम आदमी की आवाज में कविताएं लिखी ।

  धूमिल की कविता हिंदी कविता का प्रस्थान बिंदु है । उन्होंने हिंदी कविता के सौंदर्यबोध को बदलने की कोशिश की है । उनके बाद के कवियों ने उनकी कविता की खूब नकल की , और पकड़े भी गए । उन्होंने प्रजातन्त्र की विफलताओं और अंतर्विरोध को उजागर किया ।

  उनकी कविता आज के समय में ज्यादा प्रासंगिक है ।  उनकी कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि वे अभी लिखी गयी है ।  उनकी बहुपठित कविता को ही देखिए -एक आदमी रोटी बेलता है /एक आदमी रोटी खाता है /एक तीसरा आदमी भी है / जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है / वह सिर्फ रोटी के साथ खेलता है /यह तीसरा आदमी कौन है?/ मेरे देश की संसद मौन है ।

    यह आकस्मिक नही है कि उनके कविता संग्रह का नाम संसद से सड़क तक , है । उनकी कविताएं संसद में बैठे हुए विधाताओं को चुनौती देती है , उनसे प्रश्न पूछती हैं ।

  धूमिल ने उस समय जिस तीसरे आदमी की बात कही थी , वह हमारा शासक बन चुका है । उसके हाथ में देश की लगाम है । धूमिल ने इस तीसरे आदमी की धज्जियां अपनी कविता में उड़ाई है । 

  वे गुस्से के भी कवि है , कभी कभी यह गुस्सा असंयत भी हो उठता है , वे इसकी परवाह नही करते । वे क्रांतिकारी चेतना के कवि है । उन्हें यह चेतना मोचीराम में भी दिखाई देती है । समाज के ये अंतिम लोग उनकी कविता के नायक है । कुलीनता से उनका जन्म से बैर है ।

  उन्होंने लिखा है -भीड़ ने बहुत पीटा है उस आदमी को / जिसका मुख ईसा से मिलता था ।

  यही तो आज की लिंचिंग है जो आज के समय में वैध हो गयी है । पहले का विरोध अब सिंद्धात का रूप ले चुका है । यह जनतंत्र का कर्मकांड बन चुका है ।

  एक अन्य कविता में वह लिखते है - चेहरा चेहरा डर लगता है / लगता है यह गांव का नरक का / भोजपुरी अनुवाद लगता है ।

  धूमिल की कविताएं पढ़ते हुए उसमें आज के बिम्ब आसानी से मिल सकते है । उनकी कविताएं भविष्यवाणी भी करती है । 1975 के पहले की कविताएं , आज के समय मे लिखी गयी लगती हैं ।

  धूमिल अपने समय के बेचैन कवि थे , यह बेचैनी अंत तक बनी रही । मृत्यु के करीब रहते हुए उन्होंने जो काव्य पंक्तियां लिखी है , वे तस्दीक करती है कि उनकी कविता उनसे कत्तई अलग नही थी । उन्होंने लिखा था ।

  लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो /घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है ।

  उनकी स्मृति को बार बार नमन ।


 बड़े भाई स्वप्निल श्रीवास्तव के वाल से

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...