कुछ नई पंक्तियों के साथ, पेश है यह जनगीत ...
चाहे जैसी जुगत लगा लो,
काटोगे सिर, फिर उभरेगा।
नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
आग लगाओ डाल किरासन,
जला नहीं पाओगे आसन।
कोशिश है बेकार तुम्हारी,
'फ़ायर- प्रूफ' बना सिंहासन।
बहुत बड़ा मायावी है वह,
जैसा चाहे रूप धरेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
गद्दी की ख़ातिर गुटबाजी,
करते ही रहते हैं पाजी।
समझौतों के मौसम में अब,
शर्मा जी से मिलते झा जी।
दुस्सासन से मिलकर कान्हा,
पांचाली का चीर हरेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
छल- बल से जो कुर्सी पाए,
नैतिकता के पाठ पढ़ाए।
लेकिन मौक़ा मिलते ही वो
पूरा मुल्क हजम कर जाए।
काम अनैतिक करने वाला,
सत्य- धर्म की बात करेगा ।
रावण ऐसे नहीं मरेगा !
अफ़सर, थानेदार, कलेक्टर
लूट रहे हैं, देखो, जमकर।
अभयदान हासिल है, क्योंकि --
हिस्सा लेते बाँट मिनिस्टर।
'जिसकी लाठी, भैंस उसी की' --
इस कथनी को सत्य करेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
गुंडागर्दी, टैक्स- उगाही...
झेल अयोध्या रही तबाही।
हक़ हासिल छुट्टे साँढ़ों को,
सारी धरती करें दमाही।
अश्वमेध का घोड़ा ठहरा,
खुल्लम- खुल्ला खेत चरेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
देख, हवस में आनन- फानन
हावी सब पर हुआ दशानन।
पत्थर का इंसान हुआ है,
सत्ता- सुख पाने के कारण।
अपनी कोठी भरने वाला,
जनता की परवाह करेगा?
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
सुनो, नाभि में अमृत जब तक,
नहीं पराजित होगा तबतक।
दैत्य न ऐसे मरने वाला,
लहू पिलाओगे तुम कबतक?!
असुरशक्ति का स्वामी आख़िर
कुछ तो लीला और करेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
संबंधों में प्रीत नहीं है,
बात पते की, सुनो, कही है।
धन- पद सबसे ऊपर ठहरा,
वर्तमान का खेल यही है।
राम! भरत से मिलना बचकर,
मौक़ा पाते ख़ून करेगा।
रावण ऐसे नहीं मरेगा!
हममें, तुममें, उसमें बैठा,
छद्म अहं के कारण ऐंठा।
रावण धरकर रूप अनेकों,
सबके भीतर गहरे पैठा।
पहले अपने भीतर कोई
यदि रावण- वध नहीं करेगा,
बाहर रावण नहीं मरेगा! ....
चाहे जैसी जुगत लगा लो,
काटोगे सिर, फिर उभरेगा।
नहीं मरेगा, नहीं मरेगा,
रावण ऐसे नहीं मरेगा !
ऐसे रावण नहीं मरेगा!
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#प्रवीण_परिमल
चित्र गूगल से!
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