मैं इक लड़की हूं
पर मेरा खुले आसमान में उड़ना
तुमको क्यों नहीं सुहाता ?
तुम यह मत करो,
तुम वो मत करो
हर कोई मुझे यही समझाता।
हां, मैं इक लड़की हूं।
मैं इक लड़की हूं।
मेरा लड़की होना भी क्या कोई पाप है?
क्यों मैं सब की तरह
आज़ाद नहीं रह सकती?
अब तुम मुझे क्या सनद दोगे?
लड़की हो,लड़की हो बचपन से
हर कोई यही कहकर रुलाता।
हां, मैं इक लड़की हूं।
मैं इक लड़की हूं।
हज़ार ख्वाब लिए जो बंद है
एक पिंजरे में,
जिस को क़ैद किया गया ,
दुनिया की बाज जैसी नज़रों से।
जहां हर कोई है मुझको नोचना चाहता।
हां मैं इक लड़की हूं।
मैं इक लड़की हूं।
खुले आसमान की इस दुनिया में,
मुझको बहुत ऊंचा उड़ना है।
मालूम है मुझको मेरी हद,
ऐसे ही कितने ख्वाब लिए
मुझको अभी बहुत लड़ना है।
मुझको जीने दो, उड़ने दो,
सारे ख्वाब रंगने दो
हां, मैं इक लड़की हू।
मैं इक लड़की हूं।
मैं हूं एक जननी भी ।
तुम लोगों ने ही कितने रूपों में ,
मुझको देखा है।
फिर क्यों बांधा मुझको तुमने?
ऐसे कितने ही दायरों में।
सहना सब कुछ चुप रह कर तू ।
हर इंसा यही बताता।
हां, मैं इक लड़की हूं
मैं इक लड़की हूं।
यह सब मेरी क़िस्मत है तो ,
मुझको इस दुनिया में लाया कौन?
यह है मेरा प्यारा बेटा,
बेटी तो है धन पराया ।
ऐसा भ्रम फैलाया कौन?
मेरे प्यारे से सपनों में कोई तो पंख लगाता ।
कोई तो मेरे सपनो को भी थोड़ा सा सहलाता l
हां, मैं इक लड़की हूं,
तो क्या यही मेरा जीवन है.. ?
या मेरा भी कोई अस्तित्व है..?
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