सोमवार, 17 मार्च 2025

प्रेम रंजन अनिमेष की 12 ग़ज़लें*

 


*प्रेम रंजन अनिमेष की 12 ग़ज़लें*


💌💌💌💌💌💌💌💌💌 

                          


*1*


*ख़ुशबू आती है ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                        💟            

             

पहली किलक और कहां कहां की ख़ुशबू आती है

इस   बोली  से   मेरी  माँ  की   ख़ुशबू  आती  है


फूलों   में   अब   रही  नहीं   पहले वाली   रंगत 

इनसां  से भी  कहाँ  इनसां की  ख़ुशबू  आती है


ज़ायक़ा और ही  पहले प्यार के  पहले बोसे का

इक लब पर  ना  इक से  हाँ  की  ख़ुशबू आती है


दिल  तेरा  है  और  तेरी ही  हर  धड़कन  फिर भी

जाने  क्यों   अपने  अरमां  की  ख़ुशबू  आती है


वक़्त ने  उनको भी  कितना  बेगाना  कर  डाला

जिनसे  अपने  जिस्मो जां   की  ख़ुशबू  आती  है


जी  करता है  चूम लूँ   इन  दिल छूते  गीतों  को 

इनसे  अपनी  भूली  ज़ुबां  की  ख़ुशबू  आती  है


औरों की  ख़ातिर  कर दे जो  अपने को  क़ुर्बान 

जां से  जाकर भी  उस  जां की  ख़ुशबू  आती है


माँ  जो भी  कहती थी  उसमें  रहती थी  कविता

मुझसे  उसी  अंदाज़े बयां  की  ख़ुशबू  आती  है


कितनी  नदियों का  संगम है  यह देशों का देश

साथ आरती  अरदास अज़ां की  ख़ुशबू आती है


शायरी और भला क्या जोड़ना दिल के तारों को 

जिनसे   सारे  ग़मे  दौरां  की  ख़ुशबू  आती  है


अपनी  मिट्टी  आबोहवा की  ग़ज़लें ये  'अनिमेष'

लेकिन  इनसे  सारे  जहां  की  ख़ुशबू  आती  है

                         💔

              



*2*


*वो अपनी गोद में...*

                           ~ *


                          💟

वे अपनी गोद में  जीवन को  पाल सकती हैं 

जो घर  सँभालतीं  दुनिया सँभाल  सकती हैं 


हों  चाहे  राह  में   परिवार  पुरखे  पर्वत  से 

ये नदियाँ बहने का रास्ता निकाल सकती हैं 


इन आँचलों से  फ़क़त  दूध ही  नहीं ढलता 

हुआ  ज़रूरी  तो  फ़ौलाद  ढाल  सकती  हैं


यूँ माँयें  लगती हैं धरती  पर अपने छौनों को 

बुलंदियों के  फ़लक तक  उछाल सकती  हैं 


सहर के ख़्वाब में  आती हैं  लड़कियाँ कहने

हम अपने आप रख अपना ख़याल सकती हैं


ख़ुदाई ख़ुद ही बना लें  किसी ख़ुदा के बग़ैर 

जो  ठान लें  तो कर  ऐसा कमाल  सकती हैं 


सवाल   उठाते  रहे  जो   जवाब  अब   ढूँढ़ें 

वे भी  तो  पूछ  बहुत से  सवाल  सकती हैं


कि जिस बिसात पे  शह दे के  मात दी तूने

उसी बिसात पे  चल अपनी  चाल  सकती हैं


जिन्हें है रखना रखें यूँ ही ज़ीस्त की  चादर

वे  उसको  ओढ़े  हुए भी  खँगाल  सकती हैं 


वो  उँगलियाँ  जो  जलाती हैं  आग  चूल्हे में

जब आये वक़्त  जला सौ मशाल सकती हैं


अगर  मिले  नहीं   अपने  ही  नाम  के  दाने

पता है चिड़ियों को उड़ ले के जाल सकती हैं 


भली  तरह से  ख़बर थी  रहे  भले  फिर भी

ये नेकियाँ  कहीं मुश्किल में  डाल सकती हैं


तू सत के पथ पे  बना सत्यवान   बढ़ता जा

सावित्रियाँ तो अजल को भी टाल सकती हैं


पकड़ के  उँगली  चलाती हैं  कहकशां  सारी

तो  अपने आपको  भी  देखभाल सकती  हैं 


अगर हो प्यार निभाने की  बात तो 'अनिमेष'

वफ़ायें  कितनी   मेरी  दे  मिसाल  सकती  हैं

                          🌱

                         

✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*                              



*3*


*तो क्यों...*

                            ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                          💟

जनमती  सँवरती  है   औरत  से  दुनिया 

तो क्यों खेलती उसकी अस्मत से दुनिया 


ज़रा   चूलें   हिलती   सुनायी   तो   देतीं 

चलेगी  अभी  कुछ   मरम्मत  से  दुनिया


तो घिर आये फिर  जंग के  काले बादल

जो निकली बला की  मुसीबत से दुनिया


कहीं  बाढ़  है  तो   कहीं  पर   है  सूखा 

वे कहते हैं  फिर भी  है राहत से  दुनिया


हुकूमत  को  हर  एक  शायर  से  डर है 

बिगड़ जायेगी उनकी सोहबत से दुनिया


अगर पास  है कुछ  तो मिल बाँट लें सब

रहेगी   सभी   की   दयानत  से   दुनिया 


कटें   बेड़ियाँ   सब    हटें   बंदिशें   अब

जुड़े  धड़कनों  की   बग़ावत  से  दुनिया


दिलों  से  अगर  दिल  मिलें   तो  चलेगी

न दहशत न वहशत न नफ़रत से दुनिया


भरे   सपने   सच   रोशनी   और   पानी

इन आँखों के मिलने की चाहत से दुनिया 


ज़हीनों   पे   ही  अब   भरोसा   नहीं  हैं

रखेंगे   दिवाने    हिफ़ाज़त   से   दुनिया


न  रोके   किसी   के   ये    बच्चे    रुकेंगे 

बढ़ेगी   इन्हीं   की    शरारत  से   दुनिया


बचा  रखना   'अनिमेष'   मासूम  बचपन 

सिहरती   सयानी   ज़हानत   से   दुनिया 

                         💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*                   



*4* 


*सहर कहाँ*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                         🌿

शबे ग़म  बता है  सहर  कहाँ

यूँ घिरी  अँधेरों  में  कहकशां


कहाँ  हाथों  में  कोई  हाथ है

कई    मंज़िलें   कई   कारवां


न  जुटा  मिटाने  के  असलहे

तेरे पास तो है  बस इक जहां


सरे आम  होंठों पे  होंठ  रख

मुझे   दर्द  कर  गया   बेज़ुबां


ये दो  मिसरे  चूम के  जोड़ दे

कहीं लब पे ना कहीं दिल में हाँ


यहाँ   इश्तेहारों  से   इश्क़  हैं

मेरा प्यार  अच्छा  यूँ ही  निहां


जहाँ   बहरी   बहरी  अदालतें

वहाँ  अनकहा  ही  हरेक बयां


कभी  बन सकेंगी  सदा कोई 

ये जो चुप्पियाँ ये जो सिसकियाँ


कभी फ़ासलों में  भी पास था

अभी  क़ुर्बतों  में  भी   दूरियाँ


जहाँ जा  सका  न कभी कोई 

मुझे ले के चल  ऐ क़लम वहाँ


है ज़रूरी  जाना  तो  जा मगर

ज़रा कह ले सुन तो  ले दास्तां


'अनिमेष' पहली किलक ग़ज़ल 

नयी  ज़िंदगी  की  कहां  कहां

                         🌱

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*



*5*


*साथ यहाँ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                           💟

माहताब   आफ़ताब    साथ  यहाँ 

धड़कें सच और ख़्वाब  साथ यहाँ


होंठों  पर  होंठ  रख के  सुन लेना

सब सवाल और जवाब साथ यहाँ


दिल की दुनिया  नहीं हसीं  यूँ ही

दफ़्न   सारे   अज़ाब   साथ  यहाँ


शहर  से   है  बड़ा   कहाँ   सहरा

रखना आँखों का आब साथ यहाँ


सोच  में  है  ख़ुदा  भी  जन्नत  भी

लाया  कौन  इनक़लाब  साथ यहाँ


क़ब्र   में    चैन   से    कटेंगे   दिन 

ज़िंदगी  की   किताब   साथ  यहाँ


भूलेगी   कैसे   ये  गली  'अनिमेष'

थे  बुने  कितने  ख़्वाब  साथ यहाँ

                          💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*



*6*


*घर कोई ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                       🏨                          

हो  सफ़र  मक़सद-ए-सफ़र  कोई

राह  आने  की   तकता  घर  कोई


एक  दर  हो  कि  दे  सकें  दस्तक 

चाहे    हो   रात   का   पहर  कोई


देखा   अकसर   है   धूपराहों   पर

ले के  चलता है   इक शजर  कोई


रिश्ते  रखिये   मगर  नहीं   उम्मीद 

साथ   देगा   न   उम्र   भर   कोई 


छोड़  कर   ये   जहां   चले  जाना

इससे   बेहतर  मिले  अगर  कोई 


टूट    जाता     कोई    थपेड़ों   से 

और  जाता   निखर   सँवर   कोई  


लब से लब जोड़  शायद आ जाये

इन  दुआओं   में  भी  असर कोई


जान  कर  भी  कहे  किसे औरत

आदमी   में    है    जानवर   कोई


लौट कर  आज   जो   नहीं  आया 

हो  न जाये  वो  कल  ख़बर  कोई  


जाना तो सबको  एक दिन लेकिन 

ऐसे   जाये   न   छोड़  कर   कोई 


ख़ाक मिल जाती  ख़ाक में आख़िर 

जाता   'अनिमेष'  है   किधर  कोई 

                         💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*



*7*


*आज वो है ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                          💝

आज    वो   है    यही   ग़नीमत   है

अब   मुहब्बत  में  भी  सियासत  है


दिल  ये   टूटा  ही  काम  आ जाता

इसकी    होती   कहाँ   मरम्मत  है


भर  के   उभरे   यूँ   ही  नहीं  सीने

रोज़ इस घर में  दुख की  बरकत है


क्योंकि  इसको   बनाती  है  औरत

ज़िंदगी      इतनी     ख़ूबसूरत    है


और  भी   झलके    जो   अँधेरे   में 

ऐसी    चाहत  की   ये   इबारत  है


बंदिशें    प्यार   पर  ही   हैं   सारी

फिरती आज़ाद  कितनी नफ़रत है


हो   गयी  है   बहुत  बड़ी   दुनिया 

खोयी  बच्चों  की   हर  शरारत  है


मंदिरों   मस्जिदों   को    रहने  दो

मेल   रखना  भी  इक  इबादत  है  


हाँ  हिमाक़त है  शायरी  इस वक़्त 

इस  हिमाक़त  की ही  ज़रूरत  है 


पढ़ के औरों को भी सुना 'अनिमेष'

ज़िंदगी  क्या है   इक  खुला ख़त है

                        💔

                        ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                 


*8*


*अजनबी शहर है ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                         💝

अजनबी  शहर  है   किधर  जाऊँ 

दर   खुले  कोई   तो  ठहर  जाऊँ  


आज की  रात  रख ले  आँखों  में 

तेरे   सपने   तो   देख  कर   जाऊँ


जैसे    परसें    हवायें    पानी   को 

तुझको  छूकर  यूँ  ही  गुज़र जाऊँ


होंठों  पर  आँच  अपने  होठों  की 

रख अगर दे  तो सच में  तर जाऊँ 


राह    तकना   न   देर   होने   पर

चाहा तो  था  कि  बोल कर  जाऊँ


हाथ  पहुँचे न  जिनके  दामन  तक

उनकी पलकें ही कुछ तो भर जाऊँ 


इस  तरह  मत  सहेज कर  रखना

तेरे   जाते    बिखर   बिखर  जाऊँ


जिससे मिलना है  वो तो मुझमें ही

किसलिए  फिर  इधर  उधर  जाऊँ 


इतनी   ऊँचाई  दे   मुझे  ऐ  दोस्त

टूटकर   हर  तरफ़   बिखर   जाऊँ 


चाँद    सूरज    पुकारती   थी   माँ 

ले    उजाला    हरेक    घर   जाऊँ 


दिल  हूँ   वो  सोना   चाहता   होना 

और   हर  चोट  से   निखर  जाऊँ


कौन    अपना    है    धूपराहों   में 

साथ  लेकर   कोई   शजर   जाऊँ  


हो    रही    शाम     लौटते    पंछी 

घर  कहीं  हो  अगर तो  घर जाऊँ 


शायरी  हूँ   मैं   प्यार  का  ख़त  हूँ 

हो  न  अख़बार  की   ख़बर  जाऊँ


धड़कूँ   जीवन   के   पन्ने  पन्ने  पर 

बस  सियाही सा  मत बिसर जाऊँ


वक़्त  के  काटे   कटने  के  पहले 

पकती फ़सलों सा झूम कर  जाऊँ 


मेरे  पीछे  भी  तुझको   देखा  करें 

दे  किसी  को  तो  ये  नज़र  जाऊँ


तू  कहीं भी  हो  ज़िंदगी  'अनिमेष'

सोच  कर   मैं  तुझे   सँवर   जाऊँ                                         

                          💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

           


*9*


*कहाँ से ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                          💝

चार   काँधे   कहाँ  से  आयेंगे

इतने  अपने  कहाँ  से  आयेंगे


सब  यहाँ  तो  गिराने  वाले  हैं

तब   उठाने   कहाँ  से  आयेंगे


प्यार  गहरा न हो  तो मेंहदी के

रंग   पक्के   कहाँ  से   आयेंगे


ज़िंदगी   झूठ  की   गुज़ार  रहे

लफ़्ज़   सच्चे   कहाँ   से   आयेंगे


शहर बस सिगनलों में ही है हरा

फिर   परिंदे   कहाँ  से  आयेंगे


टूट  जायें  भी  तो  नहीं  चटकें

ऐसे   धागे    कहाँ   से   आयेंगे


रिश्ते   इनसान   ही  बनाते  हैं 

अब  फ़रिश्ते  कहाँ  से  आयेंगे


हैं बशर जैसे  उनको अपना लो 

सारे   अच्छे   कहाँ   से  आयेंगे


इस क़दर सच से भर गयीं पलकें 

इनमें   सपने   कहाँ  से  आयेंगे


इतने   माँ  बाप  जब  सयाने  हैं

भोले   बच्चे   कहाँ   से   आयेंगे


दिल ही जब है नहीं तो फिर 'अनिमेष'

दिल  के  रिश्ते  कहाँ  से  आयेंगे

                          💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*



*10*


*फिर भी*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                            🌿

फिर भी सच का  साथ निभाना

चाहे     कहे     कोई     दीवाना 


अपनी   राह  पे   बढ़ते   जाना

आये   साथ    जिसे   है  आना


प्यार  भले ही  भूल  या  ग़लती

ये  ग़लती   फिर  फिर  दुहराना


तिनका तिनका जोड़ ले चुन के

आशियां  पिंजरे  को  न बनाना


इक लब पर  ना  है इक पर  हाँ

चाहत   है   दोनों  को  मिलाना


कोई  बहाना   कर  के  आ  जा

जाते    चलेगा    कौन   बहाना


छूआछूत  हो  क्यों   उल्फ़त  में

नज़रों   का   ही   रहे  नज़राना 


इससे  पहले  तो   कुछ  कर ले

इक  दिन  होगा  सबको  जाना


उसका  भी  तो  हक़ है  अपना

तूने    जिसको    अपना   माना


झूठ   की  भीड़  जुटाने  से  तो

अच्छा  अकेले   ही   रह  जाना


करना  हिफ़ाज़त अपने गले की 

सबके  लिए   आवाज़   उठाना


नेकियाँ  लौटेंगी  फिर तुझ तक

सोच  के  ये  काँधा  न  लगाना


जीवन नाम है जिस चिड़िया का

मौत  तलक  है   किसने  जाना


भूल न सकता  उसको  'अनिमेष'

भूलूँ    भले   अपना   सिरहाना

                         🌱

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*      

                    


*11*


*माँ आ ही जाती है ...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                       ✡️                         

सच  के  आँसू  पीती  सपनों  में  मुसकाती  है

कुछ भी लिखता हूँ उसमे  माँ  आ ही जाती है 


साँझ  सवेरे   नेह  भरे  जो   दिये   जलाती  है 

किसे पता  ये बात  कि वो ख़ुद उसकी बाती है


हद  जब हो  जाये तो  धरती भी  फट जाती है 

सब कुछ  सह लेती है जो  औरत की छाती है 


नाम लिये बिन नाम किसी के जीवन कर देना

ऐसी  मुहब्बत  और  कहाँ पर  पायी  जाती है


कितनी भूख उदासी कितना दर्द है क्या मालूम 

सुबह सवेरे जग कर  जो हर चिड़िया  गाती है 


साँसों में  जो  बसते थे  अब  कितनी  दूर हुए 

उनकी  ख़ैर ख़बर  जब तब    पुरवाई  लाती है 


खींच रही कुछ पकने की  सोंधी सोंधी ख़ुशबू 

खेल रहे  बच्चों  को  माँ  घर  यूँ ही  बुलाती है 


कुछ भी छुपाना इसको तो आया ही नहीं अब तक

नागर  बड़ा नगर  और  अपना  दिल देहाती है


कितने   अच्छे   कितने  सच्चे   हैं  अपने  बच्चे 

नींद  में  अकसर  बाबूजी  से  माँ  बतियाती है


नाम  न लें  चाहे  बच्चे  पर  नाम  कमाते  ख़ूब

सोच यही  छाती  गज़ भर  चौड़ी  हो  जाती  है 


जो भी मिला है हमको उन पुरखों के पसीनों से

अपने पास  'अनिमेष' जो इन छौनों की थाती है

                         💔

                         ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*     

                   


*12*

                        

*बाबूजी की बातें...*

                           ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                        🌳    

अब भी   खेतों  खलिहानों  में   बाबूजी  की  बातें 

गूँजा   करती   हैं   कानों   में   बाबूजी  की  बातें 


सुबह  सवेरे  चहके  चिड़िया  ये ही  बतलाने  को

सरगम  की   सारी   तानों  में   बाबूजी  की  बातें 


मिट्टी के हैं  हर्फ़  कहीं पर  और  पानी की  पाती

मिलती   किन  तानों  बानों  में  बाबूजी  की  बातें 


सिखवन समझावन मीठी झिड़की और डाँट कड़ी सी

कैसे    कैसे    परिधानों   में    बाबूजी  की   बातें 


अनजाने   रस्तों  पर   जैसे    पहचानी   मुसकानें 

भीड़ों   के    इन  वीरानों  में   बाबूजी   की   बातें 


भूखे  रहते  बच्चों  की  ख़ातिर   जब   रातें  जगते 

याद  आतीं  उन  बलिदानों  में  बाबूजी  की  बातें 


जो भी मिला जीवन में वो ही सिखलाता जीना भी

ऐसे   ही   कुछ   वरदानों   में   बाबूजी  की  बातें 


और ख़ज़ाने  औरों की  ख़ातिर  पर  मेरे  लिए तो

इस  धरती  के   धन धानों  में   बाबूजी  की  बातें 


हौसले को पतवार बनातीं और हिम्मत की कश्ती 

बीच  भँवर   और  तूफ़ानों  में   बाबूजी  की  बातें 


बँटते  बँटते  बँटवारों  में   रह पाता  क्या  कितना

जाने  कहाँ  किन  सामानों  में   बाबूजी  की  बातें 


अब भी कितने हैं जो  उनके नाम से  जानें हमको

दर्ज़  समय  की   पहचानों  में   बाबूजी  की  बातें  


हम जो  न कर पायें  वो अपने बच्चे  ज़रूर करेंगे 

धड़कें   हमारे   अरमानों   में    बाबूजी  की  बातें 


अम्मा अपनी कहानी कह ना तुझको भी कुछ समझें 

तेरे   सारे   अफ़सानों    में     बाबूजी    की   बातें 


इक  दीवाने  ने    कितने   दीवान   रचे   देखो  तो

और   सारे   ही   दीवानों   में    बाबूजी  की   बातें 


कविता  ग़ज़लें  गीत  कहानी  नाटक  याद-दहानी 

कितने    सारे    उन्वानों   में    बाबूजी   की   बातें 


कौन  फ़रिश्ता  शायर कैसा  मैं तो  बस  करता हूँ 

इनसानों    से    इनसानों   में    बाबूजी  की   बातें 


होंगे कहीं क्या हो के नहीं भी कल हम तुम ऐसे ही 

जैसे    अपनी    संतानों    में    बाबूजी   की   बातें  


कोई गीता ज्ञान कहाँ बस अपने लिए तो  'अनिमेष'

जीवन   के   इन   मैदानों   में    बाबूजी   की  बातें 

                       

   ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*



💌💌💌💌🌹💌💌💌💌💌




संपर्क  :   11 सी, आकाश, अर्श हाइट्स, डोरंडा, राँची 834002


ईमेल : premranjananimesh@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्रेम रंजन अनिमेष की 12 ग़ज़लें*

  *प्रेम रंजन अनिमेष की 12 ग़ज़लें* 💌💌💌💌💌💌💌💌💌                             *1* *ख़ुशबू आती है ...*                            ~ *प्रे...