सोमवार, 15 अगस्त 2011

लोककथाएं-मेघाणी संपादित लोककथाओं में राष्ट्रीय अस्मिता का दर्शन

साहित्य विचार


डॉ. बिपिन आशर
मेघाणी जी एक राष्ट्रपुरुष थे। उन्होंने राष्ट्रीय चेतना से धड़कती हुई बहुत-सी काव्य रचनाएं लिखी हैं जिसमें 'कसुंबीनो रंग', 'कोईनो लाडकवायो', 'छेल्ली प्रार्थना', 'विदाय', 'तरूणोनुं मनोराज्य','छेल्लो कटोरो', 'छेल्ली सलाम', 'झंडा वंदना','आगे कदम', 'ओतरादा वायरा उठो' जैसी रचनाएं उल्लेखनीय हैं। मेघाणी जी के हृदय में भरी हुयी राष्ट्रीय भावना का संक्रमण केवल उनकी काव्य-रचनाओं में ही नहीं हुआ था, किंतु उनके द्वारा संपादित हुए लोकगीतों और लोककथाओं में भी हुआ है।
मेघाणी जी ने 'सोरठी बहारवटीया भाग-1,2 और 3' और 'सौराष्ट्रनी रसधार भाग-1 से 5' में सौ से अधिक लोककथाओं का संपादन किया है। लोककथाओं में चित्रित की गयी व्यक्तियों के ऐसे जीवन-प्रसंग प्रस्तुत किये गये हैं, जिसमें राष्ट्रीय चेतना की धड़कन सुनाई देती है, जिसमें से राष्ट्रीय अस्मिता के दर्शन होते हैं। यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय चेतना की जागृति ने ही हमें लोक साहित्य के संशोधन, विवेचन और संपादन की ओर अग्रसर कर दिया है। आज हम बोलने में गौरव समझते या गौरव से बोलते हैं कि यह हमारा देश है। यह हमारे जीवन-मूल्य हैं। यही हमारे देश का भव्य इतिहास है और यही हमारे भव्य अतीत को स्मरण कराने वाले वीर, वंद्य और पूजनीय व्यक्ति हैं। राष्ट्रवाद उस भावना का नाम है जो राष्ट्र के प्रति गौरव प्रकट करती है।
हमारे देश और हमारी संस्कृति परंपरा के साथ जुड़ी हुयी भावनाओं को मूर्त करने के लिए और अतीत का गौरवगान करने के लिए मेघाणी जी ने विविध लोककथाओं को संपादित किया है। 'सोरठी बहारवटिया' और 'सौराष्ट्रनी रसधार' में संपादित की गयी लोककथाएं वास्तव में शौर्यकथाएं हैं। पिछले करीब सौ-दो सौ साल के दौरान सोरठ-सौराष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में ऐसे वीर और वंद्य व्यक्तियों का जन्म हुआ था जिसकी शौर्यभावनाएं इन लोककथाओं में मूर्त की गयी है। ये वीर पुरुष केवल शौर्यवान ही नहीं थे बल्कि उसके हृदय में आतिथ्य और आत्मसमर्पण की भावनाएं, नारी गौरव और नारी रक्षा की भावनाएं, स्वामी-निष्ठा, भूमि-प्रेम, स्वतंत्रता, त्याग, कृतज्ञता, प्रामाणिकता, नैतिकता और आध्यात्मिकता जैसे कई तत्व विद्यमान रहे हैं। इन वीरपुरुषों के हृदय में बहता हुआ मानवता का झरना और हमारी संस्कृति एवं मानवमूल्यों के प्रति उनके आदरभाव को कथास्थ करके मेघाणी जी ने हमें राष्ट्रीय अस्मिता के दर्शन कराए हैं।
इन लोककथाओं में ऐसे शूरवीरों का चित्रण किया गया है जो अपने दुश्मन के सामने भी अपनी खानदानी को भूल नहीं सकते, गद्दारी नहीं करते। उसके दृष्टांत में 'सोरठी बहारवटीया भाग-2' में लिखे गये जोगीदास खुमाण के जीवन-प्रसंगों में से एक प्रसंग स्मरणीय है। यह प्रसंग ऐसा है, भावनगर के ठाकुर वजेसंग ने जोगीदास खुमाण के साथ अन्याय किया, जोगीदास ने अन्याय के विरूद्ध विद्रोह किया। वह अपने साथियों को लेकर निकल पड़े। जोगीदास को पकड़ने के लिए ठाकुर वजेसंग ने बहुत प्रयास किये। लेकिन जोगीदास को पकड़ न सके। एक दिन वजेसंग के पुत्र का देहांत हो गया। यह दु:खद समाचार मिलते ही जोगीदास अपने दुश्मन वजेसंग ठाकुर के सामने उनके बेटे के देहांत का दु:ख व्यक्त करने के लिए पहुंच गया। ठाकुर वजेसंग ने जोगीदास को पहचान लिया फिर भी उसने पकड़ने की चेष्टा नहीं की। पकड़ने की तैयारी करने वाले अपने लोगों को भी रोका और बोले - ''राजपूतों ! आज जोगीदासभाई लड़ने नहीं आये, बेटा फट पड़ा है उसका अफसोस व्यक्त करने आये हैं। मेरी जागीर में नहीं बल्कि मेरे दु:ख में भाग लेने आये हैं।''(पृ.21) जिसक ो पकड़ने के लिए वजेसंग ने जमीन-आसमान एक किये थे वह सामने होते हुये भी उसको पकड़ने की चेष्टा नहीं की और जोगीदास भी कितना निर्भय और खानदानी है कि नानीबा बहन को चोर के पंजे से छुडाकर उसके गांव पहुंचाता है। एक ठाकुर और बागी की दुश्मनी में भी कितनी खानदानी और प्रामाणिकता है।
यहां नारी गौरव और नारी रक्षा की भावना को मूर्तिमंत करते हुये अलग-अलग व्यक्ति के जीवन प्रसंगों को भी निरूपित किया गया है। 'रा नवघण' (सौ.र,भाग-2) अपने पालक माता-पिता की बेटी को बचाने के लिए नौ लाख योद्धाओं को लेकर सिंध प्रदेश के राजा के राज्य पर आक्रमण करता है। 'जटो हलकारो'(सौ.2,भाग-1) अपने गांव के संबंध से बनी हुयी बहन को बचाकर अपनी जान खो देता है। एक जात की बेटी को बचाने के लिए परमार वंश के सैकड़ों योद्धा सुमरा नामक राजा की फौज के सामने 'केसरिया' करते हैं। एभल का पुत्र अणो सती के लिए खून बहाता है। हमारे राष्ट्र में नारी रक्षा की भावना प्राचीन काल से जीवंत है। यहां नारी की रक्षा करना पुरुष का धर्म समझा जाता है।
इन लोककथाओं में ऐसे कई प्रसंग हैं जिनमें पुरुष ने स्त्री की रक्षा की है। लेकिन यहां ऐसी नारी का भी चित्रण किया गया है जो अबला नहीं है। अपने चारित्र्य की रक्षा के लिए खुद जान दे देती है या किसी की जान भी लेती है। रूपाली बा (सौ.2,भाग-1) उसका दृष्टांत है। यहां ऐसी भी नारी है जो अपने सामने खड़े हुये कामी पुरुष के समक्ष अपने दोनों स्तन को काटकर रख देती है। आई कामबाई (सौ.2,भाग-1) उसका दृष्टांत है। यहां ऐसी भी नारियां हैं जो अपने पति के देहांत का समाचार सुनते ही आत्महत्या कर लेती हैं या उसकी चिता में जलकर सती हो जाती है। सोनबाई (सौ.2,भाग-1) और राणजी गोहिल की 84 रानियां (सौ.2,भाग-1) उसका दृष्टांत है। यहां ऐसी भी नारी है जो राजवंश के बीज को बचाने के लिए अपने बेटे का बलिदान देती है। देवायत की पत्नी (सौ.2,भाग-2) उसका दृष्टांत है। यहां ऐसी भी नारी है जो अपना चारित्र्य बचा न सके ऐसे पति को 'कायर' कहकर प्राण छोड़ देती हैं और अपने चारित्र्य की रक्षा करने वाले पुरुष की चिता में जलकर अपना प्राण देती है। 'जटो हलकारो' में उल्लिखित राजपूताणी उसका दृष्टांत है।
इन लोककथाओं में शरणागत की रक्षा करते हुये वीर पुरुष भी दिखाई देते हैं। (वलीमामद आरब, सौ.2, भाग-1) स्वामीनिष्ठा और आत्मसमर्पण की भावनाओं से भरे हुए भोलो कात्याल नामक वृद्ध के जीवन प्रसंग भी लिखे गये हैं। आहत तितर-बितर की रक्षा करने के लिए असंख्य लोग मरते हुए दिखाई देते हैं। (सौ.2,भाग-1) यहां अपनी भूमि या स्वमान की रक्षा करने के लिए मुस्लिम सैन्य या अंग्रेज की फौज के सामने लड़ते-लड़ते मरने वाले कई वीर पुरुष भी दिखाई देते हैं। मोखड़ो जी नामक युद्धवीर तो अपने शरीर से मस्तक जुदा होते हुये भी लड़ते दिखाया जाता है। अपूर्व शौर्य-भावना को प्रकट करते हुये प्रसंगों का वर्णन करते हुये मेघाणी जी ने हमारे देश, प्रांत के गौरवशील इतिहास को अपनी रससिक्त और सरल लोकशैली में सजीवन कर दिया है।
इन लोककथाओं में निरूपित किये गये व्यक्तियों की मर्यादाएं होते हुये भी वे नेक हैं, नीतिवान हैं, भोले हैं, कुलीन हैं, सहनशील हैं, भावनाशील हैं। ऐसे लोग हमारे देश की उावल परंपरा और जीवनमूल्यों की याद दिलाते रहते हैं।
मेघाणी जी की इन लोककथाओं का संपादन लोकसाहित्य क्षेत्र में अनन्य प्रदान है। कहते हैं लोग किसी को धन देते हैं, किसी को मान-सम्मान दते हैं, किसी को स्टेटस देते हैं लेकिन प्रेम तो बहुत कम लोगों को देते हैं। मेघाणी जी ने केवल लोकगीतों-लोककथाओं का ही संपादन नहीं किया, लोगों के प्रेम का भी संपादन किया है। वे कालजीवी तो हैं ही, लेकिन उसके साथ वे कालजयी भी बन गये हैं। उन्होंने केवल 'सोरठी बहारवटिया' और 'सौराष्ट्र की रसधार' की लोककथाएं संपादित की होती तो वे भी लोकसाहित्य में और भारतीय प्रजा के हृदय में चिरंजीवी स्थान पा सकते थे।
गुजराती भाषा-साहित्य भवन,
सौराष्ट्र यूनिवसिटी, राजकोट - 360001

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