शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

यक्ष - प्रशन / भोलानाथ त्यागी

Photo: कविता /
  
यक्ष - प्रशन

कोयल की कूक / और -
कोयला की दलाली में ,
मची , संसदीय  हूक -
इसका कोई समीकरण नहीं बनता ,
लेकिन , राजनीति जब सुलगती है -
तो उसकी परिणिती बुझते कोयला मे ,
परिवर्तित हो जाती है ,
और यह कोयला फिर , खदानों में -
जा छिपता है ,
जिसके ऊपर उगे जंगल में -
कोयल जब कूकती है / तो -
लगता है / मानो संसद में हंगामा चल रहा है ,
और राजनीती की खदान में -
सिर्फ निकलती है - कालिमा ,
जिसमे सभी के हाथ , रंगें होतें हैं ,
मुखिया का रोबोटी चेहरा -
किसी सिकलीगर की याद दिला देता है ,
जो , सुधारता  है ताले -
 बनाता है तालियाँ -
राज ( ? ) कोष हेतु ,
कभी - कभी , हथियार बनाता भी ,
पाया जाता है , सिकलीगर -
जिससे , पनपते हैं अपराध / समाज , राजनीति में ,
और जब ,
राजनीति में , सिकलीगरों की जमात ,
अपना वर्चस्व जमा लेती है ,
तब , खामोशी भी सवाल करने लगती है ,
और सवाल होता है -
कोयला , सफ़ेद क्यों नहीं होता - ?
इसका जवाब -
कोयला कभी नहीं दे पाता --
यक्ष प्रशन ,
गूंजता रह जाता है ...........

                भोलानाथ  त्यागी ,
                मोबा -09456873005

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