माह की कविता : जड़ों की महानता का गीत
जैसे शब्द शब्द में छिपा है
ह्रदय में बरसते अर्थों का जादू
जैसे वाणी में छिपी है
असीम वेदना की ऊँचाई
जैसे शरीर , हर माँ की कीमत सिद्ध करती है
वैसे ही हर माँ से उठती है
पृथ्वी जैसी गंध
वृक्षों से झरती है , जड़ों की महानता
गूंजती है कल्पना में
सृष्टि की महामाया
धूल – मिट्टी में
अपने प्राणों की पदचाप सुनाई देती है
दाने –दाने में जमा है
अनादि काल से बहता हुआ
आदमी का खून
उतरना फसलों की जड़ों में
तुम्हें विस्मित कर देगी
खून –पसीने की बहती हुई
कोई आदिम नदी ,
पूछो तो किस पर नहीं लदा है
रात –दिन का कर्ज ?
सोचो जरा कौन जीवित है
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