मैं यूँ तो सबके साथ सदा
पर मेरा अपना अलग ढंग
जो बात किसी को चुभ जाए
मैं ऐसी बात नहीं कहता
हो जहाँ कहीं कुछ ग़लत बात
मैं क्षण भर वहाँ नहीं रहता
जो बनी-बनाई लीक मिली
मैं अकसर उस पर चला नहीं
मुझको वह बात नहीं भाई
हो जिसमें सबका भला नहीं
जग जिस प्रवाह में बहता है
मैं उस प्रवाह में बहा नहीं
जो भीड़ कहा करती अकसर
मैंने वह हरगिज कहा नहीं
अपना कुछ काम बनाने को
मैंने समझौता नहीं किया
खु़श हो कोई या रुष्ट रहे
झूठा यशगायन नहीं किया
मैं सबको रास नहीं आता
पर इसकी कुछ परवाह नहीं
सब मुझे सुनें,बस मुझे सुनें
ऐसी कुछ मन में चाह नहीं
अपनी धुन,अपनी मस्ती है
अपनी भी कोई हस्ती है।
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