#बलिराजगढ़ पुरास्थल
आप तो हद कर दिए, महाराज! बलिराजगढ़ पुरास्थल तक साइकिल🚴 से आ गए! :- माननीय सांसद दरभंगा(गोपाल जी ठाकुर)।(कुल दूरी 200किमी)
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25 जनवरी को MLS संग्रहालय पहुंचा तो वहां पूर्व से ही संग्रहाल्याध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र, प्रो जयशंकर झा, वरीय इतिहासकार डा अवनींद्र कुमार झा, डा सुशांत कुमार, श्री कौशल जी, श्रीउज्ज्वल कुमार जी आदि मौजूद थे। शिवकुमार सर ने मिथिला के अति महत्वपूर्ण पुरास्थल बलिराजगढ़ की चर्चा की, जिस पर आदरणीय प्रो झा ने माननीय सांसद, दरभंगा से भ्रमण को कहने संबंधी बात कहते हुए उन्हें फोन कर कहा, डा मिश्र सर से भी बातें हुई, इस दौरान बलिराजगढ़ का सम्पूर्ण उत्खनन कराने हेतु भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए।
उपरोक्त विषय पर सांसद महोदय का ध्यान आकृष्ट कराया गया, सांसद महोदय हर्ष व्यक्त करते हुए अगले ही दिन बलिराजगढ़ पुरास्थल भ्रमण का योजना बना लिए, जिसमें मुझे इनके पुरातात्विक गाइड लाइन के लिए जाने को कहा गया, मैं तो पुरातत्व के लिए तैयार ही रहता हूं।
अगले दिन सुबह यानी कि 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) को मैं आदरणीय प्रो जयशंकर झा, मिसेज झा और सामाजिक कार्यकर्ता श्री उज्ज्वल कुमार जी दरभंगा से मधुबनी जिला अतिथि गृह पहुंचे, जहां से सांसद महोदय साथ हुए और हमलोग करीब 03:30 बजे बलिराजगढ़ पुरास्थल पहुंचे।
वहां प्रो झा(डा मिश्र का दिया हुआ) के द्वारा सांसद महोदय को बलिराजगढ़ पुरास्थल से संबंधित अब तक के कतिपय प्रपत्र दिए गए। उन्होंने इस पुरास्थल का पुनः खुदाई कार्य प्रारंभ करवाने हेतु अपना पूर्ण जोड़ लगाने की बात कही। मैंने उनको पुरास्थल का प्राचीनता, तीनों बार हुए खुदाई कार्य, ऐतिहासिक काल खंड की जानकारी, विशेषता, संभावना आदि विषयों संबंधित विस्तृत विवरणों से अवगत करवाया। तत्पश्चात हमलोग बलीराजपुर स्थित ऐतिहासिक रामजानकी मंदिर भ्रमण कर वापस लौटे।
#बलिराजगढ
#भारतीय_पुरातत्व_सर्वेक्षण
#Archaeological_survey_of_India
#मिथिला_पर्यटन, #बिहार_पुराविद_परिषद, #Government_of_Bihar, #Government_of_India
अगर राम का जन्म हुआ तो सीता का भी हुआ होगा......
अगर राजा दशरथ की #अयोध्या है तो #विदेहराज जनक की राजधानी #मिथिलापुरी भी होगी। राम का मूल आधार #वाल्मीकि_रामायण है। इसी रामायण में कहा गया है कि गौतम आश्रम से ईशान कोण में राजा जनक की राजधानी मिथिला थी। गौतम आश्रम की पहचान #दरभंगा जिला के ब्रह्मपुर से की गई है तो इसके ईशान कोण में मिथिला पुरी की तलाश क्यों नहीं की जाती ?
#रामजन्म_भूमि को प्रमाणित करने के लिए #पुरातत्व का सहारा लिया गया है तो सीताजी के जन्मभूमि के लिए पुरातत्व की आवश्यकता क्यों नहीं ?
हमारे देश के लोग अपनी सारी ऊर्जा राम जन्मभूमि के लिए लगा रहे हैं थोड़ी तो सीता जी के लिए भी लगाया जाना चाहिए।
-:बलिराजगढ़:-
भारत के दार्शनिक, उद्भव, सांस्कृतिक और साहित्यिक विकास के क्षेत्र में मिथिला का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मिथिला का इतिहास निस्संदेह गौरवमय रहा है. पुरातत्व के अवशेषों का अन्वेषण, विश्लेषण में पूरा #पाषाणकाल, मध्यकाल और नव पाषाण काल के कई अवशेष अभीतक प्रकाश में नहीं आए हैं। उत्तर बिहार के #तीरभुक्ति क्षेत्र में पुरातात्विक दृष्टिकोण से वैशाली पुरास्थल के बाद अगर कोई दूसरा महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल प्रकाश में आया तो वह है बलिराजगढ़। जिसे #डी०_आर_पाटिल बलराजपुर लिखते हैं। बलिराजगढ़ #हिमालय की तराई में भारत-नेपाल के सीमा से लगभग 15 किलोमीटर दूर बिहार प्रान्त में अवस्थित है।
प्राचीन मिथिला के लगभग मध्यभाग में #मधुबनी जिला से 30 किलोमीटर की दुरी पर #बाबूबरही थाना के अन्तर्गत आता है। यहां पहुंचने के लिए रेल और सड़क मार्ग दोनों की सुविधा उपलब्ध है। बलिराजगढ़ कामला बलान नदी से 7 किलोमीटर पूर्व और कोसी नदी से 35 किलोमीटर पश्चिम में मिथिला के भूभाग पर अवस्थित है। #वैदिक_काल और उत्तर वैदिक काल में मिथिला अति प्रसिद्ध विदेह राज्य के रूप में जाना जाता था। द्वितीय नगरीकरण अथवा महाजनपद काल में वज्जि संघ, लिच्छवी संघ आदि नाम से प्रसिद्ध रहा है। बलिराजगढ़ का महत्व देखते हुए कुछ विद्वान् इसे प्राचीन मिथिला की राजधानी के रूप में संबोधित करते हैं। यहां का विशाल दुर्ग रक्षा प्राचीर से रक्षित पूरास्थल निश्चित रूप से तत्कालीन नगर व्यवस्था में सर्वोत्कृष्ट स्थान रखता था।
175 एकड़ वाले विशाल भूखंड को बलिराजगढ़, बलराजगढ़ या बलिगढ़ कहा जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है की महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित दानवराज बलि की राजधानी का ये ध्वंष अवशेष है। ओ मैले के अनुसार स्थानीय लोगों का विश्वास है की इस समय भी रजा बलि अपने सैनिकों के साथ इस किले में निवास करते हैं. सम्भवतः इसी वजह से कोई भी खेती के लिए जोतने की हिम्मत नही करता है। इसी अफवाह के चलते इस भूमि और किले की सुरक्षा अपने आप होती रही। बुकानन के अनुसार वेणु, विराजण और सहसमल का चौथा भाई बलि एक राजा था। यह बंगाल के राजा बल का किला था जिसका शासनकाल कुछ दिनों के लिए मिथिला पर भी था। बुकानन के अनुसार वे लोग दोमकटा ब्राह्मण थे जो महाभारत में वर्णित राजा युधिष्ठिर के समकालीन थे। किन्तु डीआर पाटिल इसे ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि वेणुगढ़ तथा विरजण गढ़ के किले से बलिराजगढ़ की दूरी अधिक है।
एक अन्य विद्वान् इस गढ़ को विदेह राज जनक के अंतिम सम्राट द्वारा निर्मित मानते हैं। उनके अनुसार जनक राजवंश के अंतिम चरण में आकर वंश कई शाखों में बंट गया और उन्ही में से एक शासक द्वारा किले का नाम बलिगढ़ रखा गया।
प्रो उपेन्द्र ठाकुर ने बलिराजगढ़ का उल्लेख करते हुए लिखा है कि प्रख्यात #चीनी_यात्री_ह्वेनसांग ने तीरभुक्ति भ्रमण करते हुए वैशाली गए थे। वैशाली (चेन-सुन-ना) संभवतः बलिगढ़ गए और वहां से बड़ी नदी अर्थात महानन्दा के निकट गए। बलिराजगढ़ के ऐतिहासिक महत्व के लिए एक तर्क यह है कि विदेह राज जनक की राजधानी अर्थात रामायण में वर्णित मिथिलापुरी यहीं स्थित थी। यधपि मिथिलापुरी की पहचान आधुनिक जनकपुर (नेपाल) से की गयी है किन्तु पुरातात्विक सामग्रियों के आभाव में इसे सीधे मान लेना कठिन है।
रामायण के अनुसार राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र गौतम आश्रम से ईशाणकोण को ओर चलकर मिथिला के यज्ञमण्डप पहुंचे। गौतम आश्रम की पहचान दरभंगा जिले के ब्रह्मपुर गांव से की गयी है। जिसका उल्लेख स्कन्दपुराण में भी मिलता है। आधुनिक जनकपुर गौतम आश्रम अर्थात ब्रह्मपुर से ईशाणकोण न होकर उत्तर दिशा में है। इस तरह गौतम आश्रम से ईशाणकोण में बलिराजगढ़ के अलावा और कोई ऐतिहासिक स्थल दिखाई नहीं देता है, जिसपर प्राचीन मिथिलापुरी होने की सम्भावना व्यक्त की जा सके। अतः बलिराजगढ़ के पक्ष में ऐसे तर्क दिए जा सकते हैं कि मिथिलापुरी इस स्थल पर स्थित थी।
पाल साहित्य में कहा गया है कि अंग की राजधानी आधुनिक भागलपुर से मिथिलापुरी साठ योजन की दूरी पर थी। महाउम्मग जातक के अनुसार नगर के चारों द्वार पर चार बाजार थे जिसे यवमज्क्ष्क कहा जाता था बलिराजगढ़ से प्राप्त पुरावशेष इस बात की पुष्टि करता है. बौद्धकालीन मिथिलानगरी का ध्वंशावशेष भी बलिराजगढ़ ही है। बलिराजगढ़ के पुरातात्विक महत्व को सर्वप्रथम 1884 में प्रसिद्ध प्रसाशक, इतिहासकार और भाषाविद् जार्ज ग्रीयर्सन ने उत्खनन के माध्यम से उजागर करने की चेष्टा की, किन्तु बात यथा स्थान रह गयी। ग्रियर्सन के उल्लेख के बाद भारत सरकार 1938 में इस महत्वपूर्ण पुरास्थल को #राष्ट्रीय_धरोहर के रूप में घोषित कर दिया गया।
सर्वप्रथम इस पुरास्थल का उत्खनन 1962-63 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रघुवीर सिंह के निर्देशन संपादित हुआ। इस उत्खनन से ज्ञात हुआ की जो इस विशाल सुरक्षा दीवाल के निर्माण में पकी ईट के साथ मध्यभाग में कच्ची ईट का प्रयोग किया गया है। सुरक्षा प्राचीर के दोनों ओर पककी ईटों का प्रयोग दीवार को मजबूती प्रदान करती है। सुरक्षा दीवार की चौड़ाई सतह पर 8.18 मी. और 3.6 मी. तक है। सुरक्षा दीवार का निर्माण लगभग तीसरी शताब्दी ई.पू. से लेकर लगातार पालकालीन अवशेष लगभग 12-13 शताब्दी पर प्राप्त होता है। पुरावशेष में सुंदर रूप से गढ़ित मृण्मूर्ति महत्वपूर्ण है।
इसके बाद 1972-73 और 1974-75 में बिहार राज्य पुरातत्व संग्रहालय द्वारा उत्खनन किया गया। इस उत्खनन कार्य में बी.पी सिंह के समान्य निर्देशन में सीता राम रॉय द्वारा के.के सिन्हा, एन. सी.घोष, एल. पी. सिन्हा तथा आर.पी सिंह के सहयोग से किया गया। उक्त खुदाई में पुरावशेषों तथा भवनों के अवशेष प्राप्त हुए। इस उत्खनन में उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड से लेकर पालकाल तक के मृदभांड मिला है। सुंदर मृण्मूर्ति अथाह संख्या में मिला है, अर्ध्यमूल्यवाल पत्थर से बनी मोती, तांबो के सिक्के,मिट्टी के मुद्रा प्राप्त हुआ है। अभी हाल में 2013-14 में एक बार फिर उत्खनन कार्य #भरतीय_पुरातत्व_सर्वेक्षण_पटना मण्डल के मदन सिंह चौहान, सुनील कुमार झा और उनके मित्रों द्वारा उत्खनन कार्य किया गया।
इस स्थल के उत्खनन में मुख्य रूप से चार संस्कृति काल प्रकाश में आए।
1-उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड
2-शुंग कुषाण काल
3-गुप्त उत्तर गुप्तकला
4-पाककालीन अवशेष
इस स्थल से अभी तक पुरावशेष में तस्तरी, थाली,पत्थर के वस्तु, हड्डी और लोहा, बालुयुक्त महीन कण, विशाल संग्रह पात्र, सिक्के, मनके, मंदिर के भवनावशेष प्राप्त हुए है और एक महिला की मूर्ति भी प्राप्त हुई है जो कि गोदी में बच्चे को स्तन से लगायी हुई है।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य में प्राचीर दीवार है जो पकी ईट से बनी हुई है और अभी तक सुरक्षित अवस्था में है दीवार में कहीं कहीं कच्ची ईटों का प्रयोग किया गया है। यहां प्रयोग की गयी ईटों की लंबाई 25" और चौड़ाई 14" तक है।
पाल काल या सेन काल के अंत में भीषण बाढ़ द्वारा आयी मिट्टी के जमाव कही कही 1 मीटर तक है। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है की इस महत्वपूर्ण कारक रहा है। इस समय में कोई पुरास्थल मिथिला क्षेत्र में इतना वैभवशाली नही प्राप्त हुआ है। कुछ विद्वान द्वारा इस पुरास्थल की पहचान प्राचीन मिथिला नगरी के राजधानी के रूप में चिन्हित करते है। ये पुरास्थल मिथिला की राजधानी है की नहीं इस विषय में और अधिक अध्ययन और पुरातात्विक उत्खनन और अन्वेषण की आवश्यकता है।
इस भ्रमण कार्य के लिए आदरणीय सांसद, दरभंगा(#गोपाल_जी_ठाकुर) डा मिश्र, डा झा सहित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले सभी महानुभावों के प्रति आभार 🙏🙏🙏
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