❤️*राजा की प्रंशंसा*❤️
प्रस्तुति -:उषा रानी & राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
एक बार एक राजा के दरबार में एक कवि आया ! कवि अत्यंत गुणी और प्रतिभाशाली था ! परन्तु गरीब था और अपनी मज़बूरी ( गरीबी ) से निजात पाने का उसे कोइ मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था ! अतः विवश होकर उसने अपने इस ईश्वर प्रदत्त दिव्य गुण को ईश्वर की महिमा गान की जगह एक राजा के दरबार में राजा की महिमा गान कर कुछ धन का लाभ पाने की योजना बनाई ! धन की आवश्यकता ने उसे शायद कुछ विवश कर रखा था अतः राजा के दरबार में उसने अपनी रचनाओं को सुनाने की अनुमति मांगी जो उसे मिल गयी !
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राजा का संकेत मिलते ही कवि ने राजा की प्रशंसा में कविताएं सुनानी शुरू कर दीं. राजा खुश हो गया. फिर कवि का ध्यान राजसभा में उपस्थित महारानी की ओर गया.
.उसने सोचा अपने मिलने वाले पारितोषिक को सुनिश्चित कर लिया जाए ! अब उसने रानी की प्रशंसा में कविताएँ सुनानी शुरू कीं. रानी भी उसकी कविता से प्रभावित और प्रसन्न थीं. इस प्रकार अपनी सुन्दर रचनाओं से कवि ने राजा-रानी दोनों का दिल जीत लिया !
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राजा ने मंत्री से पूछा कि इस विद्वान कवि ने हमें प्रसन्न किया है. राजा इतना प्रसन्न था कि वह कवि को दरबार में जगह तक दे सकता था. पर उसने मंत्री से ही कवि के योग्य उचित ईनाम के लिए परामर्श किया / पूछ लिया !
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राजा को मंत्री की बुद्धिमता पर अटूट विश्वास था. उसके परामर्श के बिना निर्णय नहीं लेता था ! परन्तु मंत्री चुप था ! मंत्री एक बड़ा ही योग्य व्यक्ति था !
राजा ने दोबारा पूछा तो मंत्री ने अनमने मन से कहा- महाराज, इन्होंने आपको और महारानी को अपनी रचना और मधुर गीत से प्रसन्न कर लिया है. आपको जो उचित लगे वह पुरस्कार इन्हें दें. इस विषय पर मेरा निर्णय शायद आपको रुचिकर ना लगे !
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यह सुनकर राजा की जिज्ञासा और मन का कौतूहल बढ़ गया ! एक कवि को ईनाम देने की साधारण सी बात पर मंत्री ऐसी बात क्यों कह रहा है ! अवश्य ही कुछ गहरी बात जरूर है !
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उसने घोषणा की मंत्री जी जो पुरस्कार निर्धारित करेंगे वही पुरस्कार इस कवि को दे दिया जाएगा. कवि ने बड़ी आशा की दृष्टि से मंत्री की ओर देखा ! उसे अफसोस हो रहा था कि यदि उसे मंत्री के इस प्रभाव का पता होता तो वह कुछ प्रशंसा उसकी भी कर देता. फिर भी यदि यह राजा जितना पुरस्कार नहीं भी देगा पर राजा के प्रशंसक को कुछ पारितोषिक तो देगा ही !
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अभी वह इन ख्यालों में ही था कि मंत्री ने अचानक कहा- महाराज मेरा निर्णय है कि इस कवि को चार जूते लगाए जाएं.
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कवि पर तो बिजली गिर गई. राजा और रानी की प्रशंसा करने वाले को जूते पड़ेगें, यह सोच कर राजा, रानी समेत सभी दरबारियों की आंखें फटी की फटी रह गईं.
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राजा ने तो घोषणा कर दी थी. चाहकर भी निर्णय़ से पीछे हट नहीं सकते थे. कवि को पांच जूते लगा कर छोड दिया गया.
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कवि बहुत दुखी हुआ और शाम को जब मंत्री अपने घर की ओर चला तो कवि भी पीछे-पीछे चल पडा ! मंत्री जी जब घर पहुंचे और अपनी पत्नी को राजसभा में हुई सारी घटना पत्नी को बताने लगा और बोला कि मुझे बहुत दुख है एक विद्वान अत्यंत गुणनि , प्रतिभाशाली और जिस पर माता सरस्व ती की कृपा है उसके साथ यह सब करना पडा !
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पत्नी ने पूछा कि इसमें विवशता की क्या बात थी जो आपने एक योग्य कवि का अपमान किया ?
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मंत्री बोला- परमात्मा ने उस कवि को बहुत सुंदर बुद्धि और मधुर आवाज दी है. सरस्वती ने उसमें इतने गुण भर दिए हैं कि वह इस राज्य का सम्मानित मंत्री बनने के योग्य है परन्तु उसने ईश्वर की महिमा गान , अपनी प्रतिभा एवं कला को और बढ़ाने की और ध्यान देने की जगह उसने एक राजा की चाटुकारिता को चुना !
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ऐसे राजा उसके सम्मान में अगवानी करें ऐसी प्रतिभा और कला से युक्त है वह गायक कवि. परंतु उसने अपना मोल ही नहीं समझा !
आज वह एक राजा की चाटुकारिता कर रहा था ! यदि आज मैं उसे पुरस्कार दिला देता तो वह ज्यादा से ज्यादा पुरस्कार की आस में अपनी कला का प्रयोग सिर्फ राजा रानी की प्रशंसा करने में ही लगाता रहता ! इसके बाद जो राजा बनता फिर वह उसकी चाटुकारिता करता जीवन बिता देता ! उसकी संताने फिर उस कार्य में लग जातीं और अपनी प्रतिभा एवं कला दोनों का शनैः शनैः अंत होना शुरू हो जाता !
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मंत्री ने पत्नी को कहा- मैं स्वयं कवि का प्रशंसक हूं इसलिए थोड़ा सा दण्डित कर मैंने उसे कला एवं प्रतिभा के दुरूपयोग एवं अवनति से बचा लिया है ! पत्नी ने पूछा वो कैसे ?
मंत्री ने बताया- कवि सबसे पहले ईश्वर की प्रशंसा करता है साथ ही अपनी प्रतिभा को बढ़ाने , कला को निखारने में एकाग्रचित होता है ना की किसी की चाटुकारिता में ध्यान लगाता है ! इसने तो राजा को ही ईश्वर मान लिया. भगवान की प्रशंसा में तो एक शब्द न कहे और राजा-रानी के लिए गाता चला गया तो मुझे लगा कि उसे इस अपराध की छोटी सी सजा देकर मुक्ति दी जाए !
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अपनी चाटुकारिता से वह स्वयं भी पथ्ब्रष्ट होता और ऐसे राजा को भी पथभ्रष्ट कर सकता था / अहंकारी बना सकता था !
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बाडिया है
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