रविवार, 15 दिसंबर 2024

दूसरा मिसरा ही नामी हो गया

 ऐसे बहुत से शायर हैं, जिनका दूसरा मिसरा इतना मशहूर हुआ कि लोग पहले मिसरे को तो भूल ही गये। ऐसे ही चन्द उदाहरण यहाँ पेश हैं:



"ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है,

*वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है।*"

 

*- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़*

 

"भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,

*ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।"*

 

*- माधव राम जौहर*

 

"चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,

*आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।"*

 

*- मिर्ज़ा मोहम्मद अली फिदवी*

 

"दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से,

*इस घर को आग लग गई,घर के ही चराग़ से।"*

 

*- महताब राय ताबां*

 

"ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम,

*रस्म-ए-दुनिया भी है,मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"*

 

*- क़मर बदायुनी*

 

"क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो,

*ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।"*

 

*- मियाँ दाद ख़ां सय्याह*

 

'मीर' अमदन भी कोई मरता है,

*जान है तो जहान है प्यारे।"*

 

*- मीर तक़ी मीर*

 

"शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली,

*रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।"*

 

*- जलील मानिकपूरी*

 

"शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी,

*कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को।"*

 

*- शैख़ तुराब अली क़लंदर काकोरवी*

 

"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,

*लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।"*

 

*- मुज़फ़्फ़र रज़्मी* 🌹🌹

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