शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

किसानों का कौन

PDF Print E-mail
User Rating: / 0
PoorBest 
Thursday, 26 January 2012 13:09
जनसत्ता 26 जनवरी, 2012 : कहा जाता रहा है कि भारत गांवों में बसता है और गांव को गांव किसान बनाते हैं। हाल में आई राष्टीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की रपट बताती है कि इस मुल्क में हर दूसरा किसान कर्जदार है। यह कैसे संभव है कि देश के किसान कर्जदार हों और गांव खुशहाल बचे रहें? जिन राज्यों के किसान सबसे अधिक कर्जदार हैं, वे बीमारू समझे जाने वाले प्रदेशों के नहीं, बल्कि संपन्न समझे जाने वाले राज्यों के हैं। जिन राज्यों के किसान कर्ज में डूबे हैं वे आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और पंजाब हैं। पंजाब तो वह राज्य है, जहां से हरित-क्रांति की गूंज समूचे भारत ने सुनी थी। सर्वेक्षण के मुताबिक आंध्र प्रदेश के 81 फीसद किसान कर्जदार हैं, 74.5 फीसद किसान तमिलनाडु में कर्ज में डूबे हैं। पंजाब में यह आंकड़ा 65.4 है। इसके बाद जो दो अन्य राज्य हैं, वे  दक्षिण भारत के हैं। 64.4 फीसद के आंकड़े के साथ केरल और कर्नाटक में 61.6 फीसद किसान अपना कर्जा नहीं चुका पा रहे हैं।
अगर फीसद की जगह संख्या देखें तो उत्तर प्रदेश में 69 लाख किसान अपना कर्जा नहीं चुका पाए हैं। यह संख्या आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुल कर्जदार किसानों की संख्या से बहुत अधिक है। आंध्र प्रदेश में यह संख्या 49 लाख है और महाराष्ट्र में 36 लाख। एनएसएसओ की यह रपट 2003 में 6638 गांवों के 51,770 किसानों से बातचीत पर आधारित है। सर्वेक्षण से यह बात साफ हुई कि उनमें पचास फीसद से अधिक लोगों के कर्जदार बनने की वजह खेती के लिए लिया गया उधार ही था। जानकारों का कहना है कि कीटनाशक, खाद,



बीज, पानी, बिजली सब महंगे होते गए और फसल का साज संभाल, शीतगृहों का खर्च अलग। जिस हिसाब से बाकी चीजों के दाम बढ़े, उस तरह की कीमत किसानों को अपने उत्पादों की कभी नहीं मिली। सरकार की कोई योजना ठीक-ठाककिसान तक पहुंच ही नहीं पाती।
किसान पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के हों या पश्चिम बंगाल के-वे एक ही मांग हर तरफ से कर रहे हैं कि फसल की सही कीमत सरकार दिलवा दे। आज यह सवाल इसलिए भी अहम हो गया है क्योंकि सरकार देश की बड़ी आबादी को भोजन का अधिकार देने का संकल्प ले रही है। खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश कर दिया गया है।   वजह यह बताई जा रही है कि इस देश की करीब पैंसठ फीसद आबादी अभी भी कुपोषित है। लेकिन कभी सरकार ने उन किसानों के लिए क्यों नहीं सोचा, जिन्होंने इस देश के लोगों को भोजन देने का संकल्प पीढ़ियों से ले रखा है। देश में जिस तरह कीटनाशी कंपनियों का वर्चस्व बढ़ रहा है, नकली बीज जिस तरह से बाजारों में पट रहे हैं और जिन कृषि वैज्ञानिकों को देश में किसानों का मार्गदर्शन करने के लिए नियुक्त किया गया है, कई घटनाएं ऐसी सामने आर्इं, जिनमें किसानों को गुमराह करने में बड़ी भूमिका इन्हीं लोगों ने निभाई।
आजादी के बाद से अब तक खेती को लेकर उपलब्धि यह रही कि देश की जनसंख्या तिगुना, अनाज उत्पादन दोगुना हुआ। लेकिन अनाज उपजाने वालों के सामने इस तरह की स्थितियां पैदा कर दी गर्इं कि उनकी तादाद आधी होने वाली है। जरूरी हो गया है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के साथ-साथ किसान सुरक्षा विधेयक भी लाए।
’रमेश सांगवान, रोहतक

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...