बुधवार, 25 जुलाई 2012

छठी इंद्री को जाग्रत कर दूसरे के मन की बातजान सकता है।





योगनिद्रा विज्ञान से अतीनिद्रय शक्ति को जगाया जा सकता है




- राजकुमार सोनी




छठी इंद्री को जाग्रत कर हर मनुष्य दूसरे के मन की बात को आसानी से जान सकता है। यह अति प्राचीनतम विधा है। ऋषि-संत इसी विद्या का प्रयोग कर एक दूसरे की मन की बात समझकर मन ही मन समाचार का संप्रेषण करते थे।
मन से साधो
इस अदभुत योगनिद्रा विज्ञान का प्रयोग आज एस्ट्रोनोट्स को ट्रेंड करने के लिए दिया जा रहा है। क्योंकि योगनिद्रा के अभ्यास से आप अपनी अतीन्द्रिय शक्ति को जाग्रत कर सकते हैं, टेलीपैथिक कम्युनिकेशन कर सकते हैं। मान लो कि, हवाई जहाज में कोई फेलियर हो जाए, कोई तकनीकी खराबी आ जाए, धरती के सेंटर से संपर्क टूट जाए तो इन अंतरिक्ष यात्रिओं को ट्रेंड किया जा रहा है कि वे मन से मन का संपर्क कर सकें और अपनी समस्या या दिक्कत रख सकें, संपर्क साध सकें। यंत्रों से नहीं, मन से।
क्या है अतिन्द्रिय शक्तियां
अतीन्द्रिय शक्तियाँ दूर का दर्शन, दूर का श्रवण, ये काल्पनिक शक्तियां नहीं हैं, अत्यंत वास्तविक हैं। आप में से बहुत लोगों ने यह अनुभव किया होगा कि आपके मन में एक बात उठती है, एक प्रश्न उठता है और ठीक उसी समय तुम्हें मुझसे उत्तर मिल जाता है। तीन चार पत्र आज आए हुए थे। उन्होने कहा, 'ऐसा कैसे हुआ, हमारे मन में एक विचार आया, आपने उसी का जवाब दे दिया। यह कैसे हुआ?Ó यही अतिन्द्रिय शक्तियां हैं।
जो सोचा, वो पहुंचा
जो कुछ तुम सोच रहे हो वह यहां मेरे तक पहुंच रहा है और यह कोई खास शक्ति नहीं है। इसको तुम भी प्राप्त कर सकते हो। योग निद्रा के माध्यम से हम अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों को जाग्रत कर सकते हैं। सबसे बढिय़ा बात, जिनका चित्त विश्राम में है, मन विश्राम में है, ऐसे व्यक्ति जब सत्संग सुनते हैं, जब ज्ञान श्रवण करते हैं तो वह ज्ञान उनके लिए फलित होता है। तुम तोते नहीं रह जाते हो। फिर तुम्हारे लिए कथा सुनना एक मनोरंजन नहीं रह जाता। यह तुम्हारे लिए परिवर्तन की क्रिया हो जाती है। अभी मैं जो कुछ बोलती हूँ, सच यह है कि शायद उसका पांच प्रतिशत ही आपके अंदर तक पहुंचता है। बाकी तो बस आया और गया। आप अपने ज्ञान को जीवन में लागू नहीं कर पाते। कारण, मन बड़ा बिखरा हुआ है। पर योगनिद्रा से इस बिखरे हुए मन का उपचार किया जा सकता है।
प्रार्थना में बल होगा
चित्त में चैन या विश्राम के साथ जब तुम प्रार्थना करने लगोगे तो तुम्हारी प्रार्थना में भी बल होगा। मतलब, तुम्हारी प्रार्थना तुम्हें अदभुत आनंद और अदभुत अनुभूतियों को प्रदान करेगी। अगर तुम भक्त हो तो तुम्हारी भक्ति में गहराई आ जाएगी। अगर तुम ज्ञान के साधक हो तो ज्ञान चिंतन तुम्हारा अच्छा हो जाएगा। अगर आपका प्राण शरीर स्वस्थ और उन्नत हो तो आप एक बड़ी चमत्कारिक शक्ति प्राप्त कर लेते हैं। दुनिया में चमत्कार को नमस्कार है, ज्ञान को नहीं। आज किसी चमत्कारिक बाबा के पीछे घूमने की जरूरत नहीं, तुम नियमित योगनिद्रा का अभ्यास करो, अदभुत शक्तियां जाग्रत होने लग जाएंगी। एक बात के लिए सावधान रहिए कि रजोगुणी और तामसिक व्यक्ति के पास जब शक्ति आती है तो वह अपना ही नाश कर लेता है। इसलिए शक्ति आए इसके पूर्व आपका चित्त सात्विक होना चाहिए और ईश्वर में जुड़ा हुआ होना चाहिए। सच तो यह है, जिनमें ये चीज नहीं है, उनकी शक्ति जागृत भी नहीं होती। जिनमें ईश्वर प्रणिधान यानी ईश्वर के प्रति एकाग्रता और समर्पण तथा सात्विकता होती है, उनकी शक्तियां सहज से जागने लग जाती हैं।
सच्चाई का दर्पण
अमृतसर में गुरु रामदास हरिमंदिर साहिब की सेवा करा रहे थे। सरोवर की खुदाई हो रही थी। मंदिर की नींव पड़ रही थी और दूर-दूर से गुरुनानक घर के प्रेमी इस सेवा में शामिल होने आए थे। एक महिला अफगानिस्तान से आई थी। संगत ने देखा कि बड़ी अजीब सी बात है, हर थोड़ी देर में वह अपना हाथ हवा में हिला देती। रहा नहीं गया, एक ने पूछा, 'माता जी! यह क्या कर रहे हो?Ó कहती, 'कुछ नहीं, मेरा बच्चा पालने में सो रहा है, उसके पालने को धक्का दे रही हूँ।Ó
बच्चा पालने में है! कहाँ? कहती, 'अफगानिस्तान में।Ó कहाँ? काबुल में। अमृतसर से बैठे हुए काबुल में पालने में पड़े बच्चे को यहां से थपकी दे रहे हो। यह कैसे संभव है! झूठ बोल रही है। गप मार रही है। लोगों ने गुरु रामदास से पूछा, 'गुरुदेव! यह महिला ऐसा कह रही है, क्या यह संभव है?Ó
गुरु रामदास ने कहा, 'बिल्कुल , यह सम्भव है। मन की शक्ति अपार है। मन के लिए शरीर, स्थान, देश और काल की सीमा कोई अर्थ नहीं रखती है। जिसने अपनी मनसा शक्ति को, प्राण शक्ति को विकसित किया है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।Ó
रहस्यमयी शक्तियों को अपनाएं
आप अपने अंदर छिपी हुई इन रहस्यमयी शक्तियों को जाग्रत करिए। ऐसी शक्तियों के माध्यम से आप पाश्विक जीवन से ऊपर उठकर देवताओं जैसा जीवन जी सकते हो। जब तुम स्वयं ऋषि हो सकते हो तो फिर पशु की भांति, एक आम इंसान की भांति हंसते-रोते, क्रोधी, कामी, लोभी होते हुए क्यो जिएं। ऐसी कोई चीज नहीं है जो तुम्हारे लिए प्राप्त करना संभव नहीं। सब चीज तुम प्राप्त कर सकते हो। फिलहाल तो तुम्हारा दिमाग इसमें है कि पैसा कैसे कमाया जाए। धन के पुजारी, पदार्थवादी, भोगवादी लोग कहते हैं कि धन कहां से आए? धन भी कमाया जा सकता है।
बनोगे धनवान भी
जब तुम संयमित और एकाग्र चित्त के साथ अपने व्यवसाय को, अपने बिजनेस को चलाओगे तो निश्चित रूप से तुम्हें ऐसे फार्मूले सूझने लगेंगे, जिनसे तुम्हारा व्यापार दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति करने लग जाएगा। एक चीज समझ लें, जो सफल उद्योगपति हैं या सफल धनपति हैं वे इसलिए सफल हो सके क्योंकि उनके पास संकल्पबद्ध और एकाग्र मन था। धैर्य और संतोष के साथ उन्होंने अपने क्षेत्र में काम किया इसलिए सफलता मिली। जिस व्यक्ति के पास यह शक्ति नहीं है, वह किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता। धन चाहते हो धन कमाओ। शक्ति चाहते हो शक्ति प्राप्त करो। परंतु अंत में आपको यह बात समझनी होगी कि
धन से आप पदार्थ तो खरीद सकते है, धन से आप मन का विश्राम नहीं खरीद सकते। शक्ति से आप दूसरों को दबा तो सकते हैं, पर उस शक्ति का क्या लाभ जिससे तुम अपने अंधकार और अपने उद्दंडी मन को दबा न सको। शक्ति वही जिससे आप सार्थक और रचनात्मक उन्नति करें। ऊधर्वगामी हों।
ज्ञान पूर्वक अपने जीवन को जिएं। धन बुरा नहीं है, शक्ति बुरी नहीं, पदार्थ का सुख भी बुरा नहीं, पर तुम्हें मालूम होना चाहिए कि इसकी एक सीमा है। ये सब इससे अधिक तुम्हें नहीं दे सकते। सत्य पथ पर चलें। सत्य को समझते हुए सत्य की साधना करें तो आप अपने अंदर एक निर्भयता, फियरलैसनैस और शाश्वत आनंद विकसित कर सकते हैं। यह हमेशा आपके पास रहेगा और कभी आपको छोड़ कर नहीं जाएगा।

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