बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

अपने हिस्से का भाग्य*


*प्रस्तुति - *स्वामी शरण 

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एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। 

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उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था। ऐसे ही दिन गुज़रते चले गये और वो बाल बच्चेदार हो गया तब भी काम करता रहा...!

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एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं गया। उसके न जाने से सेठ का काम रूक गया।  

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तब उसने सोचा कि *यह आदमी इतने वर्षों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कबसे इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा ?*

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सेठ ने सोचा कि *अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने अगले दिन से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी।*

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उस आदमी को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप पैसे रख लिये...

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धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर फिर एक दिन ग़ैर हाज़िर हो गया। 

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यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- *कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद तक दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी। इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ ? यह नहीं सुधरेगा !*

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*और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया।*

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अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा। उसने सेठ से ज़रा भी शि‍कायत नहीं की। यह देख कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा-

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*बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले।*

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*और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर के दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है ?*

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उस आदमी ने जवाब दिया- *"जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ। ...*

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*जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं.... फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ ?*

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यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने फिर उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा. 

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❤️❤️

6 टिप्‍पणियां:

  1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन....।
    बहुत अच्छी, संदेशात्मक कहानी
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सही है अपने हिस्से का भाग्य..
    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं

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