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एक भारतीय जोड़ा विदेश नार्वे जाता है l
नार्वे में मिस्टर अनिरुद्ध चैटर्जी की प्रतिष्ठित नौकरी है l
यह जोड़ा अपने बड़े बेटे शुभ और पांच महीने की दुधमुंही बच्ची शुचि के साथ हँसी -खुशी रह रहा है l
नार्वे के कानूनों के अनुसार बाल कल्याण संस्था सबके घरों में सर्वे कराने जाती हैं कि बच्चों का लालन-पालन ठीक से हो रहा है या नहीं इसलिए इसी संस्था की दो महिलाएं चटर्जी फैमिली में भी सर्वे करने आती है l
अपनी अंतिम विजिट पर वे बिन पूछे ही चटर्जी फैमिली के दोनों बच्चों को वैन में लेती जाती हैं तब पता चलता है कि वहां के कानूनों के अनुसार भारतीय तरीके से बच्चों को अपने पास सुलाना , हाथ से खिलाना और बच्चों की गलती पर एक चांटा मार देना भी गुनाह के अंतर्गत आता है l
बाल कल्याण संस्था द्वारा किया गया यह कार्य चैटर्जी परिवार के लिए अप्रत्याशित है l
बच्चों की मां सदमे में आ जाती है और दोनों माता-पिता बच्चों को वापस लाने की कोशिश करते हैं पर यहां पिता हारमान दिखता है क्योंकि वह नार्वे की सिटीजनशिप मिलने के इंतजार में है l
दुखी मां के लिए यह चुनौती है कि वह अपने बच्चों को अपने पास वापस कैसे लाएं !
यहां बाल कल्याण संस्था बच्चों को या तो संस्था में या फॉस्टर परिवार में दे देती हैं l
कानूनी लड़ाई चलती है l बाद में छुपी -ढकी यह बात भी चलती है कि मोटे दानदाताओं के चलते ऐसी संस्थाएं जबरदस्ती बच्चों को अपने पास रख लेती हैं l
मां के रूप में रानी मुखर्जी ने बेहद संजीदा अभिनय किया हैl अपने पति अनिरुद्ध का सम्पूर्ण सहयोग न मिलने पर देबिना /रानी मुखर्जी कैसे अकेले यह लड़ाई लड़ती है !!
पिता के रूप में अनिर्बान भट्टाचार्य भी ठीक हैं , भारतीय विदेश मंत्री के रूप में नीना गुप्ता हैl
क्या नार्वे के कानूनों से लड़कर एक मां अपने बच्चों को वापस ले पाई !! यही इस कहानी की कहानी का मुख्य भावपूर्ण भाग है l
फिल्म की निर्देशिका हैं आशिमा छिब्बर और संगीत अमित त्रिवेदी का है l
फिल्म में एक मां के अंतर्द्वंद , दुःख और बच्चों के प्रति प्यार में गुंथा, लोरीनुमा एक गीत है जिसे सुनकर आँखें डबडबा आती हैं l
यह मधुबंती ने गाया है l
"आमी जानी रे तुमार कट्टी तुमार बत्ती
आनी जानी रे तुमार सिसकी तुम्हारी हिचकी "
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