हम लड़ेंगे साथी.....
( यह तस्वीर पाश यादगारी समागम की है दो साल पहले सूरतगढ़ की ...)
पाश की बातें....
रूह में तो "वो" बैठी है......
पाश जब मिल्खा सिंह की जीवनी लिख रहे थे तो उनसे काम में देरी हो रही थी तो एक दिन "देश प्रदेश" के सम्पादक तरसेम ने उन्हें कहा कि,"पाश तूं जीवनी लिखते समय अपनी रूह में मिल्खा सिंह को बैठा लिया कर।"
पाश हमे बुदबुदाते हुए कहता,"बताओ भला मैं मिल्खा सिंह को अपनी रूह में कैसे बैठा लूँ,मेरी रूह में तो बहुत अरसे से "वो" बैठी है,तुम सबको तो पता ही है......मैं किसी और को नहीं बैठा सकता"
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रात के समय किसे जगाते,हम (अवतार पाश और शमशेर सन्धु) पाश के घर की दिवार फांद के अंदर पहुँच गए क्योंकि बंटवारे के समय चौबारा बड़े भाई के हिस्से चला गया था।भीतर एक मांची थी बहुत ही ढीली....हम उस पर लेट गए,मगर नींद कहाँ...
कुछ देर बाद.....ये क्या,मेरा कंधा आंसुओं से भीग गया.....हमेशा चहकते,हंसते मुस्कुराते रहने वाला पाश रो रहा है...वो कुछ समय बाद उठा और पौड़ियों पर बैठ बुदबुदाने लगा....
"हमारा परिवार यूँ ही बंट बुंट गया....बापू को मुझसे बहुत उम्मीद थी,मगर मैं अच्छा बेटा न बन सका....बड़े भाई को मुझसे उम्मीद थी मगर मैं कमाऊ भाई न बन सका....मैं यूँ ही रहा....हर रोज़ मैं खुद का कत्ल करता हूँ....."
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