सोमवार, 22 सितंबर 2014

अकबर बीरबल के किस्से

 



पंडित जी


प्रस्तुति-- ममता शरण 
 
शाम ढलने को थी। सभी आगंतुक धीरे-धीरे
अपने घरों को लौटने लगे थे। तभी बीरबल ने
देखा कि एक मोटा-
सा आदमी शरमाता हुआ चुपचाप एक कोने
में खड़ा है। बीरबल उसके निकट आता हुआ
बोला, ‘‘लगता है तुम कुछ कहना चाहते हो।
बेहिचक कह डालो जो कहना है। मुझे
बताओ, तुम्हारी क्या समस्या है ?’’
वह मोटा व्यक्ति सकुचाता हुआ बोला,
‘‘मेरी समस्या यह है कि मैं पढ़ा-
लिखा नहीं हूं। मैंने अपनी शिक्षा पर
ध्यान नहीं दिया जिसका मुझे खेद है। मैं
भी समाज में सिर उठाकर सम्मान से
जीना चाहता हूं। पर अब नहीं लगता है
ऐसा कभी नहीं हो पाएगा।’’
‘‘नहीं कोई देर नहीं, ऐसा जरूर
होगा यदि तुम हिम्मत न हारो और
परिश्रम करो। तुममें भी योग्यता है’’
बीरबल ने कहा।
‘‘लेकिन ज्ञान पाने में तो सालों लग
जाएंगे।’’ मोटे आदमी ने कहा, ‘‘मैं
इतना इंतजार नहीं कर सकता। मैं तो यह
जानना चाहता हूँ कि क्या कोई
ऐसा तरीका है कि चुटकी बजाते
ही प्रसिद्धि मिल जाए।’’
प्रसिद्धि पाने का ऐसा आसान
रास्ता तो कोई नहीं है।’’ बीरबल बोला,
‘‘यदि तुम वास्तव में योग्य और प्रसिद्ध
कहलवाना चाहते हो, तो मेहनत
तो करनी ही होगी। वह भी कुछ समय के
लिए।’’
यह सुनकर मोटा आदमी सोच में डूब गया।
‘‘नहीं मुझमें इतना धैर्य नहीं है।’’ मोटे
आदमी ने कहा, ‘‘मैं तो तुरंत
ही प्रसिद्धि पाकर ‘पंडित जी’
कहलवाना चाहता हूं।’’
‘‘ठीक है।’’ बीरबल बोला, ‘‘इसके लिए
तो एक ही उपाय है। कल तुम बाजार में
जाकर खड़े हो जाना। मेरे भेजे
आदमी वहां होंगे, जो तुम्हें पंडित
जी कहकर पुकारेंगे। वे बार-बार जोर-जोर
से ऐसा कहेंगे। इससे दूसरे लोगों का ध्यान
इस ओर जाएगा, वे भी तुम्हें पंडित
जी कहना शुरू कर देंगे।
ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन
हमारा नाटक तभी सफल होगा जब तुम
गुस्सा दिखाते हुए उन पर पत्थर फेंकने लगोगे
या हाथ में लाठी लेकर
उनको दौड़ाना होगा तुम्हें। लेकिन सतर्क
रहना, गुस्से का सिर्फ दिखावा भर
करना है तुम्हें। किसी को चोट
नहीं पहुंचनी चाहिए।’’
उस समय तो वह मोटा आदमी कुछ समझ
नहीं पाया और घर लौट गया।
अगली सुबह वह मोटा आदमी बीरबल के
कहेनुसार व्यस्त बाजार में जाकर
खड़ा हो गया। तभी बीरबल के भेजे
आदमी वहां आ पहुंचे और तेज स्वर में कहने लगे-
‘‘पंडितजी...पंडितजी...पंडितजी...।’’
मोटे आदमी ने यह सुन अपनी लाठी उठाई
और भाग पड़ा उन आदमियों के पीछे। जैसे
सच ही में पिटाई कर देगा। बीरबल के भेजे
आदमी वहां से भाग निकले, लेकिन
पंडितजी..पंडितजी...का राग
अलापना उन्होंने नहीं छोड़ा। कुछ ही देर
बाद आवारा लड़कों का वहां घूमता समूह
‘पंडितजी...पंडितजी...’ चिल्लाता हुआ
उस मोटे आदमी के पास आ धमका।
बड़ा मजेदार दृश्य उपस्थित हो गया था।
मोटा आदमी लोगों के पीछे दौड़
रहा था और लोग
‘पंडितजी...पंडितजी...’ कहते हुए नाच-
गाकर चिल्ला रहे थे।
अब मोटा आदमी पंडितजी के नाम से
प्रसिद्ध हो गया। जब भी लोग उसे देखते
तो पंडितजी कहकर ही संबोधित करते।
अपनी ओर से तो लोग यह कहकर
उसका मजाक उड़ाते थे कि वह उन पर पत्थर
फेंकेगा या लाठी लेकर उनके पीछे दौड़ेगा।
लेकिन उन्हें
क्या पता था कि मोटा तो चाहता ही यही था।
वह प्रसिद्ध तो होने ही लगा था।
इसी तरह महीनों बीत गए।
मोटा आदमी भी थक चुका था। वह यह
भी समझ गया था कि लोग उसे सम्मानवश
पंडितजी नहीं कहते, बल्कि ऐसा कहकर
तो वे उसका उपहास करते हैं। लोग जान गए
थे कि पंडित कहने से उसे गुस्सा आ जाता है।
वह सोचता था कि शायद लोग मुझे पागल
समझते हैं।
यह सोचकर वह इतना परेशान
हो गया कि फिर से बीरबल के पास
जा पहुंचा।
वह बोला, ‘‘मैं मात्र
पंडितजी कहलाना नहीं चाहता। वैसे मुझे
स्वयं को पंडित कहलवाना पसंद है और कुछ
समय तक यह सुनना मुझे अच्छा भी लगा।
लेकिन अब मैं थक चुका हूं। लोग मेरा सम्मान
नहीं करते, वो तो मेरा मजाक उड़ाते हैं।’’
मोटे
आदमी को वास्तविकता का आभास होने
लगा था।
मोटे आदमी को यह कहता देख बीरबल
हंसता हुआ यह बोला, ‘‘मैंने तो तुमसे पहले
ही कह दिया था कि तुम बहुत समय तक
ऐसा नहीं कर पाओगे। लोग तुम्हें वह सब कैसे
कह सकते हैं, जो तुम हो ही नहीं। क्या तुम
उन्हें मूर्ख समझते हो ? जाओ, अब कुछ समय
किसी दूसरे शहर में जाकर बिताओ। जब
लौटो तो उन लोगों को नजरअंदाज कर
देना जो तुम्हें पंडितजी कहकर पुकारें। एक
अच्छे, सभ्य व्यक्ति की तरह आचरण करना।
शीघ्र ही लोग समझ जाएंगे
कि ‘पंडितजी’ कहकर तुम्हारा उपहास करने
में कुछ नहीं रक्खा और वे ऐसा कहना छोड़
देंगे।’’
मोटे आदमी ने बीरबल के निर्देश पर अमल
किया।
जब वह कुछ माह बाद दूसरे शहर से लौटकर
आया तो लोगों ने उसे पंडितजी कहकर
परेशान करना चाहा, लेकिन उसने कोई
ध्यान न दिया।
अब वह मोटा आदमी खुश था कि लोग उसे
उसके असली नाम से जानने लगे हैं। वह समझ
गया था कि प्रसिद्धि पाने की सरल
राह कोई नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहिर लुधियानवी ,जावेद अख्तर और 200 रूपये

 एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे ।  ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक़्त लेकर उनसे...