बुधवार, 30 दिसंबर 2020

दो लघुकथाएँ

 मेरी दो लघुकथाएं रोटी । मार्स स्टूडियो ने स्वरबद्ध की है। दोनों लघुकथाएं लॉकडाउन के दौरान मजदूर पलायन के समय व्याप्त माहौल पर लिखी गई थी। प्रस्तुत है। 



कथा  एक।  :


रात गहरा गई थी। सड़क पर चलते-चलते बहुत दिन हो गए थे। कुछ पक्का पता भी नहीं था। बस यही याद है कि चलते  समय रात को चांद इतना बड़ा नजर नहीं आता था। पर अब तो आसमान पर थाली सा, गोलाकार उदास चांद अटका हुआ था।  घर अभी दूर था। रास्ते समझ में भी नहीं आ रहे थे। बस सर्पीली सड़कें जिधर मुड़ती थी, वे मुड़ जाते थे। दिन में भी शहर और गाँव,  सोए-सोए लगते थे। पर एक सैलाब साथ था। उन्हीं की तरह आंशकित और सहमा हुआ, उसी से थोड़ी हिम्मत मिलती थी।


                        वो अकेली नहीं थी। साथ में पति और छोटा बच्चा भी था। रात को चलते-चलते, सड़क के किनारे एक पेड़ से साईकिल टिकाकर वहीं जमीन पर लेट गए थे। साइकल के पीछे गृहस्थी का सामान बंधा हुआ था। खाने को आज कुछ नहीं था। पति को कुछ देर भूख लगी। पर फिर थकान ने भूख पर विजय पाई और वो सो गया। बच्चा, दिन भर साईकिल के डंडे पर बैठा रहता था। सो उतना नहीं थका था। उसे भूख लग रही थी। ‘माँ, भूख लग रही है। रोटी दे न।’


                          रोटी थी भी नहीं। आज रोटी नसीब नहीं हुई थी। ‘देख, सामने चाँद, कितना गोल है। तुझे चंदा मामा बहुत अच्छा लगता है न।’


                            ‘माँ, ये चाँद भी रोटी जैसा ही लग रहा है न बिल्कुल गोल। तू ऐसी ही रोटी बनाती है न। एक रोटी दे दे न।’


                             ‘देख, इधर पेड़ कैसे हिल रहे हैं। गाँव में अपने आँगन में भी पेड़ हैं।’


                               ‘माँ, पेड़ों पर फल लगते हैं न। मैंने किताबों में देखे हैं। कितने सुंदर लगते हैं। माँ, ये भी रोटी की तरह होते हैं क्या। इनसे भी भूख खत्म हो जाती है। माँ, रोटी दे दे न।’


                                                            ‘      रोटी-रोटी, बार-बार एक ही बात। दस साल का हो गया। मेहनत नहीं करता। दिन भर साईकिल पर चढ़ा रहता है। कल से पैदल चलना। देख, मेहनत करने से कैसी नींद आ जाती है। देख तेरे बापू को।’


                            बच्चा सहमकर चुप हो गया। उसे भूख का हल मिल गया था।


 


 कथा दो:               


                        स्वर्ग के रास्ते में दो आत्माऐं मिल गई। सड़क पर चलते-चलते मौत हो गई थी।


                                                     ‘क्या हुआ, तुम कैसे मरी।’ पहली ने कहा।


                                           ‘पता नहीं, तीन दिन से भूखी थी। धूप में चक्कर आया और गिर गई।


                           ’चल झूठी। यहाँ परलोक में तो झूठ मत बोल। तेरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तो दिल का दौरा पड़ने का कारण मृत्यु बताई गई है।’


                                                            ‘पता नहीं। मुझे तो बस भूख का ही पता है। तीन दिन से कुछ खाया नहीं था। हालत तो बहुत खराब थी। पर चलना जरूरी था। अब बच्चे के पाँव में भी छाले पड़ गए थे। उसे भी गोदी में उठा रखा था।’


                                                            ‘बाई, यह परलोक है। दुनिया के छल-प्रपंच तो वहीं छोड़ दे। अखबार में साफ लिखा है। तेरे आँचल में दो रोटी बंधी थी।’


                                                            पहली आत्मा उदास हो गई बोली। ‘ मैं कब मना कर रही। रोटी तो थी। पर वो मैंने अपने बच्चे के लिए बचाकर रखी थी। कमबख्त लाश के साथ रोटी भी ले गए। पता नहीं सुबह छुटका भूखा ही रह गया होगा।’


                          दूसरी आत्मा चुपचाप चलने लगी।


 


                    


                      


           


 


                                                                                                                                            


                      


        


 


 


                                                            ‘

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