शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

माँ दो नव वरदान./ धनंजय सिंह sjngh


 नित नवीन उद्भावना, नये-नये उपमान

नवल व्यंजना का मुझे, माँ दो नव वरदान !


नित नवीन शुभ कल्पना, नित-नित नये प्रतीक

सहज लक्षणा-व्यंजना, माँ दो मुझे सटीक!


नये बिंब,नव कल्पना, नवल भाव-संज्ञान

नवल भंगिमा का रहे,प्रतिपल अनुसंधान!


नवल छंद, गति-लय नयी, नूतन मधुमय भाव

अलंकार-रस पूर्ण हों, हे माँ सब अनुभाव!


संध्या-वंदन-प्रार्थना, कर लो माँ स्वीकार 

रिक्त हृदय में काव्य का, दो नूतन अवतार!


वाणी रस-परिपूर्ण हो, शब्द-शब्द संगीत 

माँ ऐसा वरदान दो, पूर्ण रहे हर रीत!


नये गीत में भाव का, हो नूतन शृंगार 

नव गति, नव लय, स्वर नये, दे दो माँ उपहार!


---धनञ्जय सिंह.

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