बुधवार, 25 सितंबर 2024

ग़ज़ल (1) / अच्छी थी पगडंडी अपनी / सिन्हा आत्म स्वरूप

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*"अच्छी थी, पगडंडी अपनी,

सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!*


*फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो,

सबके पास, काम बहुत है!!*


*नहीं जरूरत, बूढ़ों की  अब,

हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है!!*

  

*उजड़ गए, सब बाग बगीचे,

दो गमलों में, शान बहुत है!!*


*मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं,

कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है!!*


*पीते हैं, जब चाय, तब कहीं,

कहते हैं, आराम बहुत है!!*


*बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री,

व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है!!*


*झुके-झुके, स्कूली बच्चे,

बस्तों में, सामान बहुत है!!*


*नही बचे, कोई सम्बन्धी,

अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!*


*सुविधाओं का,ढेर लगा है यार.

पर इंसान, परेशान बहुत है!!*

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