गुरुवार, 7 जुलाई 2011

सहारा और सिंधिया का खेल

सहारा ने अपनी ही खबर का खंडन क्यों छापा? शिवराज ने गद्दार सिंधिया को क्यों बचाया??

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आज दो अखबारों में दो ध्यान देने वाली खबरें छपी हैं. राष्ट्रीय सहारा में प्रथम पेज पर जोरदार खंडन व खबर है. यह खंडन व खबर उन अफसरों को खुश करने के लिए प्रकाशित किया गया है जिससे उपेंद्र राय के राज में सीधे-सीधे पंगा लिया गया था. तब भड़ास4मीडिया ने संबंधित दो खबरें प्रकाशित की थीं, जिन्हें इन शीर्षकों पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं- एक आईपीएस को निपटाने में जुटा राष्ट्रीय सहारा और सहारा से भिड़े राजकेश्वर की बहन हैं मीनाक्षी.
अब राष्ट्रीय सहारा ने बैकफुट पर आते हुए मीनाक्षी से माफी मांग ली है. और स्टोरी ऐसी लगाई है जिससे लग रहा है कि राष्ट्रीय सहारा रूपी अदालत ने फैसला सुना दिया है कि मीनाक्षी जी निर्दोष हैं और उनके खिलाफ कुछ दुष्ट किस्म के लोगों ने साजिश की है. दरअसल राष्ट्रीय सहारा के इस यू टर्न लेने को इससे समझा जा सकता है कि उपेंद्र राय ने अपने कार्यकाल में अतिशय तेजी के तहत सहारा समूह का हित साधने में जिन कई अफसरों व सरकारी विभागों से पंगा ले लिया, उससे सहाराश्री व सहारा समूह की धड़कने बढ़ गईं. सरकारी अफसरों और सरकारी विभागों ने मिल कर सहारा समूह की बैंड बजाने की ठान ली. उपेंद्र राय पहले से ही सुप्रीम कोर्ट से लेकर अन्य कई जांच एजेंसियों के लिए जांच के विषय बने हुए थे क्योंकि उन्होंने सहाराश्री का फेवर चाहने के चक्कर में कइयों को धमकवाया था और देख लेने की बात कह दी थी.
सहारा समूह ने अंततः अपना अस्तित्व बचाने के लिए शीर्ष स्तर पर फेरबदल कर दिया ताकि अफसरों, विभागों, एजेंसियां, न्यायालयों आदि का एक साथ शांत किया जा सके और उन्हें पुचकार कर खिलाफ बन रहे माहौल ठंडा किया जा सके. इसी के तहत स्वतंत्र मिश्रा ने आते ही डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है. सहारा समूह के बारे में कहा जाता है कि यहां सहारा के हित में या सहारा के खिलाफ, दोनों ही स्थितियों में बहुत तेज चलने वाले ज्यादा दिन टिक नहीं पाते. यही हाल उपेंद्र राय का हुआ. आज जो राष्ट्रीय सहारा में खंडन छपा है, वह यह बतला रहा है कि सहारा समूह कितना बेचैन है डैमेज कंट्रोल के लिए.
यह सभी जानते हैं कि स्वतंत्र मिश्रा और उपेंद्र राय के छत्तीस के आंकड़े रहे हैं. अब जब सत्ता स्वतंत्र मिश्रा को मिल गई है तो असंभव नहीं है कि कुछ दिनों में उपेंद्र राय के कथित घपले घोटाले सामने आने लगे. सूत्रों का कहना है कि उपेंद्र राय के कार्यकाल के छोटे बड़े सभी फैसलों, मेलों, कागजातों की छानबीन वृहद स्तर शुरू हो गई है. इस छानबानी से ठीक पहले विभिन्न विभागों के मुखियाओं को हटा दिया गया. बताया जा रहा है कि गोरखपुर से संजय पाठक नामक कंप्यूटर इंजीनियर को नोएडा आफिस बुलाया गया है जो यहां कंप्यूटर में पड़े दस्तावेजों, मेलों आदि को छानबीन के लिए उपलब्ध कराएगा.
कहने वाले यहां तक कह रहे हैं कि उपेद्र राय को साइडलाइन तो किया ही गया है, अगर कोई घपला-घोटाला या अनियमितता पकड़ में आ जाती है तो उन्हें टर्मिनेट या सस्पेंड भी किया जा सकता है. इस टर्मिनेशन या सस्पेंशन से सहारा समूह को दो फायदा मिलेगा. एक तो असंतुष्ट अफसरों, सरकारी विभागों, जांच एजेंसियों, न्यायालयों आदि को यह बताया जा सकेगा कि जो आरोपी उपेंद्र राय हैं उनके खिलाफ समुचित कार्रवाई कर दी गई है, जिससे उनका गुस्सा खत्म हो जाए और दूसरे सहारा समूह के खिलाफ चल रही जांचों को नरम तरीके से प्रभावित करने का रास्ता खुल सकेगा.
राष्ट्रीय सहारा अखबार में फ्रंट पेज पर टाप बाक्स में कई कालम में प्रकाशित खबर व खंडन इस प्रकार है...
आयकर अधिकारी के खिलाफ फर्जी शिकायतों का मामला

फोरेंसिक जांच में फर्जी निकले जनप्रतिनिधियों के शिकायती पत्र

खुलासा : जालसाजों ने मंत्री, सांसद व विधायक के लेटर पैड हासिल कर किये थे जाली हस्ताक्षर, ईमानदार अधिकारी को फंसाने की थी साजिश, आयकर आयुक्त बीपी सिंह के खिलाफ पुलिस ने की चार्जशीट दाखिल
नई दिल्ली (एसएनबी)। लखनऊ में एडिशनल कमिश्नर इनकम टैक्स के पद पर तैनात रहीं श्रीमती मीनाक्षी सिंह के विरुद्ध की गई शिकायतों के मामले में चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आए हैं। फोरेंसिक जांच में सामने आया है कि श्रीमती सिंह को झूठे मामलों में फंसाने के लिए मंत्री, सांसदों व विधायक के लेटर पैड पर उनके फर्जी दस्तखत पर शिकायतें की गई थीं। यह पूरा खेल महज इस वजह से खेला गया था ताकि श्रीमती मीनाक्षी सिंह को व्यावसायिक रूप से हानि पहुंचाई जा सके। जालसाजी के इस खेल में विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की हठधर्मिता और भी मददगार बन गई।
फर्जी दस्तखत वाले जनप्रतिनिधियों के लैटर पैड फोरेंसिक जांच के लिए पुलिस को समय पर नहीं दिए। फर्जीवाड़े के इस खेल का आश्चर्यजनक पहलू यह रहा कि साजिश किसी और ने नहीं विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने रची थी। जांच में सामने आए तथ्यों के बाद पुलिस ने आयकर आयुक्त बीपी सिंह, कानपुर समेत दो लोगों के खिलाफ आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया है। मामले की शुरुआत श्रीमती मीनाक्षी सिंह के खिलाफ महानिदेशक सर्तकता आयकर व विभिन्न कार्यालयों में मंत्री, सांसद व विधायक के अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों के लैटर पैड पर भेजे गए शिकायती पत्रों से हुई थी। मंत्री वेदराम भाटी, सांसद जफरअली नकवी व विधायक सुन्दर सिंह स्याना आदि के लैटर पैड पर भेजी गई शिकयतों में कई आरोप लगाए गए थे।
जांच के दौरान ही सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब शिकायतकर्ता जनप्रतिनिधियों से सम्पर्क किया गया। पता चला कि उन्होंने श्रीमती मीनाक्षी सिंह के खिलाफ कोई शिकायत ही नहीं की है। इसके साथ ही यह साफ हो गया कि उनके नाम वाले लैटर पैडों का जालसाजों ने दुरुपयोग किया है। सांसद जफर अली नकवी बताते हैं कि श्रीमती मीनाक्षी सिंह के खिलाफ कभी कोई शिकायत की ही नहीं, इससे साफ है कि किसी ने मेरे नाम वाले लैटर पैड पर मेरा फर्जी दस्तखत किया होगा। श्री नकवी के अनुसार उन्होंने यह जानकारी आयकर विभाग के जांच अधिकारियों को शुरुआती जांच के दौरान ही दे दी थी, लगभग यही कहना है मंत्री वेदराम भाटी व विधायक सुन्दर सिंह स्याना का।
यह चौंकाने वाले तथ्य सामने आने पर श्रीमती मीनाक्षी सिंह ने इस मामले में अज्ञात जालसाजों के खिलाफ अपने विभाग को सूचित करते हुए हजरतगंज कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उधर पुलिस ने भी पड़ताल शुरू की तो उसे सबसे पहले जरूरत पड़ी जनप्रतिनिधियों के उन लैटर पैडों की जिन पर फर्जी हस्ताक्षर कर श्रीमती मीनाक्षी सिंह के खिलाफ शिकायतें की गई थीं। हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच कराने के लिए लैटर पैड की मूल प्रति की पुलिस को सख्त जरूरत थी। इसके लिए कई बार आयकर विभाग के जांच अधिकारी से सम्बन्धित लैटर पैड मांगे गए लेकिन मिल नहीं सके। यह रवैया देख पुलिस को अंतत: अदालत की शरण में जाना पड़ा।
अदालत के आदेश के बाद भी जब लैटर पैड उपलब्ध नहीं कराए गए तब अदालत ने दस्तावेजों को हासिल करने के लिए सर्च वारंट जारी किया। अन्ततोगत्वा दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद उक्त फर्जी हस्ताक्षर वाले लैटर पैड की मूल प्रति सम्बन्धित पुलिस अधिकारियों को विलम्ब से उपलब्ध कराई गई। श्रीमती मीनाक्षी सिंह एक ऐसी अधिकारी हैं जिन्होंने आयकर विभाग के कई सफल सर्वे व सर्च कार्यवाहियों को बाखूबी अंजाम दिया है। यह वही कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं जिन्होंने उत्तराखण्ड के एक बड़े स्टील ग्रुप से 10 करोड़ रुपए की अघोषित आय पकड़ी थी। श्रीमती मीनाक्षी सिंह ने लखनऊ में एक प्रमुख पान मसाला व्यवसायी के यहां छापे की कार्रवाई में 8 करोड़ की अघोषित नकदी, ज्वैलरी व एफडीआर इत्यादि जब्त किये थे और सम्बन्धित कंपनी ने करीब 17 करोड़ की अघोषित आय का सरेण्डर किया था। यह लखनऊ में अब तक की आयकर विभाग की सबसे सफल कार्यवाही रही है।
इन महत्वपूर्ण उपलब्धियों के चलते ही श्रीमती मीनाक्षी सिंह का नाम एक कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार अधिकारी के रूप में विभाग में लिया जाता है, लेकिन जालसाजों ने उन्हें परेशान करने की अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन पुलिस तफ्तीश में उनकी करतूतों की कलई खुल गई। फोरेंसिक जांच में हस्ताक्षरों के फर्जी पाए जाने के साथ ही पुलिस ने जब गहराई से छानबीन शुरू की तो षडयंत्र की कहानी परत-दर-परत खुलती गई। पुलिस के जांच अधिकारी को विधायक सुन्दर सिंह स्याना से पता चला कि उनके लैटर पैड को उनके मित्र व बुलन्दशहर निवासी बृजमोहन अग्रवाल के माध्यम से आयकर आयुक्त कानपुर बीपी सिंह के पास पहुंचाया गया था।
इस तथ्य के आधार पर पुलिस ने जब और साक्ष्य एकत्र किये तो चौंकाने वाला एक और खुलासा हुआ। तफ्तीश के दौरान पता चला कि श्री बीपी सिंह ने अपने ही विभाग की एक अन्य अधिकारी के साथ 10 माह में करीब 16 सौ बार मोबाइल पर बात की है। डीआईजी (लखनऊ) के प्रवक्ता पीके श्रीवास्तव ने बताया कि सारे सबूतों के आधार पर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि श्रीमती सिंह के खिलाफ षड़यंत्र किसी और ने नहीं बल्कि उनके ही विभाग के अफसर व आयकर आयुक्त कानपुर ने रचा था। तमाम साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने आयकर आयुक्त बीपी सिंह व उन तक लैटर पैड पहुंचाने वाले व्यक्ति के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।

खेद प्रकाश

3 जून 2011 के अंक में प्रथम पृष्ठ पर ‘ये हैं आईपीएस राजीव कृष्ण, पद का दुरुपयोग करना कोई इनसे सीखे’ शीषर्क से प्रकाशित समाचार में हमारे संवाददाता पंकज कुमार ने तथ्यों की ठीक ढंग से जांच-परख नहीं की। यह बात इस प्रकरण में बाद में की गई जांच में सामने आई। संवाददाता के इस कृत्य के लिए हमें खेद है व उसके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जा रही है। इस समाचार से श्रीमती मीनाक्षी सिंह व उनके परिवार की प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची है, उसके लिए हमें हार्दिक खेद है। - स्थानीय सम्पादक

अब दूसरी खबर. इसे प्रकाशित किया है जनसत्ता अखबार ने. वही प्रभाष जोशी वाला जनसत्ता. अब यह जनसत्ता लगभग मृतप्राय है. कभी कभार इसमें स्पार्क सा नजर आता है, बाकी दिनों में यह मुर्दा अखबार नजर आता है. ओम थानवी का नाम इतिहास में इसलिए भी दर्ज किया जाएगा क्योंकि वह एक मुर्दा अखबार को बड़ी मुर्दनी के साथ ढो पाने में सफल हैं. तो इस मुर्दा अखबार ने आज जिंदा करने वाली खबर बाटम में छापी है.
खबर है कि मध्य प्रदेश सरकार ने अपने यहां पाठ्यपुस्तकों से सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता से वह एक लाइन हटवा दी है जिससे सिंधिया राजघराने के अंग्रेजों के मित्र होने का पता चलता है, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने रानी लक्ष्मीबाई का नहीं बल्कि अंग्रेजों का साथ दिया था, जिससे पता चलता है कि सिंधिया राजघराने ने आजादी के आंदोलन के दिनों में गद्दारी की थी और गोरों का साथ दिया था.
आजादी के बाद इन्हीं सिंधियाओं ने चोला बदलकर कांग्रेस से लेकर भाजपा तक की टोपी पहन ली और सत्ता-सिस्टम के पार्ट बन गए.
चूंकि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा में ज्यादातर राजे-रजवाड़े-सामंत किस्म के लोग ही नेता, सांसद, मंत्री बनते हैं, सो लगता है कि सिंधिया राजघराने के नए नेताओं ने शिवराज सरकार को प्रभाव में लेकर अपनी बदनामी वाली कहानी को डिलीट करा दिया है. यहां कविता की वो लाइन बोल्ड में दी जा रही है जिसे पाठ्यपुस्तक से हटाया गया है...
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो मध्य प्रदेश के बच्चे सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता झांसी का रानी में इस लाइन ''अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी'' को नहीं पढ़ेंगे क्योंकि वहां की सरकार ने इसे हटवा दिया है. सोचिए, कितने नीच लोग हैं. अगर कविता पसंद नहीं है तो पूरा का पूरा हटा दो. या पसंद है तो पूरा का पूरा लगा लो. ये क्या कि उसमें छेड़छाड़ कर देंगे. यह घोर अपराध है और इसके लिए शिवराज सरकार की निंदा का जानी चाहिए. जनसत्ता को यह खबर छापने के लिए बधाई. अब आप सुभद्रा कुमारी चौहान लिखिति झांसी का रानी कविता का पूरा पाठ कीजिए... और सिंधियाओं के साथ साथ शिवराजों पर भी थू थू करिए...
यशवंत
एडिटर, भड़ास4मीडिया
yashwant@bhadas4media.comThis e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it

झांसी की रानी

-सुभद्राकुमारी चौहान-
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

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Comments (3)Add Comment
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written by कुमार सौवीर, लखनऊ, July 07, 2011
लेकिन यशवंत भाई,
यह दो खबरें आपने एक साथ क्‍यों मिला दीं।
कम से कम मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
या तो आप सहारा की खबर को कमतर समझते हें या शिवराज की करतूत को।
हो सके और समय मिले तो समझाइयेगा जरूर।
हालांकि आपसे यह उम्‍मीद करना बेमानी ही है।
मनमाने लोगों से यह उम्‍मीद करने की उम्‍मीद हर किसी को छोड ही देनी चाहिए।
कुमार सौवीर, लखनऊ

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