मंगलवार, 26 जुलाई 2011

कवि सोम ठाकुर का कहना है-मंचों पर अधिकांश महिलाएं आकर्षक देह और गले के कारण हैं : सोम ठाकुर


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सोम ठाकुर
सोम ठाकुर
: मंचों पर ब्रांड नेम चलते हैं, अच्छी रचनाएं नहीं : खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर कुछ भी लिखें, सब छापते हैं पर नवोदित प्रतिभावान लेखकों को वह सम्मान नहीं मिलता : कवि सम्मेलन के लिए अधिकांश ऐसे पूंजीपति पैसा देते हैं जिनका साहित्य से सरोकार नहीं होता :
हिंदी मंच का एक ऐसा नाम जो 1953 से आजतक अपनी कविता की सुगंध बिखेर रहा है। छह दशक के बाद भी उनके गीतों में आज भी वही ताजगी और रवानगी बरकरार है। नीरज जी के बाद वही कवि सम्मेलन में मंचों के शहंशाह हैं। आज भले ही हास्य कलाकारों ने हिंदी मंच का अवमूल्यन किया हो लेकिन सोम ठाकुर ने अपनी रचनाओं में हिंदी की अस्मिता और जीवन के शाश्वत मूल्यों को आत्मसात किया है। उनकी रचनाधर्मिता के संदर्भ में डॉ. महाराज सिंह परिहार इस प्रख्यात गीतकार सोम ठाकुर से रूबरू हुए।
-आप कई दशकों से हिंदी मंच पर हैं। क्या परिवर्तन देखते हैं आप पहले की अपेक्षा अब के हिंदी मंच पर? क्या कारण रहा आपका काव्य मंचों से जुड़ने का?
--पहले से आमूलचूल परिवर्तन आया है कवि सम्मेलनी मंच पर। पहले कविता पढ़ी जाती थी तो कवि को नाम मात्र का पारिश्रमिक मिलता था लेकिन आज मंचों पर भरपूर पैसा है। मेरा मंचों पर आने का प्रमुख कारण आर्थिक रहा। मेरे चार पुत्रियां और दो पुत्र थे जिनका अच्छा पालन-पोषण कालेज की प्राध्यापकी नौकरी में संभव नहीं था। उन दिनों डिग्री कालेज की नौकरी से अधिक पारिश्रमिक कवि सम्मेलनों में मिलता था। इसीलिए मैंने पहले आगरा कालेज, फिर सेंट जौंस कालेज तत्पश्चात नेशनल पोस्ट डिग्री कालेज भोगांव में हिंदी विभागध्यक्ष की नौकरी छोड़कर काव्य पाठ को अपने जीवनयापन का माध्यम बनाया।
-आपको कोई अफसोस है कि आपने प्रोफेसरी के स्थान पर काव्य पाठ को ही अपना कैरियर बनाया?
--नहीं, मुझे कोई अफसोस नहीं अपितु गर्व है कि मैंने कविता को ही अपना कैरियर बनाया। देश में अब तक लाखों डिग्री कालेजों के शिक्षक हैं लेकिन क्या किसी को सोम ठाकुर जैसी अपार लोकप्रियता मिली है। इसी कविता ने मुझे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। महामहिम राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल से सम्मानित कराया। देश-विदेशों का भ्रमण कराया। मैं प्रोफेसर सोम ठाकुर की अपेक्षा कवि सोम ठाकुर के रूप में गर्व और आनंद का अनुभव करता हूं।
-कवि सम्मेलनों में कैसी रचनाएं पसंद की जाती हैं। क्या अच्छा रचनाकार मंचों पर वाहवाही बटोर सकता है?
--वास्तविकता यह है कि मंचों पर ब्रांड नेम ही चलते हैं, अच्छी रचनाएं नहीं। मंचों पर मशहूर ब्रांड नेम के कवियों को ही बुलाया जाता है और उन्हें ही भरपूर पारिश्रमिक दिया जाता है। बड़ा मुश्किल है किसी नवोदित रचनाकार का मंचों पर जम जाना। यहां भी स्थिति लेखक, पत्रकारों जैसी है। खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर कुछ भी लिखें, हर अखबार छापता है लेकिन नवोदित प्रतिभावान लेखकों को वह सम्मान नहीं मिलता।
-क्या कारण है कि हिंदी मंचों से साहित्यकार विदा हो गये हैं और उनके स्थान केवल मंचीय कवियों ने ले लिया है?
--हां, यह सच्चाई है। पहले रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, पंत, निराला और मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकार मंचों पर काव्यपाठ करते थे लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। अब मंचों पर भोंड़ा हास्य व द्विअर्थी तथाकथित कविताओं का बोलवाला होता जा रहा है। कविता साहित्य से हटकर विशुद्ध मनोरंजन में बदलती जा रही है।
-हिंदी मंच की गिरावट के लिए कौन जिम्मेदार है। आखिर इस गिरावट से कैसे निपटा जा सकता है।
--निश्चित रूप से मंच की गिरावट के लिए संयोजक जिम्मेदार हैं। वहीं विशुद्ध मनोरंजन करने वाले कवियों को बुलाते हैं। लेकिन इसके लिए संयोजकों की भी मजबूरी है। कवि सम्मेलन के लिए अधिकांश ऐसे पूंजीपति पैसा देते हैं जिनका साहित्य से कोई सरोकार नहीं होता और न ही समझ। उन्हें खुश करने और उनका मनोरंजन के लिए ही संयोजक को समझौता करना पड़ा है।
-मंचों पर अधिकांश आकर्षक और सुंदर चेहरे-मोहरे वाली कवियत्रियों का ही बोलबाला रहा है। कवियों की भांति अनुभवी कवियत्रियां दिखाई नहीं पड़तीं?
--महिलाओं का काव्य पाठ करना एक तरह से विजुअल आर्ट है। हर दर्शक आकर्षक और जवान महिला को देखना चाहता है। वैसे भी मंचों पर अधिकांश महिलाएं अपनी आकर्षक देहयष्ठि व गलेबाजी के कारण हैं। उनमें लेखन की प्रतिभा प्राय: नगण्य होती है। अधिकांश नामचीन कवि ही ऐसी काव्य गायिकाओं को प्रमोट करते हैं।
-क्या कवि के लिए वैचारिक प्रतिवद्धता आवश्यक है अथवा मात्र लेखन?
--बिना वैचारिक प्रतिवद्धता के लेखन निठल्ला चिंतन में बदल जाता है। लेखन के माध्यम से ही एक रचनाकार एक नये संसार का सृजन करता है और उसे अपने शब्दों के माध्यम से परवान चढ़ाने का निरंतर प्रयास करता है। जहां तक मेरा लेखन है, वह समाजवाद की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।
सोम ठाकुर : एक परिचय
जन्म : 5 मार्च 1934
स्थान : अहीर पाड़ा, राजामंडी आगरा
शिक्षा : एम.ए. हिंदी आगरा कालेज
शिक्षण कार्य : आगरा कालेज, सेंट जौंस कालेज आगरा तथा नेशनल पीजी कालेज भोगांव, मैंनपुरी में हिंदी प्राध्यापक तथा हिंदी विभागाध्यक्ष
काव्य पाठ : देश के लगभग हर प्रांत के शहरों में काव्य पाठ
विदेशों  में : अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, मॉरीशस, सूरीनाम, जर्मनी, हॉलेंड, पोलैंड, नेपाल आदि देशों में काव्य पाठ
मानद नागरिकता : अमेरिका के मैरीलेंड प्रांत के शहर बाल्टीमोर के मेयर द्वारा मानद नागरिकता
सम्मान :  यशभारती 2006
कार्यकारी उपाध्यक्ष : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान 2004
सोम ठाकुर के कुछ गीत

मेरे भारत की माटी है चन्‍दन और अबीर

सोम ठाकुर
सागर चरण पखारे, गंगा शीश चढ़ावे नीर
मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
मंगल भवन अमंगलहारी के गुण तुलसी गावे
सूरदास का श्याम रंगा मन अनत कहाँ सुख पावे
जहर का प्याला हँस कर पी गई प्रेम दीवानी मीरा
ज्यों की त्यों रख दीनी चुनरिया, कह गए दास कबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
फूटे फरे मटर की भुटिया, भुने झरे झर बेरी
मिले कलेऊ में बजरा की रोटी मठा मठेरी
बेटा माँगे गुड की डलिया, बिटिया चना चबेना
भाभी माँगे खट्टी अमिया, भैया रस की खीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
फूटे रंग मौर के बन में, खोले बंद किवड़िया
हरी झील में छप छप तैरें मछरी सी किन्नरिया
लहर लहर में झेलम झूमे, गावे मीठी लोरी
पर्वत के पीछे नित सोहे, चंदा सा कश्मीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
चैत चाँदनी हँसे , पूस में पछुवा तन मन परसे
जेठ तपे धरती गिरजा सी, सावन अमृत बरसे
फागुन मारे रस की भर भर केसरिया पिचकारी
भीजे आंचल , तन मन भीजे, भीजे पचरंग चीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ

पूर्वा पर

सोम ठाकुर
लोहे से झल गई सलाखें
पिघल गये घेरे बाँहों के।
परत-दर-परत चढ़ते साये
कपड़ों भर तनी अर्गनी
नाप गई अमरूदी कोण
टूटी मुंडेर टिकी कोहनी
धूप-चाँदनी तो वक्तव्य हुए झूठे
छत की ख़ामोश सभाओं के।
रेंग-रेंग जाती है कातर
फाइलों लदे हाथों पर
रहा सिर्फ़ इंतज़ार बस का
जल डूबे फुटपाथों पर
हर तो हैं कैद कतारों मे
बागी हैं पुरवा के झोंके ।

लौट आओ

सोम ठाकुर
लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको
नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है।
आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन यह कहा जाता नहीं है।
मौन रहना चाहता, पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है।
मीत! अपनों से बिगड़ती है बुरा क्यों मानती हो?
लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको
प्रीति का बचपन निमंत्रण दे रहा है।
रूठता है रात से भी चांद कोई और मंजिल से चरन भी
रूठ जाते डाल से भी फूल अनगिन नींद से गीले नयन भी
बन गईं है बात कुछ ऐसी कि मन में चुभ गई, तो
लौट आओ मानिनी! है मान की सौगंध तुमको
बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है।
चूम लूं मंजिल, यही मैं चाहता पर तुम बिना पग क्या चलेगा?
मांगने पर मिल न पाया स्नेह तो यह प्राण-दीपक क्या जलेगा?
यह न जलता, किंतु आशा कर रही मजबूर इसको
लौट आओ बुझ रहे इस दीप की सौगंध तुमको
ज्योति का कण-कण निमंत्रण दे रहा है।
दूर होती जा रही हो तुम लहर-सी है विवश कोई किनारा,
आज पलकों में समाया जा रहा है सुरमई आंचल तुम्हारा
हो न जाए आंख से ओझल महावर और मेंहदी,
लौट आओ, सतरंगी श्रिंगार की सौगंध तुम को
अनमना दपर्ण निमंत्रण दे रहा है।
कौन-सा मन हो चला गमगीन जिससे सिसकियां भरतीं दिशाएं
आंसुओं का गीत गाना चाहती हैं नीर से बोझिल घटाएं
लो घिरे बादल, लगी झडि़यां, मचलतीं बिजलियां भी,
लौट आओ हारती मनुहार की सौगंध तुमको
भीगता आंगन निमंत्रण दे रहा है।
यह अकेला मन निमंत्रण दे रहा है।

पंचतात्विक राष्ट्र-वंदना

सोम ठाकुर
तेरी धरा तेरा गगन
वाचाल जल पावन अगन
बहता हुआ पारस पवन
मेरे हुए तन मन वचन
तेरी धरा महकी हुई
मंत्रों जगी स्वर्गों छुई
पड़ते नहीं जिस पर कभी
संहार के बहते चरन
तेरा गगन फैला हुआ
घिर कर न घन मैला हुआ
सूरजमुखी जिसका चलन
जीकर थकन पीकर तपन
वाचाल जब चंचल रहा
आनंद से पागल रहा
जिसका धरम सागर हुआ
जिसका करम करना सृजन
पावन अगन क्या जादुई
तेजस किरन रचती हुई
जिसमें दहे दुख दर्द ही
जिसमें रहे ज़िंदा सपन
पारस पवन कैसा धनी
जिसकी कला संजीवनी
जो बाँटता हर साँस को
जीवन-जड़ा चेतन रतन
सोम ठाकुर से यह बातचीत डॉ. महाराज सिंह परिहार ने की.

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