सोमवार, 3 नवंबर 2014

|सत्यनारायण ( राज्य कवि बिहार )






प्रस्तुति-- स्वामी शरण


हिन्दी के जाने -माने गीत कवि कैलाश गौतम का एक गीत है -आज का मौसम कितना प्यारा /कहीं चलो ना जी /बलिया ,बक्सर ,पटना ,आरा /कहीं चलो ना जी |जी हाँ आज हम एक अप्रतिम गीत कवि की तलाश में आपको ले चलते हैं बिहार की राजधानी पटना, जहां सत्यनारायण जी निवास करते हैं |सत्यनारायण जी सही मायने में जनवादी गीतकार हैं| एक अद्भुत गीत शिल्पी हैं |इस गीत कवि ने गीत के बदलते दौर को देखा है महसूस किया है |हिन्दी के चर्चित कवि गोपाल सिंह नेपाली से लेकर आज तक के समय को, जहां गीत को ही अनसुना कर दिया गया है |इस बेसुरे दौर में भी सत्यनारायण गीत की मशाल जलाये हुए गुनगुनाते जा रहे हैं बिना थके बिना हारे |सत्यनारायण जी गीतकार ही नहीं इंसान भी अच्छे हैं |अभी हाल में हार्ट का आपरेशन कराकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, किन्तु मेरे विनम्र आग्रह पर डाक से इस अवस्था में मुझे सामग्री उपलब्ध करा दिये |यह सहजता बिरले लोगों में होती है | सत्यनारायण का जन्म 13 सितम्बर 1934 को कौलोडिहरी गांव अंचल -सहार जिला भोजपुर बिहार में हुआ था |इतिहास में स्नातकोत्तर उपाधि और बी० एल० की उपाधि हासिल कर प्रारम्भ में अध्यापन के पेशे से जुड़े पुनह बिहार सरकार की सेवा से १९९२ में सेवानिवृत्त हुए |देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में सत्यनारायण की कविताएं गीत प्रकाशित होते रहते हैं |वर्ष 2003 में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की जूरी के सम्मानित सदस्य |भारतेन्दु पुरस्कार की चयन समिति के सदस्य रहे |1974 के बिहार आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी |रमन साहित्य पुरस्कार /गोपाल सिंह नेपाली पुरस्कार /डॉ० शम्भुनाथ सिंह पुरस्कार से सम्मानित इस कवि की महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं- तुम ना नहीं कर सकते [कविता ]टूटते जल बिम्ब /सभाध्यक्ष हँस रहा /नवगीत संग्रह सुनें प्रजाजन [नुक्कड़ गीत ]स्म्रतियों में [संस्मरण ]धरती से जुड़कर [सम्पादित ]नुक्कड़ कविता सम्पादित साहित्य अकादमी से प्रकाशित श्रेष्ठ हिन्दी गीत डॉ० शम्भुनाथ सिंह द्वारा सम्पादित नवगीत अर्धशती के कवि आदि |हम वरिष्ठ हिन्दी गीत कवि सत्यनारायण जी के चार गीत /नवगीत आप तक अंतर्जाल के माध्यम से पहुंचा रहे हैं |
एक
मांगूंगा फूलों से 
उनके रंग 
कभी मांगूंगा !

पत्तों से हरियाली 
टहनी से 
थिरकन की भाषा 
और जड़ों से 
मिट्टी में जीने की 
गहन पिपासा 

साथ छोड़ देंगे सब 
फिर भी 
कोई डाली झुककर 

मुझे थाम ही लेगी 
उसका संग 
जभी मांगूंगा 

मांगूंगा 
उनके पराग 
उनकी सुगंध मांगूगा 

आयेंगे वे दिन 
आंधी -अंधड़ के 
दिन आयेंगे 

फूलों से लिपटी 
तितली के ढंग 
तभी मांगूंगा !

दो 
इस मौसम में 
कुछ ज्यादा ही तनातनी है 
सच है स्याह 
सफेद झूठ 
यह आखिर क्या है ?

धर्म युद्ध है 
या जेहाद है 
या फिर क्या है 
इतिहासों के 
काले पन्ने खुलते जाते 
नादिरशाहों -चंगेजों की चली- बनी 

हरसू बदल 
रहा है मौसम 
दुर्घटना में 
आप हस्तिनापुर 
में हों या 
मैं पटना में 

तक्षशिला की आँखों में 
अब भी आँसू हैं 
और आज भी नालंदा में आगजनी है 

घड़ियालों की 
बन आई है 
समय नदी में 
नये नये 
हो रहे तमाशे 
नई सदी में 

लहजे बदले इन्द्रप्रस्थ में 
संवादों के 
रंगमंच पर किरदारों में गजब ठनी है 
तीन 
आ गये हैं हम 
नये इस फ्लैट में ,पर 
पूछती है माँ -
कहाँ है घर ?

है कहां 
ओटा -ओसारा 
और वह दालान ?

नीम की 
वह छांव झिलमिल 
ओस की मुस्कान ?

अब कहां 
वह चांदनी 
वह धूप आंगन भर ?

अब कहां 
टोला -मुहल्ला 
चहकता गलियार ?

कठघरों -से 
सर्द कमरे 
बंद मिलते द्वार 

लिफ्ट से 
चढ़ने उतरने का 
अजब मंजर ?


चार -सत्यनारायण की हस्तलिपि में एक गीत 

सुनहरी कलम से 

सत्यनारायण के गीतों को पढ़ना स्वयं अपने भीतर से गुजरने जैसा रोमांचक लगा |हिन्दी में ऐसे गीतकार बहुत थोड़े होंगे ,जिन्हें पढ़ते गाते मुझे अपने बीते दिन पूरी व्यग्रता से याद हो आयें |सत्यनारायण के गीतों में उनका विकास तो दीखता ही है ,कविता का उनका अंतरंग भी दिखता  है |ये कविताएं कैसे लिखी जाती हैं इसका पता भी ये कविताएं देती हैं|  स्व० ठाकुर प्रसाद सिंह सुप्रसिद्ध हिन्दी नवगीतकार
सही कविता अपने समय का सच्चा दस्तावेज होती है,  सत्यनारायण की कविता मेरे लिए  सबसे उम्दा उदाहरण है उनकी कविता में उनका जमाना बोलता है और उस मुहावरे में  बोलता है जो परम्परा से पोषित होकर नये रंग रूप में उभरता है |इतिहास को देखने की उनकी दृष्टि अद्भुत है विगत के चमचमाते अक्स पर वर्तमान की लहूलुहान तस्वीरों का कोलाज सत्यनारायण की रचनाशीलता वैचारिकता का शीर्ष बिंदु सा दिखाई देता है |ये शीर्ष बिंदु ये अपने परिवेश के कैनवास में जड़ते हैं |सत्यनारायण आज के बड़े कवि हैं ,जिनकी भाषा परम्परा से अलग हटकर चलते हुए नवगीत विधा का प्रतिमान गढ़ती है || स्व० कन्हैयालाल नंदन [साहित्यकार /पत्रकार ] 
सत्यनारायण जी सम्पूर्ण क्रांति के आन्दोलन से निकलने वाले कवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं |अपनी नुक्कड़ कविताओं में वे साधारण जनता के बीच से उभरे हुए एक साधारण कवि के रूप में सामने आते हैं जो दुर्लभ वैशिष्ट्य से युक्त है लेनिन ने लिखा है ,जब तुम्हारे विचार उलझे हुए लगें ,तो जनता के पास जाओ वे सुलझ जायेंगे |सत्यनारायण जी की कविताएं इसका साक्षात् प्रमाण हैं | नंद किशोर नवल [सुने प्रजाजन की भूमिका से ]

सत्यनारायण  प्रकृति के माध्यम से आधुनिकता को सम्प्रेषित करनेवाले गीतकारों में विशिष्ट स्थान रखते हैं |उनके प्रकृति बिम्बों की संरचना का अपना निजी वैशिष्ट्य है |प्रकृति के माध्यम से ऋत्विक अनुभवों को अभिव्यक्ति देने में सत्यनारायण सिद्धहस्त हैं |सत्यनारायण के गीतों का शिल्प सौंदर्य नवगीत की चारित्रिक विशिष्टहै|  डॉ० अवधेश नारायण मिश्र 

12 टिप्‍पणियां:

  1. सम्माननीय वरिष्ठ एवं सिद्ध रचनाकार सत्य नारायण जी के इतने सुन्दर नवगीत पढवाने के लिए आप को बहुत-बहुत आभार ....

    सत्य नारायण जी स्वस्थ रहें , शताधिक वर्षों तक अपनी रचनाओं से हमें कृतार्थ करते रहें -ईश्वर से यही प्रार्थना है |
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  2. हर रचनाओं की अपनी गहनता है, पर आखिरी रचना ने मुझे कुछ पंक्तियों को चुन लेने को बाध्य किया है ...
    आ गये हैं हम
    नये इस फ्लैट में ,पर
    पूछती है माँ -
    कहाँ है घर ?

    है कहां
    ओटा -ओसारा
    और वह दालान ?
    सच में घर की रूपरेखा ही बदल गई ... आँगन में जो पंछी उतरते थे वे भी पूछते हैं वो घर कहाँ है !सत्यनारायण जी की कलम को प्रणाम
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  3. सत्यनारायण जी की कलम को प्रणाम!
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  4. सत्यनारायण जी की कलम को प्रणाम|
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
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  5. समय के साथ बदलाव तेज़ी से आ रहे हैं । पहले जैसा अब कहाँ देखने को मिलता है , सुन्दर नवगीत पढवाने के लिए आभार
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  6. भाई सुरेन्द्र सिंह ,मनोज जी रश्मि जी पटाली जी और डॉ० दिव्या जी इस पोस्ट को तन्मयता से पढ़ने के लिए आभार |
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  7. बहुत बहुत आभार पढ़वाने का...
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  8. अद्भुत .....!!
    तुषार जी इन अमूल्य रचनाओं के संग्रह और प्रकाशन के लिए ढेरों बधाई .....
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  9. बड़े भाई समीर लाल जी भाई विवेक जैन जी आदरणीया हरकीरत जी आप सभी ने सत्यनारायण जी के गीतों को पसंद किया और मेरे इस प्रयास को सराहा आप सभी का आभार |
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  10. मुझे भी स्वयं के भीतर गुजरने सा लगा.मैं किस तरह आपका आभार प्रकट करूँ ? बहुत-बहुत धन्यवाद
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  11. 'सुनहरी कलम' के माध्यम से सत्यनारायण जी की रचनाओं से यह पुनर्परिचय, सच में, बड़ा सुखद रहा| वे नवगीत के उन गिने-चुने हस्ताक्षरों में हैं, जो आज के और भविष्य के नवगीत के सन्दर्भ हैं| नमन उनकी रचनाधर्मिता को और साधुवाद 'सुनहरी कलम' को इस प्रस्तुति के लिए|
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