उभरे दुरजन धीरे-धीरे
खुला करप्शन धीरे-धीरे ।।
संतो, बचना पास बुलाए
तन, धन, कंचन धीरे-धीरे ।।
खुला करप्शन धीरे-धीरे ।।
संतो, बचना पास बुलाए
तन, धन, कंचन धीरे-धीरे ।।
ऐसे हैं हालात मरेंगे
सारे सज्जन धीरे-धीरे।।
ख़त्म रूप का हो जाता है
सब आकर्षन धीरे-धीरे ।।
दुर्गुण की है यही खासियत
लूटेगा धन धीरे-धीरे।।
धीरज रखना हट जाएगी
सारी अड़चन धीरे-धीरे ।।
हार न मानो पंकज देखो
जागेंगे जन धीरे-धीरे ।।
सारे सज्जन धीरे-धीरे।।
ख़त्म रूप का हो जाता है
सब आकर्षन धीरे-धीरे ।।
दुर्गुण की है यही खासियत
लूटेगा धन धीरे-धीरे।।
धीरज रखना हट जाएगी
सारी अड़चन धीरे-धीरे ।।
हार न मानो पंकज देखो
जागेंगे जन धीरे-धीरे ।।
जवाब देंहटाएंवाह भाई, धन्यवाद