बुधवार, 6 जनवरी 2016

बर्दाश्त की हद है इतना भी कोई सहता है / छंदराज





श्रद्धांजलि : एक शायर छंदराज जी का यूँ चले जाना


हिंदी ग़ज़ल के मशहूर शायर छंदराज जी का निधन आज अहले-सुबह उनके बेकापुर, मुंगेर(बिहार) स्थितघर में हो गया। वे लगभग सत्तर-बहत्तर साल के थे। जाना तो सबको किसी-न-किसी दिन है ही, लेकिन इतने बड़े शायर का यूँ ही चुपके-से चले जाना ज़रा अच्छा नहीं लगा। जो शख़्स अपनी शायरी से मरे हुए सपनों को ज़िन्दा करता रहा, जो शख़्स मेरे-आपके आसपास फैले कोहरे से मुठभेड़ करता रहा, जब उनका अंत निकट आया, तो वही अभाववाले दिन उनके सबसे निकट थे। वही पत्नी, वही बेटे-बहू पास थे। बाक़ी सरकार के लिए, स्थानीय प्रशासन से जुड़े लोगों के लिए अच्छे-भले दिन थे, रातें थीं। हमारे समय की संवेदनहीनता, दीनता उनके सबसे क़रीब थी। अगर ऐसे न होता, तो क्या बहुत सारे लोगों की तरह छंदराज जी का भी इलाज पटना-दिल्ली के किसी बड़े अस्पताल में नहीं होता...ऐसा हो सकता था...ऐसा तब हो सकता था, छंदराज जी महज कवि-शायर न होकर किसी और क्षेत्र से जुड़े होते। सच्चाई यही है, देश में साहित्यकारों को जिस दीनता-हीनता से दोचार होना पड़ता है, किसी फ़िल्मकार, किसी क्रिकेटर को कहाँ होना पड़ता है! ख़ैर, सवाल तो बहुत सारे हैं और इन्हीं बहुत सारे सवाल और उन्हीं के एक शे'र के साथ अग्रज छंदराज को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि :
पत्थर भी गर्म होता है पानी भी उबलता है
बर्दाश्त की हद है इतना भी कोई सहता है।
Kumar Karn ओह्ह दुख़द, भाग्यशाली था मै जो अंतिम क्षणों में आपसे आशीर्वाद मिला,श्रद्धांजलि
Like · Reply · 1 · 45 mins · Edited
Sawai Singh Shekhawat
Sawai Singh Shekhawat जी सादर नमन !
डॉ योगेन्द्र
डॉ योगेन्द्र श्रद्धांजलि।सादर नमन।
Swatantra Mishra
Anami Sharan Babal
Write a comment...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...