रविवार, 3 जुलाई 2016

जनता तिरे हिस्से में हैंरानियां बाकी हैं




 
नरेंद्र कुमार मौर्य
दौर ए सियासत की कई खामियां बाकी हैं
फिर मुल्क के हिस्से में दुश्वारियां बाकी हैं
पुश्तैनी जमीं, धंधे, सब छीन के मानेंगे
रहबर के अभी दिल में मक्कारियां बाकी हैं
वो कत्ल करके दे गए पैसा मुआवजे का
बेवा की मगर घर में सिसकारियां बाकी हैं
ऐ मुल्क बता दे सच कि तेरी तरक्की को
अभी कितने गरीबों की कुर्बानियां बाकी हैं
हे राम कहां है तू अहिल्या का भला करके
दुनिया में तेरी अब तक बेचारियां बाकी हैं
मुल्क के दुश्मन की करते थे मदद तब भी
रजवाड़ों की अब तक क्यों गद्दारियां बाकी हैं
आजादी अधूरी है जनतंत्र खयाली है
जब तक यहां राजा हैं ओ रानियां बाकी हैं
क्या करे भारत मां, बेजार है बच्चों से
इन फिरकापरस्तों की शैतानियां बाकी हैं
वो ऐसे बदलता है गिरगिट को शरम आए
जनता तिरे हिस्से में हैंरानियां बाकी हैं
दिल थाम मुसाफिर अब रस्ता अभी लंबा है
न जाने अभी कितनी नाकामियां बाकी हैं
खींचे है जमीं अपनी ओ ख्वाब पुकारे है
ये कौन से जनमों की दिलदारियां बाकी हैं
नरेंद्र कुमार मौर्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...