कृष्ण कन्हैया / दिनेश श्रीवास्तव: (कुण्डलिया)
*कृष्ण-कन्हैया*
(१)
कृष्ण-कन्हैया प्रगट हों,पुनः हमारे धाम।
विपदा यहाँ अपार है,संकट यहाँ तमाम।।
संकट यहाँ तमाम,बचा लो धरती प्यारे।
तुम्हीं हमारे देव,आज हे!नंददुलारे।।
धरती के सब लोग,पुकारें दैया-दैया।
हमे बचा लो श्याम!,हमारे कृष्ण-कन्हैया।।
(२)
आया ऐसा शुभ दिवस, टूटा कारागार।
भाद्र माह की अष्टमी,लिए कृष्ण अवतार।
लिए कृष्ण अवतार,चतुर्दिक बजी बधाई।
देवों ने भी देख,पुष्प वर्षा बरसाई।।
वासुदेव ने लाल,यशोदा अंक बिठाया।
अद्भुत यह सौभाग्य,नंद के द्वारे आया।।
(३)
होते हैं संसार मे,जब जब पापाचार।
तभी यहाँ इस अवनि पर,प्रभु लेते अवतार।।
प्रभु लेते अवतार,दुष्ट मर्दन हैं करते।
भक्त जनों के कष्ट, सदा प्रभुवर हैं हरते।।
कहता सत्य दिनेश,अधर्मी निश्चित रोते।
राम कृष्ण के रूप,अवतरित जब प्रभु होते।।
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[8/11, 17:23] DS दिनेश श्रीवास्तव: गीत
*कृष्ण लिए अवतार*
चमत्कार ऐसा हुआ,
टूटा कारागार।
खुली पाँव की बेड़ियाँ,
हुआ जगत उजियार।
भाद्र माह की अष्टमी,
षोडश गुण आगार।
मानव सेवा के लिए,
कृष्ण लिए अवतार।।-१
देवों के भी दर्प को,
किया कृष्ण ने चूर।
मानव-सेवा के लिए,
हुए देव मजबूर।
ब्रह्मा जी ने भी किया,
कृष्णभक्ति स्वीकार।
गोपालक के रूप में,
कृष्ण लिए अवतार।।-२
कामदेव के दर्प को,
करते हैं जो चूर।
काम क्रोध मद लोभ से,
करते हमको दूर।
पराशक्ति परब्रह्म थे
कोई नहीं विकार।
निर्विकार के रूप में,
कृष्ण लिए अवतार।।-३
हुआ मानवी रूप का,
वहाँ श्रेष्ठता सिद्ध।
देवराज जब इंद्र को
किए बाण से विद्ध।
गोवर्धन धारण किया,
थी विपत्ति की मार।
प्रतिपालक के रूप में,
कृष्ण लिए अवतार।।-४
कंस,जरा,शिशुपाल का,
फैला था आतंक।
मधुसूदन ने अंत कर,
धरती किया निशंक।
किया धरा पर कृष्ण ने
असुरों का संहार।
धर्म धरा संस्थापना,
कृष्ण लिए अवतार।।-५
चंद्रवदन,लोचन कमल,
मुख पर मुरली तान।
दरस मात्र से हो सदा,
शोक-मोह अवसान।
फैले भारत देश में,
मानवता से प्यार।
इसी लिए इस जगत में,
कृष्ण लिए अवतार।।-६
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
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