रंजन कुमार सिंह
मुक्ति की कामना किसे न होगी। आदि शंकराचार्य ने कहा है कि जब हम रस्सी को साँप समझ लेते हैं तो उससे डर जाते हैं। जी हां, हमारा डर रस्सी को साँप मान लेने में है। साँप है नहीं, पर हम रस्सी में साँप देख लेते हैं और उससे डर जाते हैं। शंकराचार्य जी कहते हैं, रस्सी में साँप का विभ्रम ही माया है। और इस सत्य की पड़ताल कर के ही हम स्वयं को माया से मुक्त कर सकते हैं। यानी जब हमें रस्सी की सच्चाई का पता चलता है तो हमारा डर आप से आप चला जाता है और हम डर से मुक्त हो जाते हैं। आतम्चिन्तन की आठवीं कड़ी में लेखक एवं चिन्तक रंजन कुमार सिंह कहते हैं, लोगों को डराकर रखना बेहद आसान है और उनमें विश्वास भरना उतना ही मुश्किल। आज के संदर्भ में बात करें तो सभी धर्म हमें डराकर ही मंदिर, मस्जिद या गिरजाघर तक पहुंचाने की कोशिशों में लगे हैं। जबकि धर्म तो वह है जो हममें विश्वास जगाकर हमें ईश्वर तक पहुंचाए। डर कर रहने से क्या डर से मुक्ति संभव है? https://youtu.be/TJEDJ7Cbx_Q
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