सोमवार, 31 अगस्त 2020

कुछ कविताएं

 

कुछ कविताएं  

अवसाद / डिप्रेशन 


आज हावी है हर किसी पर 

किसी न किसी रूप में ----

इसने नहीं छोड़ा बच्चों को भी 

और न ही घर के बुजुर्गो को ---

कारण साफ़ है ---

आधुनिकता की भाग दौड़ 

जिसने पीछे छोड़ दिया है 

हर रिश्ते को ---

जिसने किया है कुठाराघात ---

हर किसी के कोमल मन पर 

आज कोमलता खत्म हो गयी मन की --

सभी बेबस हैँ ---.

पर आज भी अवसाद को बीमारी की तरह 

नहीं लेते लोग . .

नहीं करते आंकलन 

नहीं करते और नहीं करवाते किसी प्रकार का चिकित्सीय विमर्श ---

जिसके कारण ---

आज हरपल खतरा मंडरा रहा है 

हर रिश्ते में 

एक अज़ीब सा डर बैठ गया है 

जाने कब और कैसे कौन सा रिश्ता 

कर देगा तार तार संबंधों को !!!


#सीमा

[8/31, 14:46] +91 97600 07588: 9760007588              सुरेंद्र सिंघल

          

          सुनो

             1

गुजरती रहेगी

 मेरे और तुम्हारे 

बीच में से 

जब तक हवा 

खिलते ही रहेंगे

 रंग बिरंगे फूल

 अपनी अपनी खुशबू

 बिखेरते हुए

 मुझ में 

तुम में 

और हमारे चारों ओर

 सुनो

 इस तरह मत जकड़ो

 अपनी बाहों में मुझे


              2

ऐसा भी क्या

 गुजर जाएं

 मेरे और तुम्हारे 

बीच में से 

हवा के साथ साथ

 जहर भरे नारे भी 

नफरतें उछालते हुए 

सुनो 

कसकर भींच लो

 अपनी बाहों में मुझे


            3

सुनो 

छलनी बन जाते हैं

 हम दोनों 

हर मिलावटी हवा के लिए

 ताकि 

गुजर पाए सिर्फ़ 

ताजी और साफ हवा

 हम दोनों के बीच में से

 ताकि

 जन्म लेते रहें 

नए नए रिश्ते

 महकते हुए 

हम दोनों के बीच

 और हमारे चारों ओर

[8/31, 22:17] +91 98736 05905: *"दरवाजे "*


पहले दरवाजे नहीं खटकते थे...

रिश्ते -नातेदार

मित्र -सम्बन्धी

सीधे

पहुँच जाते थे...

रसोई तक


वहीं जमीन पर पसर

गरम पकौड़ियों के साथ

ढेर सारी बातें

सुख -दुःख का

आदान -प्रदान


फिर खटकने लगे दरवाजे...

मेहमान की तरह

रिश्तेदार

बैठाये जाने लगे बैठक में..

नरम सोफों पर


कांच के बर्तनों में

परोसी जाने लगी

घर की शान...


क्रिस्टल के गिलास में

उड़ेल कर ...

*पिलाई जाने लगी.. हैसियत.


धीरे -धीरे

बढ़ने लगा स्व का रूप..


मेरी जिंदगी ... मेरी मर्जी

अपना कमरा..

अपना मोबाइल ..

कानों में ठुसे..द्वारपाल..

लैपटॉप..


पर कहीं न कहीं 

स्नेहपेक्षी मन.... 


प्रतीक्षा रत है...

किसी अपने का..!!!


पर अब.....

दरवाजे नहीं खटकते हैं ..!!!

कोविड युग है न

कोई आता भी है तो

दो मीटर की दूरी से

हाथ हिलाता है

चला जाता है

उसके जाने के बाद

कहते है हम

अजीब आदमी है

कोविड काल में यूँ ही घूम रहा है

इन्तजार है हमें ,उस समय का जब

दरवाजे खटकने लगेगें

हम मेजबानी करे, अपने मेहमान की

उनके मनपसन्द व्यंजनों से,

परोसे उनका मन पसन्द पेय पदार्थ,

फिर हम भी किसी का दरवाजा

 खटखटायें ,मेहमान बन 

किसी अपने के घर जायें,

हमें इन्तजार है उन दिनो का,

जब बिना दरवाजा खटकायें,

कोई अपना मेरे घर आयें,

उनको किचन में खड़े खड़े ही,

चाय पकौड़े खिलायें,

कुछ उनकी सुने,

कुछ अपनी सुनायें,

गले लगें,

मन हल्का करें,

बिना दरवाजा खटकायें,

किसी अपने के घर जाए।

[8/31, 23:12] +91 84331 34545: जीडीपी के गिरने की बिलकुल चिंता न करें. चढ़ना उतरना जीवन का धर्मं है. भगवान में आस्था रखिये. तुलसीदास जी कह ही गए हैं, हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस बिधि हाथ. जो जीडीपी गिरने से विचलित हो रहे हैं, उनकी आस्था संदिग्ध है. 

याद रखें, देश आगे बढ़ रहा है.

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