#बात बे बात (५६) :/ परशुराम शर्मा
दिल्ली के मेरे दोस्त दिलीप चौबे हैं, जो हम एक दूसरे को बाबा कहते हैं। स्नेह वश। वे विद्वान पत्रकार हैं। राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत हैं। भोजपुर वासी हम दोनों सालों साथ-साथ काम कर चुके हैं। पिछले दिन उन्होंने जब बिहिया पर मेरा एक आलेख पढ़ा तो बताया कि यहां के प्रसिद्ध मंदिर की देवी महथिन दाई माता उनकी कुलदेवी हैं। वे हमेशा वहां सपरिवार मत्था टेकने जाते रहते हैं। यह भी कहा कि अभी हाल ही वहां गया था। बिहिया की हाल की कुत्सित घटना से वे भी बहुत झुब्घ और दुखी हैं।
बिहिया हमारे लिए भी तीर्थ रहा है। मेरा माथा तो बचपन से माता महथिन दाई के चरणों में झूकता रहा है। पहली बार गांव से दादी के साथ वहां पांव-पैदल गया। शादी के बाद हम सपत्निक माथा टेकने गये। हाल में भी घर परिवार के साथ हम पूजा करने गये। सब वहां जाते हैं। मतलब महथिन दाई माता की महत्ता भोजपुर के कण-कण में समाहित है। वे सबकी आस्था में बसी हैं। संस्कृति का हिस्सा हैं। उसकी पोषक हैं। वहां किसी महिला के साथ अभद्र कांड की कल्पना नहीं की जा सकती।
पता नहीं, फिर भी कैसे उस तीर्थ नगरी में वहां के आम लोगों के सामने दिन दहाड़े सरे बाजार एक महिला को पूरी तरह नंगा कर परेड कराया गया। हद हो गयी। दुनिया भर में इसकी बदनामी हो रही है। यह बहुत ही शर्मनाक है। ऐसा लगता है कि वहां माता के शाप का डर लोगों में नहीं रहा। जैसे, सालों पहले एक नारी के साथ हुए दुराचार की घटना और उसके हुए दुष्परिणाम को लोग भूल गये। तब ऐसे ही एक जमाने में एक दुराचारी राजा को महथिन दाई माता के कोप का कड़ा ईश्वरीय दण्ड मिला था। केवल उसका राजपाट ही नहीं गया, उस दुष्पापी राजा का पूरा वंश ही समाप्त हो गया। यह इस मंदिर की देवी माता की पुरानी कथा है। मैं इसकी प्रमाणिकता में नहीं जाता। पर यह कथा घर-घर दोहरायी जाती है। हर साल मेले में वहां असंख्य नर-नारी देवी माता से सुहाग और सुरक्षित जीवन का आशीर्वाद लेने जुटते हैं। मानो यह पवित्र मंदिर किसी महिला के लिए बौराये हुए पापियों से बचने का एक मुक्ति द्वार हो।
माना जाता है कि इस इलाके का राजा रणपाल बहुत ही दुराचारी एवं घमंडी था। वह उधर से गुजरने वाली हर नई-नवेली दुल्हनों की डोली पहले अपने पास मंगवा लेता था। बल प्रयोग कर अबला की इज्जत लुटता था। एक दिन जब सिकरिया गांव के श्रीधर महंथ की बेटी रागमती की डोली उसी रास्ते से सोन नदी के पास तुलसी हरीग्राम अपने ससुराल की ओर जा रही थी तो राजा के सैनिको ने डोली रोक दी। उसे महल की ओर चलने को कहा। इसका महंथ की बेटी ने जबरदस्त विरोध किया | जब सैनिकों के साथ राजा ने भी जबरदस्ती की तो महथिन ने क्रोधित होकर राजवंश के समूल नाश होने का शाप दे दिया। बताया जाता है की इस घटना के बाद महथिन की डोली में स्वतः आग लग गई। वह सती हो गयी। इस घटना के बाद हरिहो राज वंश का भी नाश हो गया | बाद में सती की याद में श्रद्धालु लोगों ने वहां एक चौरा बनाया। महथिन माई की पूजा होने लगी। धीरे-धीरे वह पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गयी। वहां लोगों ने महथिन माई का एक भव्य मंदिर बना दिया। नियमित पुजारी रहने लगे। देवी की सुबह-शाम आरती होती है। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां सालाना लगने वाले बड़े मेले के अलावा हर सप्ताह दो दिन सोमवार एवं शुक्रवार को विशेष मेला लगता है | लोग अपनी मन्नते मांगने यहां दूर-दूर से आते हैं | महथिन माई को लेकर महिलाओं में गहरी आस्था है कि इनकी आराधना से सुहाग सुरक्षित रहता है | सुखी दाम्पत्य जीवन पर कोई संकट नहीं आता। माता उनकी मनौती पूरी करती हैं। मनौती पूरी होने पर विशेष पूजा और चुनरी चढ़ाने का रिवाज है। इस इलाके में मंदिर की मान्यता एक शक्तिपीठ जैसा है। लोगों को विश्वास है कि मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। मंदिर प्रागंण में लोग अपने परिवार के साथ नये जोड़ों का शादी-विवाह कराने भी जुटते हैं।
यही कारण है कि महथिन माई सुहाग की देवी के रूप में इस क्षेत्र में विख्यात है | मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर परिसर में प्रवेश करते ही बायें तरफ शिव मंदिर तथा दाहिने तरफ राम जानकी मंदिर है।मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में एक चबूतरा है वहां एक चौमुखा दीप जलता रहता है। चबूतरे पर बीचोंबीच दो गोलाकार पीतल का परत चढ़ाया हुआ महथिन माई का प्रतीक चिह्न है | इसी तरह का दो गोला मुख्य गोले के अगल बगल स्थित है। जिसके बारे में बताया जाता है कि दो मुख्य गोला महथिन माई और उनके बहन का प्रतीक चिह्न और दायें-बायें तरफ वाला गोला महथिन माई के दो परिचारिकाओं का स्मृति चिह्न है | इन्हीं के समक्ष महिलाएं अपना माथा टेकती हैं। मनौतियां मानती हैं। सुहाग एवं संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर चुनरी चढ़ाती हैं।
लोगों का कहना है कि वर्षों पूर्व यहां महुआ के पेड़ के नीचे खुले आकाश में मिट्टी का एक चबूतरा बना था जिस पर महथिन माई की पूजा की जाती थी | मंदिर कब बना और किसने बनवाया, यह कोई नहीं बता पाता। इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती। गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर बोलचाल की स्थानीय भाषा में चौपाई दोहे लिखे हैं। महथिन माई के पुण्य प्रताप से संबंधित अनेक चमत्कारिक किस्से हैं। शादी ब्याह के मौसम में नव विवाहिता जोड़े यहां ‘कंकण’ छुड़ाने आते हैं। यहां प्रति वर्ष सैकड़ों जोड़े महथिन माई को साक्षी मानकर दाम्पत्य सूत्र में बंधते हैं | बिहिया का यह मंदिर लोक आस्था का एक मजबूत केंद्र माना जाता है।
शारदीय नवरात्र में यहां का नजारा देखते ही बनता है. इस मंदिर का यहां धार्मिक और अाध्यात्मिक महत्व है. शादी-विवाह, बच्चों का मुंडन, वाहन पूजन से लेकर हर तरह के कर्मकांड यहां होते हैं.
लोगों में तो यहां तक मान्यता है कि महथिन माई दुर्गा माता की अवतार हैं। जब-जब बिहिया की धरती पर जुल्म और विपत्ति आयेगी, उसका वे नाश कर देंगी। यही कारण है कि महथिन दाई के प्रताप से बिहिया को शांति, सद्भाव ओर अमन -चैन का क्षेत्र कहा जाता रहा है। खैर, मैं इसके सत्य-असत्य के पचड़े में नहीं पड़ता। पर, मेरा यह विश्वास है कि आस्था के ऐसे मजबूत केन्द्र ही भारतीय समाज को शांति, सद्भाव और सहयोग का बहुमूल्य पाठ पढ़ाते रहे हैं। जिससे हमारा समाज सदियों से अक्षुण रहा। लोक मानस में भटकाव का तत्व कम रहा। प्रगति का मतलब विनाश के रास्ते पर जाना नहीं हो सकता है। ऐसा कोई भटकाव सबके लिए सिरदर्द ही साबित होगा।
-- परशुराम शर्मा ।
३१ अगस्त २०१८.
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