*दुख से ऊपर उठना...*
~ *प्रेम रंजन अनिमेष*
(💐 *अजीम हस्ती और महान अदाकार दिलीप कुमार को याद करते हुए* 💐)
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इस टूटते सितारे को देखो
और सिर झुका लो
दुख से रिश्ता
गहरा था उसका बड़ा
बल्कि कह सकते
दुख ने ही अपने हाथों से
पाल पोस कर
किया उसे बड़ा
दुख देखा उसने
दुनिया भर का
और जिया उस दुख को
अपने किरदारों में
जी कर दिखलाया
दुनिया भर को
इस साधना में
कुरेदते रहे होंगे उसे
वही सवाल
भटकाया जिन्होंने
तथागत को सालों साल
और फिर मिला
जग जीवन को
बुद्ध प्रबुद्ध
इस नये तथागत ने
बतलाया दिखलाया
कि दुख से सीखा जा सकता
सँवरा निखरा चमका जा सकता
उठा जा सकता
अपने से ऊपर
पैकर से ऊपर
आसमान तक जाया जा सकता
बुलंदियों पर जगमगाया जा सकता
प्यारे सितारे की तरह
भटके हुओं को रास्ता दिखाया जा सकता
जीने का हुनर सिखाया जा सकता
दुख जरिया था उसके लिए
उन तक पहुँचने के लिए
जिनके पास दुख है
और दुख है नहीं किसे ?
इस तरह सबसे वह जुड़ा
सब तक पहुँचा
हर दिल को छू सका
उसके अपने दुख
उसके अपने दिल का
क्या पता
वह कितना भरा
कितना दुखा
सितारे के भीतर छुपे
फनकार की तरह
सितारे टूटते हैं कभी
कलाकार मगर मरते नहीं
न ही कला उनकी
अभी देह को दुख था
वह ऊपर उससे उठ गया
काया रूठती है
छाया छूटती है
मगर रोशनी रूहानी
अंदर फूटती है
उस रोशनी को कोई नाम दो
राम श्याम कह लो
दिलीप यूसुफ या बैरागी
किसी शेक्सपियर का है कहना
नाम में क्या रखा
वह किसी जुबान किन्हीं अक्षरों में
उतना ही जगमगाता गाता
रोशनी की राह बनाता
दिखलाता दुनिया भर को
इस टूटते सितारे को देखो
और दुआ करो
कि फिर कोई
सितारा ऐसा उगे
जिसके उजास में
जिसकी प्रेरणा से
देख सके ढूँढ़ सके
रस्ता अपना दुनिया
और यह भी
कि सितारा तो वह
दरअसल टूटा नहीं
बल्कि जगमगा रहा अब भी
और ऊपर उठ कर वहाँ
जहाँ से देख सके उसे
सारी कहकशाँ...
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✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*
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