गुरुवार, 21 सितंबर 2023

पर इंसान परेशान बहुत है।।*/ कमल शर्मा



*अच्छी थी पगडंडी अपनी।*

*सड़कों पर तो जाम बहुत है।।*


*फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।*

*सबके पास काम बहुत है।।*


*नहीं जरूरत बुज़ुर्गों की अब।*

*हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।*

  

*उजड़ गए सब बाग बगीचे।*

*दो गमलों में शान बहुत है।।*


*मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।*

*कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।*


*पीते हैं जब चाय तब कहीं।*

*कहते हैं आराम बहुत है।।*


*बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।*

*फोनों पर पैगाम बहुत है।।*


*आदी हैं ए.सी. के इतने।*

*कहते बाहर तापमान बहुत है।।*


*झुके-झुके स्कूली बच्चे।*

*बस्तों में सामान बहुत है।।*


*सुविधाओं का ढेर लगा है।*

*  पर इंसान परेशान बहुत है।।*

5 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच इंसान परेशान बहुत है।
    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति सर।
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक यथार्थ कहता सुंदर सृजन, बहुत अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं

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