मथुरा पर केंद्रित दो रचनाएं 🙏
वेद मित्र शुक्ला
*1.*
कृष्ण भजन में डूबी राधे राधे जपती मथुरा प्यारी,
भोग, आरती, माखन-मिश्री की अलमस्ती मथुरा प्यारी|
पूजें पूरी ब्रज-अवनी को, पग-पग जन्मी कथा कृष्ण की,
पर, उर में तो पुण्यभूमि यह पावन धरती मथुरा प्यारी|
सजते हैं कुरुक्षेत्र मगर मत भूलें, देखो, रंगभूमि को,
युग हो कोई भी कंसों का वध तय करती मथुरा प्यारी|
साथ-साथ हैं वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन, बरसाना सब,
हँसते-गाते यमुना के घाटों पर बसती मथुरा प्यारी|
जन्माष्टमी पर्व हो या हो लट्ठमार होली रंगीली,
'जीवन है उत्सव' संदेशा देती रहती मथुरा प्यारी|
*2.*
आसाँ कब वसुदेव-देवकी होकर तप करना मथुरा में,
समझी यह संघर्ष-कथा सो अच्छा था रुकना मथुरा में|
अपनों की कारा में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है जो -
वह तो ही है कृष्ण-जन्म का एक रात घटना मथुरा में|
बारिश, बाढ़, अमावस हों या कंस-राज, मुश्किलें बड़ी, पर
धर्म यही वसुदेव भाँति हो क्रांति-कथा गढ़ना मथुरा में|
गोकुल औ वृंदावन माना हृदय बीच बसते हैं, लेकिन -
कृष्ण सिखाते कर्तव्यों की खातिर है बसना मथुरा में|
महसूसो वह 'जन्मभूमि' जो कारा के भीतर थी जकड़ी,
'रंगभूमि' फिर जहाँ पाप का निश्चित था मिटना मथुरा में|
(सौ.- राष्ट्रधर्म, सितंबर 2023, पृ. 10)
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid032kgN7NYXchBaFnbQ3sdaHrkX8d6n9ieivP3T37FdbiMD4XY6E2ZE6csR7at2XMNLl&id=1113073210&mibextid=Nif5oz
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें