किसी जंगल में एक गधा रहता था । उसने बाकी जानवरों से कहना आरंभ कर दिया कि शेर एक अच्छा राजा नहीं है । उसमें कोई दम नहीं है । संकट के समय वह तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा । इसलिए तुम सब लोग मुझे अपना राजा मान लो ।
सभी जानवर हंसने लगे । गधा अपने आप को ताकतवर दिखाने के लिए सुरक्षित दूरी से शेर को गालियां बकने लगा । उस पर तरह-तरह के आरोप लगाने लगा । वह शेर को चैलेंज करने लगा कि हिम्मत है तो मुझसे लड़ कर दिखा ।
शेर ने गधे को पूरी तरह इग्नोर किया और अपना काम करता रहा। थक हार कर गधा वापस चला गया । और बाकी जानवरों को बताया कि शेर बिल्कुल कमजोर है । मैंने उसे इतनी गालियां दीं , चैलेंज किया, पर वह चुपचाप सुनता रहा ।
बकरी, खरगोश और चूहे जैसे कुछ जानवर , जो गधे का एहसान मानते थे क्योंकि गधा उन्हें भोजन के लिए घास के मैदानों का पता बताता था, वे गधे की हां में हां मिलाने लगे ।
गधे के जाने के बाद शेर के महामंत्री हाथी ने उससे पूछा," महराज!! वो गधा आपको इतनी गालियां बकता रहा, आपको लड़ने के लिए ललकारता रहा। फिर भी आप चुप क्यों रहे ? चहते तो पंजे के एक वार से ही उसका काम तमाम कर सकते थे? या मुझे आदेश देते , मैं उसकी चटनी बना देता ? इससे आपकी धाक क़ायम रहती ?
शेर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " हाथी भाई !! इसके तीन कारण हैं ।
पहला अगर मैं या आप गधे से लड़ते तो बाकी जानवर यह कहते कि हमारा राजा बड़ा तानाशाह है । भला गधे जैसे निरीह प्राणी से भी कोई लड़ता है ?
दूसरे लड़ाई में गधा मर जाता तो उसकी मां ,परिवार वाले और चमचे उसे शहीद बता कर बाकी जानवरों की सहानुभूति अर्जित करते और हमारे खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाते ।
तीसरे गधे के परिवार को फायदा मिलता देख कई दूसरे जानवर भी शहीद बनने की जुगाड़ में लग जाते ।
मैं गधे या उसके साथियों की वजह से राजा नहीं हूं।
न अभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते वने,
विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।
अर्थ :- जंगल में सिंह का राज्याभिषेक संस्कार आदि कुछ नहीं किया जाता । उसके पराकृम के कारण उसे स्वयमेव राजा-पद अर्जित हो जाता है ।
नोट : कृपयाइस कहानी का राजनैतिक अर्थ न लगाए।
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