प्रस्तुति-- डा. ममता शरण
रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। रहीम सांप्रदायिक सदभाव तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक थे। रहीम कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे।
अनुक्रम
जीवन परिचय
नवाब अब्दुर्रहीम खान खाना मध्यकालीन भारत के कुशल राजनीतिवेत्ता, वीर- बहादुर योद्धा और भारतीय सांस्कृतिक समन्वय का आदर्श प्रस्तुत करने वाले मर्मी कवि माने जाते हैं। उनकी गिनती विगत चार शताब्दियों से ऐतिहासिक पुरुष के अलावा भारत माता के सच्चे सपूत के रुप में किया जाता रहा है। आपके अंदर वह सब गुण मौजूद थे, जो महापुरुषों में पाये जाते हैं। आप ऐसे सौ भाग्यशाली व्यक्तियों में से थे, जो अपनी उभयविद्य लोकप्रियता का कारण केवल ऐतिहासिक न होकर भारतीय जनजीवन के अमिट पृष्टों पर यश शरीर से जीवित पाये जाते हैं। आप एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर आपने जो मार्मिक तथ्य अंकित किये थे, उनकी विशाल हृदयता का परिचय देती हैं। हिंदू देवी- देवताओं, पवाç, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है। आप जीवन पर हिंदू जीवन को भारतीय जीवन का यथार्थ मानते रहे। रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवन व्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो सामाजिक सौहार्द एवं भारतीय सांस्कृति की वर झलक को पेश करता है, जिसमें विभिन्नता में भी एकता की बात की गई है।जन्म
अबदुर्ररहीम खानखाना का जन्म संवत् १६१३ ई. (सन् १५५३) में इतिहास प्रसिद्ध बैरम खाँ के घर लाहौर में हुआ था। संयोग से उस समय सम्राट हुमायूँ सिकंदर सूरी का आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। बैरम खाँ के घर पुत्र की उत्पति की खबर सुनकर वे स्वयं वहाँ गये और उस बच्चे का नाम “रहीम’ रखा।रहीम अकबर के दरबार में
हुमायूँ ने युवराज अकबर की शिक्षा- दिक्षा के लिए बैरम खाँ को चुना और अपने जीवन के अंतिम दिनों में राज्य का प्रबंध की जिम्मेदारी देकर अकबर का अभिभावक नियुक्त किया था। बैरम खाँ ने कुशल नीति से अकबर के राज्य को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दिया। किसी कारणवश बैरम खाँ और अकबर के बीच मतभेद हो गया। अकबर ने बैरम खाँ के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया और अपने उस्ताद की मान एवं लाज रखते हुए उसे हज पर जाने की इच्छा जताई। परिणामस्वरुप बैरम खाँ हज के लिए रवाना हो गये। बैरम खाँ हज के लिए जाते हुए गुजरात के पाटन में ठहरे और पाटन के प्रसिद्ध सहस्रलिंग सरोवर में नौका- विहार के बाद तट पर बैठे थे कि भेंट करने की नियत से एक अफगान सरदार मुबारक खाँ आया और धोखे से बैरम खाँ का बद्ध कर दिया। यह मुबारक खाँ ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया। इस घटना ने बैरम खाँ के परिवार को अनाथ बना दिया। इन धोखेबाजों ने सिर्फ कत्ल ही नहीं किया, बल्कि काफी लूटपाट भी मचाया। विधवा सुल्ताना बेगम अपने कुछ सेवकों सहित बचकर अहमदाबाद आ गई। अकबर को घटना के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने सुल्ताना बेगम को दरबार वापस आने का संदेश भेज दिया। रास्ते में संदेश पाकर बेगम अकबर के दरबार में आ गई। ऐसे समय में अकबर ने अपने महानता का सबूत देते हुए इनको बड़ी उदारता से शरण दिया और रहीम के लिए कहा “इसे सब प्रकार से प्रसन्न रखो। इसे यह पता न चले कि इनके पिता खान खानाँ का साया सर से उठ गया है। बाबा जम्बूर को कहा यह हमारा बेटा है। इसे हमारी दृष्टि के सामने रखा करो। इस प्रकार अकबर ने रहीम का पालन- पोषण एकदम धर्म- पुत्र की भांति किया। कुछ दिनों के पश्चात अकबर ने विधवा सुल्ताना बेगम से विवाह कर लिया। अकबर ने रहीम को शाही खानदान के अनुरुप “मिर्जा खाँ’ की उपाधि से सम्मानित किया। रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्म- निरपेक्ष नीति के अनुकूल हुई। इसी शिक्षा- दिक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है। दिनकर जी के कथनानुसार अकबर ने अपने दीन- इलाही में हिंदूत्व को जो स्थान दिया होगा, उससे कई गुणा ज्यादा स्थान रहीम ने अपनी कविताओं में दिया। रहीम के बारे में यह कहा जाता है कि वह धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे।रहीम का विवाह
रहीम की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात सम्राट अकबर ने अपने पिता हुमायूँ की परंपरा का निर्वाह करते हुए, रहीम का विवाह बैरम खाँ के विरोधी मिर्जा अजीज कोका की बहन माहबानों से करवा दिया। इस विवाह में भी अकबर ने वही किया, जो पहले करता रहा था कि विवाह के संबंधों के बदौलत आपसी तनाव व पुरानी से पुरानी कटुता को समाप्त कर दिया करता था। रहीम के विवाह से बैरम खाँ और मिर्जा के बीच चली आ रही पुरानी रंजिश खत्म हो गयी। रहीम का विवाह लगभग सोलह साल की उम्र में कर दिया गया था।मीर अर्ज का पद
अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातों रात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिये जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम- काज सुचारु रुप से चलाने के लिए अपने सच्चे तथा विश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रुप से विश्वसनीय है।रहीम शहजादा सलीम
काफी मिन्नतों तथा आशीर्वाद के बाद अकबर को शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से एक लड़का प्राप्त हो सका, जिसका नाम उन्होंने सलीम रखा। शहजादा सलीम माँ- बाप और दूसरे लोगों के अधिक दुलार के कारण शिक्षा के प्रति उदासीन हो गया था। कई महान लोगों को सलीम की शिक्षा के लिए अकबर ने लगवाया। इन महान लोगों में शेर अहमद, मीर कलाँ और दरबारी विद्वान अबुलफजल थे। सभी लोगों की कोशिशों के बावजूद शहजादा सलीम को पढ़ाई में मन न लगा। अकबर ने सदा की तरह अपना आखिरी हथियार रहीम खाने खाना को सलीम का अतालीक नियुक्त किया। कहा जाता है रहीम खाँ यह गौरव पाकर बहुत प्रसन्न थे।भाषा शैली
रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। उनके काव्य में श्रृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं तथा दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं।प्रमुख रचनाएं
रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि।यह भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- अब्दुल रहीम खानखाना : एक बहुआयामी व्यक्तित्व (देशबन्धु)
- रहीम की रचनाएँ कविताकोश में
- रहीम (हिंदीकुंज में)
- रहीम दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित
|
जवाब देंहटाएंRahim Ke Dohe – संत रहीम दास के दोहे with meaning in Hindi. Download Rahim Das Dohe in PDF.
फ्रांस की राजधानी पेरिस में स्थित एफिल टॉवर अपने आकर्षण, सुंदरता, भव्यता और अनूठी डिजाइन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। एफिल टॉवर का इतिहास| एफिल टावर दुनिया के सात अजूबों में से एक है। यह न केवल प्रेम का प्रतीक माना जाता है, बल्कि यह फ्रांस की पहचान है, और फ्रांसीसी संस्कृति की झलक पेश करता है।
जवाब देंहटाएंदुनिया की इस सबसे खूबसूरत मीनार की नींव 26 जनवरी, 1887 को पेरिस में 'चैंप-दे-मार्स' में सीन नदी के तट पर रखी गई थी। जबकि इसे मशहूर इंजीनियर एलेक्जेंडर-गुस्ताव एफिल ने डिजाइन किया था। जिनके नाम पर यह भव्य मीनार बनाई गई थी। दुनिया की इस सबसे मशहूर कृति को बनने में करीब 2 साल का समय लगा, 1887 से 1889 तक इस टावर का निर्माण कार्य चल रहा था।